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सोनिया-राहुल के बारे में मणिशंकर अय्यर की राय मोदी से ज्यादा अलग नहीं है | Opinion

कांग्रेस में हाशिये पर पहुंच चुके मणिशंकर अय्यर ने अपनी किताब में सोनिया गांधी की नेतृत्व क्षमता पर सवाल खड़ा कर दिया है. खासकर, डॉक्टर मनमोहन सिंह को 2012 के बाद भी प्रधानमंत्री बनाये रखने को लेकर.

मणिशंकर अय्यर क्या सोनिया गांधी की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठा रहे हैं? मणिशंकर अय्यर क्या सोनिया गांधी की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठा रहे हैं?
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 16 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 6:18 PM IST

कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर अपनी किताब 'A Maverick in Politics' को लेकर चर्चा में हैं. ध्यान देने वाली बात ये है कि मणिशंकर अय्यर के विचार सोनिया गांधी के बारे में भी कोई अच्छे नहीं हैं. 

लगातार दो टर्म केंद्र में यूपीए की सरकार चलाने वाली सोनिया गांधी के बारे में मणिशंकर अय्यर की राय करीब करीब वैसी ही है, जैसी बीजेपी की तरफ से राहुल गांधी के बारे में प्रचारित किया जाता है. जिन वाकयों के जरिये मणिशंकर अय्यर ने सोनिया गांधी के बारे में अपनी राय जाहिर की है, वे तो उनकी नेतृत्व क्षमता पर ही सवाल खड़ा कर रहे हैं. 

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मणिशंकर अय्यर ने अपनी किताब में राजनीति में अपने शुरुआती दिनों, पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के शासनकाल, यूपीए-एक सरकार में मंत्री के रूप में अपना कार्यकाल और अपने राजनीतिक करियर के ढलान के बारे में भी बताया है.

और उनका राजनीतिक बयान है, "मेरे राजनीतिक करियर की शुरुआत गांधी परिवार से हुई, और खात्मा भी उन्हीं के द्वारा हुआ."

बड़े दुख के साथ मणिशंकर अय्यर बताते हैं, पिछले 10 साल से सोनिया गांधी से उनकी मुलाकात नहीं हुई, और राहुल गांधी से मिलने का मौका नहीं मिला - लेकिन प्रियंका गांधी वाड्रा से फोन पर बातचीत होती है.

सोनिया की नेतृत्व क्षमता पर सवाल

मणिशंकर अय्यर लिखते हैं, '2012 में प्रधानमंत्री (मनमोहन सिंह) की हार्ट सर्जरी हुई थी, जिसके बाद वो कभी फिजकली फिट नहीं हो सके. नतीजा ये हुआ कि उनकी कार्यक्षमता पर उसका असर पड़ा और ये शासन में भी दिखाई दिया. 

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कांग्रेस नेता के मुताबिक, तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी मनमोहन सिंह के साथ ही बीमार पड़ी थीं, लेकिन कांग्रेस की ओर से उनके स्वास्थ्य को लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं जारी किया गया. 

वो लिखते हैं, 'जल्द ही साफ हो गया कि प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष, दोनो कार्यालयों में समन्वय नहीं था. शासन का स्पष्ट अभाव था. विशेष रूप से अन्ना हजारे के इंडिया अगेंस्ट करप्शन मूवमेंट को प्रभावी तरीके से नहीं संभाला गया.'

अय्यर का कहना है कि मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाये रखने और प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति भवन भेजने के फैसले ने कांग्रेस के लिए तीसरी बार केंद्र की सत्ता में आने की संभावना को ही खत्म कर दिया था. 

किताब के एक चैप्टर में अय्यर ने लिखा है कि 2012 के राष्ट्रपति चुनाव से पहले यूपीए-2 सरकार की बागडोर प्रणब मुखर्जी को सौंपी जानी चाहिये थी, और मनमोहन सिंह को राष्ट्रपति बनाया जाना चाहिये था. उनका मानना है कि अगर ऐसा कदम उठाया गया होता, तो यूपीए सरकार में 'पैरालिसिस ऑफ गवर्नेंस' की स्थिति नहीं पैदा होती.

प्रणब मुखर्जी को प्रधानमंत्री न बनाये जाने का नुकसान

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और मनमोहन सिंह के बारे में मणिशंकर अय्यर ने लिखा है, निजी तौर पर मेरा विचार था कि 2012 में प्रणब मुखर्जी को केंद्र सरकार की बागडोर सौंपी जानी चाहिए थी, और डॉ. मनमोहन सिंह को भारत के राष्ट्रपति के रूप में प्रमोट किया जाना चाहिए था. 

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अय्यर अपनी राय की वजह भी बताते हैं, हमें सरकार का नेतृत्व करने के लिए एक स्वस्थ, ऊर्जावान और बहुत सक्रिय प्रधानमंत्री (प्रणब दा) और देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद के लिए एक उच्च विशिष्टता वाले व्यक्ति (डॉ. मनमोहन सिंह) की आवश्यकता थी, जिन्होंने अपने देश की असाधारण रूप से अच्छी तरह सेवा की हो. 

अपनी राय को आधार देने के लिए अय्यर ने प्रणब मुखर्जी के संस्मरण के एक अंश का हवाला भी दिया है, 'जब सोनिया गांधी कौशांबी की पहाड़ियों में छुट्टी मना रही थीं, तब उन्होंने संकेत दिया था कि वो मनमोहन सिंह को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने पर विचार कर रही थीं. 

अय्यर कहते हैं, इससे प्रणब मुखर्जी को लगा कि अगर उन्होंने डॉ. मनमोहन सिंह को राष्ट्रपति पद के लिए चुना, तो वो उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में चुन सकती हैं. अय्यर लिखते हैं, 'हालांकि, अंत में डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाये रखने और प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति के रूप में प्रमोट करने का फैसला लिया गया. मेरी राय में इससे कांग्रेस के लिए यूपीए-3 संभावना ही खत्म हो गई.

हाशिये पर हैं मणिशंकर अय्यर

मणिशंकर अय्यर काफी दिनों से हाशिये पर चले गये हैं. अब तो उनको लेटेस्ट ऐक्ट से जोड़ कर ही ज्यादा पहचाना जाता है. और वो ऐक्ट है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर उनका बयान. एक बार तो वो मोदी को अपशब्द कहने को लेकर माफी भी मांग चुके हैं. 

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2017 के गुजरात चुनाव के दौरान मणिशंकर अय्यर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जिक्र आने पर उनके लिए 'नीच' शब्द बोल दिया था. मणिशंकर अय्यर के ये बोलने पर राहुल गांधी काफी गुस्सा हो गये थे. 

राहुल गांधी का कहना था कि वो हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री हैं, इसलिए किसी को उनके लिए ऐसा कहने का हक नहीं है. फिर राहुल गांधी ने मणिशंकर अय्यर से माफी मंगवाई, और कांग्रेस से उनको छह साल के लिए निकाल भी दिया गया था. 

अपनी सफाई में तब मणिशंकर अय्यर ने कहा था कि हिंदी नहीं जानने के कारण वो ये शब्द बोल गये थे, लेकिन उनका ऐसा वैसा कोई इरादा नहीं था. उससे पहले मणिशंकर अय्यर ने मोदी के लिए चायवाला करार दिया था, जिसे बीजेपी ने चुनावी मुद्दा बना दिया था.

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