
लोकसभा चुनाव 2024 के बाद विपक्ष जिस तरह राजनीति के राष्ट्रीय फलक पर ताकतवर होकर उभरा था, दिल्ली चुनाव के नतीजों के साथ ही चमक फीकी पड़ती नजर आ रही है - विपक्षी खेमे के नेताओं के आपसी मतभेद और वर्चस्व की आपसी लड़ाई ने INDIA ब्लॉक के अस्तित्व को भी चैलेंज करने लगा है.
चुनावों से ठीक पहले देश भर के विपक्षी दलों का नया स्वरूप INDIA ब्लॉक के रूप में सामने आया था, और ये पिछले वाले तीसरे मोर्चे के प्रयासों के मुकाबले विपक्ष की तरफ से बेहतर कोशिश का नतीजा लगा था. लेकिन, दिल्ली चुनाव आते आते जो नजारा दिखा है, अब तो INDIA ब्लॉक के अस्तित्व पर भी सवाल उठने लगे हैं.
दिल्ली चुनाव ने तो इंडिया ब्लॉक को आईना दिखा ही दिया है, आगे बिहार और फिर पश्चिम बंगाल की बारी है. आम चुनाव के बाद हुए विधानसभा चुनावों में विपक्ष ने सिर्फ जम्मू-कश्मीर और झारखंड में ही बीजेपी को शिकस्त दी है. वरना, हरियाणा और महाराष्ट्र के साथ ही दिल्ली का दंगल भी बीजेपी ने अपने नाम कर ही लिया है.
MOTN सर्वे भी बिल्कुल यही तस्वीर दिखा रहा है. सर्वे नतीजे बता रहे हैं कि गुजरात तक जाकर बीजेपी को हराने का दावा करने वाले राहुल गांधी की हद से ज्यादा सक्रियता के बावजूद कांग्रेस के खाते में गिरावट दर्ज की गई है, और पूरे विपक्ष पर उसका असर महसूस होने लगा है - जाहिर है, विपक्ष कमजोर हुआ है, तभी तो सर्वे के आंकड़ों में बीजेपी अकेले दम पर सरकार बनाने की स्थिति में पहुंच चुकी है.
MOTN सर्वे में विपक्ष का स्टेटस अपडेट
सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक, अगर मौजूदा माहौल में आम चुनाव होते हैं, तो INDIA ब्लॉक के हिस्से में 188 लोकसभा सीटें ही आएंगी. लोकसभा चुनाव से ही कांग्रेस के अघोषित नेतृत्व में इंडिया ब्लॉक को 232 सीटें मिली थीं, लेकिन अब तो कांग्रेस भी 99 से लुढ़ककर 78 सीटों पर जा सकती है, ऐसा अनुमान है. और, उसका वोट शेयर भी 25 फीसदी से घटकर 20 हो सकता है.
ऐन उसी वक्त, लोकसभा चुनाव में 240 सीटों पर सिमट जाने वाली बीजेपी के 281 पर पहुंच जाने का अंदाजा लगाया जा रहा है, जिसकी बदौलत एनडीए की सीटें 300 पार हो जा रही हैं.
ये आंकड़े साबित करते हैं कि इंडिया ब्लॉक यानी विपक्षी की स्थिति कमजोर हो रही है, जबकि बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए की स्थिति मजबूत हो रही है. और इसीलिए ये सवाल उठ रहा है कि विपक्ष के कमजोर होने के लिए ज्यादा जिम्मेदार कौन है - राहुल गांधी या ममता बनर्जी?
INDIA ब्लॉक की मौजूदा हालत के लिए जिम्मेदार कौन
INDIA ब्लॉक में वर्चस्व की लड़ाई शुरू से देखी गई है, और विपक्ष को एक प्लेटफॉर्म पर लाने के बाद नीतीश कुमार के एनडीए में लौट जाने के बाद तो ये और भी ज्यादा बढ़ गई लगती है.
महाराष्ट्र चुनाव में बीजेपी की जीत के बाद ही ममता बनर्जी खुलकर राहुल गांधी के खिलाफ खड़ी हो गई थीं, और बाद में तो यहां तक दावा करने लगी हैं कि इंडिया ब्लॉक तो उनका ही बनाया हुआ है. नाम तो ममता बनर्जी का दिया हुआ है, ये तो पहले भी सुना गया था.
विपक्ष के नेतृत्व की जंग राहुल गांधी और ममता बनर्जी के बीच छिड़ी हुई है. ये हाल तब है जब राहुल गांधी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष भी हैं, और राज्यसभा में में भी विपक्ष का नेतृत्व कांग्रेस के ही पास है.
MOTN सर्वे में एक महत्वपूर्ण और दिलचस्प चीज भी देखने को मिलती है, और वो पश्चिम बंगाल के सर्वे में.
दिल्ली चुनाव के नतीजे आने के बाद ममता बनर्जी ने हार का ठीकरा कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनो के सिर पर फोड़ दिया था. ममता बनर्जी ने इंडिया ब्लॉक के नेताओं को साथ खड़े रहने की सलाह दी थी, लेकिन पश्चिम बंगाल की सीमा से बाहर ही.
ममता बनर्जी का कहना है कि हरियाणा और दिल्ली में बीजेपी इसलिए जीत गई क्योंकि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने एक दूसरे की मदद नहीं की. और, तभी ममता बनर्जी ये भी बोल देती हैं कि बंगाल में कांग्रेस की कोई जरूरत नहीं है - क्योंकि वहां तृणमूल कांग्रेस पूरी तरह सक्षम है और 2026 में वो चौथी बार सरकार बनाने जा रही हैं.
सर्वे में कांग्रेस की जो सीटें घर रही हैं, उनमें एक सीट पश्चिम बंगाल की है. 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को पश्चिम बंगाल में महज एक सीट मिली थी - लेकिन सर्वे के मुताबिक वो सीट अब ममता बनर्जी की टीएमसी के पास जा रही है. ये हाल तब है जब ममता बनर्जी के शासन में कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में मेडिकल स्टूडेंट के साथ रेप के बाद उसकी हत्या कर दी जाती है.
बेशक पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का कोई सानी नहीं है, लेकिन सूबे की सरहद से बाहर उनका वैसा प्रभाव नहीं है. सर्वे में राहुल गांधी को जहां 24.9 फीसदी लोग प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं, वहीं ममता बनर्जी को सिर्फ 4.8 फीसदी लोग देश के प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं.