
आंबेडकर पर अमित शाह के बयान को लेकर हाल ही में खासा विवाद हुआ था. रिएक्शन तो मायावती का भी आया था, लेकिन जोर शोर से मुद्दा उठाने में राहुल गांधी ही आगे नजर आ रहे थे.
दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को आंबेडकर विवाद का कोई फायदा मिलेगा या नहीं, ये तो नहीं मालूम लेकिन INDIA ब्लॉक में तो खोई हुई ताकत मिल ही गई है. ममता बनर्जी को इंडिया ब्लॉक का नेता बनाये जाने का मामला फिलहाल तो शांत ही है. कांग्रेस से दूर जा रही समाजवादी पार्टी भी फिर से साथ आ गई है.
आंबेडकर के मुद्दे पर हुए विवाद के बीच अरविंद केजरीवाल ने राहुल गांधी से अलग लाइन ली थी. वैसे भी दिल्ली चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी एक दूसरे के खिलाफ ही लड़ रहे हैं. लड़ाई का चुनावों में कोई असर हुआ तो फायदे में बीजेपी ही रहेगी - और अब तो बीएसपी भी मैदान में उतरने जा रही है.
ताज्जुब की बात ये है कि मिल्कीपुर उपचुनाव की जगह मायावती दिल्ली विधानसभा चुनाव को तरजीह दे रही हैं. यूपी में 9 सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे आने के बाद मायावती ने फर्जी वोटिंग के जरिये नतीजे प्रभावित करने का आरोप लगाया था, और कहा था कि जब तक चुनाव आयोग फर्जी मतदान रोकने के लिए सख्त कदम नहीं उठाएगा, तब तक बहुजन समाज पार्टी कोई उपचुनाव नहीं लड़ेगी.
मायावती के लिए मिल्कीपुर से महत्वपूर्ण दिल्ली चुनाव क्यों?
दिल्ली चुनाव के साथ ही उत्तर प्रदेश की मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव की भी घोषणा हुई है. चुनाव आयोग के अनुसार, मिल्कीपुर में भी दिल्ली के साथ ही 5 फरवरी को मतदान होंगे - और सभी नतीजे 8 फरवरी को वोटों की गिनती के बाद साथ ही आएंगे.
मिल्कीपुर चुनाव के लिए तो नहीं, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर मायावती ने सोशल साइट X पर तीन पोस्ट किया है. लिखती हैं, बीएसपी ये चुनाव... अपनी पूरी तैयारी, और दमदारी के साथ... अकेले, अपने बलबूते पर लड़ रही है... उम्मीद है कि पार्टी इस चुनाव में जरूर बेहतर प्रदर्शन करेगी.
मायावती ने दिल्ली के वोटर से बीएसपी को वोट देने की अपील की है. कहती हैं, किसी पार्टी के लुभावने वादे के बहकावे में न आकर, अपने वोट का पूरी समझदारी से इस्तेमाल करके जनहित और जनकल्याण को समर्पित... बीएसपी पार्टी के उम्मीदवारों को ही वोट करें... इसी में ही जन और देशहित निहित और सुरक्षित है.
चुनाव आयोग को संबोधित करते हुए मायावती ने लिखा है, बीएसपी आयोग से ये उम्मीद रखती है कि वो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने में सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग के साथ ही, साम्प्रदायिकता और अन्य घिनौने प्रचार से चुनाव को दूषित होने से बचाएगा.
2022 का यूपी विधानसभा चुनाव भी मायावती ने अकेले ही लड़ा था, और महज एक सीट मिली थी. बरसों बाद मायावती ने 9 सीटों पर उपचुनाव लड़ने का फैसला किया था. मिल्कीपुर के लिए उम्मीदवार का नाम घोषित कर दिया था, लेकिन अब तो ऐसी कोई चर्चा भी नहीं सुनाई दे रही है.
आखिर मिल्कीपुर जैसे बेहद महत्वपूर्ण चुनाव छोड़कर मायावती के दिल्ली चुनाव अकेले लड़ने का मकसद क्या हो सकता है? 2022 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी उम्मीदवारों को लेकर सवाल खड़े किये जा रहे थे. यहां तक कहा जा रहा था कि बीएसपी के उम्मीदवार बीजेपी को ही फायदा पहुंचा रहे हैं - और उसके बाद आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में भी वैसे ही प्रयोग नजर आये थे. 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा के धर्मेंद्र यादव को शिकस्त देने वाले बीजेपी के निरहुआ खुद चुनाव हार गये थे, क्योंकि सीट पर समीकरण बदल चुके थे. उपचुनाव में धर्मेंद्र यादव की हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले गुड्डू मुस्लिम मायावती का साथ छोड़कर अखिलेश यादव के पास पहुंच गये थे.
सवाल है कि मायावती उत्तर प्रदेश की ही तरह दिल्ली विधानसभा चुनाव क्यों लड़ना चाहती हैं? बगैर किसी के साथ चुनावी गठबंधन के, और दिल्ली की सभी 70 सीटों पर.
दिल्ली चुनाव पर बारीकी से नजर रख रहे सीनियर पत्रकार रंजन कुमार से बातचीत में मालूम होता है कि दिल्ली में बीएसपी के घटते जनाधार ने मायावती की फिक्र बढ़ाई होगी. बताते हैं, दिल्ली की राजनीति में आम आदमी पार्टी की एंट्री होने से पहले बीएसपी के पास भी 2 विधायक हुआ करते थे, लेकिन अब हालत ये हो गई है कि वोट शेयर 1 फीसदी से भी नीचे पहुंच गया है.
रंजन कुमार के मुताबिक, 2008 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीएसपी का वोट शेयर 14.05 फीसदी हुआ करता था. 2013 का चुनाव आते आते ये 5.35 पहुंच गया. 2005 में तो बीएसपी को 1.30 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन 2020 में ये आंकड़ा 0.71 फीसदी हो गया था.
ऐसा लगता है आंबेडकर के मुद्दे पर विवाद के साये में मायावती को दिल्ली चुनाव में कोई उम्मीद दिखाई पड़ी होगी, लेकिन अगर यूपी की तरफ ही कोई चुनाव स्ट्रैटेजी है तो बात ही अलग है.
दिल्ली बीएसपी का सबसे बड़ा दुश्मन कौन
2008 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी को दिल्ली की दो सीटें मिली थीं. बदरपुर और गोकलपुर. बदरपुर में राम सिंह नेताजी को 47.30 फीसदी वोट मिले थे, जबकि गोकलपुर में बीएसपी के सुरेंद्र कुमार 28.89 फीसदी वोट पाकर चुनाव जीते थे.
सुरेंद्र कुमार 2020 में आम आदमी पार्टी में शामिल होकर विधायक बन गये, और 2025 में भी टिकट कटा नहीं है. 2020 में राम सिंह नेताजी भी आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन हार गये थे - 2025 में अरविंद केजरीवाल एक बार फिर उनको आजमा रहे हैं.
दिल्ली की 6 सीटों की कहानी मिलती-जुलती ही है. बदरपुर और गोकलपुर के अलावा जिन सीटों पर बीएसपी अच्छा प्रदर्शन कर रही थी, अरविंद केजरीवाल ने साथ ले लिया, और कहानी बदल दी.
1. 2008 में BSP के टिकट पर शरद कुमार को 31.66 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन 832 वोटों से हारकर वो दूसरे स्थान पर रह गये. 2015 और 2020 में वो आम आदमी पार्टी से विधायक बन गये थे, लेकिन इस बार अरविंद केजरीवाल ने उनका टिकट काट दिया है.
2. बादली विधानसभा सीट पर 2008 में दूसरे स्थान पर रहने वाले बीएसपी के अजेश यादव 2015 में आम आदमी पार्टी के विधायक बन गये. 2020 में भी सीट आप के पास रही, और 2025 में भी अजेश यादव को टिकट मिला है.
3. तुगलकाबाद विधानसभा सीट पर 2008 में दूसरे स्थान पर रहे BSP के सही राम 2015 और 2020 में AAP के विधायक बन गये थे - और 2025 में भी सही राम का टिकट नहीं काटा गया है. बता दें, सही राम को लोकसभा चुनाव में दक्षिण दिल्ली सीट पर आम आदमी पार्टी का उम्मीदवार बनाया गया था.
और दिल्ली में ऐसी कई सीटें हैं जिन पर बीएसपी का वोट आम आदमी पार्टी की तरफ शिफ्ट होता गया है. बाबरपुर, मंगोलपुरी, छतरपुर, देवली, कोंडली, घोंडा, त्रिलोकपुरी, राजिंदर नगर और ओखला विधानसभा सीटों की मिलती-जुलती ही कहानी है.
दिल्ली का दलित वोटर क्या सोच रहा है?
लोकनीति-CSDS के मुताबिक, दिल्ली में 17 फीसदी दलित वोटर हैं, और रंजन कुमार को अनुमान है कि विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को अब 60 फीसदी से ज्यादा वोट मिलने लगा है.
आम आदमी पार्टी के दलित चेहरा रहे राज कुमार आनंद अब बीजेपी में पहुंच चुके हैं. आम आदमी पार्टी में रहते हुए वो दिल्ली सरकार में मंत्री भी थे. और हां, वो सीधे बीजेपी में नहीं गये थे, 2024 के आम चुनाव में वो नई दिल्ली लोकसभा सीट से बीएसपी के उम्मीदवार थे.
दिल्ली करीब दर्जन भर सीटों पर दलित वोटों का सीधा प्रभाव देखने को मिलता है, लेकिन लोकसभा चुनाव में तस्वीर बदल जाती है. 2019 में दलित वोटों के मामले में बीजेपी ने आम आदमी पार्टी को पीछे छोड़ते हुए 49 फीसदी वोट हासिल किया था. तब आम आदमी पार्टी को 25 फीसदी, और कांग्रेस को 24 फीसदी वोट मिले थे.
नये माहौल में दिल्ली के दलित वोटर का झुकाव आप, बीजेपी या कांग्रेस, किसकी तरफ होता है, 8 फरवरी को सामने आ जाएगा.