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ओडिशा में मोदी के मुंह से नवीन पटनायक की तारीफ क्या इशारा करती है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ओडिशा दौरे में मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की दिल खोलकर तारीफ की है, और बदले में बीजेडी नेता ने भी कोई कसर बाकी नहीं रखी. अब तो BJP-BJD गठबंधन की चर्चा भी जोर पकड़ने लगी है - लेकिन, ऐसा कभी लगा क्या कि नवीन पटनायक एनडीए से बाहर हैं?

ओडिशा में मोदी और पटनायक की केमिस्ट्री बीजेपी की सधी हुई चाल का हिस्सा है ओडिशा में मोदी और पटनायक की केमिस्ट्री बीजेपी की सधी हुई चाल का हिस्सा है
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 06 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 4:58 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाल के भाषणों को ध्यान से देखें तो साफ है कि बीजेपी अपना दुश्मन सिर्फ उन राजनीतिक दलों को मानती है, जो किसी न किसी रूप में INDIA ब्लॉक से जुड़े हैं. ममता बनर्जी ने भले ही कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं किया हो, लेकिन वो अब भी बीजेपी के निशाने पर बनी हुई हैं. 

लेकिन जो भी पार्टियां INDIA ब्लॉक से पूरी तरह बाहर हैं, बीजेपी उन्हें दोस्त-दल मान कर चल रही है - और इस सूची में सबसे ऊपर तो ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के बीजू जनता दल का ही नाम नजर आ रहा है. खासकर महीने भर पहले प्रधानमंत्री मोदी के नवीन पटनायक को 'मेरे मित्र' कह कर संबोधित किये जाने के बाद तो चर्चा हो ही रही थी - मोदी के ताजा ओडिशा दौरे में दोनों नेताओं के एक-दूसरे की तारीफ के बाद तो ये चर्चा ज्यादा ही गंभीर हो चली है. 

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अब तो ऐसा लगता है, बीजेपी अपनी स्वर्णकाल वाली सूची से भी ओडिशा को हटा चुकी है, क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी के पिछले दो दौरे में ऐसा कोई संकेत नहीं देखा गया जिससे समझ में आये कि बीजेपी और बीजेपी आपस में विरोधी राजनीतिक दल हैं. 

बीजेपी के स्वर्णकाल की चर्चा पहली बार 2019 के आम चुनाव से पहले सुनाई दी थी. 2017 के यूपी विधानसभा चुनावों के बाद बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी भुवनेश्वर में आयोजित हुई थी. चुनावी राज्यों में बीजेपी तैयारियों के मद्देनजर हाल फिलहाल ऐसे ही कार्यकारिणी की बैठकें बुलाती रही है.

कार्यकारिणी की बैठक के बाद बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद ने तब स्वर्णकाल को लेकर अमित शाह का नजरिया पेश किया था. बकौल रविशंकर प्रसाद अमित शाह ने कार्यकारिणी में कहा था, लोग कहते हैं कि ये भाजपा का स्वर्णिम काल है... मैं कहता हूं स्वर्णिम समय तब आएगा जब केरल, बंगाल, ओडिशा... सभी राज्यों में भाजपा की सरकार होगी.

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देखा जाये तो केरल और बंगाल को लेकर तो बीजेपी वैसे ही तत्पर है, लेकिन ओडिशा में स्टैंड काफी हद तक बदल चुका है. मोदी और पटनायक की ताजा केमिस्ट्री तो ऐसे से ही संकेत दे रही है - लेकिन क्या नतीजा चुनावी गठबंधन के रूप में सामने आने वाला है? फिलहाल ये बड़ा सवाल है, लेकिन सीधे सीधे कोई जवाब नहीं मिल रहा है.

अपने लेटेस्ट ओडिशा दौरे में मोदी और नवीन पटनायक दोनों ने एक दूसरे की जमकर तारीफ की है. मोदी ने पटनायक को 'लोकप्रिय' तो बताया ही है, उनके पिता बीजू पटनायक को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए मोदी ने खुद को भाग्यशाली बताया है - और बदले में नवीन पटनायक कहते हैं, प्रधानमंत्री ने भारत के लिए एक नई दिशा निर्धारित की है... और ओडिशा के विकास में भी योगदान दिया है. भला अब क्या चाहिये? ऐसी बातें तो मोदी के बिहार दौरे में नीतीश कुमार के मुंह से भी सुनने को नहीं मिलतीं. हाल फिलहाल तो नीतीश कुमार बस एक ही बात कहे जा रहे हैं, अब कहीं नहीं जाएंगे... अब यहीं रहेंगे.

'तारीफ पर तारीफ'  के नतीजे एक जैसे नहीं होते

महीना भर पहले भी प्रधानमंत्री मोदी ओडिशा के दौरे पर थे. आईआईएम, संबलपुर के स्थायी कैंपस के उद्घाटन के दौरान मोदी का संबोधन था, ओडिशा के राज्यपाल रघुबर दास जी... मुख्यमंत्री और मेरे मित्र श्रीमान नवीन पटनायक जी. और नवीन पटनायक का संबोधन था, माननीय प्रधानमंत्री ने भारत के लिए एक नई दिशा निर्धारित की है... और हम एक आर्थिक महाशक्ति बनने की राह पर हैं.

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हाल ही में बीजेडी विधायकों के बीजेपी ज्वाइन कर लेने के बाद माना जा रहा था कि नवीन पटनायक का व्यवहार प्रधानमंत्री मोदी के प्रति रूखा हो सकता है, लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं हुआ. बल्कि, दोनों एक दूसरे की सराहना, और एक दूसरे के कामकाज की भी तारीफ करते देखे गये. 

नवीन पटनायक ने भारत के लिए नई दिशा देने को लेकर फिर से प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ तो की ही, ओडिशा के विकास में भी उनके योगदान की बात कही. और बोले, मैं ओडिशा के 4.5 करोड़ लोगों की सेवा करने के प्रयास में माननीय प्रधानमंत्री का समर्थन चाहता हूं.

नवीन पटनायक के पिता बीजू पटनायक की 108वीं जयंती के मौके पर ओडिशा पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ओडिशा और राष्ट्र के विकास में बीजू बाबू का योगदान अतुलनीय है... मैं ओडिशा से देश की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए भाग्यशाली महसूस करता हूं.

नेताओं का एक दूसरे की ऐसी तारीफ कम ही सुनने को मिलती है, लेकिन ये रिश्तों की मधुरता की गारंटी भी नहीं है. हाल ही में मोदी के तेलंगाना दौरे में मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने प्रधानमंत्री को बड़ा भाई बताया था - और एक बार 2022 में मोदी की देवघर यात्रा के दौरान हेमंत सोरेन के प्रति भी नवीन पटनायक जैसा ही व्यवहार महसूस किया गया था. आज की तारीख में हेमंत सोरेन जेल में हैं. 

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तब मुख्यमंत्री रहे हेमंत सोरेन ने प्रधानमंत्री को झुक कर अभिवादन करने के साथ ही 'परम आदरणीय' कहकर संबोधित किया था. हेमंत सोरेन का कहना था, सपना साकार होता है... आकार लेता है... हकीकत में बदलता है तो खुशी होती है... देवघर में प्रधानमंत्री आये हैं... ये गौरव की बात है.' और बोले, अगर केंद्र का सहयोग रहा तो अगले पांच-सात सालों में झारखंड देश के अग्रणी राज्यों में होगा.

देखें तो आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी भी नवीन पटनायक के रास्ते पर ही चलते रहे हैं. जब भी जरूरत पड़ी है, बीजेपी को खुल कर सपोर्ट किया है. जगनमोहन रेड्डी को मोदी सरकार के पक्ष में हेमंत सोरेन से लड़ते भी देखा गया है. 

आंध्र प्रदेश में जो बीजेपी को चाहिये वो जगनमोहन से नहीं मिल पा रहा है, लिहाजा बीजेपी ने उनके कट्टर दुश्मन टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू के साथ फिर से दोस्ताना व्यवहार शुरू कर दिया है. आने वाले चुनावों को लेकर चंद्रबाबू नायडू फिलहाल भी प्रशांत किशोर से सलाह ले रहे हैं. दोनों की तीन घंटे की मुलाकात और आंध्र प्रदेश की YSR कांग्रेस सरकार को लेकर प्रशांत किशोर के बयान पर काफी प्रतिक्रिया हो रही है. 

गठबंधन को नाम देने की जरूरत क्या है? 

पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री मोदी के प्रधान सचिव पीके मिश्रा ओडिशा गये थे, और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के करीबी सहयोगी वीके पांडियन दिल्ली के दौरे पर आये हुए थे. जब सिर पर चुनाव हों तो ऐसे दौरे कहीं से भी संयोग नहीं लगते, ये पूरी तरह राजनीतिक प्रयोग होते हैं - और दोनों दलों के नेताओं के बीच नजदीकियों को इससे जोड़ कर देखा जाना गलत कहीं से भी नहीं है.

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प्रधानमंत्री मोदी के दौरे में एक बार भी 'डबल इंजन की सरकार' जैसी बातें न सुनाई देना, और नवीन पटनायक के लिए 'लोकप्रिय' शब्द का इस्तेमाल करना - आखिर ये सब क्या कहलाता है? देश के मुख्यमंत्रियों की लोकप्रियता को लेकर आये एक सर्वे की सूची में सबसे ऊपर नवीन पटनायक का ही नाम था. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दूसरे और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा तीसरे पायदान पर थे. 

सूत्रों के हवाले से सुनने में आ रहा है कि लोकसभा के साथ होने जा रहे ओडिशा  चुनावों को लेकर बीजेपी और बीजेडी के बीच बातचीत चल रही है. ऐसे कयास लगाये जा रहे हैं कि बीजेपी और बीजेडी एक दूसरे को ग्रीन कॉरिडोर टाइव व्यवस्था बना दें. कुछ कुछ ऐसे जैसे - लोकसभा खुल कर बीजेपी लड़े, और विधानसभा अपने हिसाब से बीजेडी लड़ ले. 

जरूरी नहीं कि गंभीर बातचीत के बाद नतीजा भी चुनावी गठबंधन के रूप में ही सामने आये. ये भी हो सकता है कि ये अघोषित अंडरस्टैंडिंग हो, और ऊपर से कुछ भी साफ साफ नजर न आये. 

ऐसा लगता है बीजेपी नेतृत्व ओडिशा में भी मन ही मन बिहार जैसा ही ऑपरेशन चला रहा है. जैसे बिहार में नीतीश कुमार के सुशासन की विरासत पर बीजेपी के काबिज होने की कोशिश है, ओडिशा में भी नवीन पटनायक को वैसे ही अपनाने की कोशिश लगती है. ये भी बता दें कि नवीन पटनायक और नीतीश कुमार बड़े अच्छे दोस्त हैं - और दोनों की दोस्ती की मिसाल राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह के चुनाव लड़ते समय सबने देखा भी है - बीजेपी नेतृत्व भी दोनों के साथ वैसी ही दोस्ती चाहता है, जैसा उनका आपसी रिश्ता है. राजनीति में निजी रिश्ते ज्यादा मजबूत होते हैं, बनिस्बत पॉलिटिकल रिश्तों के. 

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