Advertisement

मनीष सिसोदिया की जमानत केजरीवाल की 'कट्टर ईमानदार' राजनीति को राहत देगी!

विधानसभा चुनावों के बीच मनीष सिसोदिया केस में मामूली राहत भी आम आदमी पार्टी के लिए बहुत बड़ी बात हो सकती है. अगर प्रवर्तन निदेशालय की तरफ से पेश सबूत सुप्रीम कोर्ट को संतुष्ट नहीं कर पाते तो अरविंद केजरीवाल ये बात मजबूती से कह सकेंगे कि उनको और उनके साथियों को राजनीतिक वजहों से परेशान किया जा रहा है.

अरविंद केजरीवाल की राजनीति भी मनीष सिसोदिया की 'कट्टर इमानदारी' के भरोसे है अरविंद केजरीवाल की राजनीति भी मनीष सिसोदिया की 'कट्टर इमानदारी' के भरोसे है
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 13 अक्टूबर 2023,
  • अपडेटेड 3:05 PM IST

अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन करते हुए राजनीति में आये थे. बरसों बाद बहुत से लोगों को उम्मीद बंधी थी कि देश से भ्रष्टाचार खत्म हो सकेगा. समय का चक्र ऐसा चला अब वो खुद भी भ्रष्टाचार के घेरे में आ चुके हैं. उनके दो साथी जेल में हैं. एक जमानत पर बाहर हैं - और एक-दो ऐसे भी हैं जिन पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है. 

Advertisement

अरविंद केजरीवाल का ताजातरीन आरोप तो यही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी आम आदमी पार्टी को बर्बाद करना चाहते हैं, और उनके साथी नेताओं के खिलाफ सारे ही मामले राजनीतिक वजहों से लगाये गये हैं. 

जब भी जांच एजेंसियों की तरफ से नोटिस या कोई एक्शन हुआ है, अरविंद केजरीवाल अपने साथियों को बेकसूर और आरोपों को झूठ का पुलिंदा करार देते रहे हैं - लेकिन ऐसे दावे अदालत पहुंच कर कानूनी दांवपेच में उलझ कर रह जाते हैं.

ये सब होने के बावजूद मनीष सिसोदिया का केस अरविंद केजरीवाल की कट्टर इमानदार राजनीति के लिए तिनके के सहारे जैसा लगता है. अरविंद केजरीवाल के राजनीति शुरू करने से पहले से मनीष सिसोदिया उनके सबसे करीबी साथी रहे हैं - और अब सुप्रीम कोर्ट में जिस तरह से उनके केस में जिरह चल रही है, वो काफी महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंच चुकी है. 

Advertisement

सुप्रीम कोर्ट की बेंच की तरफ से मनीष सिसोदिया के खिलाफ केस को लेकर प्रवर्तन निदेशालय से कई सवाल पूछे गये हैं. दिल्ली शराब नीति केस में आगे की राह प्रवर्तन निदेशालय के वकील की दलील और सबूतों पर निर्भर करती है.

12 अक्टूबर को मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई थी, लेकिन जस्टिस संजीव खन्ना के किसी और केस की सुनवाई में व्यस्त होने के कारण सुनवाई टाल दी गयी. मनीष सिसोदिया के दिल्ली सरकार में डिप्टी सीएम रहते सीबीआई ने 26 फरवरी, 2023 को गिरफ्तार किया था. और बाद में तिहाड़ जेल में पूछताछ के बाद 9 मार्च को मनी लॉन्ड्रिंग केस में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने कर लिया था.

चार्जशीट में ED का दावा 

जो कुछ अदालत को ED ने बताया है उसके मुताबिक, मनीष सिसोदिया ने सबूत छिपाने के लिए 14 फोन और 43 सिम कार्ड बदले थे, और उनमें से पांच सिम कार्ड मनीष सिसोदिया के नाम पर ही थे. दिल्ली कोर्ट में प्रवर्तन निदेशालय ने ये भी दावा किया है कि मनीष सिसोदिया और अन्य अरोपियों ने 170 बार मोबाइल फोन बदले, और फिर उन्हें तोड़ दिया, जिससे 1.38 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ... शराब घोटाले में बड़े पैमाने पर सबूतों को नष्ट किया गया.

Advertisement

प्रवर्तन निदेशालय का दावा है कि जांच एजेंसी के पास मनीष सिसोदिया के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं - लेकिन मुद्दे की बात ये है कि सुप्रीम कोर्ट ने मनीष सिसोदिया की जमानत पर सुनवाई के दौरान ईडी के दावे पर ही कई सवाल पूछ डाले हैं. 

सिसोदिया केस में सुप्रीम कोर्ट के सवाल?

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) में संबंधित व्यक्ति को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपराधों की आय से जोड़ना होगा. कोर्ट ने पाया है कि जो केस बनाया गया है, वो है कि पैसा मनीष सिसोदिया को मिला था, लेकिन ये पैसा कथित शराब ग्रुप से सिसोदिया तक कैसे पहुंचा?

कोर्ट ने एक सवाल ये भी पूछा है कि एक आरोपी कारोबारी दिनेश अरोड़ा के बयान के अलावा मनीष सिसोदिया के खिलाफ सबूत कहां हैं?

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय को चेताया भी कि 'जिरह के दौरान सिर्फ दो सवालों के बाद ये केस गिर जाएगा.'

नीतिगत फैसले को कैसे चैलेंज किया जा सकता है?

दिल्ली में जनता की चुनी हुई सरकार है. मौजूदा व्यवस्था के तहत कुछ चीजों को छोड़ कर दिल्ली सरकार के ज्यादातर फैसलों में दिल्ली के उपराज्यपाल की मंजूरी जरूरी है. किसी भी सरकार का काम जन कल्याण के लिए योजनाएं तैयार करना और बाद में उन्हें लागू करना भी होता है. ऐसे सारे काम सरकार के नीतिगत फैसलों का रिजल्ट होते हैं. मनीष सिसोदिया जिस केस में आरोपी हैं, वो दिल्ली में शराब नीति के फैसले से जुड़ा है.

Advertisement

दिल्ली सरकार की शराब नीति पर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से वो भी सवाल हुआ है, जो बहुत लोगों के मन में हो सकता है - क्या किसी नीतिगत फैसले को कानूनी रूप से चुनौती दी जा सकती है?

क्योंकि नीतियां तैयार करना और नीतिगत फैसले लेना तो जनता की चुनी हुई सरकार का मैंडेट होता है. ऐसे तो देश भर की सरकारों के तमाम फैसलों पर सवाल उठाये जा सकते हैं - और उनको कानूनी तौर पर अदालतों में चैलेंज किया जा सकता है?

मनीष सिसोदिया को भ्रष्टाचार के आरोप में सीबीआई ने गिरफ्तार किया था. और सीबीआई की FIR में मनी लॉन्ड्रिंग के केस को लेकर ही प्रवर्तन निदेशालय ने मनीष सिसोदिया को गिरफ्तार कर जेल भेजा है.

नीतीगत फैसलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के सवाल पर सीबीआई की तरफ से पेश वकील की दलील थी, दिल्ली शराब नीति जानबूझकर कुछ खास लोगों के पक्ष में तैयार की गयी थी. सीबीआई की तरफ से सबूत के तौर पर कुछ व्हाट्सऐप चैट पेश किये गये हैं. 

देखा जाये तो ऐसे सबूत केस तैयार करने और आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए तो काफी होते हैं, लेकिन आरोपों को साबित कर आरोपी को दोषी ठहराये जाने के हिसाब से अपर्याप्त होते हैं. सीबीआई की दलील पर अदालत की प्रतिक्रिया से भी ऐसा ही लगता है.

Advertisement

केजरीवाल की कट्टर राजनीति में सिसोदिया केस मददगार कैसे

सबसे महत्वपूर्ण बात जमानत के हिसाब से देखें तो सत्येंद्र जैन और मनीष सिसोदिया के मामले में बड़ा फर्क है. सत्येंद्र जैन को जमानत मेडिकल ग्राउंड पर मिली है. इंसानियत के नाते, सहानुभूति के कारण - मनीष सिसोदिया की जमानत पर सुनवाई सबूतों को लेकर हो रही है. 

सहानुभूति की वजह से मनीष सिसोदिया को सिर्फ बीमार पत्नी से मिलने के लिए कुछ घंटों की मोहलत मिली थी, वो भी सशर्त. पुलिस की कड़ी निगरानी में. अब अगर मनीष सिसोदिया को भी जमानत मिलती है, तो उसका आधार प्रवर्तन निदेशालय की तरफ से पेश कमजोर सबूत ही माने जाएंगे. 

अब अगर मनीष सिसोदिया के खिलाफ ED सुप्रीम कोर्ट को यकीन दिलाने लायक सबूत नहीं पेश कर पाता है और जमानत मिल जाती है, तो अरविंद केजरीवाल को अपनी कट्टर इमानदारी पर शोर मचाने की छूट अपनेआप मिल जाएगी.

और अगर ED की तरफ से पेश सबूतों का मनीष सिसोदिया के वकील अभिषेक मनु सिंघवी सही तरीके से काउंटर नहीं कर पाते, और सुप्रीम कोर्ट आरोपों को गंभीर मान लेता है, तो चुनावी माहौल में अरविंद केजरीवाल के लिए खुद के साथ साथ अपने साथियों को कट्टर इमानदार साबित करना भी मुश्किल हो सकता है.

Advertisement

जब तक आखिरी फैसला नहीं आ जाता ये सवाल भी बना रहेगा कि क्या नीतिगत फैसलों को चैलेंज किया जा सकता है? और ये बहस तब तक खत्म नहीं हो सकती जब तक ये साबित न हो जाये कि किसी को फायदा पहुंचाने के लिए दिल्ली एक्साइज पॉलिसी बनायी गयी थी.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement