
दिल्ली में आम आदमी पार्टी को हराना आसान नहीं था. पर बीजेपी ने यह कर दिखाया है. जाहिर है कि दिल्ली की जीत के बाद बीजेपी की नज़र 2026 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों पर है. दिल्ली चुनाव में मिली जीत से बीजेपी का आत्मविश्वास बढ़ा है और निश्चित है कि अब वो और ज़्यादा उत्साह के साथ बंगाल में ममता बनर्जी को चुनौती देने की कोशिश करेगी. पर बीजेपी के लिए क्या बंगाल जीतना दिल्ली जैसा ही आसान होगा? अगर इंडिया टुडे MOTN सर्वे को माने तो बंगाल में बीजेपी की जीत अभी दूर की कौड़ी है. सर्वे के अनुसार 2024 के लोकसभा चुनावों में टीएमसी को 29 सीटें मिलीं थीं पर आज चुनाव हो तो उसे 30 सीटें भी मिल सकती हैं . हालांकि बीजेपी का वोट प्रतिशत एक परसेंट बढ़ता हुआ नजर आ रहा है पर उसकी एक सीट घटती दिख रही है. इसी तरह कांग्रेस को लोकसभा चुनावों में एक सीट और करीब 5 प्रतिशत वोट मिले थे. पर आज की स्थिति यह है कि कांग्रेस का वोट शेयर बढ़कर 10 प्रतिशत हो रहा है पर उसकी एक सीट भी खतरे में दिख रही है.
सवाल यह है कि लगातार तीन टर्म शासन के बाद भी ममता बनर्जी अपनी लोकप्रियता को बंगाल में कैसे बनाए हुईं हैं? आरजीकर रेप और मर्डर केस के बाद ऐसा लग रहा था जिस तरह दिल्ली में निर्भया रेप और हत्याकांड मुद्दा बन गया था वैसा ही कुछ बंगाल में भी होगा. खुद टीएमसी के लोगों ने स्वीकार किया था सरकार के लेवल पर लीपापोती हुई थी. इसके बावजूद राज्य में ममता बनर्जी और उनकी पार्टी चट्टान की तरह मजबूती से खड़े हैं. आखिर वो कौन से कारण हैं जिसके चलते सर्वे में ममता बनर्जी अभी बीजेपी के मुकाबले कहीं बहुत आगे नजर आ रही हैं.
1-बंगाल में ममता सरकार की लोकप्रिय योजनाएं
बंगाल में ममता सरकार ने कई गरीबोन्मुख योजनाएं चलाई हुईं हैं. जिनका असर बहुत गहरे तक है. केंद्र सरकार की योजनाओं की तर्ज पर बंगाल ने अपनी योजनाएं शुरू की हुईं हैं. आयुष्मान योजना और प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी ही योजनाएं बंगाल सरकार ने शुरू कर के जनता में अपनी पैठ बनाई है. केंद्र सरकार की 80 करोड़ लोगों को मुफ्त खाद्यान्न योजना के शुरू होने के पहले ही बंगाल सरकार ने कोरोना वायरस से लड़ने के लिये स्वास्थ्य बीमा और दिहाड़ी मजदूरों को एक-एक हजार रुपये दिया जाने की योजना शुरू की थी. ममता बनर्जी सरकार की बड़ी कामयाबी, 'लक्ष्मी भंडार' योजना रही है. पश्चिम बंगाल सरकार ने एक परिवार की महिला मुखिया को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए अगस्त 2021 में इस योजना शुरू की थी. इस योजना के तहत सामान्य जाति वर्ग के लिए 500 रुपये प्रति माह और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए लगभग 1,000 रुपये प्रति माह दिया जा रहा है. राज्य सरकार इस योजना के लिए साल भर में लगभग 11,000 करोड़ रुपये खर्च करती है. इसके अलावा राज्य में कन्याश्री, रूपाश्री और स्वास्थ्य साथी योजनाओं के चलते आम लोगों में ममता बनर्जी की इमेज एक लोककल्याणकारी मददगार नेता के रूप में दर्ज हुई है.
2- तीस परसेंट मुस्लिम वोट के आगे टीएमसी की गिनती शुरू होती है
इस समय बंगाल की कुल आबादी में मुस्लिम आबादी का लगभग 28 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी है. जाहिर है कि ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी की चुनावों में काउंटिंग इन 28-30 परसेंट वोटों के साथ होती है. मुर्शिदाबाद जैसे जिलों में तो 66.8 प्रतिशत तक आबादी मुसलमानों की है. मालदा में भी 51.27 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है. इसके अलावा चार और जिलों, उत्तर दिनाजपुर में 49.92 प्रतिशत, बीरभूम में 37.06 प्रतिशत, दक्षिण 24 परगना में 35.57 प्रतिशत और उत्तर 24 परगना में 30 प्रतिशत से अधिक आबादी है. राज्य के करीब 42 लोकसभा सीटों में से सात लोकसभा सीटें मुस्लिम बहुसंख्यक हैं. छह ऐसी सीटें हैं जहां पर मुस्लिम वोटर निर्णायक हो सकते हैं. इसी तरह करीब सौ विधानसभा सीटों पर मुस्लिम वोटरों का असर साफ दिखाई देता है. सबसे बड़ी बात यह भी है कि वामपंथियों और कांग्रेस के कमजोर होने के चलते ममता बनर्जी के इस वोट बैंक पर किसी को भाव नहीं मिलता है.
3-कांग्रेस का अस्तित्व बिल्कुल खत्म हो चुका है
राजनीतिक विश्वेषकों का मानना है कि हरियाणा और दिल्ली में अगर इंडिया गुट के लोग एकजुट होकर लड़े होते बीजेपी को विजय नहीं मिलती. पर ममता बनर्जी को इसकी कोई फिक्र नहीं है. क्योंकि बंगाल में कांग्रेस बहुत ही कमजोर हो चुकी है. ममता बनर्जी कहती हैं कि बंगाल में कांग्रेस का कुछ भी नहीं है. मैं अकेले लड़ूंगी. हम अकेले ही काफी हैं. बनर्जी ने विधानसभा के बजट सत्र से पहले एक बैठक में अपनी पार्टी के सांसदों को संबोधित करते हुए अगले साल होने वाला राज्य विधानसभा चुनाव दो तिहाई बहुमत से जीतने का भरोसा जताया. उन्होंने दावा किया कि पार्टी कुल सीट में से दो तिहाई से अधिक सीट जीतकर लगातार चौथी बार राज्य में सरकार बनाएगी.
4-ममता पर शीशमहल और शराब घोटाले जैसा कोई सीधा आरोप नहीं
पश्चिम बंगाल में पिछले लोकसभा चुनावों के समय तृणमूल सरकार पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे. चुनावों में भ्रष्टाचार एक मुद्दा भी बना. पीडीएस स्कैम, कैटल स्मगलिंग स्कैम, टीचर रिक्रूटमेंट स्कैम, मंत्रियों, नौकरशाहों की गिरफ़्तारी आदि ने सरकार की छवि प्रभावित की है. पर आश्चर्यजनक है कि ममता की इमेज प्रभावित नहीं हुई. दरअसल दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के उलट ममता अभी भी लो प्रोफाइल रहती हैं. यही कारण है कि टीएमसी भ्रष्टाचार के आरोपों और जांच एजेंसियों की कार्रवाई को राजनीति से प्रेरित बताने में सफल रही है. केजरीवाल के नाम से शीशमहल और शराब घोटाला चिपक गया था. इस तरह का कोई घोटाला ममता बनर्जी के नाम से नहीं चिपक पाया. ममता बनर्जी का अपने साथी आरोपी मंत्रियों से खुद को किनारा करना भी आम जनता के बीच उनकी छवि को बचाए रखने में कारगर साबित होता है.
5- दिल्ली बीजेपी का गढ़ रहा है जबकि बंगाल ममता का गढ़ है
दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की स्थिति और ममता बनर्जी की बंगाल में जो प्रभाव है उसमें बहुत अंतर है. अरविंद केजरीवाल की पार्टी नई थी और दिल्ली एक समय में बीजेपी का गढ़ भी रहा है. जबकि बंगाल टीएमसी का गढ़ है यहां बीजेपी बाहर से आई हुई एक पार्टी मानी जाती है. हालांकि जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी बंगाल के ही थे. फिर भी दिल्ली के मुकाबले बंगाल बीजेपी के लिए बिल्कुल नया है. दिल्ली में बीजेपी के नेतृत्व में सरकार बन चुकी है. मदन लाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा, सुषमा स्वराज आदि यहां पर सीएम पद को सुशोभित कर चुके हैं. पिछले तीन लोकसभा चुनावों में बीजेपी यहां क्लीन स्वीप करती रही है. केवल विधानसभा चुनावों में ही बीजेपी यहां मात खा रही है. जबकि बंगाल में परिस्थितियां ठीक विपरीत हैं.