
नीतीश कुमार तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुंह से लाड़ला-सीएम सुनकर फूले नहीं समाये होंगे, लेकिन वो ये भी नहीं भूले होंगे कि मनोहरलाल खट्टर को भी ऐसी ही तारीफ सुनने को मिली थी - और वो खुशी खत्म होते देर भी नहीं लगी.
बीजेपी ने तो अपनी तरफ से नीतीश कुमार का बोरिया बिस्तर 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में ही समेट दिया था, लेकिन मिशन पूरा न हो सका. वैसे ही जैसे कांग्रेस मुक्त भारत - और वक्त का तकाजा देखिये कि 2024 के लोकसभा चुनाव नतीजे आने के बाद वही नीतीश कुमार काम आये, और उनके सपोर्ट से ही केंद्र में एनडीए की सरकार बन सकी. कह सकते हैं कि अकेले नीतीश कुमार की वजह से ये संभव नहीं था, लेकिन क्या नीतीश कुमार के बगैर संभव था?
बिहार की राजनीति में सक्रिय हर राजनीतिक दल के सामने अब विधानसभा चुनाव की चुनौती है, और निशाने पर नीतीश कुमार ही हैं. सिर्फ आरजेडी या जन सुराज वाले प्रशांत किशोर के टार्गेट पर ही नहीं, गठबंधन साथी बीजेपी के निशाने पर भी नीतीश कुमार बने हुए हैं. नीतीश कुमार को राजनीतिक रूप से पंगु बनाने की कवायद तेज हो चली है - लेकिन किसी के लिए भी ये आसान नहीं है.
और इसी बीच एक जोरदार चर्चा नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार को लेकर चल रही है. ऐसी संभावनाएं जताई जा रही हैं कि निशांत कुमार आने वाला बिहार चुनाव लड़ सकते हैं, और उनके नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी बताने की भी कोशिशें जारी हैं.
भागलपुर के गोपालपुर विधानसभा क्षेत्र से जेडीयू विधायक गोपाल मंडल का तो कहना है कि पार्टी के सभी बड़े नेता चाहते हैं कि निशांत कुमार साथ आ जायें. गोपाल मंडल का तो यहां तक दावा है कि अगर निशांत कुमार जेडीयू में नहीं आते हैं तो पार्टी की तरक्की थम जाएगी, और खत्म भी हो सकती है.
सुनने में तो ये भी आ रहा है कि निशांत कुमार को जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा राजनीति की ट्रेनिंग देने में भी जुट गये हैं. और, जेडीयू से बाहर के नेता भी निशांत कुमार के राजनीति में आने का स्वागत करने लगे हैं. ऐसे नेताओं में केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी और लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव भी शामिल हैं, जो उनको आरजेडी में आने का ऑफर दे चुके हैं.
सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या नीतीश कुमार भी चाहते हैं कि निशांत कुमार राजनीति में आयें - और उनकी विरासत संभालें? या नीतीश कुमार को राजनीति में ठिकाने लगाने की कोशिश कर रहे नेताओं की ये महज एक चाल भर है?
नीतीश कुमार अपनी विरासत किसे सौंपना चाहते हैं?
नीतीश कुमार भी परिवारवाद की राजनीति के घोर विरोधी रहे हैं. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी वो इसी बात को लेकर लालू यादव पर हमलावर देखे गये थे. चुनावी रैलियों में समझा रहे थे कि लालू यादव ने बिहार के विकास के नाम पर सिर्फ 9-9 बच्चे पैदा किये हैं.
चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में बगैर किसी का नाम लिए नीतीश कुमार कह रहे थे, 8-8, 9-9 बच्चे पैदा करने वाले बिहार का विकास करने चले हैं. बेटे की चाह में कई बेटियां हो गईं. मतलब बेटियों पर भरोसा नहीं है. ऐसे लोग क्या बिहार का भला करेंगे?
प्रधानमंत्री मोदी भी परिवारवाद की राजनीति को लेकर कांग्रेस के साथ साथ ऐसे सारे ही क्षेत्रीय दलों पर हमलावर रहते हैं. दिल्ली को ही देखें तो प्रवेश वर्मा के शानदार प्रदर्शन के बावजूद उनकी एक कमजोरी उनका दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा का बेटा होना भी रहा.
ऐसे राजनीतिक माहौल में क्या मोदी शाह बिहार में नीतीश कुमार का बेटे को राजनीतिक विरासत सौंपे जाने की बात पर भी साथ खड़े होंगे?
पिछले चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी ने तेजस्वी यादव को जंगलराज का युवराज कह कर संबोधित किया था.
क्या बीजेपी नीतीश कुमार को नये सिरे से घेरने में जुटी है?
कुछ दिन पहले केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भारत रत्न देने की मांग की थी. बाद में कुछ भी बीजेपी नेताओं ने इस मांग को दबी जबान में आगे बढ़ाने की कोशिश की थी - लेकिन क्या वास्तव में ये सब यूं ही होता है.
कम से कम गिरिराज सिंह के मुंह से ऐसी बात सुनकर नीतीश कुमार को अजीब तो लगा ही होगा. मन की बात तो दूर, वो तो नीतीश कुमार के ऐसे कट्टर विरोधी रहे हैं कि कटाक्ष में भी ऐसी बातें शायद ही उनकी जबान पर आये - हां, किसी सोची समझी रणनीति का हिस्सा हो तो अलग बात है.
2020 के चुनाव में बीजेपी ने नीतीश कुमार की राजनीति को समेटने के लिए चिराग पासवान की मदद ली थी, और वो मिशन सफल भी रहा. खुद को मोदी का हनुमान बताने वाले चिराग पासवान ने शिद्दत से काम किया, और अंजाम तक पहुंचाकर ही माने - ये बात अलग है कि खुद चिराग पासवान को भी अंजाम भुगतना पड़ा.
अब अगर नीतीश कुमार को भारत रत्न दिये जाने की मांग बीजेपी खेमे से 2020 जैसी ही कोई नई कोशिश है, तो क्या निशांत कुमार को राजनीति में लाये जाने की बात अलग है? लगता तो नहीं है, लेकिन बेहतर तो नीतीश कुमार ही समझ रहे होंगे.