
MP, राजस्थान, छत्तीसगढ़ - तीनों राज्यों में भारी जीत के बाद बीजेपी नेतृत्व अब मुख्यमंत्रियों के चुनाव में जुट गया है. तीनों राज्यों के चुनाव प्रभारी और बड़े नेता दिल्ली तलब किये जा चुके हैं - और बीजेपी नेतृत्व हर तरह से बेहतरीन उम्मीदवार चुनने के लिए रेस में शामिल सभी नामों को ठोक-बजा कर देख रहा है.
बाकी सब तो चलता रहेगा, बीजेपी शासित हर राज्य के मुख्यमंत्री के सामने पहला टारगेट तो 2024 के लोक सभा चुनाव में सभी सीटों पर बीजेपी की जीत सुनिश्चित करना है. ये नियम नये मुख्यमंत्रियों के साथ साथ मौजूदा मुख्यमंत्रियों पर भी लागू होता है. मुख्यमंत्रियों को ये नहीं भूलना चाहिये कि उनकी एक भी कमजोर कड़ी कुर्सी पर शामत ला देगी - और आलाकमान को नया आदमी तैनात करने में जरा भी देर नहीं लगेगी.
एक आधार ये भी है कि तीनों ही राज्यों में मुख्यमंत्री पद का सबसे बड़ा दावेदार तो वही नेता होगा, जिसकी नाराजगी आम चुनाव में भारी पड़ सकती है. ये भी तो जरूरी नहीं कि ऐसे किसी नेता को कमान सौंप दी जाये, तो और कोई असंतुष्ट नहीं बचेगा. हां, उसे आगे के लिए आश्वस्त किया जा सकता है.
ऐसे नेताओं में शिवराज सिंह, चौहान वसुंधरा राजे और रमन सिंह का नाम ही तीनों राज्यों में सबसे पहले आता है. ऐसा भी हो सकता है, चुनाव तक इन्हीं तीनों को मौका दे दिया जाये, और बाद में वैसे ही विदा कर दिया जाये, जैसे कर्नाटक से बीएस येदियुरप्पा की विदाई कर दी गयी.
2014 के बाद से बीजेपी नेतृत्व, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और अब साथ में जेपी नड्डा भी, को तो हमेशा ही सरप्राइज देने में ही मजा आता है. ऐसे में नये चेहरों की भी फेहरिस्त लंबी ही होगी, लेकिन उनका नंबर तभी आएगा, जब पुराने दिग्गज किसी काम के नहीं बचे होंगे.
शिवराज सिंह चौहान ने जिस तरह से चुनाव जीता है, और जिस तरह से महिला वोट बैंक उनका नया जनाधार बना है, उनके खिलाफ कोई भी कदम उठाने से पहले आलाकमान को कई बार सोचना होगा. 2024 में बीजेपी को महिआओं का वोट सिर्फ महिला आरक्षण कानून के चलते मिल पाने की गारंटी तो नहीं ही है.
छत्तीसगढ़ में डॉक्टर रमन सिंह पूरे पांच साल अच्छे बच्चे की तरह पेश आये, और चुनाव कैंपेन के दौरान भी वो अपनी छवि बनाये रखे - लेकिन मुख्यमंत्री के नाम पर फैसला लिये जाने के ऐन पहले जिस तरह से वसुंधरा राजे ने घर पर विधायकों की मीटिंग बुला ली है, उनकी राजनीतिक पारी खत्म करनेवाली आखिरी मीटिंग भी हो सकती है.
मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान तो सब पर भारी हैं
शिवराज सिंह चौहान को 2014 से ही मोदी-शाह की बीजेपी के खांचे में मिसफिट माना जाने लगा था. 2018 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार के बाद सब साफ साफ नजर भी आने लगा था. शिवराज सिंह चौहान को भी वसुंधरा राजे की तरह बीजेपी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना कर दिल्ली अटैच कर दिया गया.
वो तो ज्योतिरादित्य सिंधिया का शुक्रगुजार होना चाहिये जो शिवराज सिंह चौहान की मध्य प्रदेश की राजनीति में वापसी हो गयी. बीजेपी ने शिवराज सिंह चौहान को तो चुनाव नतीजे आते ही मध्य प्रदेश से बाहर कर दिया था, लेकिन सवा साल में भी उनका कोई विकल्प नहीं तैयार कर पाई.
थक हार कर मोदी-शाह को 2020 में फिर से शिवराज सिंह चौहान को ही मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपनी पड़ी. कुर्सी सौंप तो दी, लेकिन मंत्रिमंडल उनके हिसाब से नहीं बनने दिया. लेकिन कब तक? शिवराज सिंह चौहान ने धीरे धीरे अपनी चाल चलनी शुरू कर दी - और 'लाड़ली बहना योजना' के साथ चुनावों में खूब मेहनत की.
अव्वल तो बीजेपी ने कैलाश विजयवर्गीय के साथ साथ केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को भी चुनाव मैदान में उतार कर शिवराज सिंह चौहान को घेरने का इंतजाम किया था, लेकिन वो बहुत आगे निकल गये.
ये सही है कि बीजेपी ने शिवराज सिंह चौहान को मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया था, लेकिन अभी उनको किनारे लगाने की कोई भी कोशिश बैकफायर कर सकती है, जिसका रिजल्ट 2024 में ही दिखेगा.
निश्चित तौर पर वीडी शर्मा ने पूरी शिद्दत से अमित शाह के एक्शन प्लान को अमलीजामा पहनाया है. लेकिन बेटे के वायरल वीडियो को लेकर विवादों के चलते नरेंद्र सिंह तोमर, और चुनाव लड़ाये जाने से खफा होकर बयानबाजी करने वाले कैलाश विजयवर्गीय तो खुद को बाहर ही समझें.
रही बात ज्योतिरादित्य सिंधिया की, तो बेशक 2018 के मुकाबले उन्होंने अपने इलाके में बीजेपी को 11 सीटें जीतने में भूमिका निभाई होगी, लेकिन हिमंत बिस्वा सरमा की तरह दावेदार तो तब बनते जब बीजेपी की लहर में सभी सीटें पार्टी को दिला दिये होते. हिमंत बिस्वा सरमा तो पूरे नॉर्थ ईस्ट में बीजेपी की सरकार बनने में अहम रोल निभाते हैं.
राजस्थान में वसुंधरा राजे को तो अपनी पारी खत्म ही समझ लेना चाहिये
राजस्थान में तो चुनावों के पहले से ही वसुंधरा राजे को निबटाने की तैयारी चल रही थी. मोदी-शाह से पूरे पांच साल भिड़ी रहीं, वसुंधरा राजे ने विधानसभा चुनावों तक तो काफी शालीनता बरती, लेकिन ऐन मौके पर बहुत बड़ी गलती कर डाली है - मुख्यमंत्री के नाम पर फैसले से पहले वसुंधरा राजे को विधायकों के साथ बैठक करना बहुत भारी पड़ सकता है.
वसुंधरा राजे के मुकाबले बीजेपी नेतृत्व ने पहले से ही मैदान में दीया कुमारी को उतार रखा है. दीया कुमारी के जरिये बीजेपी ने वसुंधरा राजे को पसंद करने वाले लोगों को उनकी सारी खूबियां दिखाने की कोशिश की है.
वैसे तो शुरू से ही गजेंद्र सिंह शेखावत और अर्जुन राम मेघवाल के नाम की भी चर्चा रही है. चुनावों के बीच बाबा बालकनाथ भी अपने भाषणों के जरिये हिट रहे हैं - बाबा बालकनाथ में योगी आदित्यनाथ की छवि और उनका बुलडोजर शासन देखा जाने लगा है. योगी जहां ठाकुर बिरादरी की राजनीति करते हैं, बालकनाथ के यादव कुल से आने के कारण राजनीति के ओबीसी कोटे को साधने का प्रयास किया जा सकता है.
राजस्थान में जीत का श्रेय अगर मोदी के अलावा किसी को देना हो तो सीपी जोशी का नाम भी सामने आता है. संघ की पृष्ठभूमि वाले सीपी जोशी की खासियत है कि वो अभी 48 साल के युवा भी हैं - और चुनावों में बड़े ही लो प्रोफाइल, लेकिन अक्सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनके भरोसेमंद चेहरे के रूप में देखे गये.
राजस्थान में एक सूरत तो अब भी यही है कि वसुंधरा राजे को 2024 के आम चुनाव तक मुख्यमंत्री बनाये रखा जाये, और उसके बाद बीजेपी उनको फिर से उनके महल में भेज दे. बस कुछ दिनों की तो बात है.
अगर सीपी जोशी पर मोदी-शाह का भरोसा बनता है, तो एक व्यवस्था ये भी बन सकती है कि उनको मुख्यमंत्री और उनके साथ बाबा बालकनाथ और दीया कुमारी को डिप्टी सीएम बना दिया जाये.
2014 से ही बीजेपी राजस्थान की सभी 25 लोक सभा सीटें जीत रही है. यहां तक कि 2018 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद भी बीजेपी ने अपने सहयोगी हनुमान बेनीवाल की सीट सहित 25 लोक सभा सीटें जीती थी - ऐसे में 2024 के लिए कोई खतरेवाली बात तो नहीं है, लेकिन जीत की गारंटी भी कौन ले पाएगा?
छत्तीसगढ़ में रमन सिंह के अच्छा बच्चा बने रहने का कोई फायदा मिलेगा क्या?
वसुंधरा राजे और शिवराज सिंह चौहान की तुलना में डॉक्टर रमन सिंह का मामला काफी अलग लगता है. रमन सिंह ने न तो कभी वसुंधरा राजे की तरह अकड़ दिखायी, न ही सरेआम ये जाहिर होने दिया कि वो शिवराज सिंह चौहान की तरह वाजपेयी-आणवाणी वाली बीजेपी के नेता हैं - छत्तीसगढ़ में वो पूरे पांच साल वैसे ही नजर आये जैसे कोई अच्छा बच्चा बने रहने के लिए बेहद शालीन व्यवहार करता है.
लेकिन छत्तीसगढ़ में बीजेपी की जीत बिलकुल अप्रत्याशित मानी जा रही है. न तो पहले किसी को बिलकुल भी अंदाजा था, न ही एग्जिट पोल में ही किसी को पता चल सका कि छत्तीसगढ़ में बीजेपी सरकार भी बना सकती है - लेकिन खेल तो हो गया.
ऐसे में छत्तीसगढ़ में बीजेपी की जीत का पूरा श्रेय तो मोदी के चेहरे और अमित शाह की तैयारियों को ही जाता है - और अगर ऐसा ही है तो 2024 में रमन सिंह रहें या कोई और फर्क क्या पड़ता है. मोदी है तो मुमकिन है.