
महुआ मोइत्रा पर लगे आरोपों की जांच संसद की एथिक्स कमेटी ने की है. एथिक्स कमेटी ने महुआ मोइत्रा केस पर 500 पेज की रिपोर्ट तैयार की है. ये रिपोर्ट लोकसभा सचिवालय में जमा होनी है. जिसके बाद आगे की कार्रवाई को लेकर लोक सभा स्पीकर ओम बिरला को फैसला लेना है.
कहा जा रहा है कि एथिक्स कमेटी ने महुआ मोइत्रा की संसद सदस्यता खत्म करने तक की सिफारिश कर दी है - और दानिश अली के व्यवहार पर गंभीर आपत्ति भी जतायी है. एथिक्स कमेटी की सिफारिशों में पूरे मामले की विधि सम्मत, सघन, संस्थागत और समयबद्ध जांच कराया जाना है.
संसद की जांच की प्रक्रिया के समानांतर महुआ मोइत्रा और बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे सड़क पर भी जोरदार लड़ाई लड़ रहे हैं. निशिकांत दुबे का दावा है कि लोकपाल ने महुआ मोइत्रा के खिलाफ सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी है. महुआ मोइत्रा ने सीबीआई जांच का स्वागत तो किया है, लेकिन उससे पहले सीबीआई को क्या करना चाहिये ये भी बताया है, 'स्वागत है... मेरी जूती गिनने आ जाओ.'
महुआ मोइत्रा पर लगे ये आरोप बेहद गंभीर हैं
1. एथिक्स कमेटी ने ड्राफ्ट रिपोर्ट में कहा है, महुआ मोइत्रा ने 1 जनवरी, 2019 से 30 सितंबर, 2023 के बीच 4 बार दुबई का दौरा किया है - और उनके लोकसभा लॉगिन और पासवर्ड का वहां से 47 बार इस्तेमाल हुआ है.
मतलब, या तो महुआ मोइत्रा ने चार बार के दौरे में ही इतनी बार लोक सभा की साइट पर लॉगिन किया है - या फिर, ये तब भी इस्तेमाल हुआ है जब वो वहां नहीं थीं.
2. आईटी मंत्रालय की एथिक्स कमेटी को दी गई रिपोर्ट के मुताबिक, महुआ मोइत्रा के लॉगिन क्रेडेंशियल का जो इस्तेमाल हुआ है, हर बार एक ही आईपी एड्रेस रहा.
ऐसी संवेदनशील सूचनाएं शेयर किया जाना, साइबर सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा खतरा है. बल्कि हैकर्स के लिए मौका मुहैया कराने जैसा है. इससे से साइबर सिक्योरिटी सिस्टम को भी निशाना बनाया जा सकता है, और देश का संसद का कामकाज बाधित हो सकता है.
देश के साइबर दुश्मन सिस्टम को हैक कर कुछ भी कर सकते हैं - और ये काम देश की सुरक्षा को खतरे में डालने वाले है. अगर वास्तव में ऐसा हुआ है तो!
महुआ मोइत्रा को अपनी लड़ाई अकेले क्यों लड़नी पड़ रही है?
महुआ मोइत्रा अपनी लड़ाई अकेले लड़ रही हैं. उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के आधिकारिक प्रवक्ता ने पहले ही पल्ला झाड़ लिया था. महुआ मोइत्रा को लेकर ममता बनर्जी का तब भी साथ नहीं मिला है, जब वो खुद को महिला सांसद बता कर एथिक्स कमेटी के चेयरमैन पुरुष सासंद पर दुर्व्यवहार का आरोप लगा रही हैं. डांट फटकार की बातें अपनी जगह हैं, लेकिन ममता बनर्जी का बिलकुल भी साथ न देना अलग मुद्दा है.
तृणमूल कांग्रेस नेताओं के फंसने पर ममता बनर्जी को मजबूती के साथ पीछे खड़े देखा गया है. भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूत टीएमसी नेताओं को चुनाव लड़ाना, और सरकार बनने पर उनको सरकार में मंत्री बनाया जाना भी देखा जा चुका है. लेकिन ऐसा ममता बनर्जी सभी के साथ नहीं करतीं. ममता बनर्जी उसकी का बचाव करती हैं, जिनको लेकर उन्हें सही होने का भरोसा होता है - क्या महुआ मोइत्रा उस पैमाने पर खरा नहीं उतर पा रही हैं.
अगर महुआ मोइत्रा सहित टीएमसी के तीन नेताओं के मामले देखें तो ममता बनर्जी का अलग अलग व्यवहार देखा गया है. ममता बनर्जी, मंत्री होते हुए पार्थ चटर्जी के गिरफ्तार होते ही दूरी बना लेती हैं. कैबिनेट और पार्टी दोनों जगह से छुट्टी करा देती हैं - लेकिन हाल ही में गिरफ्तार हुए ज्योतिप्रिय मलिक के समर्थन में खड़ी दिखाई देती हैं.
आखिर महुआ मोइत्रा से खफा होने की असली वजह क्या हो सकती है? कहीं वही वजह तो नहीं जिसके चलते INDIA गठबंधन की मुंबई मीटिंग के दौरान राहुल गांधी से खफा हो गयी थीं? राहुल गांधी ने असल में कारोबारी गौतम अडानी से जुड़ा मुद्दा उठा दिया था - और महुआ मोइत्रा भी तो अडानी को लेकर सवाल पूछे जाने को लेकर ही विवादों में आयी हैं. बाकी बातें तो बाद में मालूम पड़ी हैं.
देश को तो सिर्फ सच जानने से मतलब है
सवाल सिर्फ किसी के हक और किसी के अधिकार का ही नहीं होता, सच जानना भी जरूरी होता है. हर केस में बेकसूर साबित होने तक व्यक्ति आरोपी ही होता है - महुआ मोइत्रा का मामला भी फिलहाल ऐसा ही है.
महुआ मोइत्रा अपनी लड़ाई लड़ रही हैं. और अपने तरीके से लड़ रही हैं. अपनी लड़ाई लड़ने का सबको हक है. महुआ मोइत्रा को भी है. ठीक वैसे ही जैसे महुआ मोइत्रा को सवाल पूछने का हक है. कौन से सवाल पूछने हैं, और कौन से नहीं, महुआ मोइत्रा को ये हक भी हासिल है.
महुआ मोइत्रा पर गंभीर आरोप लगे हैं. ये इल्जाम बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने लगाये हैं. आरोपों का आधार बना है, महुआ मोइत्रा के ही पुराने दोस्त जय अनंत देहाद्राई की तरफ से दर्ज कराई गई शिकायत. जय अनंत देहाद्राई पेशे से वकील हैं.
एथिक्स कमेटी के सामने महुआ मोइत्रा पेश तो हुई थीं, लेकिन अंदर से तमतमाई हुई निकलीं. महुआ मोइत्रा का गुस्सा देख कर हर कोई हैरान था. जो वीडियो सामने आया था उसी से पेशी के दौरान हुई घटना के कयास लगाये जाने लगे - थोड़ी ही देर बाद महुआ मोइत्रा ने बता भी दिया कि अंदर क्या क्या हुआ था.
महुआ मोइत्रा ने एथिक्स कमेटी के चेयरमैन विनोद कुमार सोनकर पर निजी सवाल पूछने का आरोप लगाया है. महुआ के समर्थन में एथिक्स कमेटी की बैठक का बहिष्कार करने वाले 5 सदस्यों में बीएसपी सांसद दानिश अली भी शामिल हैं. दानिश अली कुछ ही दिन पहले बीजेपी सांसद रमेश बिधूड़ी के शिकार बने थे. इस मामले में एथिक्स कमेटी ने जिस तरीके से दानिश अली पेश आये हैं, उस रवैये को भी गंभीर माना है, और फटकार लगायी है.
महुआ मोइत्रा ने उनसे पूछे गये सवालों को लेकर 'वस्त्रहरण' की संज्ञा दी है. क्या सवाल पूछे गये, ये अलग बात है. और ऐसे सवाल क्यों पूछे गये, ये भी बिलकुल अलग बात है.
महुआ मोइत्रा संसद में जो चाहें सवाल पूछ सकती हैं, जिसकी एक व्यवस्था बनी हुई है और दायरा भी. वैसे तो उनके वायरल वीडियो भी हैं जिसमें असंसदीय शब्दों का इस्तेमाल करती है, और वो सीबीआई के स्वागत वाले लहजे से दो कदम आगे ही होता है.
महुआ मोइत्रा सड़क पर भी सवाल कर सकती हैं. सड़क सबकी है. सड़क के लिए भी ट्रैफिक रूल बने हुए हैं. वैसे ही सोशल मीडिया के लिए भी कुछ मर्यादा बनायी गयी है. वैसे सड़क चलते कभी कभी सदन में बोले जा रहे शब्द भी सुनाई पड़ जाते हैं. महुआ मोइत्रा के शब्द भी वैसे ही कानों में गूंजते हैं, जैसे नीतीश कुमार के. माफी मांग लेना तो अलग ही फैशन है. और इस रेस में तो अरविंद केजरीवाल ही आगे नजर आते हैं.
लेकिन महुआ मोइत्रा को ये भी मालूम होना चाहिये कि एथिक्स कमेटी में उनको जबाव देने के लिए बुलाया गया था, नये सवाल पूछने के लिए तो कतई नहीं. वहां सवाल पूछने का अधिकार सिर्फ कमेटी के चेयरमैन और सदस्यों के पास था. महुआ मोइत्रा को अपनी बात रखनी थी.
बीच में ही बाहर निकल कर महुआ मोइत्रा ने सवाल पूछे जाने के तरीके पर सवाल उठा दिया. महिला होने की दुहाई देने लगीं. बचाव का ये तरीका भी चलेगा, लेकिन क्या और कैसे सवाल पूछे जायें, महुआ मोइत्रा नहीं तय कर सकतीं - ज्यादा से ज्यादा वो ये मांग कर सकती थीं कि ऐसे वैसे सवाल किसी महिला सांसद से कोई महिला सांसद ही पूछ सकती है. अगर महुआ मोइत्रा की तरफ से ऐसी मांग हुई होती, और नहीं मानी जाती तो उनका पक्ष और मजबूत होता.
वैसे कमेटी के सामने जब महुआ मोइत्रा पेश हुई होंगी, और जो सवाल जवाब हुए होंगे - वे दर्ज तो हुए ही होंगे. जांच पूरी होने के बाद वो भी सामने आएगा ही, लेकिन बात सिर्फ इतनी ही नहीं है.
महुआ मोइत्रा पर जो भी आरोप लगे हैं, सबसे गंभीर संसद की वेबसाइट का लॉगिन और पासवर्ड किसी थर्ड पार्टी को शेयर करने का है. सुनने में तो ये भी आ रहा है कि महुआ मोइत्रा ने ये स्वीकार भी कर लिया है.
महुआ मोइत्रा की दलील है कि कौन सांसद खुद लॉगिन करता है, ये काम सभी को मिले स्टाफ के लोग करते हैं. लेकिन स्टाफ में जो भी होंगे वे कौन हैं, इस बात का वेरीफिकेशन भी तो होता होगा. अगर वे इसके योग्य नहीं हों तो काम पर रखा ही नहीं जा सकता.
अपने स्टाफ को छोड़ कर महुआ मोइत्रा ने अगर वे चीजें किसी बाहरी से शेयर किया है, तो उसे वो सारी चीजें मालूम हो रही होंगी जिसे देखने और जानने की अनुमति महुआ मोइत्रा को मिली होगी. कारोबारी दर्शन हीरानंदानी के स्टाफ को संसद के लिए तो वेरीफिकेशन कराया नहीं गया होगा.
महुआ मोइत्रा को ये सुविधा जनता की चुनी हुई प्रतिनिधि होने के नाते मिली है, लेकिन वो किसी बाहरी व्यक्ति से शेयर करने के लिए नहीं होती - ऐसी संवेदनशील जानकारियों का गलत इस्तेमाल भी तो हो सकता है, और ये तो देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ है.
जो भी हो. महुआ मोइत्रा का अपना पक्ष है, ममता बनर्जी का अपना पक्ष है, और निशिकांत दुबे की अपनी राजनीति है - लेकिन देश तो सिर्फ सच जानना चाहता है.