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एक मुलाकात-कई मायने और ठंड में Delhi में बदलता सियासी समीकरण

इस समय कई राज्यों में गठबंधन पर असमंजस बरकरार है. उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार जैसे राज्यों में सीटों के तालमेल पर या तो बात नहीं बढ़ पा रही या फिर काफी देरी हो रही है. ठीक उसी समय कांग्रेस और आम आदमी पार्टी सीटों को लेकर बंटवारे पर काफी आगे बढ़ चुके हैं. दिल्ली में फॉर्मूला तैयार है लेकिन बाकी राज्यों में आम आदमी पार्टी कांग्रेस से कुछ सीटें चाहती है.

पिछले लोकसभा चुनाव में दिल्ली में AAP महज दो सीटों पर नंबर दो रही थी. पिछले लोकसभा चुनाव में दिल्ली में AAP महज दो सीटों पर नंबर दो रही थी.
कुमार कुणाल
  • नई दिल्ली,
  • 18 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 9:29 AM IST

दिल्ली में चुनावी हलचल कुछ ज्यादा ही तेज हो गई है. जिस आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के रिश्ते को इंडिया गठबंधन के लिहाज से सबसे ज्यादा मुश्किल माना जा रहा था उसमें सबसे पहले बात बनती हुई नजर आ रही है. गठबंधन को लेकर दोनों पार्टियों के बीच दो दौर की बातचीत और उसके ठीक बाद अरविंद केजरीवाल की मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी के साथ अचानक हुई मुलाकात ने सबको चौंका दिया. दिल्ली में जिस समय तापमान और धुंध के बीच सबकुछ ठंडा और धुंधला दिख रहा था, ठीक उसी समय राजनीतिक फिजां साफ होती हुई दिखाई दी. बात सिर्फ दिल्ली की ही नहीं हुई बल्कि दिल्ली से कई राज्यों को साधने की कोशिश भी चलती रही. इस बीच, अरविंद केजरीवाल को इनफोर्समेंट डायरक्टरेट यानि ईडी का चौथा समन भी जारी हुआ तो दिल्ली के मुख्यमंत्री ने समन में जिस तारीख 18 जनवरी को पेश होने को कहा गया था, ठीक उसी दिन अपना गोवा में चुनावी तैयारी कार्यक्रम तय कर दिया.

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राहुल और केजरीवाल की पहली औपचारिक बैठक, बात सीटों से कहीं आगे की

इस समय बेशक गठबंधन के सहयोगियों के बीच सीटों के तालमेल को लेकर चर्चा चल रही है. लेकिन, सीट शेयरिंग से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के घर अचानक अरविंद केजरीवाल का पहुंचना रहा और उससे भी ज्यादा अहम ये कि मीटिंग में राहुल गांधी भी शामिल होने पहुंच गए. राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल की मुलाकात इसलिए सियासी माहौल बदलने वाली मालूम पड़ती है क्योंकि जब मई में केंद्र सरकार ने दिल्ली सरकार के अधिकारों में कटौती को लेकर एक अध्यादेश जारी किया था तब कई बार समय मांगने के बावजूद दिल्ली के मुख्यमंत्री को राहुल ने मुलाकात का वक्त नहीं दिया था. हालांकि कांग्रेस ने संसद में दिल्ली के बिल का विरोध किया लेकिन सियासी गलियारों में चर्चा होती रही कि केजरीवाल और राहुल के बीच की केमेस्ट्री में कुछ ना कुछ तो गड़बड़ है. 

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ये बात इसलिए भी चुनावी मौसम में सामने आ जाती है क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनावों के वक्त भी आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन को लेकर राहुल गांधी ने ही वीटो कर दिया था और तब तालमेल नहीं हो पाया था. लेकिन इस बार कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे के नाम को बतौर इंडिया घटक दलों के चेयरमैन के तौर पर आगे लाने में अरविंद केजरीवाल की भी भूमिका अहम रही इसलिए कांग्रेस ने भी केजरीवाल के लिए फिलहाल तल्ख तेवर नरम कर दिए हैं. इस महत्वपूर्म मीटिंग का नतीजा भी देखने को तत्काल मिला और चंडीगढ़ में मेयर का चुनाव दोनों दलों ने मिलकर लड़ने का फैसला किया. गौरतलब है कि चंडीगढ़ निगम चुनाव में दो साल पहले आम आदमी पार्टी ने जबरदस्त प्रदर्शन किया था लेकिन कांग्रेस का समर्थन हासिल ना होने की वजह से दो बार बीजेपी का मेयर चुना गया.
 
क्यों आ गए केजरीवाल और कांग्रेस एक साथ?

इस समय कई राज्यों में गठबंधन पर असमंजस बरकरार है. उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार जैसे राज्यों में सीटों के तालमेल पर या तो बात नहीं बढ़ पा रही या फिर काफी देरी हो रही है. ठीक उसी समय कांग्रेस और आम आदमी पार्टी सीटों को लेकर बंटवारे पर काफी आगे बढ़ चुके हैं. दिल्ली में फॉर्मूला तैयार है लेकिन बाकी राज्यों में आम आदमी पार्टी कांग्रेस से कुछ सीटें चाहती है. इन राज्यों में पंजाब शामिल नहीं है जहां कांग्रेस और आप दोनों ने रणनीतिक तौर पर ये लगभग तय कर लिया है कि दोनों पार्टियों को अलग-अलग ही लड़ना चाहिए क्योंकि वहां पर बीजेपी की मौजूदगी सिर्फ कुछ सीटों पर ही है. तो बात दिल्ली के अलावा गुजरात, हरियाणा और गोवा के इर्द-गिर्द भी चल रही है. गुजरात और गोवा में आम आदमी पार्टी के पास चुने हुए विधायक भी हैं तो वहीं हरियाणा अरविंद केजरीवाल का गृह प्रदेश है जहां इसी साल विधानसभा चुनाव भी होने हैं. 

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दिल्ली में केजरीवाल की पार्टी पिछले लोकसभा चुनाव में महज दो सीटों पर नंबर दो रही थी जबकि कांग्रेस नें पांच सीटों पर दूसरा स्थान हासिल किया था. ऐसे में दिल्ली में दोनों पार्टियों ने अपने लिए पांच सीटें मांगी लेकिन ये तय हुआ कि जीतने वाले प्रत्याशी को तवज्जो देते हुए दोनों में से एक चार तो दूसरी तीन सीटों पर लड़ेगी. लेकिन आम आदमी पार्टी दिल्ली में सत्ता होने के बावजूद ऐसी दरियादिली दिखाने का ईनाम गुजरात और यहां तक कि दिल्ली से सटे हरियाणा में भी मांग रही है. लेकिन कांग्रेस ने इस प्रस्ताव पर अभी तक हामी नहीं भरी है और अपने राज्य इकाइयों से बात कर अंतिम फैसला लेगी तो दिल्ली में दिल बड़ा करने का केजरीवाल का प्लान बाकी राज्यों में कांग्रेस से सीट मांगने की रणनीति का हिस्सा दिखता है क्योंकि पिछले ही हफ्ते केजरीवाल ने गुजरात के भरूच की रैली में अपने उम्मीदवार के नाम की घोषणा तक कर दी थी.

राम मंदिर पर केजरीवाल का सॉफ्ट हिंदुत्व, कांग्रेस में क्या होगी प्रतिक्रिया

राम मंदिर के मुद्दे पर कांग्रेस ने प्राण प्रतिष्ठा में शामिल ना होने की घोषणा कर दी. लेकिन, आम आदमी पार्टी ने बीजेपी को उसी की पिच पर चुनौती देते हुए हर मंगलवार को पूरी दिल्ली में सुंदर कांड का पाठ करवाने का फैसला लिया. अरविंद केजरीवाल का ये कदम कांग्रेसी नेताओं के लिए मुश्किलें बढ़ा सकता है, लेकिन आम आदमी पार्टी का मानना ये है कि बीजेपी को उसी के स्टाइल में ही जवाब देना होगा नहीं तो फिर से भावनात्मक मुद्दे को भुनाकर भारतीय जनता पार्टी चुनावी अभियान में फायदा ले जाएगी तो आने वाले वक्त में कांग्रेस आम आदमी पार्टी के रुख को देखेगी जरूर और तभी तय होगा कि गठबंधन का जोड़ वाकई कितना मजबूत है.

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