
मिल्कीपुर में जंग का ऐलान हो चुका है, जिसे अयोध्या की नई जंग के रूप में देखा जा रहा है. अव्वल तो मिल्कीपुर में भी उपचुनाव उत्तर प्रदेश की 10 सीटों के साथ ही हो जाना चाहिये था, लेकिन वो घड़ी अब जाकर आई है.
चुनाव आयोग ने मिल्कीपुर में वोटिंग की तारीख घोषित कर दी है. 5 फरवरी को मतदान होना है, और 8 फरवरी को वोटों की गितनी. मतलब नतीजे दिल्ली विधानसभा चुनाव के रिजल्ट के साथ ही आएंगे.
अयोध्या की पहली सियासी जंग तो राम मंदिर निर्माण से जुड़ी थी, जो जनवरी 2024 में मंदिर के उद्घाटन के साथ ही खत्म भी हो गई. लेकिन, कुछ ही दिन बाद हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी फैजाबाद लोकसभा सीट का चुनाव हार गई. और तभी से, समाजवादी पार्टी ने तब मिल्कीपुर के विधायक रहे अवधेश प्रसाद की जीत को बीजेपी के लिए अयोध्या की हार के रूप में प्रचारित करने लगी थी.
हाल ही में यूपी की 9 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में समाजवादी पार्टी को बहुत बड़ा झटका लगा था. बमुश्किल वो 2 सीटें ही जीत सकी. भारतीय जनता पार्टी ने 9 में से 7 सीटों पर फतह हासिल कर ली - और इस तरह, अपने हिसाब से, बीजेपी ने अयोध्या की आधी जंग तो जीत ही ली है.
मौका तो पहले जैसा ही बन पड़ा है, नतीजा देखते हैं
मिल्कीपुर चुनाव के वक्त भी माहौल बहुत बदला नहीं है. लोकसभा चुनाव में बीजेपी को फैजाबाद सीट पर हार का मुंह देखना पड़ा था, लेकिन उस हार के पीछे कई कारण भी थे. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बीजेपी नेताओं के अति आत्मविश्वास को पार्टी की हार की वजह बताई थी.
अयोध्या सहित लोकसभा चुनाव में बीजेपी की हार भी करीब करीब वैसी लगी, जैसी 2017 में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बन जाने के बाद गोरखपुर और फूलपुर सीटों के नतीजे आये थे, जिसमें बीजेपी की हार हुई थी - और जैसे उसके बाद हुए चुनाव में योगी आदित्यनाथ ने दोनो ही सीटें जीतकर बीजेपी की झोली में डाल दी थी, हाल के उपचुनाव में भी बिल्कुल वैसा ही देखने को मिला था.
ये संयोग ही है कि जैसे 2024 में राम मंदिर उद्घाटन के बाद लोकसभा चुनाव हुए थे, मंदिर उद्घाटन की सालगिरह के उत्सव के ठीक बाद मिल्कीपुर में उपचुनाव होने जा रहा है. और, उसके बाद यूपी के प्रयागराज में 13 जनवरी से 26 फरवरी महाकुंभ का आयोजन होने जा रहा है.
महाकुंभ का न्योता देने को लेकर मंदिर उद्घाटन के दौरान जो माहौल बना था, अब भी नजारा कुछ कुछ वैसा ही है. महाकुंभ के न्योते को लेकर भी अखिलेश यादव और बीजेपी के बीच वैसी ही तकरार हो रही है, जैसे 2024 में राम मंदिर उद्घाटन समारोह को लेकर चल रहा था - अब तो ऐसा लगता है, जैसे मिल्कीपुर के बहाने अयोध्या की लड़ाई नये सिरे से लड़ी जा रही है.
तैयारियां दोनो तरफ से युद्ध स्तर पर हो रही हैं, और कोई भी मौका चूकना नहीं चाहता. बीजेपी की जीत पक्की करने के लिए योगी आदित्यनाथ ने मिल्कीपुर के लिए बीते उपचुनावों से भी मजबूत टीम बनाई है. तब तो हर सीट पर तीन मंत्री ही तैनात किये गये थे, इस बार तो नंबर डबल बताया जा रहा है.
ये तो है कि उपचुनावों में समाजवादी पार्टी ने करहल की सीट बचा ली थी, लेकिन कुंदरकी की हार ने तो नई मिसाल ही कायम कर दिया है. मुस्लिम बहुल कुंदरकी सीट पर बीजेपी उम्मीदवार की जीत तो हर किसी को हैरान करने वाली थी. चुनाव जिन नौ सीटों पर हुए थे, उनमें 4 तो समाजवादी पार्टी के पास ही थे, लेकिन वो 2 ही जीत पाई - आगे मिल्कीपुर की बारी है.
बीजेपी ने अयोध्या का आधा हिसाब बराबर कर लिया है, आधा बाकी है
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मिल्कीपुर में मंत्रियों की ड्यूटी लगाने के बावजूद कमान अपने हाथ में ले रखी है, और खुद निगरानी कर रहे हैं. हाल ही में समीक्षा बैठक भी की थी, और मंत्रियों को बूथ स्तर पर टोलियां बनाकर लोगों से सीधा संवाद करने की सलाह दी थी.
मिल्कीपुर के विधायक रहे अवधेश प्रसाद के फैजाबाद से लोकसभा पहुंच जाने के कारण ही उपचुनाव हो रहा है. अखिलेश यादव ने चुनाव की कमान और जीतने की जिम्मेदारी भी अवधेश प्रसाद को ही दे रखी है - ऐसा इसलिए भी क्योंकि अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद का ही चुनाव लड़ना पहले से ही तय हो चुका है.
बीजेपी की तरफ से ऐसाी कोई आधिकारिक जानकारी तो नहीं आई है, लेकिन चर्चा है कि बाबा गोरखनाथ को पार्टी का अधिकृत उम्मीदवार बनाया जा सकता है.
2022 के विधानसभा चुनाव में बाबा गोरखनाथ समाजवादी पार्टी उम्मीदवार अवधेश प्रसाद से 13 हजार वोटों से चुनाव हार गये थे. तब अवधेश प्रसाद को 1.03 लाख वोट मिले थे, जबकि बाबा गोरखनाथ को 90.5 हजार वोट ही मिल पाये थे. अवधेश प्रसाद 2012 में भी मिल्कीपुर से विधायक रह चुके हैं. लेकिन, उनके बाद 2017 में बाबा गोरखनाथ मिल्कीपुर से विधायक बने थे.
देखा जाये तो उपचुनावों में बीजेपी ने 9 में से 7 सीटें जीतकर अयोध्या का आधा हिसाब तो बराबर कर ही ली है, आधा हिसाब बाकी रह गया है - और अखिलेश यादव की कोशिश हर हाल में उसे रोकने की होगी.