
बिहार विधानसभा में राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर नीतीश कुमार के जवाब एक बात पर सबसे ज्यादा जोर देखा गया - 'अब कहीं नहीं जाएंगे...'
अपने बुद्धि चातुर्य से 9वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद विश्वास मत भी हासिल कर चुके नीतीश कुमार के मन में संशय की स्थिति तो निश्चित तौर पर बनी हुई है, तभी तो पाला बदलने के बाद से लगातार, ये बताने का वो कोई मौका नहीं छोड़ते कि चले गये थे, अब कहीं नहीं जाएंगे. अब यहीं रहेंगे. बीच बीच में वो ये भी बता रहे हैं कि दो बार चले गये थे - मतलब, नीतीश कुमार को भी अब हर वक्त महसूस हो रहा है कि सदन में विश्वास मत हासिल करना और सदन से बाहर अपने प्रति विश्वास बनाये रखना, बिलकुल अलग अलग बातें हैं.
सोशल मीडिया पर पलटी मारने या पाला बदलने को लेकर नीतीश कुमार का नाम मेटाफर के रूप में होने लगा है. ऐसे में वोटर नीतीश कुमार पर कम और जिसके साथ होते हैं, उस पर कहीं ज्यादा विश्वास करने लगा है. 2020 के बिहार विधानसभा में लोगों ने नीतीश कुमार और बीजेपी के गठबंधन को वोट दिया था, और महागठबंधन को सपोर्ट बहुमत से पहले ही ठहर गया था. फिर नीतीश कुमार महागठबंधन के नेता बन गये और बिहार के लोग उधर मुखातिब हुए ही थे कि वो यू-टर्न लेकर लौट आये - यानी, 2024 में भी बिहार के लोग 2020 और 2019 की तरह ही वोट देने का फैसला करेंगे.
अगर ऐसा होता है तो बिहार के लोग या तो बीजेपी को वोट देंगे या महागठबंधन की अगुवाई कर रहे आरजेडी नेता तेजस्वी यादव को, नीतीश कुमार की भूमिका तो निमित्त मात्र रह जाएगी. वैसे ये निमित्त मात्र भूमिका ही तो नीतीश कुमार को अब तक प्रासंगिक बनाये हुए है, लेकिन आगे भी ये सिलसिला जारी रहे भला कौन गारंटी दे सकता है.
नीतीश कुमार अपनी पोजीशन मजबूत कर रहे हैं
तेजस्वी यादव तो भरी विधानसभा में पूछ चुके हैं कि नीतीश कुमार के पाला न बदलने के मामले में भी 'मोदी की गारंटी' है क्या?
ऐसा लगता है बार बार कहीं न जाने और एनडीए में ही रहने की बात कर, मोदी और अपनी सरकार की उपलब्धियों का जिक्र कर, और आने वाले लोक सभा चुनाव में 40 सीटें जीतने का दावा कर नीतीश कुमार गारंटी कार्ड बनवाना चाहते हैं - मुश्किल ये है कि नीतीश कुमार के एनडीए में रहने या बने रहने का सर्टिफिकेट तो बीजेपी दफ्तर से ही जारी होगा. और जारी भी तभी हो पाएगा जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी नेता अमित शाह की मंजूरी मिलेगी.
लोक सभा सीटों के अलावा नीतीश कुमार का दावा है कि 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए को 200 से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल होगी. अगर ये दावा अमित शाह की तरफ से होता तो शायद ही इतनी बात होती, लेकिन नीतीश कुमार के मुंह से ये सुनने के बाद हर किसी के मन में संशय का भाव आ जाता है - आगे क्या प्लान क्या है? क्या चल रहा है नीतीश कुमार के दिमाग में, फिलहाल?
वो दो बार आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के साथ बिहार की सरकार चलाने से तो इनकार नहीं करते, लेकिन जातिगत गणना और नौकरियां का श्रेय शेयर नहीं करना चाहते हैं. जातीय जनगणना के मामले में वो पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह से हुई चर्चा से बात शुरू करते हैं, और उसके बाद ढेर सारे नेताओं की लंबी फेहरिस्त भी पेश कर देते हैं. और इस तरह जातिगत गणना का बिलकुल भी श्रेय तेजस्वी यादव या लालू यादव को नहीं देना चाहते.
और वैसा नौकरियों के मामले में भी करते हैं. कहते हैं, पहले 5.35 लाख लोगों को नौकरी दी गई, और रोजगार भी दिया गया. नीतीश कुमार का कहना है कि राज्य सरकार 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले 10 लाख नौकरियां और 10 लाख रोजगार देने का अपना वादा पूरा करेगी. बिहार में पुलिस बलों की बहाली भी की जाएगी, जिसके बाद उनकी 1.10 लाख से बढ़
कर 2.27 लाख हो जायेगी.
कुल मिलाकर समझने वाली बात है कि नीतीश कुमार हर हाल में बीजेपी के साथ नये सिरे से एडजस्ट होने की कोशिश कर रहे हैं. अब तक जो हुआ, हुआ. अब तक नीतीश कुमार मनमानी करते रहे हैं. चाहे वो बीजेपी के साथ रहे हों, या फिर आरजेडी के साथ. अब तो नीतीश कुमार की तकदीर वही लिखेगा जिसके साथ वो रहेंगे. और बने रहेंगे.
क्या नीतीश कुमार ने प्रेशर पॉलिटिक्स शुरू कर दी है
देखा जाये तो एनडीए के नाम पर लोक सभा चुनाव में 40 सीटों पर जीत का दावा पेश करके नीतीश कुमार अपनी अहमियत साबित करने की कोशिश कर रहे हैं - सवाल तो ये है कि 40 सीटों में उनके हिस्से में क्या आने वाला है?
असल में ये सब, बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि बीजेपी जेडीयू के लिए कितनी सीटें छोड़ती है? और चुनाव नतीजे आने पर नीतीश कुमार के खाते में कितना नंबर दर्ज होता है?
2019 में बीजेपी ने अपने हिस्से की सभी 17 सीटें जीत ली थी, और एक सीट पर हार के चलते नीतीश कुमार के 16 सांसद ही लोक सभा पहुंच पाये थे. एक सीट पर कांग्रेस की जीत के चलते पिछली बार एनडीए को 40 में से 39 सीटें ही मिली थीं.
नीतीश कुमार के पाला बदलने की फितरत पर सबसे ज्यादा हमलावर लालू परिवार ही रहा है, लेकिन हाल फिलहाल प्रशांत किशोर कुछ ज्यादा ही आक्रामक नजर आ रहे हैं. जन सुराज अभियान के साथ बिहार में यात्रा कर रहे प्रशांत किशोर की नजर भी 2025 के विधानसभा चुनावों पर है.
2015 में नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने का ठेका ले चुके प्रशांत किशोर अपने पुराने नेता पर बुरी तरह बिफर जा रहे हैं, ये आदमी चतुर नहीं... निहायत धूर्त आदमी है... पूरे बिहार की 13 करोड़ की जनता को मूर्ख बनाकर ठग रहा है. अगले चुनाव में बिहार की जनता इसका हिसाब करेगी.
प्रशांत किशोर जेडीयू में उपाध्यक्ष रह चुके हैं. तब नीतीश कुमार ने उनको पार्टी का भविष्य बताया था, लेकिन फिर निकाल दिया. नीतीश कुमार के गुस्से की असली वजह तो यही लगती है. कहते हैं, आगामी विधानसभा चुनाव में 20 विधायक भी नहीं आएंगे, अगर आएंगे तो मैं राजनीति से संन्यास ले लूंगा. पश्चिम बंगाल में बीजेपी की सीटों को लेकर तो प्रशांत किशोर की भविष्यवाणी सफल भी हो चुकी है, लेकिन ये भी जरूरी नहीं कि हर बार कोई तुक्का तीर ही बन जाये.
वैसे नीतीश कुमार को ऐसी बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता. क्या पता नीतीश कुमार 2025 में प्रशांत किशोर के समर्थन से भी सरकार चलाने की तैयारी कर चुके हों! जैसे अभी जीतनराम मांझी का समर्थन मिला हुआ है.
सुशासन बाबू के रूप शोहरत हासिल कर चुके नीतीश कुमार को लोक बिहार की राजनीति का चाणक्य भी कहते हैं, और प्रेशर पॉलिटिक्स उनका आजमाया हुआ नुस्खा है, जिसे एक बार फिर वो कारगर औजार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं.