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भ्रष्‍ट मंत्रियों के चलते 'कट्टर ईमानदार' ममता बनर्जी भी केजरीवाल की राह पर

ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल दोनों ही खुद को सादगी की प्रतिमूर्ति के रूप में पेश करते रहे हैं. लेकिन दोनों की राजनीति में एक स्याह पक्ष भी कॉमन नजर आता है - दोनों नेता जिन सरकारों का नेतृत्व कर रहे हैं उनके मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं. और बारी-बारी से वे सलाखों के पीछे भी जाते जा रहे हैं.

भ्रष्टाचार के आरोपों से केजरीवाल की तरह ममता के भी मंत्री क्यों फंसते जा रहे हैं? भ्रष्टाचार के आरोपों से केजरीवाल की तरह ममता के भी मंत्री क्यों फंसते जा रहे हैं?
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 27 अक्टूबर 2023,
  • अपडेटेड 2:30 PM IST

पश्चिम बंगाल सरकार के वन मंत्री ज्योतिप्रिय मलिक को प्रवर्तन निदेशालय ने भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तार कर लिया है. ज्योतिप्रिय मलिक की गिरफ्तारी उनके खाद्य मंत्री रहने के दौरान राशन वितरण में कथित गड़बड़ी को लेकर हुई है. गिरफ्तारी से पहले ईडी की छापेमारी के दौरान ज्योतिप्रिय मलिक का कहना था, 'मैं एक गंभीर साजिश का शिकार हूं. मैं यही कह सकता हूं.'

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26 अक्टूबर, 2023 को कई जगह एक साथ देश में हुई ईडी की छापेमारी को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की प्रतिक्रिया थी, 'क्या अत्याचार... क्या अनाचार चल रहा है? लोकसभा चुनाव से पहले देश भर में विपक्षी नेताओं पर ईडी छापे के नाम पर बीजेपी गंदा खेल खेल रही है.' ज्योतिप्रिय मलिक के साथ साथ ईडी ने राजस्थान में  मनी लॉन्ड्रिंग केस में जयपुर और सीकर में राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के परिसरों में भी छापे मार कर जांच पड़ताल की. 

करीब एक साल के अंतर पर ये दूसरा मौका है जब पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार के किसी मंत्री को गिरफ्तार किया गया है. 2022 में पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री रहते पार्थ चटर्जी को भी ऐसे ही भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. शिक्षक भर्ती घोटाले में पार्थ चटर्जी की सहयोगी अर्पिता मुखर्जी के पास से भारी मात्रा में कैश बरामद होने के बाद मंत्री को गिरफ्तार किया गया था. ज्योतिप्रिय मलिक की ही तरह पार्थ चटर्जी भी खुद को साजिश के तहत फंसाये जाने की बात कर रहे थे. 

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पश्चिम बंगाल के मंत्रियों की ही तरह अरविंद केजरीवाल की दिल्ली सरकार के दो मंत्रियों पर भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं. स्वास्थ्य मंत्री रहे सत्येंद्र जैन तो लंबा समय जेल में बिताने के बाद खराब सेहत को लेकर जमानत पर छूटे हुए हैं, लेकिन पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया अब भी जेल में ही हैं. 

कितनी अजीब बात है कि ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल दोनों ही अपनी साफ सुथरी छवि के लिए जाने जाते हैं, लेकिन दोनों ही ऐसी सरकारों का नेतृत्व कर रहे हैं जिनके मंत्री भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं.

ममता और केजरीवाल की एक जैसी छवि

ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल में बहुत सारी चीजें कॉमन देखने को मिलती हैं. दोनों नेताओं के रहन सहन से लेकर राजनीतिक स्टाइल में भी तमाम चीजें मिलती जुलती नजर आती हैं - और हैरानी की बात ये है कि दोनों ही मुख्यमंत्रियों के साथी नेताओं पर एक के बाद एक भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं.

जिस तरह शारदा और नारदा घोटालों की आंच ममता बनर्जी तक पहुंचती देखी गयी है, अरविंद केजरीवाल के मामले में भी वैसी ही चीजें नजर आ रही हैं. दिल्ली के सरकारी मुख्यमंत्री आवास के नवीनीकरण के काम में भी भ्रष्टाचार का आरोप लग चुका है और सीबीई उसकी जांच भी शुरू कर चुकी है. 

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दिल्ली की शराब नीति को लेकर हुए कथित घोटाले में पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया से होते हुए जांच का दायरा अब आम आदमी पार्टी तक पहुंचने लगा है - और सुप्रीम कोर्ट में ईडी की तरफ से बताया गया है कि पार्टी को भी केस में पार्टी बनाये जाने पर विचार चल रहा है. 

अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी ही सादगी की प्रतिमूर्ति माने जाते हैं. हवाई चप्पल और सूती साड़ी में हमेशा ही देखी जाने वाली ममता बनर्जी की सादगी की मिसाल दी जाती है. ठीक वैसे ही अरविंद केजरीवाल की लाइफस्टाइल में भी आम आदमी की छवि देखी जाती है. अगर कोई बदलाव आया है तो वो अपनी मफलर-मैन वाली इमेज से थोड़ी दूरी बनाये रखते हैं. 

दोनों की राजनीतिक स्टाइल एक जैसी ही है. ममता बनर्जी आंदोलन वाली राजनीति करती हैं, अरविंद केजरीवाल आंदोलन के रास्ते ही राजनीति में आये हैं - थोड़ा सा फर्क ये देखने को मिलता है कि हिंदुत्व की राजनीति के मौजूदा माहौल में दोनों अलग अलग तरीके से अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं. 

ममता बनर्जी अगर सार्वजनिक सभाओं में चंडी पाठ करती हैं, तो अरविंद केजरीवाल लाइव टीवी पर हनुमान चालीसा पढ़ते हैं, लेकिन 'जय श्रीराम' के नारे पर दोनों की अलग अलग राय है. 

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अरविंद केजरीवाल जहां आगे बढ़ कर 'जय श्रीराम' बोलने लगे हैं, ममता बनर्जी को अब भी परहेज है. अरविंद केजरीवाल तो नोटों पर लक्ष्मी-गणेश की तस्वीर लगाये जाने की भी मांग कर चुके हैं, और विधानसभा चुनावों में घूम घूम कर लोगों को अयोध्या यात्रा का ट्रेवल प्लान बता कर वोट भी मांगते हैं. ये अरविंद केजरीवाल का मंदिर आंदोलन होता है. 

ममता और केजरीवाल की मिलती जुलती राजनीति

1. ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल दोनों को ही प्रधानमंत्री पद का दावेदार भी माना जाता रहा है. 2019 के आम चुनाव से पहले और 2021 का पश्चिम बंगाल चुनाव जीतने के बाद ममता बनर्जी ने दिल्ली की राजनीति में पैर जमाने की काफी कोशिशें की, लेकिन विपक्षी खेमे के नेताओं ने हाथ खींच लिये - और कांग्रेस भला ऐसा होने ही क्यों देतीय

2022 में पंजाब विधानसभा चुनाव जीतने के बाद से ही अरविंद केजरीवाल दिल्ली की बड़ी कुर्सी के लिए जी जान से जुटे हुए हैं. बीच में तो आम आदमी पार्टी के नेता 2024 का मुकाबला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल के बीच होने की बात करने लगे थे. 

2. ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल दोनों की ही कॉमन दुश्मन बीजेपी है, लेकिन दोनों ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर कभी नरम तो कभी गरम देखे जाते हैं. कभी ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करते सुना जाता है, तो कभी अरविंद केजरीवाल को अमित शाह से बहुत कुछ सीखने की बात सुनने को मिलती है.

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3. कांग्रेस के साथ भी दोनों का रिश्ता बराबर दूरी पर ही नजर आता है. राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में ममता बनर्जी विपक्ष का साथ छोड़ देती हैं, तो अरविंद केजरीवाल अलग से तीसरा मोर्चा खड़ा करने में जुट जाते हैं, लेकिन बात जब दिल्ली की आती है तो कांग्रेस के साथ हाथ भी मिला लेते हैं. 

4. ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल फिलहाल विपक्षी गठबंधन INDIA में साथ साथ बने हुए हैं, लेकिन ये कब तक चलेगा कोई नहीं जानता. 2024 के आम चुनाव तक चल भी सकेगा या नहीं ये भी किसी को नहीं मालूम.

कुछ कॉमन सवाल दोनों नेताओं से

सबसे बड़ा सवाल है कि बेदाग छवि के मालिक होने के बावजूद ये दोनों नेता ऐसी सरकार और राजनीतिक दलों का नेतृत्व क्यों कर रहे हैं जिनके मंत्री और नेता एक एक करके भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरते जा रहे हैं? 

क्या TMC और AAP नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की वजह सिर्फ राजनीतिक ही है? ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल दोनों ही केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अपने अपने नेताओं को परेशान करने का आरोप लगाते रहे हैं. 

आखिर क्या वजह हो सकती है कि अपनी छवि के मुताबिक ये दोनों नेता बेदाग सरकारें नहीं दे पा रहे हैं? क्या दोनों नेता और उनके मंत्री सरकारी सिस्टम और नौकरशाही के आगे घुटने टेक दे रहे हैं - और मजबूरन अपने लोगों को जानते समझते हुए भी बचाव करने को बाध्य हैं?

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ये माना जा सकता है कि अरविंद केजरीवाल राजनीतिक रूप से नौसीखिये हैं, लेकिन ममता बनर्जी के पास तो लंबा राजनीतिक अनुभव है. फिर भी दोनों राजनीति के एक ही छोर पर खड़े नजर आते हैं.

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