Advertisement

इस्लाम में अंगदान: आस्था और जरूरत की कश्मकश में फंसा मुसलमान

अंगदान में एक डोनर के स्वस्थ अंगों को एक जरूरतमंद मरीज़ के शरीर में ट्रांसप्लांट किया जाता है. लेकिन मुस्लिम समुदाय के लिए अंगदान एक ऐसा विषय है जिसे लेकर आस्था और जरूरत के बीच एक जबरदस्त कश्मकश दिखाई देती है. इस लेख में इस्लामिक दृष्टिकोण से अंगदान पर चर्चा की गई है, जिसमें विभिन्न विद्वानों के विचार, नैतिक विचार-विमर्श और समकालीन बहस शामिल हैं.

अंगदान एक महत्वपूर्ण चिकित्सा प्रक्रिया है. अंगदान एक महत्वपूर्ण चिकित्सा प्रक्रिया है.
aajtak.in
  • ,
  • 14 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 1:26 PM IST

जैसे-जैसे चिकित्सा के क्षेत्र में प्रगति होती जा रही है, जीवन बचाने और स्वास्थ्य में सुधार के लिए अंगदान पूरी इंसानियत के लिए एक वरदान बनकर उभरता जा रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि एक डोनर के शरीर के अंग 50 लोगों तक की जान बचाने या उन्हें मदद करने में मददगार हो सकते हैं. अधिकांश अंग और टिशू डोनर की मौत के बाद लिए जाते हैं लेकिन कुछ अंग और टिशू ऐसे भी होते हैं जिसे डोनर अपनी जिंदगी में भी दान कर सकता है और इससे डोनर की सिहत को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचता. 

Advertisement

सभी उम्र और बैकग्राउंड के लोग अंगदान कर सकते हैं. लेकिन मुसलमानों के लिए, यह सवाल कि क्या अंगदान इस्लामिक सिद्धांतों के अनुरूप है, एक महत्वपूर्ण बहस और चर्चा का विषय बना हुआ है. इसका सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि जरूरत पड़ने पर ट्रांसप्लांट के लिए किसी का अंग लेने में मुसलमानों को कोई परहेज़ नहीं है, बस देने से गुरेज़ है. अरे भाई, कोई मुझे यह समझाए कि जो चीज़ लेना हलाल है, किसी को देना कैसे हराम हो सकता है?

अंगदान पर इस्लामिक बहस

इस्लाम में जब जब अंगदान पर बहस होती है तब तब विरोधी स्वर यह कहते हुए सुनाई देते हैं कि हदीस की किताबों में इसकी गुंजाईश नहीं मिलती, कुरान में कहीं इसकी इजाजत नजर नहीं आती. अब इन उलेमा ए कराम को मेरे जैसा एक बे अमल इंसान कैसे समझाए कि हदीस की किताबों में उन्हीं मसायल, हालात और वाकियात का जिक्र है जो पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहू अलेही व सल्लम के ज़माने में रुनुमा हुए. 

Advertisement

लाउडस्पीकर की भी तो गुंजाईश या इजाज़त हदीस और कुरान में नहीं है. तो क्या लाउडस्पीकरों पर अज़ान देना हराम मान लिया जाए? जहां तक कुरान की बात है, इसमें इशारों में सारी बातें मौजूद हैं जिनका मुताला अगर हम खुले जेहन से करें तो हमें जिंदगी गुजारने में कयामत तक रहनुमाई मिल सकती है. कुरान के सुरा अल माएदा की 32वीं आयत है, "और जिसने एक जीवन को बचा लिया - मानो उसने पूरी मानवता को बचा लिया." अगर किसी को इस आयत में अंगदान की इजाज़त नज़र नहीं आती तो मुझे ताज्जुब है.

अंगदान के समर्थन में फतवा

अंगदान के विरोधी स्वरों के बीच हाल के वर्षों में, कई इस्लामी विद्वानों और संस्थानों ने अंगदान के समर्थन में भी फतवे दिए हैं. 1988 में 'इस्लामी फिकह अकादमी' ने एक फतवा जारी किया था जिसमें कहा गया था कि डोनर और उनके परिवार की सहमति से किसी की जान बचाने के लिए अंगदान जायज़ है. प्रतिष्ठित मुस्लिम संस्थान 'अल-अज़हर विश्वविद्यालय, मिस्र ' के विद्वानों ने भी इन्हीं शर्तों पर अंगदान का समर्थन किया है. 

इसी तरह 'यूके मुस्लिम लॉ (शरीयत) काउंसिल' ने भी इसकी इजाजत दी है और यहां तक कहा है कि अंगदान को सदका (धर्मार्थ कार्य) के रूप में प्रोत्साहित किया जाना चाहिए क्योंकि जो काम मौत के बाद भी दूसरों के लिए फायदेमंद हो, अल्लाह उसका सवाब देता है. भारत के उलेमाओं के बीच से भी कुछ आवाजें अंगदान के समर्थन में उठी हैं जो आहिस्ता आहिस्ता अपना असर भी दिखा रही हैं.

Advertisement

मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान का दृष्टिकोण

अंगदान के पक्ष में एक प्रमुख आवाज़ प्रसिद्ध इस्लामिक विद्वान मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान की है, जो इस विषय पर व्यापक रूप से लिख चुके हैं. मौलाना का मानना था कि अंगदान की इस्लाम में न केवल इजाजत है, बल्कि यह एक महान पुण्य का काम भी है. वह इसे 'सदक़ा ए जारिया' के रूप में देखते थे, जिसमें किसी के अच्छे कर्मों के फल उसकी मृत्यु के बाद भी उस तक पहुँचते रहते हैं. 

वह यह भी कहते थे कि यदि कोई व्यक्ति मृत्यु के बाद अपने अंगों का दान करता है और इन अंगों से अन्य लोगों को स्वास्थ्य लाभ होता है, तो इस दया कार्य के लिए परलोक में अल्लाह उसे इनाम से नवाजता है. उनका यह दृष्टिकोण अंगदान को इस्लामी मूल्यों जैसे करुणा, उदारता और इंसानियत के साथ जोड़ता है.

तारिक़ अब्दुल्लाह का योगदान

एक अन्य सम्मानित इस्लामिक विद्वान, तारिक़ अब्दुल्लाह ने भी इस मुद्दे पर अपनी राय दी है. अब्दुल्लाह अंगदान के आसपास की नैतिक जटिलताओं को स्वीकार करते हैं, लेकिन इस्लामी नैतिकता की रूपरेखा के भीतर इसे परोत्साहित करने के पक्ष में हैं. वह इस बात पर ज़ोर देते हैं कि प्रक्रिया पारदर्शिता के साथ होनी चाहिए, डोनर की इच्छाओं का सम्मान किया जाना चाहिए और दान का लाभ जरूरतमंदों तक पहुँचाने में पूरी ईमानदार बरती जानी चाहिए, इसे किसी के द्वारा धंधा नहीं बनाया जाना चाहिए. अंगदान को प्रोत्साहन देने के लिए वह जल्द ही पूरे हिंदुस्तान में एक अभियान भी शुरू करने जा रहे हैं. तारिक अब्दुल्लाह का यह दृष्टिकोण इस्लामी विद्वानों के बीच बढ़ती सहमति को दर्शाता है .

Advertisement

व्यक्तिगत निर्णय

इस्लामिक समुदाय के भीतर अंगदान पर बहस जारी है, कई विद्वानों के बीच सहमति है कि इस्लामिक दिशानिर्देशों के अनुसार किए जाने पर अंगदान एक नेक और करुणामय कार्य है जो इस्लाम के मूल्यों के अनुरूप है. वहीं दूसरी ओर ऐसे भी आलिम और मौलवी है जो अंगदान की संज्ञा 'मुसला '(शरीर के विरुपण) से देकर इसका अब भी विरोध कर रहे हैं. मुसला उस अमानवीय कृत्य को कहते हैं जिसमें युद्ध के दौरान दुश्मनों की लाशों को घोड़ों से कुचलवाया जाता था. उदारवादी इस्लामिक विद्वानों के नजदीक यह तुलना सही है क्योंकि अंगदान और मुसला में अंतर नियत और इरादे का है.

आखिरकार अंगदान एक अत्यंत ही व्यक्तिगत फैसला है. मुसलमानों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे जानकार विद्वानों से मार्गदर्शन प्राप्त करें और मानवता की सेवा में अपना भी योगदान दें. इस्लाम की नैतिक शिक्षा तो यही है ना कि अपने दिल में दूसरों के प्रति करुणा का भाव पैदा किया जाए. दर्द ए दिल के वास्ते तो ही अल्लाह ने इंसान को पैदा किया है वरना इबादत के लिए तो फरिश्ते ही काफी थे.

इकबाल कहते हैं...

"दर्द ए दिल के वास्ते खुदा पैदा किया इंसान को
वरना ताअत के लिए कम न थे कर्रोबयां"

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement