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अडानी को लेकर ममता बनर्जी के फैसले ने राहुल गांधी की उलझन बढ़ा दी है

पश्चिम बंगाल में ताजपुर के गहरे समुद्री बंदरगाह को लेकर ममता बनर्जी ने जितना बड़ा झटका अडानी ग्रुप को नहीं दिया है, उससे कहीं ज्यादा मुश्किल विपक्ष और उसमें भी कांग्रेस के लिए खड़ी कर दी है. अब तो राहुल गांधी को खुल कर बताना पड़ेगा कि कांग्रेस शासित राज्यों में अडानी के कारोबार पर वो चुप क्यों रहते हैं?

ममता बनर्जी के निशाने पर तो गौतम अडानी आये हैं, दायरे में राहुल गांधी क्यों आ रहे हैं? ममता बनर्जी के निशाने पर तो गौतम अडानी आये हैं, दायरे में राहुल गांधी क्यों आ रहे हैं?
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 22 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 3:37 PM IST

ममता बनर्जी की तरफ से पहली बार अडानी ग्रुप के खिलाफ कोई अप्रत्याशित कदम उठाया गया है. पश्चिम बंगाल सरकार के ताजा कदम से भले ही उद्योगपति गौतम अडानी के कारोबार पर कोई खास असर डालने वाला न हो, लेकिन उसका दूरगामी राजनीतिक प्रभाव महसूस किया जा सकता है. 

पश्चिम बंगाल ग्लोबल बिजनेस समिट में ताजपुर के गहरे समुद्री बंदरगाह प्रोजेक्ट को लेकर ममता बनर्जी खुद इस बात की घोषणा की कि इसके लिए नये टेंडर निकाले जाएंगे. ध्यान देने वाली महत्वपूर्ण बात ये भी है कि ग्लोबल बिजनेस समिट में अडानी ग्रुप का कोई प्रतिनिधि मौजूद नहीं था. सुनने में ये भी आ रहा है कि अडानी ग्रुप को बुलाया ही नहीं गया था. पिछले साल यानी 2022 के बंगाल ग्लोबल बिजनेस समिट में खुद गौतम अडानी ने भी भाग लिया था.

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सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा, '...ताजपुर में प्रस्तावित गहरे समुद्र वाले बंदरगाह... टेंडर के लिए तैयार है... आप टेंडर में हिस्सा ले सकते हैं.' ये प्रोजेक्ट तीन अरब डॉलर यानी 25,000 करोड़ रुपये के निवेश के लिए है.'

वैसे तो तृणमूल सरकार की तरफ से इस मुद्दे पर ज्यादा कुछ नहीं बताया गया है. लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक, अडानी ग्रुप को ताजपुर पोर्ट को विकसित करने के लिए 25 हजार करोड़ का प्रोजेक्ट दिया गया था - और अक्टूबर, 2022 में अडानी पोर्ट्स के सीईओ करण अडानी को ममता बनर्जी ने खुद LOI (Letter of Intent) यानी आशय पत्र अपने हाथों से सौंपा था. 
 
ममता बनर्जी सरकार के इस फैसले के दो महत्वपूर्ण पहलू हैं. एक पहलू तो राज्य में निवेश से जुड़ा है, दूसरा घोर राजनीतिक है. यहां दूसरा पहलू ज्यादा महत्वपूर्ण लगता है. ऐसे में महत्वपूर्ण ये चीज नहीं है कि सरकार ने क्या कदम उठाया है, बल्कि ये है कि क्यों उठाया है? आखिर ममता सरकार ने ऐसा कदम क्यों उठाया जो बिलकुल भी अडानी के पक्ष में नहीं जाता. अडानी ग्रुप को लेकर हाल तक के ममता बनर्जी के रुख से कभी ऐसा तो लगा नहीं. 

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शुरुआती तौर कयास तो यही लगाये जा रहे हैं कि ये महुआ मोइत्रा केस के चलते हुआ है. कैश फॉर क्वेरी केस को लेकर टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा का कहना है कि अडानी ग्रुप के कारोबार से जुड़े सवाल संसद में पूछने के लिए ही उनके खिलाफ साजिश की गयी है. 

कहीं ये सब राहुल गांधी के खिलाफ ममता बनर्जी की प्रेशर पॉलिटिक्स का हिस्सा तो नहीं है - क्योंकि अडानी ग्रुप के विरोध में ऐसे कदम तो राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के मुख्यंमंत्री भी उठा सकते थे. 

ममता ने ऐसे बढ़ाई राहुल गांधी की मुश्किल

जब कांग्रेस ने अडानी ग्रुप के खिलाफ संसद में जेपीसी जांच की मांग की थी, तो ममता बनर्जी का साथ नहीं मिला था. विपक्षी गठबंधन INDIA की मुंबई बैठक में भी राहुल गांधी के अडानी का मुद्दा उठाने को लेकर ममता बनर्जी ने सख्त विरोध जताया था - लेकिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के बीच ममता बनर्जी की नयी घोषणा से तो ऐसा लगता है जैसे राहुल गांधी को ही कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की जा रही हो. 

देखें तो जो कदम ममता बनर्जी ने गौतम अडानी के खिलाफ उठाया है, वैसा फैसला तो कांग्रेस के मुख्यमंत्री भी ले सकते थे. राजस्थान में अशोक गहलोत और छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल - सवाल तो ये उठता ही है कि आखिर क्यों राहुल गांधी मोदी सरकार के साथ अडानी ग्रुप के कारोबार को लेकर शोर मचाते हैं, लेकिन वैसी ही डील जब कांग्रेस शासित राज्यों में होती है तो अपने मुख्यमंत्रियों के मामले में चुप हो जाते हैं. 

