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परिसीमन के मुद्दे पर ममता बनर्जी ने क्यों किया स्टालिन की बैठक से किनारा?

परिसीमन के खिलाफ तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन विपक्षी नेताओं के साथ केंद्र की बीजेपी सरकार को घेरने में जुटे हैं, लेकिन ममता बनर्जी साथ नहीं दे रही हैं - कहीं इसलिए तो नहीं, क्योंकि वो कांग्रेस नेतृत्व के करीब और कट्टर समर्थक हैं. या इसलिए कि ममता की राजनीतिक हैसियत डीएमके के स्‍टालिन से कहीं बड़ी है. ऐसे में वे इस मुद्दे पर स्‍टालिन का नेतृत्व क्‍यों बर्दाश्त करतीं?

ममता बनर्जी के स्टालिन की मीटिंग से दूर रहने की एक वजह परिसीमन में पश्चिम बंगाल की सीटें बढ़ जाने की संभावना भी लगती है. ममता बनर्जी के स्टालिन की मीटिंग से दूर रहने की एक वजह परिसीमन में पश्चिम बंगाल की सीटें बढ़ जाने की संभावना भी लगती है.
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 24 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 5:15 PM IST

देश की जनगणना 2026 में प्रस्तावित है. और, उसके बाद संसदीय सीटों के लिए देश भर में परिसीमन होना है. परिसीमन जनसंख्या के आधार पर होना है, और दक्षिण के राज्य परिसीमन का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि संघीय ढांचे में उनको लगता है कि प्रतिनिधित्व घटने से वे कमजोर पड़ जाएंगे.

डीएमके नेता और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन विरोध का नेतृत्व कर रहे हैं. और इसी सिलसिले में स्टालिन ने विपक्षी दलों के नेताओं और मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाई थी. बैठक में स्टालिन ने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को तो बुलाया था, लेकिन उत्तर भारत के विपक्षी दलों के नेताओं को नहीं. 

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ममता बनर्जी ने मीटिंग से पहले से ही दूरी बना ली थी, और अखिलेश यादव को भी चुप्पी साधे हुए देखा गया. अखिलेश यादव की चुप्पी इसलिए भी मायने रखती है क्योंकि स्टालिन की तरफ से मंडल के मसीहा के रूप में पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह की प्रतिमा के अनावरण के मौके पर अखिलेश यादव तमिलनाडु पहुंचे हुए थे.

स्टालिन के बुलावे को ममता ने क्यों ठुकराया

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 22 मार्च को Joint Action Committee on delimitation की चेन्नई में मीटिंग बुलाई थी. मीटिंग में केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी, कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार सहित विपक्ष के कई नेता शामिल हुए - लेकिन न तो ममता बनर्जी आईं, न ही अपनी सरकार या पार्टी टीएमसी का ही कोई प्रतिनिधि भेजा. मीटिंग में शामिल तो समाजवादी पार्टी और आरजेडी जैसी पार्टियां भी नहीं हुईं. लगा कि जैसे डीएमके नेता ने मीटिंग में उत्तर भारत के विपक्षी दलों को बुलाया ही नहीं था. लेकिन, फिर आप के प्रतिनिधि भगवंत मान बैठक में दिखाई दे जाते हैं. 

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स्टालिन का कहना है कि जनसंख्या के आधार पर परिसीमन हुआ, तो दक्षिण भारत को लोकसभा और विधानसभा दोनों के हिसाब से भारी नुकसान होगा. मीटिंग में खटकने वाली कुछ बातें रहीं, ममता बनर्जी का शामिल न होना, लेकिन भगवंत मान की मौजूदगी. कयास ये भी है कि ममता बनर्जी का कद डीएमके नेता स्‍टालिन से काफी बड़ा है. ऐसे में इंडिया अलायंस यदि परिसीमन जैसे मुद्दे पर कोई गठजोड़ बनाती है तो उसे नेतृत्‍व देने के लिए 29 लोकसभा सांसदों वाली टीएमसी का दावा 22 लोकसभा सांसदों वाली डीएमके से पहले बनता है.

