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नीतीश कुमार का NDA में जाना राहुल गांधी का अपने हिस्से की ताकत मोदी को सौंपने जैसा

नीतीश कुमार शुरू से ही बीजेपी और लालू परिवार से बारी बारी फायदा उठाते, और पहुंचाते रहे हैं. 2024 के आम चुनाव में वो गांधी परिवार के लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद हो सकते थे. राहुल गांधी ने नीतीश कुमार को सिर्फ गंवाया ही नहीं है, पूरे होशो-हवास में वो ताकत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के हवाले कर दिया है.

गठबंधन की राजनीति नीतीश कुमार की मजबूरी है, लेकिन वो जिसके साथ रहते हैं फायदेमंद भी साबित होते हैं. गठबंधन की राजनीति नीतीश कुमार की मजबूरी है, लेकिन वो जिसके साथ रहते हैं फायदेमंद भी साबित होते हैं.
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 29 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 8:02 PM IST

राहुल गांधी भारत जोड़ो न्याय यात्रा के साथ बिहार में भी पश्चिम बंगाल की तरह ही दाखिला ले रहे हैं. किशनगंज को बिहार में कांग्रेस का गढ़ माना जाता है. 2009 से ही किशनगंज सीट कांग्रेस के पास है. 2014 ही नहीं, 2019 में भी जब बिहार में एनडीए ने 40 में से 39 सीटें जीत ली थी मुस्लिम आबादी वाले इलाके किशनगंज की सीट कांग्रेस अपने पास रखने में सफल रही - और लालू यादव की पार्टी आरजेडी का खाता भी नहीं खुल सका था. 

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अगर नीतीश कुमार की नाराजगी इस हद तक नहीं पहुंची होती कि वो महागठबंधन छोड़ कर एनडीए के मुख्यमंत्री बन जाते, तो जेडीयू नेता और कार्यकर्ता भी इस बार राहुल गांधी के साथ यात्रा में देखने को मिल सकते थे, बशर्ते न्याय यात्रा कांग्रेस नहीं बल्कि INDIA ब्लॉक के बैनर तले निकाली गई होती. कांग्रेस के अकेले अकेले न्याय यात्रा निकालने पर जेडीयू नेता पहले भी बहुत कुछ बोल चुके हैं, और अब भी वही बातें दोहरा रहे हैं. 

जेडीयू ने INDIA ब्लॉक से अलग होने को लेकर आरजेडी से ज्यादा कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया है. बेशक नीतीश कुमार का फिर से एनडीए में लौट जाना लालू यादव और तेजस्वी यादव के लिए बहुत बड़ा झटका है, लेकिन ये तो सिर्फ बिहार की बात है, राहुल गांधी और कांग्रेस के लिए तो पूरे देश में नुकसान ही नुकसान है.  

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कांग्रेस नेतृत्व से नीतीश की नाराजगी क्यों?

नौवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से पहले NDA और महागठबंधन की तुलना करते हुए नीतीश कुमार समझा रहे थे कि पहले के गठबंधन को छोड़कर नया गठबंधन बनाया था, लेकिन हालात ठीक नहीं लगे... जिस तरह के दावे और बयानबाजी हो रही थी, जेडीयू के नेताओं को खराब लगा रहा था... इसलिए वो इस्तीफा देकर अलग हो गये.

नीतीश कुमार की बातों को जेडीयू नेता केसी त्यागी अपने तरीके से समझा रहे हैं. ये नीतीश कुमार ही हैं, जिन्होंने विपक्षी दलों के नेताओं के बीच कांग्रेस की स्वीकार्यता बनाने की कोशिश की. बात भी सही है, अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी को कांग्रेस के साथ आने के लिए मना लेना आसान नहीं था. 

केसी त्यागी साफ साफ कह रहे हैं, आरजेडी के साथ कुछ मामूली चीजों को लेकर दिक्कत थी, लेकिन गठबंधन कांग्रेस की वजह से टूटा है. केसी त्यागी की बातों को समझें तो लगता है जैसे जैसे अब भी वो क्षेत्रीय दलों के मन की बात कर रहे हैं. राहुल गांधी को लेकर केसी त्यागी ने मीडिया से बातचीत में बहुत सारी बातें कही हैं. मसलन, वो कांग्रेस को मजबूत करना चाहते हैं, न कि इंडिया गठबंधन को... और कांग्रेस हर जगह क्षेत्रीय दलों के हक पर डाका डालना चाह रही है. केसी त्यागी का कहना है कि राहुल गांधी न्याय यात्रा के माध्यम से सभीको कांग्रेस के झंडे के नीचे लाने का प्रयास कर रहे हैं.

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ये पैमाइश करना मुश्किल हो सकता है कि नीतीश कुमार का साथ छूटने से कांग्रेस को ज्यादा नुकसान हुआ है, या लालू यादव और तेजस्वी यादव को? बिहार की बात करें तो कांग्रेस महागठबंधन में साथ जरूर थी, लेकिन फ्रंट पर लालू यादव और नीतीश कुमार मिलकर जातीय समीकरणों को साधने की कोशिश कर रहे थे. नीतीश कुमार ने दिन में महागठबंधन छोड़ा, और सुबह के अखबारों में दिये गये विज्ञापनों में इसकी झलक देखी जा सकती है. आरजेडी की तरफ से विज्ञापन में तेजस्वी यादव के नेतृत्व में 17 महीने के बिहार सरकार के काम गिनाये गये थे. 

जाहिर है, आगे भी चुनावों में आरजेडी की तरफ से बताने की कोशिश होगी कि किस तरह वो सत्ता में रह कर विकास और रोजगार के लिए काम कर रहे थे. जाते जाते नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव के पास चुनावों में ये कहने का मौका तो छोड़ ही दिया है कि 2020 में नौकरी के चुनावी वादे को लेकर वास्तव में वो गंभीर हैं, और मौका मिलने पर खुद को साबित भी कर सकते हैं. हालांकि, हाल फिलहाल ये सब काफी चुनौतीपूर्ण हो गया है.  

तेजस्वी यादव अपनी तरफ से नीतीश कुमार पर कुछ भी सोच समझ कर ही बोल रहे हैं, और आरजेडी नेताओं को भी व्यक्तिगत हमलों से बचने को कहा गया है. लालू परिवार जानता है कि नीतीश कुमार का पाला बदल लेना आरजेडी की राजनीति के लिए अचानक कितना मुश्किल हो गया है, लेकिन वो ये भी समझ रहा होगा कि कांग्रेस इसके लिए ज्यादा जिम्मेदार है. मतलब, राहुल गांधी को फिर से लालू यादव के कोपभाजन का शिकार होना पड़ सकता है. 

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तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने के लिए लालू यादव ने नीतीश कुमार से हाथ मिलाया था. लालू यादव ही नीतीश कुमार को लेकर सोनिया गांधी से मिलवाने ले गये थे. एनडीए छोड़ने के बाद नीतीश कुमार ने जिन नेताओं से सबसे पहले मुलाकात की थी, उनमें राहुल गांधी भी शामिल हैं - लेकिन कांग्रेस विपक्षी गठबंधन का मामला लटकाती रही. पहले तो संगठन चुनाव के नाम पर, फिर विधानसभा चुनावों के नाम पर. 

नीतीश कुमार का धैर्य जवाब देने लगा था. वो कांग्रेस के खिलाफ हमलावर हो चुके थे. बेशक परिवारवाद की राजनीति पर नीतीश कुमार के हमले के दायरे में लालू परिवार भी आ जाता है, लेकिन निशाने पर पहले नंबर पर गांधी परिवार ही रहा - क्योंकि ये लाइन बीजेपी को भी सूट करती है. 

नीतीश कांग्रेस के लिए कितने फायदेमंद थे?

1. नीतीश कुमार के प्रयास से ही तीसरे मोर्चे की जगह बीजेपी के खिलाफ एक ही मोर्चा खड़ा करने पर सहमति बन रही थी. धीरे धीरे वो विपक्ष के ज्यादातर नेताओं को साथ ला चुके थे - यहां तक कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी को भी कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए तैयार कर चुके थे. अगर तेलंगाना में विधानसभा चुनाव बाद में होते तो वो के. चंद्रशेखर राव को भी साधने की कोशिश करते. 

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2. INDIA ब्लॉक के पास बीजेपी उम्मीदवार के खिलाफ विपक्षी गठबंधन का एक उम्मीदवार उतार कर मोदी को चैलेंज करने का बेहतरीन मौका था. जबानी जंग के लिए पूरे साल मौका होता है, और राहुल गांधी को आगे भी पांच साल तक ऐसा अवसर मिलेगा. लेकिन जो राजनीतिक ताकत हाथ आई थी, राहुल गांधी ने गंवा दिया है. 

3. नीतीश कुमार से पहले ममता बनर्जी ने भी विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश की थी, लेकिन दोनों नेताओं के प्रयासों में एक बुनियादी फर्क भी था. ममता बनर्जी जहां कांग्रेस को किनारे रख कर विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश कर रही थीं, नीतीश कुमार ने सबसे पहले कांग्रेस को शामिल कर विपक्ष को एकजुट करने की बात की, और आखिर तक उस पर टिके भी रहे. ममता बनर्जी की विपक्षी एकता की राजनीतिक लाइन कुछ कुछ केसीआर जैसी थी. गैर-कांग्रेस और गैर-बीजेपी मोर्चा जैसा आइडिया था. 

4. ममता बनर्जी ने पहले ही भांप लिया था कि नीतीश कुमार ज्यादा देर तक विपक्षी गठबंधन में साथ नहीं रहने  वाले हैं, लिहाजा राहुल गांधी के न्याय यात्रा के साथ पश्चिम बंगाल में दाखिल होने से पहले ही सूबे में अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया. राहुल गांधी अब भी नीतीश कुमार और ममता बनर्जी पर सीधे हमले से परहेज कर रहे हैं. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश अब भी मिलकर बीजेपी को हराने का दावा कर रहे हैं, लेकिन अब ऐसी बातों का कोई खास मतलब नहीं रह गया है. 

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5. पश्चिम बंगाल और बिहार के बाद अब कांग्रेस के लिए यूपी से थोड़ी बहुत उम्मीद बची है. अखिलेश ने 11 सीटें देने की बात कही है. दिल्ली और पंजाब में AAP के साथ क्या फाइनल होता है, देखना होगा. लेकिन जेडीयू नेता केसी त्यागी का दावा है कि ममता बनर्जी की तरह ही यूपी में अखिलेश यादव और तमिलनाडु में डीएमके नेता एमके स्टालिन भी कांग्रेस को कुछ नहीं देने वाले हैं - अगर वास्तव में ऐसी बात है तो राहुल गांधी के लिए बहुत बुरी खबर है. 

मौजूदा राजनीतिक माहौल में बीजेपी को नीतीश की बहुत ज्यादा जरूरत नहीं थी, लेकिन लेकिन अब तो जैसे बल्ले बल्ले हो गया है. बीजेपी नेतृत्व को एक बार फिर राहुल गांधी का शुक्रगुजार होना चाहिये.

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