Advertisement

सेना के ज़ुल्म से फूटा आजादी का ज्वालामुखी... क्यों पाकिस्तान की बलूचिस्तान नीति हुई फेल?

पाकिस्तान की बलूचिस्तान नीति पूरी तरह विफल रही है. सेना के अत्याचारों ने बलूच स्वतंत्रता संग्राम को और तेज कर दिया है. अब यह आंदोलन कबायली पहचान से आगे बढ़कर एक राष्ट्रीय संघर्ष का रूप ले चुका है, जिसमें महिलाएं भी बढ़-चढ़कर भाग ले रही हैं.

पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों ने बलूच स्वतंत्रता संग्राम को और तेज कर दिया है. पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों ने बलूच स्वतंत्रता संग्राम को और तेज कर दिया है.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 12 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 2:57 PM IST

बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) ने एक बार फिर पाकिस्तान के सबसे अशांत प्रांत में बड़ा हमला किया है. बलूच स्वतंत्रता सेनानियों ने जाफर एक्सप्रेस ट्रेन को हाईजैक कर लिया और करीब 200 यात्रियों को बंधक बना लिया (कुछ रिपोर्ट्स में यह संख्या 500 बताई जा रही है). मिलिटेंट्स का कहना है कि कई बंधक पाकिस्तानी सेना के जवान, सरकारी कर्मचारी या पंजाबी प्रांत के रहने वाले हैं. यह लिखे जाने तक, पाकिस्तानी प्रशासन ने बचाव अभियान शुरू किया था, लेकिन कोई खास सफलता नहीं मिली.

Advertisement

बलूच विद्रोहियों के जबरदस्त प्रतिरोध के कारण पाकिस्तानी सेना को पीछे हटना पड़ा. विद्रोहियों ने पाकिस्तानी जेलों में बंद बलूच राजनीतिक कैदियों की रिहाई की मांग की है और चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वे बंधकों को मार सकते हैं.

बलूचिस्तान में लंबे समय से चल रहे संघर्ष और पाकिस्तान सेना की बर्बरता को देखते हुए, यह आश्चर्यजनक नहीं होगा अगर बलूच लड़ाके अपनी धमकी को अंजाम तक पहुंचा दें. ये लड़ाके अपनी जान की परवाह किए बिना लड़ रहे हैं. यह टकराव भले ही जल्द खत्म हो जाए, लेकिन बलूचिस्तान की आज़ादी की लड़ाई खत्म होती नहीं दिख रही. उल्टा, इसका दायरा और प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है.

तेजी से बदल रहा है बलूच विद्रोह

बलूच लड़ाके अपनी रणनीति को और मजबूत कर रहे हैं. वे हमले ज्यादा संगठित ढंग से कर रहे हैं, उनका समन्वय अब ज्यादा मजबूत है, और उनके ऑपरेशन पहले से अधिक घातक हो गए हैं. पहले भी जाफर एक्सप्रेस जैसी ट्रेनों पर हमले होते रहे हैं, लेकिन तब केवल पटरियां उड़ाई जाती थीं या ट्रेन पर गोलियां चलाई जाती थीं. इस बार पूरी ट्रेन को हाईजैक कर लिया गया. यह बताता है कि बलूच विद्रोही अब और ज्यादा ताकतवर और संगठित हो गए हैं.

Advertisement

दूसरी तरफ, पाकिस्तानी सेना अब भी 20वीं सदी वाली रणनीति अपना रही है. बेरहमी से दमन करना, घरों में घुसकर तोड़फोड़ मचाना, महिलाओं का अपमान करना, बच्चों और बुजुर्गों को पीटना, युवाओं को अगवा करके यातनाएं देना और उनकी लाशें फेंक देना. बलूचिस्तान में चुनाव भी सेना की मर्जी से होते हैं, और वहां सेना अपने वफादार नेताओं को जबरदस्ती सत्ता में बैठाती है. ये नेता बलूच जनता के हितों की रक्षा करने के बजाय, पाकिस्तानी सेना के इशारों पर चलते हैं और खुद की जेबें भरते हैं.

जितना दमन, उतना संघर्ष

पाकिस्तानी सेना जितना ज्यादा दमन कर रही है, उतना ही बलूच लड़ाई के लिए तैयार हो रहे हैं. पहले विद्रोह कुछ इलाकों और गिने-चुने कबीलों तक सीमित था, लेकिन अब इसका नेतृत्व पढ़े-लिखे मध्यम वर्ग के बलूच लोग कर रहे हैं, जो खुद जमीनी स्तर पर लड़ रहे हैं. उदाहरण के लिए बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट (BLF) का नेतृत्व डॉ. अल्लाह नजर कर रहे हैं, जो पेशे से डॉक्टर थे और गोल्ड मेडलिस्ट भी हैं. इसी तरह, BLA का नेतृत्व अब मर्री नवाबों के बजाय बशीर जेब बलूच के हाथ में है.

अब यह संघर्ष सिर्फ कुछ जिलों तक सीमित नहीं रहा बल्कि बलूचिस्तान के लगभग हर हिस्से में फैल चुका है. विद्रोही सड़कों और राजमार्गों पर नियंत्रण कर रहे हैं, छोटे शहरों पर हमला कर रहे हैं, सरकारी इमारतों को नष्ट कर रहे हैं और फिर पहाड़ों में गायब हो जाते हैं.

Advertisement

बलूच महिलाओं की बढ़ती भूमिका

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि अब महिलाओं ने भी इस लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभानी शुरू कर दी है. बलूच समाज में महिलाओं की सार्वजनिक जीवन में भागीदारी बहुत कम थी, लेकिन अब डॉ. महरंग बलूच जैसी नेता उभरकर सामने आई हैं, जो एक इशारे पर हजारों लोगों को जुटा सकती हैं.

इनमें से अधिकतर महिलाएं उन लोगों की बहनें या बेटियां हैं, जिन्हें पाकिस्तानी सेना ने जबरदस्ती गायब कर दिया या मार दिया. अब ये महिलाएं न केवल राजनीतिक आंदोलन चला रही हैं, बल्कि आत्मघाती हमलों में भी हिस्सा ले रही हैं.

बलूच एकजुट हो रहे हैं

बलूचिस्तान का यह विद्रोह 1948 में पाकिस्तान में जबरदस्ती शामिल किए जाने के बाद से अब तक का सबसे लंबा और सशक्त विद्रोह बन चुका है. यह 2001 में अमेरिकी सेना द्वारा अफगानिस्तान में तालिबान को हटाने के समय शुरू हुआ था और 2006 में नवाब अकबर बुगती की हत्या के बाद तेज हुआ. 2021 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर फिर से कब्जा कर लिया, तब से बलूच विद्रोह और ज्यादा आक्रामक हो गया है. अब BLA, BLF और बलूच रिपब्लिकन गार्ड जैसे संगठन बलूच राजी आजोई संगार (BRAS) के तहत एकजुट हो गए हैं.

Advertisement

अपने संसाधनों को मिलाकर और कबायली पहचानों से आगे बढ़कर, बलूच उग्रवादियों ने अब एक राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम की छवि बनानी शुरू कर दी है. राजनीतिक स्तर पर, हाल ही में आयोजित बलूच नेशनल गैदरिंग में बलूचिस्तान के हर कोने से लोग एक राष्ट्रीय आंदोलन की दिशा में आगे बढ़ते दिखे. यह कुछ ऐसा था जो पहले बलूच राष्ट्रवादियों से छूटता रहा, और इसी का फायदा उठाकर पाकिस्तान ने 'फूट डालो और राज करो' की रणनीति अपनाई ताकि बलूच आकांक्षाओं को कुचला जा सके. अब यह संघर्ष कबीलों की सीमाओं से निकलकर एक राष्ट्रीय आजादी की लड़ाई बनता जा रहा है.

पाकिस्तान के पास क्या विकल्प बचे हैं?

बलूच आजादी की लड़ाई तेज होती जा रही है, और पाकिस्तान के पास इसे रोकने के बहुत कम विकल्प बचे हैं. ट्रेन हाईजैक की घटना के बाद खासतौर पर पंजाबी समुदाय की ओर से मांग उठ रही है कि पंजाबी-प्रधान पाकिस्तान आर्मी बलूचों के खिलाफ पूरी ताकत से कार्रवाई करे. शायद यही आखिरी रास्ता बचा है जिससे पाकिस्तान की सेना फिर से नियंत्रण पाने की कोशिश कर सकती है.  

अगर पाकिस्तान पूरी ताकत से सैन्य ऑपरेशन करता है- शहरों और गांवों को तबाह कर देता है, बलूच लोगों को बेरहमी से मारकर डर का माहौल बनाता है और अपनी सत्ता फिर से थोपने की कोशिश करता है- तो यही एकमात्र तरीका हो सकता है.  

Advertisement

राजनीतिक रूप से, पाकिस्तान आर्मी के पास कोई मजबूत आधार नहीं बचा है. उसने खुलेआम चुनावों में धांधली की और बलूचों पर अपनी पसंद की सरकार थोपी. आर्थिक रूप से भी पाकिस्तान की हालत ऐसी नहीं है कि वह बलूचों को किसी तरह लुभा सके. चीन के साथ सीपेक (CPEC) जैसे प्रोजेक्ट बलूचों के लिए विकास का जरिया नहीं, बल्कि उनकी जमीन और संसाधनों को लूटकर पंजाबी वर्ग को फायदा पहुंचाने की चाल लगते हैं. वहीं, पाकिस्तान का प्रचार तंत्र भी नाकाम हो गया है, क्योंकि बलूच लोग उसकी बातों पर विश्वास नहीं करते.  

अब जब सेना पर दबाव बढ़ रहा है तो पाकिस्तान आर्मी बड़े स्तर पर सैन्य कार्रवाई कर सकती है. लेकिन इससे भी समस्या हल होने वाली नहीं है, क्योंकि बलूच विद्रोही पहले से ही इस तरह की प्रतिक्रिया के लिए तैयार होंगे. हो सकता है कि ट्रेन हाईजैक भी एक साजिश हो, जिससे पाकिस्तान सेना को हमले के लिए भड़काया जाए. अगर ऐसा हुआ तो विद्रोही अफगानिस्तान और ईरान की शरण में चले जाएंगे और सही वक्त पर फिर से हमला करेंगे.  

इधर, पाकिस्तान की सेना कई मोर्चों पर उलझती जा रही है. वह कश्मीर में आतंकवाद को फिर से बढ़ावा देकर भारत से टकराव की कोशिश कर रही है, जिससे उसे अपनी पूर्वी सीमा पर मजबूत सेना तैनात रखनी होगी. खैबर पख्तूनख्वा में इस्लामी उग्रवाद पहले ही सेना की टेंशन बढ़ा रहा है.  

Advertisement

उधर सुरक्षा एजेंसियां इमरान खान को जेल में संभालने, इस्लामाबाद में अपनी पकड़ बनाए रखने, न्यायपालिका को अपने हिसाब से चलाने, संसद में जबरन कानून पास कराने, मीडिया पर नजर रखने और विरोध की हर आवाज को दबाने में लगी हुई हैं, ताकि शहबाज शरीफ की कठपुतली सरकार को बचाया जा सके.  

इस सबके बीच सिंध में भी एक नया विवाद खड़ा हो रहा है. पंजाब, चोलिस्तान रेगिस्तान को हरा-भरा बनाने के लिए सिंध के पानी को मोड़ रहा है, जिससे सिंध का बड़ा इलाका सूखे की चपेट में आ सकता है. इससे सिंधी जनता में जबरदस्त गुस्सा है.  

ऐसे हालात में पाकिस्तान की सेना अगर बलूचिस्तान में बंदूकें, हेलीकॉप्टर, ड्रोन, टैंक और फाइटर जेट्स से तबाही मचाती है, तो इससे बलूचों की पाकिस्तान और पंजाब के खिलाफ नफरत और बढ़ेगी. इससे और ज्यादा युवा विद्रोहियों की सेना में शामिल होंगे.  

अब हालात ऐसे हो गए हैं कि पाकिस्तान के गृह मंत्री मोहसिन नकवी का यह दावा कि बलूच विद्रोह को एक थानेदार भी संभाल सकता है, पूरी तरह गलत साबित हो गया है. अब तो यह सवाल उठ रहा है कि क्या एक कोर कमांडर भी इस आग को बुझा सकता है?

(सुशांत सरीन ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो हैं. इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement