
मनीष सिसोदिया को जमानत मिलना भी आम आदमी पार्टी के लिए करीब करीब अरविंद केजरीवाल की रिहाई जैसा ही है. दिल्ली की शिक्षा मंत्री आतिशी का मनीष सिसोदिया की जमानत की खबर पर भावुक हो जाना भी स्वाभाविक है. अरविंद केजरीवाल की आंखों में भी एक बार ऐसे ही आंसू आ गये थे, जब वो एक नये स्कूल का उद्घाटन करने पहुंचे थे - और आम आदमी पार्टी के लिए इस खास मौके पर आतिशी ने भी एक स्कूल का उद्घाटन किया है.
दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था को लेकर मनीष सिसोदिया को आम आदमी पार्टी में जो क्रेडिट दिया जाता है, उसमें आतिशी का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है - और मनीष सिसोदिया के जेल चले जाने के बाद अरविंद केजरीवाल ने आतिशी को ही सिसोदिया वाली जिम्मेदारियां दी थी - और तब से लेकर अभी तक वो अपनी जिम्मेदारी निभाती चली आ रही हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने मनीष सिसोदिया से पासपोर्ट सरेंडर करने के साथ जमानत के लिए 10 लाख का बॉन्ड जमा करने को भी कहा है. मनीष सिसोदिया को 26 फरवरी, 2023 को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था, और फिर 9 मार्च को प्रवर्तन निदेशालय ने. इससे पहले ट्रायल कोर्ट, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी मनीष सिसोदिया की जमानत याचिकाएं कई बार खारिज हो चुकी हैं.
संजय सिंह ने नारे तो अरविंद केजरीवाल के लिए लगाये थे, लेकिन जेल के ताले असल मायने में उनके बाद मनीष सिसोदिया के लिए ही टूटे हैं. अरविंद केजरीवाल बाहर जरूर आये थे, लेकिन वो कानूनी राहत का सिर्फ अस्थाई भाव था. वैसे अरविंद केजरीवाल के वकील विवेक जैन का मानना है कि मनीष सिसोदिया के बेल ऑर्डर से अरविंद केजरीवाल की जमानत के मामले में भी असर देखने को मिल सकता है, और ऑर्डर में जो कोर्ट का ऑब्जर्वेशन हैं वो काफी मदद करेगा.
मनीष सिसोदिया इससे पहले बीमार पत्नी से मिलने के लिए बाहर आये थे, लेकिन अब 17 महीने बाद जमानत पर छूट रहे हैं. और इस दौरान दिल्ली और देश की राजनीति में बहुत कुछ बदल चुका है.
अरविंद केजरीवाल की संवैधानिक और राजनीतिक सेहत पर खास असर तो नहीं पड़ा है, लेकिन जेल जाने से पहले दिल्ली के डिप्टी सीएम रहे मनीष सिसोदिया अभी सिर्फ एक विधायक रह गये हैं - फर्क बस ये है कि अरविंद केजरीवाल की तरह जमानत के दौरान मनीष सिसोदिया के सचिवालय जाने पर रोक नहीं लगी है.
दिल्ली की सरकार क्या जेल से ही चलती रहेगी?
तिहाड़ जेल में होने के बावजूद अरविंद केजरीवाल ही मुख्यमंत्री बने हुए हैं, लेकिन मनीष सिसोदिया डिप्टी सीएम नहीं रह गये हैं - और हाल फिलहाल ऐसा भी कोई इंतजाम भी नहीं है कि जेल से आने के बाद वो फिर से डिप्टी सीएम बन जाएंगे. ऐसा तभी मुमकिन है जब अरविंद केजरीवाल इस्तीफा दे दें, या फिर अदालत से ही स्पेशल परमिशन मिल पाये.
लोकसभा चुनाव के दौरान अरविंद केजरीवाल भी अंतरिम जमानत पर रिहा किये गये थे, लेकिन उनके मामले में कुछ शर्तें लागू थीं, मनीष सिसोदिया के मामले में थोड़ा फर्क है. जमानत पर फैसला सुनाये जाने के बाद सीबीआई और ईडी की तरफ से पैरवी कर रहे एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने मनीष सिसोदिया के लिए भी अरविंद केजरीवाल केस की ही तरह शर्तें लगाने की गुजारिश की थी. एएसजी राजू का कहना था कि अरविंद केजरीवाल की ही तरह मनीष सिसोदिया के लिए भी सचिवालय जाने पर रोक लगाई जाये, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ये अपील खारिज कर दी.
मनीष सिसोदिया को जमानत देते वक्त सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो समाज के सम्मानित व्यक्ति हैं, और उनके भागने की आशंका भी नहीं है. केस को लेकर कोर्ट का कहना था कि मामले से जुड़े ज्यादातर सबूत भी जुटाए जा चुके हैं, इसलिए उनके साथ छेड़छाड़ करने की कोई संभावना नहीं है.
10 लाख के मुचलके और पासपोर्ट जमा करने के अलावा मनीष सिसोदिया को जमानत के दौरान एक खास शर्त भी लगाई गई है, वो ये कि उनको हफ्ते में दो बार, हर सोमवार और गुरुवार को थाने में जाकर हाजिरी लगानी होगी - आप नेता संजय सिंह को जमानत के दौरान जांच अधिकारी से सिर्फ अपना लोकेशन शेयर करने को कहा गया है.
अब जबकि मनीष सिसोदिया डिप्टी सीएम नहीं रह गये हैं, लिहाजा कोई और इंतजाम होने तक आगे भी अरविंद केजरीवाल जेल से ही सरकार चलाते रहेंगे. चाहकर भी मनीष सिसोदिया कुछ नहीं कर पाएंगे - ज्यादा से ज्यादा अरविंद केजरीवाल के नये मैसेंजर बने रहेंगे.
ये बात अलग है कि अरविंद केजरीवाल के बाहर रहते भी सब कुछ मनीष सिसोदिया के ही जिम्मे हुआ करता था, लेकिन जेल से तो वो सब संभव नहीं है. अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के उप राज्यपाल को पत्र लिखकर कहा है कि वो स्वतंत्रता दिवस पर दिल्ली में झंडा फहराने के लिए आतिशी को अधिकृत कर रहे हैं, लेकिन अभी एलजी की मंजूरी मिलने की खबर नहीं आई है.
जहां तक पत्र लिखने का सवाल है, तो वो चाहें तो मनीष सिसोदिया को फिर से डिप्टी सीएम बनाये जाने के लिए भी सिफारिश कर सकते हैं, लेकिन इतने भर से बात तो बनने वाली है नहीं. जब सामान्य दिनों में मुख्यमंत्री और एलजी के बीच तकरार होती रहती है, तो कैसे समझा जाये कि अरविंद केजरीवाल की ऐसी किसी सिफारिश पर सुनवाई होगी ही - फिर तो एक ही रास्ता बचता है, इस मामले में भी अरविंद केजरीवाल सबसे बड़ी अदालत का रुख करे, अनुमति मांगे और मिल जाये तो आगे बढ़े.
ये तो नहीं कह सकते कि अरविंद केजरीवाल के जेल चले जाने के बाद से दिल्ली में सरकारी काम ठप पड़े हैं. क्योंकि उप राज्यपाल की तरफ से ट्रांसफर और नियुक्तियां तो हो ही रही हैं. स्कूली छात्रों की किताबों को लेकर हाई कोर्ट ने भी आदेश दिया ही है.
लेकिन ये तो है ही कि अरविंद केजरीवाल के हिस्से वाले काम तो पूरी तरह ठप ही हैं. अरविंद केजरीवाल के हिस्से के जिस काम से आम आदमी पार्टी को राजनीतिक फायदा मिलता, वो तो रुका ही हुआ है.
देखा जाये तो अरविंद केजरीवाल ने ऐसा कर रखा है कि मनीष सिसोदिया के लिए जेल से बाहर आकर भी कुछ कर पाने का स्कोप बहुत कम बचा है. मौजूदा हालात में तो ऐसा ही हाल कहा जा सकता है - और उससे जुड़े बाकी पहलुओं को देखें तो लगता है जैसे अरविंद केजरीवाल ने मनीष सिसोदिया के सामने मुसीबतों का अंबार लगा रखा है.
निश्चित तौर पर मनीष सिसोदिया के मन में भी ये सवाल जरूर होगा कि आखिर जेल से दिल्ली की सरकार ऐसे कब तक चलती रहेगी?
आम आदमी पार्टी भी तो जेल से ही चल रही है
सुनीता केजरीवाल की भूमिका सिर्फ मैसेंजर भर ही बताई गई है. आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल विपक्ष के नेताओं से नियमित रूप से मिलती रहती हैं. अभी अभी दिल्ली आये उद्धव ठाकरे ने भी मुलाकात की है. वो INDIA ब्लॉक की रैलियों में भी जाती हैं. आम आदमी पार्टी के चुनाव कैंपेन के दौरान रोड शो और रैलियां भी करती हैं - लेकिन हर जगह अरविंद केजरीवाल की मैसेंजर बनकर.
मैसेंजर की मदद से चीजों को संभालना महज अस्थाई व्यवस्था होती है, ये सब लंबे समय तक नहीं चल पाता - ये बात अलग है कि अरविंद केजरीवाल अभी तक सरकार और संगठन दोनो ऐसे ही चलाते आ रहे हैं.
जैसे कांग्रेस के पास स्थाई अध्यक्ष न होने के दिनों में पार्टी के भीतर कई पावर सेंटर बने हुए थे, अरविंद केजरीवाल ने भी वैसा ही हाल कर रखा है. सारा पावर अपनी मुट्ठी रखने वाले अरविंद केजरीवाल के अलावा कहने भर को सुनीता केजरीवाल भी एक पावर सेंटर तो बनी ही हुई हैं. ऐसे ही संजय सिंह भी एक अलग ही पावर सेंटर हैं. स्वाति मालीवाल केस में खुद जेल जाने से पहले तक बिभव कुमार भी ऐसे ही पावर सेंटर हुआ करते थे. स्वाति मालीवाल की माने तो वो सुपर पावर सेंटर थे.
कांग्रेस ने तो अपना इंतजाम कर लिया, वैसे तो मल्लिकार्जुन खरगे भी एक नया पावर सेंटर हो गये हैं, लेकिन पुराने पावर सेंटर चल ही रहे हैं - फर्क बस ये आया है कि नेताओं कार्यकर्ताओं को एक छत के नीचे सॉल्यूशन मिल जाता है. घोषित तौर पर तो आप में कोई जी-23 नहीं बना है, लेकिन स्वाति मालीवाल और उसी मामले के बाद संजय सिंह भी कुछ अलग ही भूमिका में नजर आते हैं. पहले वाली बात तो नहीं ही लगती.
सिर पर चुनाव है, और सब कुछ बिखरा पड़ा है. दिल्ली से पहले हरियाणा विधानसभा के लिए चुनाव होने हैं. अगर हरियाणा को छोड़ भी दें तो आम आदमी पार्टी के लिए दिल्ली सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है - और मनीष सिसोदिया के लिए हर जगह बिखरी हुई चीजों को समेट कर सही जगह रखना सबसे बड़ी चुनौती है.