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1. अगर चुनावों के दौरान कांग्रेस के मुख्यमंत्री अडानी ग्रुप के खिलाफ ममता बनर्जी जैसे कदम उठाते तो बीजेपी की मोदी सरकार को कड़ा संदेश दिया जा सकता था. कांग्रेस डंके की चोट पर कह सकती थी कि अडानी के विरोध के मुद्दे पर वो कड़े फैसले भी ले सकती है - और वो ऐसी चीजों के लिए नफे नुकसान की परवाह नहीं करती.

2. अडानी के मुद्दे पर ममता बनर्जी के अचानक स्टैंड बदल देने के बाद तो राहुल गांधी पर ऐसी ही नीति अपनाने का दबाव भी आ सकता है. जैसे राहुल गांधी जातिगत जनगणना पर घूम घूम कर वादे कर रहे हैं, वैसे ही सामने आकर कहना पड़ सकता है कि सत्ता में आने पर वो अडानी ग्रुप के खिलाफ जांच पड़ताल कराएंगे - और मौजूदा सरकार में हुई डील रद्द कर देंगे.

3. हाल ही में जब अडानी को लेकर राहुल के आक्रामक रुख को देखते हुए प्रेस कांफ्रेंस में पूछा गया कि क्या कांग्रेस की सरकार बनने पर वो सौदों की जांच कराएंगे - राहुल गांधी ने सवाल को ये कहते हुए टाल दिया कि आइडिया तो अच्छा है, लेकिन जांच की हामी नहीं भरी. 

तो क्या सत्ता में आने पर राहुल गांधी का वही रुख होगा जो वो अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान बता रहे थे? अशोक गहलोत और अडानी की तस्वीरें सामने आने पर तब राहुल गांधी का कहना था, भला कोई मुख्यमंत्री निवेश के मामले में ऐसा ऑफर कैसे ठुकरा सकता है? मतलब, यही बात केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनने पर भी लागू होती है.

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बिलकुल वैसे ही जैसे मनरेगा के कट्टर विरोधी रहे नरेंद्र मोदी केंद्र की सत्ता में आने के बाद उसका बजट बढ़ा दिये, कांग्रेस की सरकार आने पर अडानी ग्रुप का कारोबार वैसा ही रहेगा जैसा कांग्रेस की पिछली सरकारों में रहा, ये बात तो इंडिया टुडे के साथ इंटरव्यू में खुद गौतम अडानी ही बता चुके हैं. 

ममता बनर्जी सरकार ने अडानी से मुंह क्यों मोड़ा?

1. महुआ मोइत्रा के कैश फॉर क्वेरी केस से जोड़ कर देखें तो ममता बनर्जी के रुख में बदलाव देखा जा चुका है. पहले जहां तृणमूल कांग्रेस के नेता महुआ मोइत्रा केस को लेकर कुछ भी बोलने तक से बचते थे, अचानक उनको संगठन में जिम्मेदारी दे दी गयी. महुआ मोइत्रा को पश्चिम बंगाल के कृष्णानगर (नदिया उत्तर) का अध्यक्ष बनाया गया है. महुआ मोइत्रा कृष्णानगर लोक सभा से ही सांसद हैं.

अडानी को लेकर ममता बनर्जी का ये फैसला क्या ये जताने की कोशिश है कि कैश फॉर क्वेरी केस की लड़ाई में महुआ मोइत्रा अकेले नहीं हैं, बल्कि तृणमूल कांग्रेस पूरी तरह उनके साथ है - और आगे की लड़ाई में भी महुआ मोइत्रा को ममता बनर्जी का पूरा सपोर्ट मिलेगा.

2. बीजेपी और मोदी सरकार के खिलाफ तो ममता बनर्जी का कट्टर विरोध अक्सर महसूस किया गया है. बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले अमित शाह से ममता बनर्जी की ज्यादा चिढ़ नजर आती है. कुछ मौके ऐसे भी आये हैं जब ममता बनर्जी विरोध के नाम पर सिर्फ अमित शाह के खिलाफ खड़ी नजर आती रहीं, और नरेंद्र मोदी के साथ साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी संदेह का लाभ देने की कोशिश करती देखी गयी हैं. 

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अडानी के मुद्दे पर विपक्ष के विरोध में ममता बनर्जी संसद में तो विपक्ष के साथ देखी गयीं, लेकिन उनके कारोबार को लेकर जेपीसी की जांच के मामले में पीछे हट गयीं - तो क्या अब बीजेपी और अडानी के खिलाफ ममता बनर्जी के विरोध की आवाज तेज होने वाली है?

3. सीधे सीधे देखें तो ममता बनर्जी के इस कदम में विपक्षी गठबंधन INDIA के दबाव की भूमिका भी लगती है, क्योंकि अडानी के मुद्दे पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ तृणमूल कांग्रेस नेता की तकरार तक हो चुकी है.

कहीं ऐसा तो नहीं कि ममता बनर्जी ने INDIA गठबंधन पर दबाव बढ़ाने के लिए ही ये कदम उठाया हो? ताकि अडानी के मामले में कोई भी डबल स्टैंडर्ड पॉलिसी न अपनाये. कांग्रेस मुख्यमंत्रियों जैसा भाव गौतम अडानी और शरद पवार की मुलाकात में भी तो देखा गया था - क्या ममता बनर्जी अब विपक्ष के नेताओं को ललकार रही हैं, आना है तो खुल कर सामने आओ!

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