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मनमोहन के एहसान सोनिया-राहुल को नहीं भूलना चाहिए, इतिहास चाहे जैसे भी आकलन करे | Opinion

डॉक्टर मनमोहन सिंह के कार्यकाल के मूल्यांकन का काम इतिहास पर छोड़ भी दिया जाये, तो भी गांधी परिवार उनके एहसानों तले दबा हुआ है - जिसमें एक उदाहरण 1984 के दंगों के लिए उनका माफी मांगना भी है.

मनमोहन सिंह ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी को जो कुछ दिया, वो अब तक किसी से नहीं मिल सका है. मनमोहन सिंह ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी को जो कुछ दिया, वो अब तक किसी से नहीं मिल सका है.
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 27 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 1:43 PM IST

पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह के पहले कार्यकाल के दम पर ही यूपीए की सत्ता में वापसी हुई थी. पहली पारी तो नहीं, लेकिन दूसरी पारी में केंद्र सरकार के मंत्रियों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते मनमोहन सिंह निशाने पर आ गये थे, लेकिन वो हमेशा ही बेदाग रहे. 

जनवरी, 2014 में दिल्ली में पत्रकारों से बात करते हुए मनमोहन सिंह ने एक बात कही थी, जिसका बार बार हवाला दिया जाता है, 'मैं ये नहीं मानता कि मैं एक कमजोर प्रधानमंत्री रहा हूं... मैं ईमानदारी से ये मानता हूं कि इतिहास मेरे प्रति... समकालीन मीडिया या संसद में विपक्ष की तुलना में अधिक उदार होगा... राजनीतिक मजबूरियों के बीच मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया है.'

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और इस तरह मनमोहन सिंह ने अपनी बात बोल कर देश और लोगों पर छोड़ दिया. अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों. ये सही है कि अब इतिहास को ही तय करना है कि मनमोहन सिंह ने क्या किया है, या क्या नहीं किया. 

अब इतिहास चाहे जैसे भी आकलन करे, लेकिन मनमोहन ने जो काम कांग्रेस के लिए किया है, जो काम गांधी परिवार के लिए किया है, वो एहसान सोनिया गांधी और राहुल गांधी नहीं भूल सकते. कभी नहीं. 

1. '84 के सिख विरोधी दंगों के लिए माफी मांगना

अगस्त. 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 1984 दंगों के लिए संसद और देश से माफी मांगी थी. मनमोहन सिंह ने कहा था, ‘मुझे न सिर्फ सिख समुदाय... बल्कि, देश से भी माफी मांगने में कोई हिचकिचाहट नहीं है... देश में जो कुछ हुआ, उसके लिए मैं शर्म से अपना सिर झुकाता हूं.’

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और जब कभी भी लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी पंजाब में ऑपरेशन ब्लू स्टार और दिल्ली के सिख विरोधी दंगों को लेकर निशाने पर आते हैं, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बयान को ही वो ढाल बनाने की कोशिश करते हैं. 

ऐसे सवालों के जवाब में राहुल गांधी कहते हैं, 'पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने 1984 के दंगों को लेकर संसद में अपना रुख स्पष्ट किया था, और कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी भी ऐसा कर चुकी हैं... मैं मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी की बातों का पूरी तरह समर्थन करता हूं... मैंने भी पहले इस पर अपना रुख साफ तौर पर स्पष्ट किया है.'

2. भ्रष्टाचार पर बीजेपी का 'रेनकोट' इल्जाम झेलना

फरवरी, 2017 में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान राज्यसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरते हुए मनमोहन सिंह का खास तरीके से नाम लिया था. 

तब मोदी का कहना था, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में इतने भ्रष्टाचार हुए, लेकिन उन पर एक दाग तक नहीं लगा... बाथरूम में रेनकोट पहनकर नहाने की कला तो कोई डॉक्टर साहब से सीखे. 

प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान के बाद कांग्रेस सांसदों ने राज्यसभा की कार्यवाही का बहिष्कार किया और बाहर चले गये - भले ही मोदी ने मनमोहन सिंह को बेदाग बताया, लेकिन उनकी नजर में कांग्रेस सरकार की कारगुजारियों का तोहमत तो मनमोहन सिंह के माथे पर ही लगा. सोनिया गांधी और राहुल गांधी तो दूर ही खड़े नजर आते हैं. 

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3. ऐसे नेता बने रहे जिस पर आंख मूंद कर भरोसा किया जा सके

2004 के आम चुनाव के नतीजे आने के बाद सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा दोबारा जोरशोर से उछाला गया. और, बीजेपी नेता सुषमा स्वराज और उमा भारती विरोध में सबसे आगे नजर आ रही थीं. 

बीजेपी मानती है कि उसके नेताओं के विरोध के चलते ही सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री न बनने का फैसला किया होगा. लेकिन, कांग्रेस नेता नटवर सिंह अपनी आत्मकथा One Life Is Not Enough में अलग ही किस्सा सुनाया है. 

पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह लिखते हैं, 17 मई, 2004 को दोपहर के लगभग 2 बजे 10, जनपथ पहुंचे तो अंदर बुलाया गया... कमरे में सोनिया गांधी सोफे पर बैठी थीं... वो काफी परेशान नजर आ रही थीं... मनमोहन सिंह और प्रियंका गांधी वाड्रा भी वहां मौजूद थे... तभी राहुल गांधी वहां आये. 

राहुल गांधी सीधे सोनिया गांधी से बोले, 'आपको प्रधानमंत्री नहीं बनना है... मेरे पिता की हत्या कर दी गई... दादी की हत्या कर दी गई... छह महीने में आपको भी मार देंगे.' 

नटवर सिंह के मुताबिक राहुल गांधी की बात खत्म होते ही वहां सन्नाटा पसर गया. स्वाभाविक भी था. जाहिर है, तभी ऐसे नेता की तलाश शुरू हुई होगी, जिसे प्रधानमंत्री बनाया जा सके.

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तब सोनिया गांधी के सामने दो नाम थे. प्रणब मुखर्जी, और मनमोहन सिंह. दोनो एक से बढ़कर एक काबिल. दोनो की अपनी अपनी खासियत और अनुभव था. 

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से अपनी किताब 'ए प्रॉमिस्ड लैंड' में ये बात भी साफ कर दी है. ओबामा लिखते हैं, सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को इसलिए प्रधानमंत्री बनाया था, क्योंकि उन्हें मनमोहन सिंह से कोई खतरा महसूस नहीं होता था.

4. अगर उनकी जगह प्रणब या किसी और को बनाया गया होता तो क्या होता?

प्रणब मुखर्जी के सामने कई बार प्रधानमंत्री बनने का मौका आया, और बेहद करीब से छिटक कर बहुत दूर चला गया. अपने बयानों की वजह से अक्सर विवादों में रहने वाले कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने हाल ही में आई अपनी किताब A Maverick in Politics में लिखा है, 'प्रधानमंत्री (मनमोहन सिंह) 2012 में हुई हार्ट सर्जरी के बाद कभी फिजकली फिट नहीं हो सके. इससे उनकी कार्यक्षमता पर असर पड़ा और ये चीज शासन में भी दिखाई दी... जहां तक ​​पार्टी की बात है, कांग्रेस अध्यक्ष (सोनिया गांधी) भी उस वक्त बीमार पड़ी थीं, लेकिन कांग्रेस की तरफ से उनके स्वास्थ्य को लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं जारी किया गया... जल्द ही साफ हो गया कि प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष, दोनों कार्यालयों में समन्वय नहीं था... शासन का स्पष्ट अभाव था. विशेष रूप से अन्ना हजारे के इंडिया अगेंस्ट करप्शन मूवमेंट को प्रभावी ढंग से नहीं संभाला गया.'

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प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए मणिशंकर अय्यर लिखते हैं, 'जहां तक मनमोहन सिंह और प्रणब मुखर्जी में से राष्ट्रपति पद के लिए पसंद की बात है, निजी तौर पर मेरा विचार था कि 2012 में प्रणब मुखर्जी को सरकार की बागडोर सौंपी जानी चाहिये थी, और डॉ. मनमोहन सिंह को राष्ट्रपति के रूप में प्रमोट किया जाना चाहिए था. 

मणिशंकर अय्यर की दलील है कि अगर बीमार मनमोहन की जगह एक्टिव प्रणब मुखर्जी को प्रधानमंत्री बनाया गया होता तो बात और होती. अय्यर ने प्रणब मुखर्जी की डायरी में लिखे उनके संस्मरण का हवाला देते हुए कहा है कि वास्तव में इस पर विचार किया गया था.

5. सोनिया गांधी को कभी महसूस नहीं होने दिया कि सरकार की कमान उनके हाथ में नहीं है

सिर्फ न्यूक्लियर डील के वक्त का वाकया छोड़ दें तो एक भी ऐसा मौका नहीं दिखाई देता जब मनमोहन सिंह ने खुलकर विरोध जताया हो. न्यूक्लियर डील के दौरान वो सोनिया गांधी से मतभेदों के चलते वो इस्तीफा देने को तैयार थे. 

मनमोहन सिंह की ऐसी नाराजगी तो तब भी महसूस की गई थी जब राहुल गांधी ने दागी नेताओं वाला वाले ऑर्डिनेंस की काफी फाड़ कर विरोध जताया था, वैसे उनको, कम से कम इस मामले में, राहुल गांधी का भी शुक्रगुजार होना चाहिये कि एक और तोहमत से वो बच गये. 

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और बाकी के किस्से तो प्रधानमंत्री के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू की किताब 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' में दर्ज हैं ही. 

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