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संसद पर हमले से जुड़े 5 सवाल, जिनके जवाब में सच छुपा हुआ है

संसद के हमले की बरसी पर रंगीन पटाखे छोड़ने वालों का अपराध फांसी के तख्ते तक पहुंचाने वाला भले न हो, लेकिन पूरी जिंदगी जेल में ही कटेगी. ये सब उनको भी मालूम होगा ही. फिदायीन बनने के लिए बड़ा एक्सचेंज ऑफर होता है, कहीं ये खुद को मुफ्त में नीलाम तो नहीं कर दिये? अभी तो ऐसा ही लगता है.

संसद हमले के आरोपी नौजवानों को दिल्ली भेजने वाला कौन है? संसद हमले के आरोपी नौजवानों को दिल्ली भेजने वाला कौन है?
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 15 दिसंबर 2023,
  • अपडेटेड 4:15 PM IST

13 दिसंबर 2001 को जिन आतंकियों ने संसद पर फिदायीन हमला किया था, और मकसद भी तयशुदा था. लेकिन, संसद पर हमले की बरसी पर 13 दिसंबर, 2023 को नयी संसद की सुरक्षा में सेंध लगाने वाले आरोपियों ने ऐसा क्‍यों किया, यह साफ नहीं हो पा रहा है. जबकि यह साफ है कि ऐसा करने वाले किसी भी शख्‍स का जीवन फिर जहन्नुम होना तय है. गिरफ्तार आरोपी पुलिस रिमांड पर भेजे चुके हैं. दिल्ली पुलिस मामले को आतंकवादी घटना मान कर जांच पड़ताल कर रही है. सभी आरोपियों के खिलाफ IPC की धाराओं और UAPA यानी आतंकवाद विरोधी कानून के तहत मुकदमा दर्ज हुआ है.

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मास्टरमाइंड या हैंडलर है ललित झा?

संसद को नये सिरे से निशाना बनाये जाने के मामले की जांच से जुड़े अफसर ललित झा को मास्टरमाइंड मान कर चल रहे थे. हमले के फौरन बाद ही खबर आयी थी कि लोक सभा के अंदर कूदने वाले दोनों हमलावरों को गिरफ्तार करने के फौरन बाद ही खुफिया अफसरों की टीम उनके घर पहुंच चुकी थी, जबकि मुख्य आरोपी सभी के फोन लेकर फरार हो गया था. 

और ये भी बड़े ताज्जुब की बात है कि जिसे मास्टरमाइंड माना जा रहा था वो दिल्ली से बाहर भी चला गया, और अपने प्लान के हिसाब से लौट भी आया. वो राजस्थान गया किसी होटल में ठहरा भी, और रिपोर्ट के मुताबिक, लौटने से पहले वे सारे फोन तोड़ डाले जो सबूत के रूप में इस्तेमाल हो सकते थे. 

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अब इससे बड़ी हैरानी की बात क्या होगी कि पुलिस बेखबर रहती है, और कथित मास्टरमाइंड खुद चल कर थाने पहुंचता है और सरेंडर कर देता है. ये भी नहीं मालूम कि पुलिसकर्मियों ने देखते ही पहचान भी लिया या उसके ललित झा होने के सबूत मांग रहे थे?

दिल्ली पुलिस का कहना है कि सारे आरोपी एक दूसरे को लंबे समय से जानते थे, और सोशल मीडिया के जरिये संपर्क में बने हुए थे. सरेंडर करने वाले ललित झा के साथ पुलिस ने महेश को भी गिरफ्तार किया है. 

महेश के बारे में बताया जा रहा है कि उसी ने ललित झा को ठहरने के लिए होटल दिलाने में मदद की थी. ललित झा के बारे में बताया जा रहा है कि वो कोलकाता के एक एनजीओ में काम करता था, फिर टीचर बन गया - और ये अब उसका बिलकुल ही नया रूप देखने को मिला है. 

बताते हैं कि ललित झा ने संसद में घुसपैठ और प्रदर्शन के लिए दो प्लान बना रखे थे. प्लान A के फेल हो जाने पर प्लान B भी तैयार था. जब उसकी टीम के दो लोग संसद के भीतर दाखिल हुए तो वो टीवी पर हर अपडेट ध्यान से देख रहा था. 

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ललित झा ने संसद के भीतर दाखिल होने की तैयारी तो पक्की कर ली थी, लेकिन बाहर उसे नीलम और अमोल के संसद के करीब पहुंच पाने को लेकर पक्का यकीन नहीं था. और प्लान बी के तहत उसने उन दोनों की जगह महेश और कैलाश को दूसरे रास्ते से संसद के करीब भेज कर मीडिया अटेंशन लेने की तैयारी कर रखी थी. 

सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात है कि गिरफ्तार किये गये लोगों में से किसी का भी कोई आपराधिक रिकॉर्ड अब तक सामने नहीं आया है. फिल्मी स्टाइल में कुछ करने और कुछ बड़ा करके शोहरत हासिल करने की बात तो समझ में आती है, लेकिन संसद में घुसपैठ कर अपराधी बन जाने की बात यूं ही हजम नहीं हो रही है. 

और जिस तरह से पूरे मामले की साजिश रची गयी है, बगैर किसी पेशेवर अपराधी या शातिराना दिमाक के मुमकिन नहीं है - और यही वजह है कि ललित झा मास्टरमाइंट नहीं, बल्कि कोई मामूली हैंडलर लगता है जो किसी और के कहने पर टास्क पूरे कर रहा था.

नौजवानों को फिदायीन किसने बनाया? 

संसद को नये सिरे से टारगेट किये जाने के बाद से ही राजनीति भी शुरू हो गयी है. लोकसभा सांसद दानिश अली ने दर्शक दीर्घा से लोकसभा में कूदने वाले दो में एक युवक के लोक सभा के पास की तस्वीर सोशल साइट X पर शेयर की है. साथ में उसके जूते की तस्वीर भी है. दानिश अली का दावा है कि वो युवक एक बीजेपी सांसद का मेहमान था. लोक सभा के पास की तस्वीर पर प्रताप सिम्हा का नाम दिखाई दे रहा है. 

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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने माना है कि सुरक्षा में चूक हुई है, लेकिन ये राजनीतिक करने का मुद्दा नहीं है. जब आतंकवादी हमलों के बाद ,सेना के सर्जिकल स्ट्राइक पर राजनीति हो सकती है, तो ये तो अलग ही मामला है. 

नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के अध्यक्ष ललन सिंह ने गिरफ्तार आरोपियों की पहचान को लेकर बीजेपी पर हमला बोला है. ललन सिंह का कहना है, 'भगवान का शुक्र है कि दो लोग जो संसद में घुसे थे, वो मुसलमान नहीं थे... अगर ये आरोपी मुसलमान होते तो बीजेपी तूफान मचा देगी... ये लोग पूरे देश में धार्मिक उन्माद फैला देते.'

एक सवाल ये उठता है कि ये नौजवान ऐसा कदम उठाने को कैसे तैयार हुए? उनके खुद का फैसला रहा, या किसी के बहकावे में आ गये? या क्रांति की आग उनके अंदर धधक रही थी, और किसी ने मौके का फायदा उठा लिया. 

मामले के एक आरोपी सागर शर्मा के घर से एक डायरी भी मिली है. सागर शर्मा के बारे में बताया जा रहा है कि वो लखनऊ में ई-रिक्शा चलाता था. डायरी वो 2015 से लिख रहा है. सागर ने डायरी में लिखा है, घर से विदा होने का समय आ गया है. आगे लिखता है, 'एक तरफ डर है, दूसरी तरफ कुछ भी कर गुजरने की आग.'

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डायरी से सागर शर्मा की मानसिक स्थिति को थोड़ा बहुत समझा जा सकता है, 'काश मैं अपनी स्थिति माता पिता को समझा सकता... ऐसा नहीं है कि मेरे लिए संघर्ष की राह चुनना आसान रहा... हर पल उम्मीद लगाई है... पांच साल मैंने प्रतीक्षा की है कि एक दिन ऐसा आएगा, जब मैं अपने कर्तव्य की ओर बढ़ूंगा... दुनिया में ताकतवर व्यक्ति वो नहीं जो छीनना जानते हैं, ताकतवर व्यक्ति वो है, जो सुख त्यागने की क्षमता रखता है.'

हमलावरों को जन्नत तो मिलने से रही, फिर फिदायीन बनना कैसे कबूल किया

पूरे मामले को देखें तो कई सवाल खड़े होते हैं, जिनके जवाब पूरी जांच पड़ताल और ट्रायल के बाद ही मिल पाएंगे - ये सवाल इसलिए भी उठते हैं क्योंकि किसी का भी कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं हैं, फिर भी इन लोगों ने इतना बड़ा अपराध कर डाला है. 

1. एक महत्वपूर्ण सवाल है कि ये जानते हुए कि इस अपराध के बाद पूरी जिंदगी जेल में ही बितानी होगी, ये लोग आखिर तैयार कैसे हुए? किस बात का लालच रहा? और अगर उनके मन में लालच रहा तो बदले में मिला क्या?

2. कुछ दिन पहले अमेरिका में रह रहे गुरपतवंत सिंह पन्नू ने धमकी भरा एक वीडियो जारी किया था, 'हम संसद पर हमले की बरसी वाले दिन... 13 दिसंबर या इससे पहले संसद की नींव हिला देंगे.' पन्नू ने एक पोस्टर भी जारी किया था जिस पर अफजल गुरू की तस्वीर थी. 22 साल पहले हुए संसद हमला केस में अफजल गुरू को फांसी दी जा चुकी है. 

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हो सकता है खालिस्तानी आतंकी पन्नू ही इस मामले के पीछे हो. लेकिन जो युवक गिरफ्तार किये गये हैं, उनमें कोई भी सिख नहीं है. जो भी युवक गिरफ्तार किये गये हैं, वो खालिस्तान की डिमांड से मोटिवेट हो सकते हैं, ऐसा तो नहीं लगता. 

3. दिल्ली पुलिस ने संसद को टारगेट किये जाने के ताजा मामले को आंतकवादी घटना करार दिया है. इस लिहाज से देखें तो सभी आरोपी फिदायीन का चोला धारण किये हुए लगते हैं. फिदायीन बनने के बदले तो बहुत कुछ मिलता भी है. कुछ बड़ा करने का सपना दिखाने के साथ ही कुछ बड़ी ही पेशकश भी होती है - कुछ मिला भी है क्या? 

4. भूखे पेट क्रांति नहीं होती - सवाल ये भी है कि ललित झा वास्तव में मास्टरमाइंड ही है या किसी बड़ी साजिश का हिस्सा - हरकतों से तो वो एक मामूली हैंडलर ही लगता है. 

5. जिस तरीके से ये साजिश रची गयी है. प्लान ए के साथ प्लान बी भी तैयार किया गया है - सवाल तो ये भी है कि इसके पीछे कौन ताकत काम कर रही है? क्या इसके पीछे कोई पॉलिटिकल एजेंडा भी है?

सबसे बड़ा सवाल है कि हमलावरों के निशाने पर कौन था? सिर्फ सत्ता प्रतिष्ठान या सत्ता पर काबिज राजनीतिक विचारधारा वाले नेता भी?

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