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महुआ मोइत्रा और ममता बनर्जी दोनों के लिए अग्नि-परीक्षा से कम नहीं है कृष्णानगर लोकसभा सीट की लड़ाई

महुआ मोइत्रा को ममता बनर्जी ने फिर से पश्चिम बंगाल की कृष्णानगर लोकसभा सीट से ही उम्मीदवार बनाया है. संसद से निष्कासित किये जाने के बाद महुआ मोइत्रा जनता की अदालत से इंसाफ चाहती हैं, और ममता बनर्जी भी समर्थन में साथ खड़ी हैं - और यही कारण है कि ये लड़ाई दोनों के लिए बराबर महत्वपूर्ण हो गई है.

ममता बनर्जी को महुआ मोइत्रा के लिए कृष्णानगर को नंदीग्राम बनने से रोकना होगा. ममता बनर्जी को महुआ मोइत्रा के लिए कृष्णानगर को नंदीग्राम बनने से रोकना होगा.
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 12 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 2:32 PM IST

महुआ मोइत्रा को पिछले साल 8 दिसंबर को संसद से बाहर कर दिया गया था. कैश फॉर क्वेरी यानी संसद में पैसे लेकर सवाल पूछने के मामले में निष्कासन के खिलाफ महुआ मोइत्रा सुप्रीम कोर्ट पहुंची हैं - और कानूनी लड़ाई जारी है. 

देश की सबसे बड़ी अदालत के बाद महुआ मोइत्रा जनता की अदालत में भी गुहार लगाने वाली हैं, और उसी जनता के बीच जाने वाली हैं जिसने उनको अपना प्रतिनिधि चुनकर लोकसभा भेजा था - तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी ने महुआ मोइत्रा को फिर से कृष्णानगर सीट से ही लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाया है. 

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शुरुआती दौर में तृणमूल कांग्रेस नेताओं को महुआ मोइत्रा से पल्ला झाड़ते देखा गया था. कुछ भी पूछे जाने पर टीएमसी प्रवक्ता यही कहते थे कि महुआ मोइत्रा ही सही जवाब दे पाएंगी, क्योंकि ममता बनर्जी ये फैसला नहीं ले पाई थीं कि राजनीतिक लाइन क्या लेनी है. डेरेक ओ'ब्रायन भी तब यही समझाते रहे कि एथिक्स कमेटी की जांच पूरी होने के बाद ही टीएमसी कोई प्रतिक्रिया दे पाएगी - लेकिन अंत भला तो सब भला, आखिरकार ममता बनर्जी को महुआ मोइत्रा के साथ खड़ा होना ही पड़ा था. अब तो प्रतिष्ठा की बात हो गई है.

महुआ मोइत्रा के खिलाफ बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने लड़ाई शुरू की थी, और अंजाम तक शिद्दत से डटे रहे. महुआ मोइत्रा के संसद से निष्कासन का मिशन तो पूरा हो गया, लेकिन अब बीजेपी के लिए नया चैलेंज उनको फिर से संसद पहुंचने से रोकना होगा. 

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और जैसे ममता बनर्जी ने अपने कट्टर विरोधी कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी को रोकने के लिए क्रिकेटर युसूफ पठान को तैनात कर दिया है, जाहिर है महुआ मोइत्रा के खिलाफ बीजेपी भी वैसा ही कोई कारगर उपाय खोज रही होगी. पवन सिंह प्रकरण इस सिलसिले में सबसे बड़ा उदाहरण है. शत्रुघ्न सिन्हा को हराने के लिए बीजेपी ने भोजपुरी सिंगर पवन सिंह को खड़ा कर दिया था, लेकिन वो खुद चुनाव लड़ने से मना कर दिये. अब कोई और सामने आएगा. निश्चित रूप से वो भी वैसे ही कद काठी वाला होगा - महुआ मोइत्रा को फिर से शिकस्त देकर बीजेपी नये सिरे से नैतिक जीत को प्रचारित करने के प्रयास में होगी. नतीजे जो भी हों, कोशिशें तो बिलकुल ऐसी ही होंगी. 

लेकिन कृष्णानगर लोकसभा सीट पर तृणमूल कांग्रेस को मिलने चुनौती सिर्फ इतन भर ही नहीं है, और लड़ाई सिर्फ महुआ मोइत्रा या ममता बनर्जी के लिए अकेले की नहीं है - बल्कि, दोनों के लिए बराबर महत्वपूर्ण है, जैसे कोई अग्निपरीक्षा हो.

बंगाल में ममता बनर्जी के लिए कृष्णानगर चैलेंज

ममता बनर्जी हमेशा ही अपने नेताओं के साथ खड़ी रही हैं. नारदा और सारदा जैसे घोटालों का आरोप लगने के बावजूद अपने करीबी नेताओं को ममता बनर्जी ने डंके की चोट पर चुनाव लड़ाया भी है, और जिताया भी है. पार्थ चटर्जी जैसे नेता अपवाद हो सकते हैं, लेकिन संदेशखाली वाले शाहजहां शेख तो ताजातरीन मिसाल हैं ही.  

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2019 की बात अलग थी. लेकिन अब कृष्णानगर सीट पर महुआ मोइत्रा की जीत सुनिश्चित करना ममता बनर्जी के लिए नया और बड़ा चैलेंज है. अगर ममता बनर्जी मिशन में फेल हुईं तो ये पॉलिटिकल सेटबैक समझा जाएगा.

लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियों से जुड़ी तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्ताओं की एक मीटिंग में ममता बनर्जी ने कहा था, अगला लोक सभा चुनाव महुआ मोइत्रा ज्यादा वोटों से जीतेंगी. बाद में भी ममता बनर्जी की तरफ से वही बात दोहराई गई, 'लोग बीजेपी को करारा जवाब देंगे... राजनीतिक रूप से हम लड़ेंगे... अगले चुनाव में उनकी करारी हार होगी... महुआ और मजबूत होकर उभरेंगी.'

पश्चिम बंगाल की कृष्णानगर सीट से तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर लोक सभा पहुंची महुआ मोइत्रा पर आरोप है कि उन्होंने संसद से जुड़ी लॉगिन आईडी और पासवर्ड एक बाहरी व्यक्ति को दे दिया था. जांच के बाद ये भी बताया गया था कि 2019-23 के बीच महुआ मोइत्रा के लॉगिन से 61 बार सवाल पूछा गया, और ये ऐसे सवाल थे जिसमें कारोबारी दर्शन हीरानंदानी की दिलचस्पी थी.

किसी को शक नहीं है कि महुआ मोइत्रा के साथ भी ममता बनर्जी वैसे ही खड़ी मिलेंगी, जैसे वो पुलिस कमिश्नर के बचाव में धरने पर बैठ गई थीं. मुश्किल ये है कि ये लड़ाई बीजेपी से नहीं है - ममता बनर्जी को अपने वोटर को ये बात समझानी होगी कि महुआ मोइत्रा सही हैं, और बीजेपी ने साजिश के तहत उनके खिलाफ साजिश रची थी.

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महुआ को जनता की अदालत से इंसाफ चाहिये

महुआ मोइत्रा के सामने भी आने वाले दिनों में सबसे बड़ी चुनौती लोगों को अपनी बात समझाने की होगी. लोगों के बीच खड़े होकर अपना पक्ष रखने का चैलेंज होगा. संसद में अपनी बात रखने का और जनता के बीच अपना पक्ष रखने में काफी फर्क होता है. संसद ने तो बस सदस्यता खत्म की है, जनता तो राजनीति से भी बेदखल कर सकती है. 

टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा के लिए लोगों को ये समझाना होगा कि संसद से जुड़ा लॉगिन और पासवर्ड शेयर करके उन्होंने कोई बहुत बड़ी गलती नहीं की है - और न तो उससे देश की सुरक्षा को कोई खतरा हो सकता था. 

संसद से निष्कासित कर दिये जाने के बाद महुआ मोइत्रा ने कहा था, 'किसी भी कैश, किसी भी तोहफे का कोई सबूत कहीं नहीं हैं... निष्कासन की सिफारिश सिर्फ इस बात पर आधारित है कि मैंने अपना लोकसभा पोर्टल लॉगिन साझा की है. लॉगिन शेयर करने को लेकर कोई नियम नहीं हैं.'

मीडिया के सामने तो महुआ मोइत्रा ने ये बात बड़ी आसानी से कह डाली थी, लेकिन यही बात कृष्णानगर के लोगों को समझा पाना काफी मुश्किल हो सकता है. एथिक्स कमेटी के बहाने बीजेपी को टारगेट करते हुए महुआ मोइत्रा ने कहा था , 'आपने प्रक्रिया का दुरुपयोग किया है... ये आपके अंत की शुरुआत है... हम लौटेंगे और आपका अंत देखेंगे.'

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अब जनता की अदालत में महुआ को बाइज्जत बरी होना है. महुआ मोइत्रा के लिए तो जैसे ये आखिरी ही मौका है. जनता की अदालत में दूध का दूध और पानी का पानी होना है - अगर महुआ मोइत्रा चुनाव जीत कर संसद लौटती हैं, तो सबकी बोलती बंद हो जाएगी.

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