ममता बनर्जी विपक्ष के साथ हैं भी या नहीं?

कहने को तो ममता बनर्जी कहती रही हैं कि वो पूरी तरह इंडिया ब्लॉक में ही हैं. ये बात अलग है कि इंडिया ब्लॉक है या नहीं अलग से समझने की कोशिश करनी होगी. अगर इंडिया ब्लॉक नहीं है तो विपक्ष तो है ही, क्योंकि एक सत्ता पक्ष है. 

ऐसे में ममता बनर्जी आखिर किस तरफ खड़ी हैं? राष्ट्रपति चुनाव में वो विपक्ष के साथ खड़ी नजर आती हैं, लेकिन उपराष्ट्रपति चुनाव में उठकर चल देती हैं. उम्मीदवार तृणमूल कांग्रेस का होने पर भी वो दूरी बना लेती हैं. 

इंडिया ब्लॉक का नेतृत्व भी करना चाहती हैं, लेकिन कोलकाता में ही बैठकर. देखा जाये तो पश्चिम बंगाल को परिसीमन से फायदा ही होने की संभावना लगती है. 
 
1977 के लोकसभा चुनाव को देखें तो औसतन 10.11 लाख की आबादी पर एक सांसद होता था. फिलहाल पश्चिम बंगाल में लोकसभा की 42 सीटें हैं, लेकिन अब अगर 15 लाख की आबादी के हिसाब से सब तय होता है, तो संख्या 66 तक भी पहुंच सकती है - और अगर ये आधार 20 लाख की आबादी का बनता है, तो पश्चिम बंगाल में 50 सीटें हो सकती हैं. 

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परिसीमन का आधार 20 लाख की आबादी रखी गई, तो लोकसभा सीटों की संख्या 543 से बढ़कर 707 हो जाएगी. और, अगर ये आधार 15 लाख की आबादी रही तो लोकसभा सीटें 942 तक पहुंच जाने की संभावना है. 

ममता बनर्जी में तो अच्छी दोस्ती रही है

डीएमके नेता स्टालिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी के जबरदस्त सपोर्टर हैं. विपक्ष के बाकी नेता भले ही कहते फिरें कि प्रधानमंत्री पद पर फैसला चुनाव नतीजे आने के बाद होगा, लेकिन स्टालिन तो राहुल गांधी को ही प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बताते रहे हैं. 

ममता बनर्जी और एमके स्टालिन की दोस्ती तो काफी अच्छी रही है. फिलहाल राहुल गांधी और कांग्रेस दुश्मनी तो आम आदमी पार्टी की भी है, लेकिन भगवंत मान चेन्नई पहुंच जाते हैं, और ममता बनर्जी किसी को भेजती भी नहीं हैं. 

2019 के आम चुनाव से पहले ममता बनर्जी ने जब ब्रिगेड परेड ग्राउंड में विपक्ष की रैली बुलाई थी, तो एमके स्टालिन भी पहुंचे थे - और भाषण भी दिया था, लेकिन तमिल में ही. 

ऐसे कई मौके देखे गये हैं जब ममता बनर्जी और एमके स्टालिन की बॉन्डिंग मजबूत महसूस की गई है - परिसीमन के मुद्दे पर भी तृणमूल कांग्रेस पहले डीएमके के साथ खड़ी नजर आई है - तो क्या अब ममता बनर्जी तमिलनाडु के मुख्यमंत्री से नाराज हो गई हैं, और उसकी वजह क्या राहुल गांधी भी हो सकते हैं या फिर परिसीमन से पश्चिम बंगाल को होने वाला फायदा ममता बनर्जी को अलग मोड़ पर खड़े होने को मजबूर कर रहे हैं? 

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