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OMG 2 को तो एडल्ट सर्टिफिकेट मिल गया, क्या दर्शक के तौर पर हमारा बर्ताव 'एडल्ट' है?

अक्षय कुमार की फिल्म 'OMG 2' को आखिरकार सेंसर बोर्ड से सर्टिफिकेट मिल तो गया है, लेकिन 'एडल्ट' कैटेगरी में. धार्मिक एंगल वाली इस फिल्म का प्लॉट सेक्स एजुकेशन जैसे टॉपिक से डील करता है. सेंसर बोर्ड ने फिल्म को सर्टिफिकेट देने में काफी सोच-विचार किया. लेकिन दर्शकों पर फिल्म के आफ्टर इफेक्ट को लेकर, बोर्ड का इतना विचार करना बतौर ऑडियंस हमारे बारे में क्या कहता है?

 OMG 2 को तो एडल्ट सर्टिफिकेट मिल गया, क्या दर्शक के तौर पर हमारा बर्ताव 'एडल्ट' है? OMG 2 को तो एडल्ट सर्टिफिकेट मिल गया, क्या दर्शक के तौर पर हमारा बर्ताव 'एडल्ट' है?
सुबोध मिश्रा
  • नई दिल्ली,
  • 03 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 1:06 PM IST

आखिरकार अक्षय कुमार की फिल्म 'OMG 2' का ट्रेलर आ गया है. और जैसी उम्मीद थी, फिल्म के लिए जनता का शुरुआती रिएक्शन बहुत पॉजिटिव है. हालांकि, अब किसी फिल्म का ट्रेलर आए और सोशल मीडिया पर कुछ लोग उसमें नेगेटिव चीज न खोज निकालें, ऐसा होना असंभव सा हो चुका है. पिछ्ले कुछ समय में तो फिल्मों का विरोध सोशल मीडिया से शुरू होकर रियल जमीन पर भी खूब उतरने लगा है. तो अब ये बस कुछ देर का इंतजार ही है कि सोशल मीडिया पर 'OMG 2' के ट्रेलर पर भी कोई नया नेगेटिव ट्रेंड शुरू हो. और वो भी तब, जब अक्षय की फिल्म पहले ही बड़ी मुश्किल से सेंसर बोर्ड की ऊंची दीवारें लांघकर किसी तरह बाहर निकली है.

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सेंसर बोर्ड की टेबल पर अटकी 'OMG 2'

फैन्स थिएटर्स में 11 अगस्त को एक बड़ा क्लैश देखने के लिए तैयार थे. सनी देओल की 'गदर 2' और अक्षय की 'OMG 2' एक साथ थिएटर्स में रिलीज होनी हैं. जहां 'गदर 2' का ट्रेलर आ चुका था और जनता में फिल्म का माहौल बनने लगा, वहीं 'OMG 2' इस रेस में थोड़ा पीछे रह गई. फिल्म के पोस्टर, टीजर और गाने को तो जनता से सॉलिड रिस्पॉन्स मिला...लेकिन ट्रेलर नहीं रिलीज हुआ. रिपोर्ट्स बताती हैं कि रिलीज से करीब एक महीना पहले सेंसर बोर्ड ने 'OMG 2' देखी, लेकिन फिल्म को सेंसर सर्टिफिकेट देने की बजाय, इसे रिविजन कमिटी के पाले में डाल दिया.

दरअसल रामायण पर आधारित 'आदिपुरुष' की रिलीज के बाद, तगड़ी आलोचना झेल चुका सेंसर बोर्ड अक्षय की फिल्म को लेकर पहले से ही अतिरिक्त सावधानी बरत रहा है. सेंसर बोर्ड में फिल्म अटकने के दौरान खबर आई कि 'OMG 2' एक सेंसिटिव फिल्म है जिसका प्लॉट सेक्स-एजुकेशन पर बेस्ड है. फिल्म में एक महत्वपूर्ण सीक्वेंस, मास्टरबेशन पर बात करता है. तो पंगा ये था कि एक तरफ तो फिल्म का कनफ्लिक्ट यानी मुद्दा ही एक ऐसा  टॉपिक है जिसे लेकर लोग बड़ी जल्दी असहज हो जाते हैं. ऊपर से 'OMG 2' में इस पेंचीदा टॉपिक का हल निकालने के लिए कहानी में जिस किरदार का सहारा लिया गया, वो खुद भगवान है. ठीक वैसे ही जैसे पहली फिल्म, 'OMG' में भी हुआ था. फर्क बस ये है कि पहली फिल्म में अक्षय ने जो किरदार निभाया वो भगवान कृष्ण को रिप्रेजेंट कर रहा था. इस बार अक्षय का किरदार भगवान शिव को रिप्रेजेंट कर रहा है.

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कट्स, बदलाव और सुझाव

सेंसर बोर्ड से मेकर्स, फिल्म के लिए कम से कम 'U/A' सर्टिफिकेट चाहते थे. यानी 18 साल से कम उम्र के नाबालिग, किसी व्यस्क की गाइडेंस में फिल्म देख सकते हैं.  जबकि बोर्ड इसे 'A' सर्टिफिकेट के साथ पास करना चाहता था. यानी 18 साल या उससे ज्यादा उम्र के लोग ही फिल्म देख सकते हैं.

फिल्म को मिला सेंसर सर्टिफिकेट, उसकी ऑडियंस का टाइप बदल देता है. फैमिली ऑडियंस ऐसी फिल्मों से बचती है जिनकी रेटिंग 'A' हो. क्योंकि एक तो वे अपने साथ बच्चों को थिएटर्स नहीं ले जा सकते. और बच्चे न भी हों तो परिवार के साथ 'ऐसे' टॉपिक पर फिल्म देखना लोगों को असहज कर देता है. 'OMG 2' जिस सेक्स एजुकेशन के टॉपिक पर बात कर रही है, वो सबसे ज्यादा अगर किसी के लिए जरूरी है तो टीनेजर्स के लिए. मेकर्स के नजरिए से भी देखें तो फैमिली ऑडियंस को पसंद आने वाली फ़िल्में थिएटर्स में सॉलिड कमाई करती हैं और लम्बी चलती हैं.

बताया जाता है कि बोर्ड की ओर से मेकर्स को ये सुझाव दिया गया कि कुछ बदलावों और कट्स के साथ 'OMG 2' को 'U/A' सर्टिफिकेट दिया जा सकता है. अलग-अलग रिपोर्ट्स में बोर्ड के सुझाए कट्स की गिनती 20-30 तक बताई जाती है. सेंसर बोर्ड के सुझावों में से एक ये भी बताया गया कि अक्षय कुमार के किरदार को कहानी में, भगवान शिव नहीं, उनका मैसेंजर दिखाया जाए. लेकिन हर फिल्म की स्टोरीटेलिंग का एक फ्लो होता है. मेकर्स का पक्ष ये था कि जितने बदलाव बताए जा रहे हैं, उनसे फिर पूरी फिल्म प्रभावित होगी.

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'OMG 2' के सेंसर सर्टिफिकेट का मसला सुलझेगा कबतक, ये भी तय नहीं था और मेकर्स ने ट्रेलर की रिलीज भी टाल दी. क्योंकि फिल्म के प्रमोशन और मार्केटिंग में ट्रेलर रिलीज एक बड़ा पॉइंट होता है. ट्रेलर आने के बाद प्रमोशन फुल रफ़्तार में चलते हैं. अब अगर फिल्म की रिलीज ही टल जाए तो ट्रेलर रिलीज और प्रमोशन का सारा एफर्ट फीका पड़ जाता है. 11 अगस्त पास आ र ही है और जनता में भी ये सवाल उठने लगा कि अक्षय की फिल्म 'गदर 2' के साथ रिलीज हो भी पाएगी या नहीं? कहीं फिल्म टलेगी तो नहीं? लेकिन अंत भला तो सब भला...

आखिरकार, रिलीज से करीब 10 दिन पहले 'OMG 2' सेंसर बोर्ड से पास हो गई, 'A' सर्टिफिकेट के साथ ही.  और अब मेकर्स ट्रेलर रिलीज के साथ तेजी से वो गैप भरना चाहेंगे, जो फिल्म के सेंसर बोर्ड में अटकने से उनके प्रमोशन में आ गया है. 'OMG 2' के लिए सबकुछ वापस पटरी पर तो लौट आया, लेकिन यहां गौर करने वाली बात ये है कि ये सबकुछ फिल्म के बाद घटने वाली संभावनाओं को देखते हुए किया जा रहा है. 'OMG 2' पर सेंसर बोर्ड का रिएक्शन सीधा इशारा है कि फिल्मों को लेकर माहौल में एक तयशुदा पैटर्न बनता जा रहा है. क्या ये एक दर्शक के तौर पर हम पर सवाल नहीं है?

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बढ़ता जा रहा है ट्रोलिंग और विरोध का डर?

दरअसल सेंसर बोर्ड ने 'OMG 2' को लेकर ये 'अतिरिक्त सावधानी' इसीलिए बरती क्योंकि 'आदिपुरुष' के समय उसकी काफी किरकिरी हुई थी. डायरेक्टर ओम राउत ने पर्दे पर 'रामायण' का जो मॉडर्न एडाप्टेशन तैयार किया, उसमें किरदारों की भाषा का बहुत विरोध हुआ. सोशल मीडिया पर फिल्म के विरोध से शुरू हुआ मामला, थिएटर्स में फिल्म के खिलाफ लोगों के प्रदर्शन और कोर्ट केस तक पहुंच गया. 'आदिपुरुष' पर सुनवाई करते हुए इलाहबाद हाई कोर्ट ने मेकर्स के साथ-साथ सेंसर बोर्ड को भी फटकार लगाई थी. कोर्ट ने कहा था- 'सिनेमा समाज का आईना होता है. आप आने वाली पीढ़ियों को क्या सिखाना चाहते हैं?'

'आदिपुरुष' अकेली फिल्म नहीं है जिसका जोरदार विरोध हुआ हो. शाहरुख खान स्टारर 'पठान' इसी साल, जनवरी में आई थी. और इस फिल्म में एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण की बिकिनी के रंग पर तगड़ा बवाल हुआ. सोशल मीडिया से लेकर अदालतों तक में इस गाने को लेकर लोगों ने आपत्ति दर्ज कराई. आपत्ति का कॉमन पॉइंट ये था कि बिकिनी का रंग धार्मिक भावनाओं को आहत कर रहा है. 'पठान' का विरोध भी कोर्ट तक जा पहुंचा था.

फिल्मों के विरोध की इस लहर का एक कॉमन पैटर्न है- सोशल मीडिया पर विरोध शुरू होता है, फिर फिल्म की ट्रोलिंग में बदलता है. राजनीतिक सपोर्ट वाले संगठन जमीन पर फिल्म के खिलाफ प्रदर्शन शुरू करते हैं और फिर बात कोर्ट तक चली जाती है.

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यही सेंसर बोर्ड, हॉलीवुड फिल्मों की भारत में रिलीज से पहले उन्हें भी सर्टिफिकेट देता है. यही जनता जो 'आदिपुरुष' में एक रंग का विरोध करती है. वो हॉलीवुड फिल्मों में विदेशी किरदारों को, अपने धर्म-समाज-संस्कृति-राजनीति पर सवाल करते देखकर खुश होती है. ऐसी फिल्मों को 'ब्रेव' यानी बहादुरी भरा प्रयास कहकर सराहा जाता है. लेकिन अपनी हिंदी फिल्मों के मामले में हमें क्या हो जाता है?

हालांकि, इसी साल भारत में एक हॉलीवुड फिल्म पर भी 'भावना आहत करने' का आरोप लगा और विरोध शुरू हुआ. 100 करोड़ से ज्यादा कमा चुकी हॉलीवुड फिल्म 'ओपनहाइमर' में सेक्स-सीन के दौरान भगवद्गीता के मेंशन की बात, फिल्म देखने वाले कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर शेयर की. 'ओपनहाइमर' के शोज पहले 3 दिन ठसाठस भरे रहे थे. लेकिन फिल्म के इस सीन का जिक्र सोशल मीडिया पर आने में थोड़ा सा समय लगा. ये बताता है कि अधिकतर दर्शकों को इस सीन में कुछ अटपटा नहीं लगा. कुछ को लगा, तो उन्होंने सोशल मीडिया पर शेयर किया. देखते-देखते सोशल मीडिया पर बात 'बॉयकॉट ओपेनहाइमर' तक पहुंच गई फिल्म पर पॉलिटिकल बयानबाजी भी होने लगी. इस पूरे मामले में बहुत सारे सोशल मीडिया पोस्ट और बयानों का सार ये था कि 'हमने फिल्म नहीं देखी है, लेकिन अगर कुछ ऐसा हुआ है तो निंदनीय है.'

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बॉलीवुड एक्ट्रेस कंगना रनौत ने भी 'ओपेनहाइमर' देखी. फिल्म देखकर लौट रहीं कंगना ने सोशल मीडिया पर वीडियो बनाकर अपना रिव्यू शेयर किया और फिल्म की जमकर तारीफ़ की. कंगना ने कहा कि फिल्म में भगवद्गीता वाला रेफरेंस उनका फेवरेट पार्ट था.  सोशल मीडिया पर भारतीय और हिंदू संस्कृति को लेकर हमेशा मुखर रहने वालीं कंगना, खुद स्क्रीन पर कहानियां गढ़ने के बिजनेस का हिस्सा हैं. ये मानना गलत नहीं होगा कि वो फिल्मों की सेंसिबिलिटी शायद एक एवरेज दर्शक से बेहतर समझती होंगी. ऐसे में 'ओपेनहाइमर' का उनका रिव्यू ये बताता है कि फिल्म में गलत कुछ भी नहीं था. फिल्म एक डायरेक्टर का कहानी कहने का तरीका है और किसी दर्शक का, फिल्म के बीच में कसी सन्दर्भ से कट जाना कोई नई और बड़ी बात नहीं है. मगर ऐसा होने पर हमारा रिएक्शन ये जरूर तय करता है कि हम किस किस्म के दर्शक हैं.

'आदिपुरुष' के डायलॉग्स में जिस तरह की भाषा इस्तेमाल हुई उसके लिए राइटर मानोज मुंतशिर ने जनता से माफ़ी भी मांगी. लेकिन 'रामायण' की ही कहानी पर पूरे देश में रामलीलाएं होती हैं. और इन रामलीलाओं में, क्षेत्रीयता के हिसाब से भाषा और परफॉरमेंस में इतने बदलाव हो जाते हैं कि पहली बार देख रहे किसी नए व्यक्ति का मुंह खुला रह जाए. दर्शकों की भीड़ को कहानी सुनाने में सबसे पहली जरूरत ऐसे अंदाज की होती है जो सैकड़ों लोगों का ध्यान बांध सके. ऐसे में देशज शब्दों का आना, लोकल टोन में गीत और चुटीला अंदाज इन रामलीलाओं में खूब होता है.

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विविधताओं को सेलिब्रेट करने वाले हमारे देश में क्षेत्रीयता के हिसाब से हमारी अपनी-अपनी संस्कृति है. हमारी भक्ति के अलग-अलग प्रकार हैं और यहां तक कि एक ही देवता के अलग-अलग क्षेत्रीय वर्जन मिलते हैं. तो स्क्रीन पर हमें ये विविधता स्वीकार्य क्यों नहीं है? ऐसा नहीं है कि 'आदिपुरुष' कोई बहुत अच्छी फिल्म थी. ओम राउत के स्क्रीनप्ले में बहुत दिक्कतें थीं, VFX की कमियां भी नजर आ रही थीं और किरदारों के ट्रीटमेंट में भी गड़बड़ी थी. ट्रेलर से ही लग रहा था कि फिल्म में दर्शकों को देने के लिए कुछ बहुत अनोखा नहीं है. अगर 'आदिपुरुष' पर विवाद नहीं भी होता, तब भी पहले कुछ दिनों के बाद इसके दर्शक घट ही जाते क्योंकि ये एंगेजिंग नहीं थी. मगर इस फिल्म को लेकर जिस तरह के विस्फोटक रिएक्शन और बयान आए वो आर्ट-फॉर्म के दर्शक के तौर पर हमारी समझ को कटघरे में जरूर खड़ा करते हैं.

अक्षय की 'OMG 2' के टीजर में एक सीन है जिसमें भगवान शिव जैसा गेटअप बनाए अक्षय कुमार, रेलवे पाइपलाइन से गिर रहे पानी के नीचे ध्यान लगाए बैठे हैं. टीजर रिलीज होने के बाद ही इस सीन पर लोगों ने सोशल मीडिया पर फिल्म का विरोध शुरू हो गया था. ये 'OMG 2' के सेंसर बोर्ड वाले पंगे से पहले की बात है. इसी से दिखने लगा था कि फिल्म को लेकर जनता की भावना कितने नाजुक स्तर पर जा सकती है.

एक दशक में कितने बदल गए दर्शक

एक नास्तिक आदमी, भगवान पर केस कर दे. और केस की सुनवाई में मंदिरों में चढ़ने वाले चढ़ावे, ईश्वर का सत्संग करने वाले बाबाओं को सवालों के घेरे में ले आए. क्या आपको लगता है कि आज अगर ऐसे किसी आईडिया पर फिल्म बने, तो वो बिना किसी विवाद थिएटर्स में रिलीज हो सकेगी? ये सवाल वैसे तो  हाइपोथेटिकल है यानि काल्पनिक सिचुएशन पर बेस्ड है. लेकिन इस सवाल के लिए आप 'आदिपुरुष' 'पठान' या 'ओपेनहाइमर' के विरोध को एक रेफरेंस पॉइंट मान सकते हैं.  

आपका जवाब चाहे जो भी हो, लेकिन फैक्ट ये है कि ऐसा हो चुका है. इस आईडिया को बड़े पर्दे पर लाने वाली फिल्म 'OMG- ओह माय गॉड!' 2012 में रिलीज हुई थी. फिल्म ने न सिर्फ बॉक्स ऑफिस पर जमकर कमाई की बल्कि क्रिटिक्स की तारीफ जमकर बटोरी. 'OMG' का कमाल यहीं नहीं रुका, परेश रावल और अक्षय कुमार स्टारर इस फिल्म को 'बेस्ट स्क्रीनप्ले' (एडाप्टेड) कैटेगरी में नेशनल अवार्ड भी मिला. इसी जबरदस्त पॉपुलैरिटी का नतीजा था कि दर्शक अक्षय से 'OMG' का सीक्वल लाने के लिए रिक्वेस्ट करते रहते थे. 'OMG 2' दर्शकों की इसी डिमांड का नतीजा है. लेकिन क्या इस एक दशक में दर्शकों की चॉइस ही बदल चुकी है?

एक दशक का समय बहुत लंबा होता है. इतने समय में बहुत कुछ बदल जाता है. समाज में बड़े बदलाव आ जाते हैं, राजनीति का अंदाज बदल जाता है और इन सारे बदलावों का एक आम आदमी की जिंदगी पर असर भी बदल जाता है. इस बदले हुए माहौल में ये बदलाव भी आ सकता है कि पहले हम जो आलोचनाएं सह सकते थे, उन्हें अब न सह पा रहे हों. अक्षय की 'OMG 2' को सेंसर ने 'A' यानी एडल्ट कैटेगरी में पास कर दिया है. एक 'एडल्ट' या वयस्क व्यक्ति में खास किस्म की वैचारिक परिपक्वता और समझ की उम्मीद की जाती है. शायद इसीलिए 18 साल का होते ही हमारा देश हमें अपनी सरकार चुनने का मौका देता है.

लेकिन क्या हम में एक दर्शक के तौर पर वो परिपक्वता है कि हम अपने आदर्शों की आलोचना बड़े पर्दे पर देख सकें? एक दशक पहले जब 'OMG'रिलीज हुई थी तब तो हम में यकीनन के परिपक्वता थी. क्योंकि फिल्म की कामयाबी और नेशनल अवार्ड, दोनों हमारी इस परिपक्वता के सबूत थे. अब 'OMG 2' की रिलीज तक बतौर दर्शक हम कितने 'एडल्ट' बचे हैं, ये भी फिल्म की रिलीज के बाद जल्द ही दिख जाएगा.

 

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