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विश्वास मत तो हासिल हो गया पर कुछ भी ठीक नहीं है बिहार में नीतीश और बीजेपी के लिए

जिन लोगों ने सोमवार को बिहार विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर होने वाली बहस देखी होगी उन्हें पता होगा कि सत्तारूढ़ पक्ष में वो खुशी नजर नहीं आ रही थी जो एक विजयी के चेहरे पर होता है.

अविश्वास प्रस्ताव के दौरान नीतीश के चेहरे पर चिंता की लकीरें अविश्वास प्रस्ताव के दौरान नीतीश के चेहरे पर चिंता की लकीरें
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 13 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 2:14 PM IST

बिहार में नीतीश कुमार के लिए पाला बदलना हमेशा बहुत आसान रहा है. पर इस बार यह उनके लिए कितना मुश्किल हो गया था यह विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव के समय उनकी भाव भंगिमाएं बता रहीं थीं. फिलहाल कठिन परिश्रम की बदौलत कुर्सी तो बच गई पर दुनिया जान गई कि बिहार में बीजेपी और जेडीयू के अंदर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. दोनों सत्तारूढ़ दलों के विधायकों में जबरदस्त असंतोष है. जेडीयू और बीजेपी दोनों दलों के विधायकों ने पार्टी नेतृत्व को जिस तरह चकमा दिया वो कोई सोच नहीं सकता था. ठीक इसके विपरीत कांग्रेस के विधायक और आरजेडी के विधायक अपने नेतृत्व के साथ दिखे. इस तरह यह अविश्वास प्रस्ताव यह संदेश दे गया कि नीतीश कुमार और बीजेपी के लिए आने वाले लोकसभा चुनावों में रास्ता इतना आसान नहीं है जितना एनडीए गठबंधन समझ रहा है.

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1-केंद्र और राज्य में सरकार के बावजूद बगावत करने पर उतारू थे विधायक

बहुत सीधा सवाल है कि आखिर वे क्या कारण रहे कि बीजेपी और जेडीयू के विधायक अविश्वास प्रस्ताव पर सरकार के साथ नजर नहीं आ रहे थे. बीमा भारती नीतीश सरकार में मंत्री रह चुकी हैं. आखिर उन्हें सरकार का साथ नहीं देने में क्यों भलाई नजर आ रही थी. कोई सत्तारूढ दल का विधायक अगर किसी और दल के साथ क्यों जाना चाहेगा ? जाहिर है जब उसे दूसरे दल का भविष्य उज्ज्वल नजर आ रहा होगा. बताया जा रहा है कि अविश्वास प्रस्ताव के दिन सवा दो बजे करीब वो विधानसभा पहुंची. इसके पहले विजय चौधरी के घर विधायक दल की बैठक में नहीं थी. यही नहीं श्रवण कुमार के यहां भोज में नहीं पहुंची.शायद वो अविश्वास प्रस्ताव से दूर ही रहतीं अगर पति और बेटे पर पुलिस का दबाव नहीं होता. बिहार के वरिष्ठ पत्रकारों के सोशल मीडिया पोस्ट ये बताते हैं कि बीमा भारती को पुलिस ने मोकामा में डिटेन किया और संजीव कुमार को नवादा में डिटेन किया गया था. 

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सबसे बड़ी बात यह थी कि बीजेपी जैसी पार्टी जो अपने अनुशासन के लिए प्रसिद्ध है वहां से भी असंतोष की खबरें मिलीं. सोचिए जिस दल की सबसे अधिक हवा है, अगर उसके 3 विधायकों को बड़ी मुश्किल से विधानसभा में लाया गया. ये क्या संदेश देता है. भागीरथी देवी और रश्मि वर्मा को गोरखपुर से किसी तरह से लाया गया. कहा जा रहा है कि मिश्रीलाल यादव भी परिवार के दबाव में बाहर आए. कांग्रेस विधायकों के बारे में कहा जाता रहा है कि उनके टूटने के चांसेस सबसे ज्यादा हैं. पर हुआ उल्टा . आरजेडी, जेडीयू और बीजेपी के विधायकों में अंसतोष दिखा . कांग्रेस के विधायक मजबूती से अपनी पार्टी के साथ डटे हुए थे.

बीजेपी विधायक रश्मि वर्मा, मिश्रीलाल यादव, भागीरथी देवी ने जिस तरह से सुबह तक बीजेपी की किरकिरी करवाई उससे सम्राट चौधरी जो कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की भी बदनामी हुई है. 

2-कांग्रेस के विधायक नहीं टूटे, आरजेडी भी अपेक्षाकृत मजबूत दिखी  

कांग्रेस और आरजेडी के विधायकों में भगदड़ नहीं मची. मतलब साफ है कि उन्हें अपना भविष्य अपनी पार्टी में उज्जवल दिख रहा है. मतलब उन्हें उम्मीद है कि अगले चुनाव तक उनकी सरकार बन सकती है.आरजेडी के जिन विधायकों ने एनडीए के फेवर में मतदान किया उनके बारे में लालू फैमिली को पहले ही पता रहा होगा. उनकी मजबूरी भी थी कि वो अपना मत सरकार को दें. मोकामा विधायक नीलम देवी, और दूसरे चेतन आनंद. बाहुबलियों के घर के ये दोनों विधायकों को एनडीए के साथ जाना ही था. नीलम देवी बिहार के बाहुबली नेता अनंत सिंह की पत्नी हैं. और चेतन आनंद, कुछ ही दिन पहले जेल से छोड़े गये आनंद मोहन और लवली आनंद के बेटे हैं.चेतन आनंद अगर एनडीए को वोट नहीं देते तो उनके पिता की रिहाई खतरे में पड़ सकती थी . दूसरे आरजेडी नेता के ठाकुर के कुंआ विवाद के बाद उनके पिता ने अपनी लाइन लेंथ दिखा दी थी कि उन्हें मौका पड़ने पर जेडीयू के साथ रहना है.दूसरी विधायक नीलम सिंह को भी यह डर तो होगा ही कि नीतीश सरकार जरूरी होने पर कई और अपराध की फाइलों को बाहर निकलवा सकती है. 

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3-विधानसभा में सत्तारूढ़ दल का मॉरल और बीजेपी के अंदर की खींचतान

विधानसभा में जिस तरह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और दोनों डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा में जिस तरह का उत्साह दिखना चाहिए था वो नहीं दिखा. नीतीश कुमार के चेहरे की भाव भंगिमाएं बता रही थीं कि वो अंदर से हिले हुए हैं.सम्राट चौधरी के भाषण में भी नाराजगी दिख रही थी.नीतीश कुमार जब बोल रहे थे तो कॉन्फिडेंस डिगा हुआ नजर आ रहा था.आम तौर पर विजयी नेता इस तरह से बिहेव नहीं करते. इस मौके पर बीजेपी के अंदर की खींचतान भी दिखी.

दरअसल भारतीय जनता पार्टी के पुराने नेता सम्राट चौधरी के अचानक हुए उत्थान से खुश नहीं हैं.  पहले प्रदेश अध्यक्ष फिर डिप्टी सीएम की कुर्सी बहुत जल्दी मिल गई ,  इन दोनों कुर्सी के कई दावेदार पार्टी में बरसों से अपना इंतजार कर रहे हैं. यह तो सभी जानते हैं कि  बिहार में नीतीश कुमार के साथ मिलकर सरकार बनाने को लेकर भी बीजेपी में एक राय नहीं थी. शायद यही कारण रहा कि पार्टी का कोई भी वरिष्ठ नेता अविश्वास प्रस्ताव के संकट पर अपनी दूरी बना ली थी. पर ये भी सही है कि किसी को भी इस बात को यकीन नहीं था कि बीजेपी के विधायक टूट सकते हैं. जिस तरह से बीजेपी के विधायकों के टूटने की खबरें चलीं निश्चित है कि केंद्रीय नेतृत्व इन सबसे नाराज होगा. सोमवार को विधायकों को प्रशासन की मदद से लोकेट नहीं किया गया होता तो पार्टी की नाक कट गई होती. 

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4-तेजस्वी के भाषण का वायरल होना 

अविश्वास प्रस्ताव पर विधानसभा में स्पीच देते हुए तेजस्वी की भाव भंगिमाएं विजय की उत्साह वाली दिख रही थीं. कहीं से भी कॉन्फिडेंस लैक नहीं हो रहा था. तेजस्वी ने बहुत सुलझे हुए तरीके से नीतीश कुमार को सारी समस्याओं का जड़ बता दिया. और गठबंधन टूटने का जिम्मेदारी नीतीश को दोषी साबित कर दिया. नीतीश कुमार के पास कहने के लिए बहुत कुछ था पर शायद वो कह नहीं पाए. न ही तेजस्वी और लालू फैमिली को दोषी ही करार दे पाए. तेजस्वी का भाषण तेजी से वायरल हुआ. विपक्षी ही नहीं पक्ष के भी लोग उनकी तारीफ कर रहे हैं. जबकि यह कटु सत्य जानते हुए भी कि जेडीयू को तोड़कर आरजेडी खुद सरकार बनाना चाहती थी इसे नीतीश कुमार ठीक से कह नहीं सके.नीतीश अपने भाषण में वही पुरानी जंगलराज वाली बातों को दोहराते और विकास कार्यों की गिनती करते रह गए.

5-स्पीकर को हटाने की रणनीति का मतलब था कि एनडीए के लोग डरे हुए थे

जिस तरह नीतीश कुमार लगतार स्पीकर को हटाने के लिए एड़ी चोटी एक किए हुए थे वो उनके डर को दिखा रहा था. हो सकता है कि नीतीश कुमार को और बड़ा डर रहा हो और जो जनता के सामने आने से पहले मैनेज कर लिया गया हो. जैसा कि सभी लोग जानते हैं कि स्पीकर ऐसे मौकों पर कितना महत्वपूर्ण हो जाता है. महाराष्ट्र विधानसभा में अभी हाल ही में स्पीकर ने किस तरह शिवसेना के 2 फाड़ होने को मंजूरी दे दी थी. लोग सवाल कर रहे हैं कि क्या जेडीयू भी 2 फाड़ होने वाली थी. अगर ऐसा होने वाला था तो मतलब सीधा है कि प्रदेश में बीजेपी और जेडीयू के पक्ष में हवा नहीं चल रही है.

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