Advertisement

क्‍या नीतीश कुमार जल्‍दी घबरा गए, उद्धव ठाकरे-शरद पवार को तो धैर्य का इनाम मिल रहा है

महाराष्ट्र और बिहार की राजनीति में बीजेपी काफी दिनों से रिंग मास्टर के रोल में देखी जा रही है, लेकिन MoTN सर्वे रिपोर्ट से तो लगता है सबको बराबर नचा पाना उसके लिए मुश्किल हो रहा है. क्योंकि बर्बाद होने के बावजूद उद्धव ठाकरे और शरद पवार अब भी नीतीश कुमार से बेहतर पोजीशन में हैं - और बीजेपी पर भारी पड़ रहे हैं.

उद्धव ठाकरे और शरद पवार बीजेपी के साथ बारगेन की पोजीशन में हैं, नीतीश नहीं थे उद्धव ठाकरे और शरद पवार बीजेपी के साथ बारगेन की पोजीशन में हैं, नीतीश नहीं थे
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 09 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 11:55 PM IST

लोक सभा चुनाव 2024 के लिए बीजेपी का स्लोगन है, 'अबकी बार 400 पार'. अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन के बाद तो लगने लगा था बीजेपी ये लक्ष्य भी वैसे ही हासिल कर लेगी, जैसे 2022 के गुजरात चुनाव में हासिल कर लिया था.

बीजेपी नेता अमित शाह ने गुजरात में बीजेपी के सामने 150 सीटें जीतने का टारगेट तय किया था. ये टास्क अमित शाह ने 1985 में कांग्रेस की 149 सीटों पर जीत के रिकॉर्ड को तोड़ने के मकसद से बीजेपी नेताओं को दिया था - और बीजेपी गुजरात चुनाव में 156 सीटें जीतने में सफल रही. ये वही बीजेपी है, जो 2017 में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की कड़ी मेहनत की वजह से 99 सीटों पर सिमट कर रह गई थी.

Advertisement

लेकिन MoTN सर्वे के बाद 2024 में एनडीए के 400 सीटों से ज्यादा जीतने का भारतीय जनता पार्टी का दावा महज एक चुनावी जुमला लग रहा है. ये सिर्फ इसलिए नहीं क्योंकि सर्वे में बीजेपी को 335 सीटें जीतते पाया गया है. बल्कि इसलिए भी क्योंकि दक्षिण भारत ही नहीं, बिहार और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में भी बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन को काफी सीटों का नुकसान हो रहा है. 

2019 के आम चुनाव में नीतीश कुमार के साथ बीजेपी ने बिहार की 40 में से 39 सीटें जीत ली थी, लेकिन इस बार गठबंधन के हिस्से में 32 सीटें आने का ही अनुमान है. मतलब, 7 सीटों का सीधे सीधे नुकसान हो रहा है. ठीक वैसे ही महाराष्ट्र में पिछली बार बीजेपी के अगुवाई वाले शिवसेना गठबंधन को 41 सीटें मिली थी, लेकिन आने वाले चुनाव में 22 सीटें मिलने का ही अंदाजा लगा है. यानी बीजेपी गठबंधन को कुल 19 सीटों का नुकसान हो रहा है. 

Advertisement

ऐसे भी समझ सकते हैं, जैसे बिहार में बीजेपी को नीतीश कुमार के लौट आने पर भी नुकसान हो रहा है, जबकि महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के दूर रहने से. ये तो ऐसा लगता है, शिवसेना और एनसीपी के टूट कर बिखर जाने के बाद भी उद्धव ठाकरे और शरद पवार की राजनीतिक हैसियत बरकरार है. मतलब, महाराष्ट्र के लोग अब भी उद्धव ठाकरे और शरद पवार के साथ खड़े दिखाई पड़ रहे हैं - और अपने पक्ष में मौजूदा संख्या बल बढ़ा लेने के बावजूद महाराष्ट्र के लोग बीजेपी के साथ ज्यादा कुछ शेयर करने के पक्ष में नहीं नजर आ रहे हैं.

अगर सर्वे रिपोर्ट को आधार मान कर चलें तो उद्धव ठाकरे और शरद पवार के पास फिर से खड़े होने का पूरा मौका है, और राजनीतिक रूप से भारी तहस-नहस मचाने के बावजूद बीजेपी के हाथ में कुछ खास नहीं आ रहा है. 

उद्धव ठाकरे और शरद पवार को निराश होने की जरूरत नहीं

किसी भी नेता की ताकत जनता में होती है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मिसाल हैं. और ये बात हर किसी पर लागू होती है, जाहिर है उद्धव ठाकरे और शरद पवार पर भी लागू होगी. 2024 के लोक सभा चुनावों को लेकर MoTN के सर्वे में उद्धव ठाकरे और शरद पवार की ये ताकत साफ साफ नजर आ रही है. 

Advertisement

सर्वे में कांग्रेस के हिस्से में 12 लोक सभा सीटें आ रही हैं. उद्धव ठाकरे और शरद पवार के हिस्से आने वाली 14 सीटों को भी जोड़ दें तो संख्या 26 पहुंच जा रही है, जो बीजेपी गठबंधन से चार सीट ज्यादा है. खुद बीजेपी 16 सीटों पर जीत रही है, और बगावत कर साथ आये एकनाथ शिंदे और अजित पवार मिल कर भी 6 सीटों पर सिमट जा रहे हैं. बीजेपी को गठबंधन को 22 सीटें मिल सकती हैं, जबकि 2019 में ये संख्या 41 हुआ करती थी. 

सर्वे के रिजल्ट आने के पहले से ही उद्धव ठाकरे के एक बयान और एक पॉलिटिकल ऐक्ट की महाराष्ट्र की राजनीति में खासी चर्चा है. उद्धव ठाकरे के मुंह से प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ और वंदे भारत एक्सप्रेस से पत्नी रश्मि ठाकरे के साथ यात्रा - जिसे उद्धव ठाकरे के प्रस्ताव के रूप में भी देखा जा सकता है. हाल ही में बीजेपी नेता अमित शाह से एक इंटरव्यू में नीतीश कुमार जैसे एनडीए छोड़ चुके नेताओं की वापसी को लेकर सवाल पूछा गया था, तो उनका कहना था कि प्रस्ताव आया तो विचार करेंगे. और उसके कुछ ही दिन बाद नीतीश कुमार महागठबंधन छोड़ कर एनडीए में जा चुके थे. 

4 फरवरी को महाराष्ट्र के सावंतवाड़ी में एक जनसभा में उद्धव ठाकरे ने कह रहे थे, ‘हम पहले भी कभी प्रधानमंत्री मोदी के दुश्मन नहीं थे, और आज भी उनके दुश्मन नहीं हैं… प्रधानमंत्री मोदी ही वो व्यक्ति थे, जिन्होंने शिवसेना के साथ संबंध जोड़ने का फैसला किया था... हम आपके साथ थे... शिवसेना आपके साथ थी, लेकिन बाद में आपने हमें खुद से दूर कर दिया.

Advertisement

उद्धव ठाकरे की बातों को बीजेपी नेतृत्व पूरी तरह खारिज भी नहीं कर सकता. असल में महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर दोनों पक्ष जिद पर अड़े रहे, और अलग हो गये. उद्धव ठाकरे का दावा था कि बीजेपी के साथ ढाई-ढाई साल मुख्यमंत्री पद का करार हुआ था, जिसे बीजेपी झुठलाती रही, और नये गठबंधन की सरकार बन गई. 

महा विकास आघाड़ी के मुख्यमंत्री रहते उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री मोदी को एक काम के लिए फोन किया था, और वो हो गया. असल में उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बने छह महीने होने जा रहे थे, और वो किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे. कोविड की चलते चुनाव आयोग ने कार्यक्रम स्थगित कर रखा था. मोदी से उद्धव ठाकरे की बातचीत के बाद विधान परिषद के चुनाव कराये गये, और सरकार चलती रही. 

हालांकि, विपक्ष को एकजुट करने की कोशिशों में भी उद्धव ठाकरे सक्रिय रहे. ताज्जुब की बात तो ये रही कि विपक्षी मोर्चा खड़ा करने की पहल करने वाली ममता बनर्जी अपनी जगह कायम हैं, और INDIA ब्लॉक खड़ा करने की कोशिश कर चुके नीतीश कुमार भी पाला बदल कर अपनी पोजीशन बरकरार रखे हुए हैं.

उद्धव ठाकरे की तो कुर्सी भी चली गई, और पार्टी भी टुकडे़ टुकड़े हो गई. ले देकर जनता से ही आस बची है, और उद्धव ठाकरे के लिए फेवर में सबसे बड़ी बात यही है कि जनता उम्मीदें न छोड़ने की हौसलाअफजाई कर रही है. 

Advertisement

क्या बीजेपी को उद्धव और पवार की जरूरत है

चुनावी राजनीति में अब भारत रत्न की एंट्री भी महसूस की जाने लगी है. बिहार की मांग पूरी होने के बाद महाराष्ट्र में भी वैसी ही मांग उठी है. बिहार में कर्पूरी ठाकुर के बाद चौधरी चरण सिंह, पीवी नरसिम्हा राव और एमएस स्वामीनाथन के बाद अब महाराष्ट्र में राज ठाकरे अपने चाचा और शिवसेना संस्थापक बाला साहेब ठाकरे को भारत रत्न दिये जाने की मांग कर रहे हैं. 

एमएनएस नेता राज ठाकरे के भी बीजेपी के साथ एकनाथ शिंदे सरकार में शामिल होने की जोरदार चर्चा रही. ये चर्चा तब शुरू हुई जब मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे मिलने के लिए राज ठाकरे के घर पहुंच गये थे. 

2019 की ही तरह बीजेपी फिर से सहयोगी दलों को साथ लेने की पूरी कोशिश कर रही है. उस वक्त भी बीजेपी नेता अमित शाह संपर्क फॉर समर्थन प्रोग्राम के तहत सहयोगी दलों के नेताओं से घर घर जाकर मुलाकात कर रहे थे, लेकिन इस बार अलग तरीका अपनाया जा रहा है. 

राज ठाकरे की मंशा भी जयंत चौधरी जैसी ही लग रही है, लेकिन जब तक औपचारिक घोषणा न हो कुछ कहना मुश्किल है - फिर भी ऐसा लगता है जैसे नीतीश कुमार के बाद उद्धव ठाकरे की  ही बारी है. और वैसा ही रुख शरद पवार भी अख्तियार कर सकते हैं, जरूरतमंद तो वो भी उद्धव ठाकरे जितने ही हैं. 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement