
INDIA ब्लॉक में जबरदस्त टकराव चल रहा है. और सबसे ज्यादा आक्रामक तो नीतीश कुमार और उनके साथी जेडीयू नेता हैं. वो भी तब जबकि नीतीश कुमार को ही INDIA ब्लॉक का संयोजक बनाया जाना करीब करीब फाइनल बताया जा रहा है, और ऐसा प्रस्ताव और प्रयास भी कांग्रेस नेतृत्व की तरफ से ही हो रहा है.
जेडीयू नेता केसी त्यागी ने विपक्षी गठबंधन का निर्माता बताते हुए कहा है कि नीतीश कुमार का कद संयोजक के पद से ऊपर है. मतलब साफ है, जैसे कांग्रेस प्रधानमंत्री पद पर राहुल गांधी के लिए दावेदारी छोड़ने को तैयार नहीं है, जेडीयू भी बिलकुल वैसा ही कर रहा है. नीतीश कुमार को संयोजक से ऊपर बताने का मतलब तो यही हुआ कि केसी त्यागी अपने नेता को प्रधानमंत्री पद का दावेदार मान कर चल रहे होंगे. गठबंधन का चेयरपर्सन तो कतई नहीं बताना चाह रहे होंगे, जिसे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को बनाया जाना तय माना जा रहा है.
क्या ये नीतीश कुमार की क्षेत्रीय दलों के साथ मिल कर कांग्रेस को घेरने की रणनीति है? या फिर कांग्रेस के खिलाफ ये क्षेत्रीय दलों को भड़काने की कोई सोची समझी हुई चाल है?
पश्चिम बंगाल में ED अफसरों पर हमले को लेकर तो कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने ही ममता बनर्जी सरकार के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया हुआ है, लेकिन यूपी में अखिलेश यादव जिस तरह मायावती को एंट्री देने के मामले पर अड़ गये हैं - आसानी से समझा जा सकता है कि विपक्षी खेमे में कांग्रेस किस हद तक दबाव में है. और विडम्बना ये है कि जिम्मेदार भी इसके लिए पूरी तरह कांग्रेस ही है.
INDIA ब्लॉक की मुंबई बैठक के बाद दिल्ली में मीटिंग होते होते इतनी देर हो गई कि सहयोगी दलों को बोलने का मौका मिल गया. नीतीश कुमार ने तो पहले ही कहा था कि कांग्रेस की वजह से ही INDIA ब्लॉक का काम आगे नहीं बढ़ पा रहा है, क्योंकि पूरी पार्टी विधानसभा चुनावों में व्यस्त है.
जेडीयू नेता केसी त्यागी ने ममता बनर्जी सरकार पर कांग्रेस नेता के रवैये को भी ठीक नहीं मानते और ऐसे मामलों पर चिंता जताते हुए कहते हैं, राजनीतिक दलों को INDIA ब्लॉक से दूर चले जाने से रोकने के लिए कांग्रेस को तत्काल कदम उठाने चाहिये. केसी त्यागी ये भी याद दिलाते हैं कि कैसे सीपीआई सांसद बिनॉय विश्वम ने राहुल गांधी के वायनाड से चुनाव लड़ने पर सवाल उठाया है.
और सबसे बड़ी बात तो ये है कि जेडीयू नेता 14 जनवरी से शुरू होने जा रही राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' पर भी आपत्ति जताई है. जेडीयू की राय में ये यात्रा गठबंधन की तरफ से होनी चाहिये थी, न कि सिर्फ कांग्रेस को ऐसा अकेले अकेले करना चाहिये था.
INDIA ब्लॉक में मचे बवाल को देखें तो सबसे बड़ी वजह सीटों के बंटवारे पर आपसी तकरार है. केसी त्यागी की तरह जेडीयू नेता विजय चौधरी ने भी नाराजगी जताई है. जेडीयू ने तो अरुणाचल प्रदेश सहित तीन लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार भी घोषित कर डाली है. ऐसी ही बातें आदित्य ठाकरे के करने पर कांग्रेस नेता मिलिंद देवरा ने भी आपत्ति जताई है.
जेडीयू को ये भी नागवार गुजरा है कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे प्रेस कांफ्रेंस में सीटों के बंटवारे पर बातचीत के लिए अभी 15-20 दिन और देर बता रहे हैं. जेडीयू के एक नेता ने तो कांग्रेस पर क्षेत्रीय दलों को कमजोर करने तक का आरोप जड़ डाला है.
क्या राहुल गांधी से नीतीश कुमार नाराज हैं?
जेडीयू नेता केसी त्यागी का सीधा सा सवाल है, कांग्रेस 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' का आयोजन क्यों कर रही है? राहुल गांधी 14 जनवरी, 2024 से भारत जोड़ो यात्रा पर निकल रहे हैं. मणिपुर से शुरू होने जा रही ये यात्रा मुंबई पहुंच कर 20 मार्च को खत्म होगी. अव्वल तो कांग्रेस की तरफ से यात्रा में पहले की तरह इस बार भी विपक्ष के नेताओं को बुलाने की बात कही गई है, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व का ये रुख सहयोगी दलों को पसंद नहीं आया है - और जेडीयू का तो सवाल ही कांग्रेस के अकेले यात्रा को लेकर है.
केसी त्यागी का बयान आया है, 'अगर यात्रा का आयोजन किया जाना जरूरी है तो इसे INDIA गठबंधन की यात्रा क्यों नहीं बनाया जा रहा है? जेडीयू नेता का मानना है कि गठबंधन के सभी बड़े नेता यात्रा में हिस्सा ले सकते थे, लेकिन कांग्रेस ने अपनी यात्रा की योजना बनाने से पहले अपने किसी भी सहयोगी दल से सलाह नहीं ली. केसी त्यागी कहते हैं, 'हम उनकी यात्रा का स्वागत करते हैं, लेकिन इसे शुरू करने का ये सही समय नहीं था.' राहुल गांधी की पहली भारत जोड़ो यात्रा के लिए भी कांग्रेस ने नीतीश कुमार सहित विपक्ष के तमाम नेताओं को न्योता भेजा था. नीतीश कुमार ने ये कहते हुए यात्रा में शामिल होने से इनकार कर दिया था कि वो कांग्रेस की निजी यात्रा है.
जेडीयू नेताओं के बयानों से नीतीश कुमार की फिक्र भी समझ में आ रही है. वैसे भी नीतीश कुमार ने जिस तरह डंके की चोट पर सरेआम बीजेपी नेतृत्व को अगस्त, 2022 में एनडीए छोड़ने के बाद चैलेंज किया था, फिक्र तो स्वाभाविक ही है.
कांग्रेस के व्यवहार से नाराजगी जताते हुए केसी त्यागी का कहना है, 'कांग्रेस जिस तरह से संयोजक पद पर मीडिया के सवालों का जवाब दे रही है... वो हमें अच्छा नहीं लगा है... हमारे पास समय खत्म हो रहा है... हमारे पास अब भी सब कुछ ठीक करने का समय है, लेकिन गठबंधन को मजबूत बनाने के लिए तेजी तो कांग्रेस को ही दिखानी है.'
क्या ये कांग्रेस के खिलाफ क्षेत्रीय दलों को भड़काने की कोई चाल है?
क्षेत्रीय दलों को लेकर कांग्रेस नेतृत्व की राय तो किसी से छिपी है नहीं. उदयपुर मंथन शिविर से लेकर भारत जोड़ो यात्रा की प्रेस कांफ्रेंस तक राहुल गांधी कई बार कह चुके हैं कि क्षेत्रीय दलों की कोई विचारधारा नहीं है, और ऐसे में सबको कांग्रेस के नेतृत्व में ही आगे बढ़ना होगा.
सीट बंटवारे का मामला अब तक टलते रहने की वजह भी एक ही है. कांग्रेस को जैसे भी संभव हो, हर राज्य में ज्यादा से ज्यादा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की कोशिश है. अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी जैसे नेताओं की तरफ से कांग्रेस को संकेत भी दिया जा चुका है कि जहां कहीं भी क्षेत्रीय दल मजबूत हैं, कांग्रेस की बिलकुल भी नहीं चलेगी.
2024 के चुनाव को लेकर हर राज्य में कांग्रेस का सीटों पर दावेदारी का फॉर्मूला अलग अलग है. मसलन, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस 2009 में जीती गई सभी सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है. तब कांग्रेस को यूपी में 21 सीटें मिली थीं. 2019 के लोक सभा चुनाव में कांग्रेस को 52 सीटों पर जीत मिली थी, और देश की 209 सीटों पर उसके उम्मीदवार दूसरे स्थान पर थे. एक फॉर्मूला तो यही हुआ कि कांग्रेस को कम से कम 261 सीटें हर हाल में चाहिये. लेकिन सुनने में आ रहा है कि कांग्रेस वे सीटें भी अपने हिस्से में चाहती है, जिन पर उसकी जमानत जब्त नहीं हुई थी. ऐसी कुल 273 सीटें बताई जा रही हैं. ऐसे में सहयोगी दलों के लिए 270 सीटें बचती हैं.
कांग्रेस का इरादा सहयोगी क्षेत्रीय दल पहले ही भांप चुके हैं. गौर करने वाली बात है कि उनमें आपस में ऐसा कोई झगड़ा नहीं दिखता, उनका आपसी बंटवारा करीब करीब पहले से ही तय है. कम से कम यूपी, बिहार और महाराष्ट्र में तो ऐसा ही लगता है.
मजबूरी तो नीतीश कुमार की भी है
नीतीश कुमार जैसे नेता की मुश्किल भी ममता बनर्जी जैसी ही है. विपक्ष को एकजुट करने की कोई भी कोशिश हो, कांग्रेस नेतृत्व अपना पेच फंसा ही देता है. जैसे ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश की थी, कांग्रेस ने नाकाम कर दी. तब ममता बनर्जी को किनारे लगाने में लालू यादव और शरद पवार की बड़ी भूमिका देखी गई थी - और नीतीश कुमार के सामने भी वैसी ही चुनौती खड़ी हो रही होगी. कोई खफा हो या पंसद करे, मुश्किल ये है कि कांग्रेस को नजरअंदाज करने की स्थिति में अभी कोई भी नहीं है. 2024 के बाद स्थितियां कितना बदलती हैं, देखना होगा.
तो नीतीश कुमार और उनकी टीम जो रवैया अपनाये हुए है, क्या कांग्रेस के खिलाफ क्षेत्रीय दलों को भड़काने या एकजुट करने की कोई चाल भी हो सकती है?
1. नीतीश कुमार जिस तरह से कांग्रेस के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाये हुए हैं, ऐसा लगता है जैसे वो क्षेत्रीय दलों के नेताओं के मन की बात कर रहे हैं. बाकियों को जैसा भी लगे, कम से कम अखिलेश यादव तो नीतीश कुमर के ताजा रुख से खुश ही होंगे - और सिर्फ अखिलेश यादव ही क्यों, वे सारे नेता जो सीटों के बंटवारे के मामले में कांग्रेस पर दबाव कायम करना चाहते हैं, नीतीश कुमार एक तरीके से उनके लिए मददगार साबित हो रहे हैं.
2. आपको याद होगा, 2015 के बिहार चुनाव में नीतीश कुमार ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर महागठबंधन में कांग्रेस को ज्यादा सीटें दिलवाई थी. उसकी एक वजह ये भी मानी गई कि राहुल गांधी ने भी दखल देकर नीतीश कुमार को महागठबंधन का नेता बनवाया था, और लालू को तब जहर पीने जैसी बात करनी पड़ी थी.
नीतीश कुमार तो वैसे भी मौका देख कर ही दस्तूर निभाते हैं. जब जिसके साथ जाना चाहते हैं, चले जाते हैं. तब लालू यादव पर दबाव डाल कर कांग्रेस की मदद किये थे, हो सकता है अब कांग्रेस पर दबाव बना कर क्षेत्रीय दलों की मदद करने का मन बना चुके हों.