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नीतीश के बयान से तय हो गया कि INDIA गठबंधन की खलनायक कांग्रेस ही है

इंडिया गठबंधन ने जिस तरह की शुरुआत अपनी स्थापना के बाद ली थी वो धीमी पड़ती नजर आ रही है. जिस शख्स के महती प्रयासों से विपक्ष के सारे नेता जुटे थे उसका चिंतित होना स्वभाविक है. नीतीश कुमार ने इंडिया गठबंधन के लिए जो बातें कहीं हैं उसकी गवाही देते हैं ये 5 कारण.

इंडिया गठबंधन की एक मीटिंग के दौरान मल्लिकार्जुन खरगे, नीतीश कुमार और राहुल गांधी इंडिया गठबंधन की एक मीटिंग के दौरान मल्लिकार्जुन खरगे, नीतीश कुमार और राहुल गांधी
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 02 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 5:24 PM IST

इंडिया गठबंधन के अघोषित संयोजक और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मुंह से आखिर वो बात निकल ही गई जो वह शायद कहना नहीं चाहते होंगे. नीतीश कुमार ने एक तरह इंडिया गठबंधन में छाई निराशा के लिए कांग्रेस को दोषी ठहरा दिया है. उन्होंने कहा कि इंडिया गठबंधन के लिए कुछ नहीं हो रहा है. कांग्रेस विधानसभा चुनावों में व्यस्त है. इंडिया गठबंधन के लिए देश भर के विपक्षी दलों के नेताओं को राजी कर एक मंच पर जुटाना कोई आसान काम नहीं था, पर नीतीश कुमार ने यह मुश्किल कार्य कर दिखाया. इंडिया गठबंधन की पटना, मुंबई और बेंगलुरु में बैठकें हुईं पर उसके बाद सब कुछ शांत हो गया है. 

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एक बारगी तो ऐसा लगा था कि इंडिया गठबंधन ने एनडीए गठबंधन पर बढ़त ले ली है.जिस तरह एनडीए गठबंधन के नेताओं और खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने I.N.D.I.A का नाम लेकर टार्गेट करना शुरू किया ये इसका सबसे बड़ा सबूत था. पर ज्यादा दिन नहीं बीता कि इंडिया गठबंधन से असंतोष की खबरें आने लगीं. दुर्भाग्य से उन सभी नकारात्मक खबरों के मूल में कहीं न कहीं से कांग्रेस थी. लेकिन अब जो बात नीतीश ने की है वह उन बातों पर मुहर लगाने जैसी हैं. क्या वास्तव में इंडिया गठबंधन के लिए कांग्रेस खलनायक बन गई है?

अखिलेश का गुस्सा होना वाजिब था

एमपी में टिकट बंटवारे को लेकर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच जो कुछ हुआ उसके लिए दोनों को जिम्मेदार ठहराना मामले को हल्का करना है. इंडिया गठबंधन में कांग्रेस को अपने सभी साथि्यों के साथ बड़े भाई की भूमिका अदा करनी थीं. पर समाजवादी पार्टी के साथ एमपी में कांग्रेस ने बड़़े भाई का धर्म नहीं निभाया.अखिलेश यादव ने सिर्फ 7 सीटों की बात की थीं. अगर कांग्रेस नेता सूझबूझ से काम लेते तो 3 सीटों पर बात बन सकती थी. जिन सीटों पर समाजवादी पार्टी ने पिछली बार जीत हासिल की थी और जिन पर वह दूसरे स्थान पर थी उनको लेकर पजेसिव होना समाजवादी पार्टी का अधिकार बनता था. अगर समाजवादी पार्टी को ये सीटें नहीं भी देनी थीं तो उसे मिल बैठकर सुलझाना था. पर जिस तरीके से अखिलेश यादव के साथ कांग्रेस पेश आई वह तरीका एक नैशनल पार्टी का नहीं था. कांग्रेस के बड़े नेताओं ने अखिलेश को एक छुटभैय्ये नेता की तरह ट्रीट किया. उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य का सीएम रहा चुका शख्स जिसके पास आज भी प्रदेश में नंबर दो की हैसियत है उसके साथ ऐसा व्यवहार किया गया जैसा अपने विरोधियों के साथ भी नहीं किया जाता है. हो सकता है कि अखिलेश के साथ रैलियां करने से कांग्रेस कई हारती हुई सीट जीतकर बीजेपी को विपक्षी एकता का संदेश देती.

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टीएमसी की बातों को नहीं रखा गया ध्यान

इंडिया गठबंधन में कांग्रेस ने शुरू से टीएमसी और ममता बनर्जी के साथ विरोधियों वाला व्यवहार किया. अधीर रंजन ने के बयान उसके गवाह हैं. ममता का गुस्सा वाजिब था जब बिना इंडिया गठबंधन के सदस्यों से बात किए राहुल गांधी ने अडानी के खिलाफ पीसी कर दी. इसी तरह जब ममता बनर्जी जाति जनगणना के लिए हामी नहीं भर रही थीं तो सर्वसम्मत से इंडिया गठबंधन की ओर से इसे मुख्य मुद्दों में शामिल कर लिया गया.किसी भी स्वाभिमानी नेता जिसके पास संसद में पर्याप्त संख्या बल हो उसका नाराज होना स्वभाविक था. जब पश्चिम बंगाल में लेफ्ट पार्टियां करीब-करीब खत्म हो चुकीं हैं उन्हें ममता के बराबर तवज्जो देना भी ममता बनर्जी को एक तरीके से चिढ़ाने के समान ही है.

आम आदमी पार्टी को भी लगाया किनारे

आम आदमी पार्टी को लेकर भी कांग्रेस का रवैया शुरू से ही बराबरी वाला नहीं रहा है. इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि दिल्ली में बीजेपी को रोकने का जो दम आप ने दिखाया है वह इस आम पार्टी को खास बना देती है. दिल्ली विधानसभा में पिछले तीन चुनावों से बीजेपी को सत्ता से बाहर कर ही दिया.यहां सत्ता से बाहर करना शब्द छोटा पड़ जाता है क्योंकि यहां बीजेपी का सूपड़ा साफ हुआ है. अब एमसीडी से भी बीजेपी को बाहर का रास्ता दिखा दिया है. पंजाब में भी आम आदमी पार्टी को हल्के में लेना किसी भी तरह से अव्यवहारिक है .पर कांग्रेस दिल्ली और पंजाब तो छोड़िए मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी इस पार्टी को भाव देने के मूड में में नहीं है. 

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कांग्रेस अति उत्साह में इंडिया गठबंधन का नुकसान कर रही

कर्नाटक और हिमाचल की जीत के बाद से इंडिया गठबंधन को कांग्रेस नेता तवज्जो देना कम कर दिए हैं. अगर कांग्रेस को मध्य प्रदेश -राजस्थान और छत्तीसगढ में कामयाबी मिलती है तो निश्चित है कि पार्टी नेताओं का अहंकार और बढ़ेगा. शायद यही कारण है कि कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन के लिए सीट शेयरिंग किस तरह से होगी, उसका फॉर्मूला क्या होगा, आदि पर चुप्पी साधे हुए है. राजनीतिक विश्वेषकों का मानना है कि काग्रेस इस इंतजार में पार्टी 5 राज्यों में चुनावों में जीत के बाद सीट शेयरिंग के फॉर्मूले पर बात करेगी. यह तय है कि  इसके बाद पंजाब हो या दिल्ली , यूपी हो या बिहार, महाराष्ट सभी जगहों पर कांग्रेस अपनी शर्तों पर गठबंधन करने की कोशिश करेगी. निश्चित है कि यह बहुत बड़े कलह का फिर कारण बनेगा.

राहुल को पीएम बनाने की मृग मरीचिका

दरअसल इंडिया गठबंधन का दम निकलने के पीछे सबसे बड़ा मुद्दा राहुल गांधी को पीएम कैंडिडेट बनाने का है . हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे कह चुके हैं कि उन्हें पीएम बनने में कोई रुचि नहीं है, कांग्रेस का उद्देश्य केवल बीजेपी को सत्ता से बाहर करना है. हालांकि सभी पार्टियां और आम लोग इस बात को समझते हैं कि कांग्रेस अगर सत्ता में आती भी है तो खरगे को पार्टी पीएम नहीं बनाने वाली है. इसके लिए तो पीएम इन वेटिंग राहुल गांधी ही हैं. ममता बनर्जी सहित इंडिया गठबंधन के कई नेताओं को भी पीएम पद ही दिख रहा है. अभी हाल ही में यूपी में कांग्रेस की ओर लगाए होर्डिंग्स में राहुल को पीएम बनाने और समाजवादी पार्टी की ओर लगाई गई होर्डिंग में अखिलेश यादव को पीएम बनाने की डिमांड सार्वजनिक हुई थी. जेडीयू के भी कई विधायक और सांसद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पीएम कैंडिडेट घोषित करने की मांग कर ही चुके हैं.

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