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मोदी ने यूं ही नहीं की अमीर खुसरो की तारीफ, एक तीर से लगाए 4 निशाने

बीजेपी में लोग समझते हैं कि पीएम मोदी लाख सूफी संतों के कार्यक्रमों में जाएं, अमीर खुसरो की तारीफ करें, अजमेर शरीफ के लिए चादर भिजवाएं लेकिन मुसलमानों का वोट बीजेपी को नहीं मिलने वाला है. तो फिर पीएम मोदी क्यों ये सब कर रहे हैं?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ( फाइल फोटो) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ( फाइल फोटो)
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 03 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 5:50 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को नई दिल्ली में जहां-ए-खुसरो के 25वें संस्करण में शिरकत की. मोदी ने यहां सूफी परंपरा और 13वीं सदी के सूफी रचनाकार और संगीतकार अमीर खुसरो की तारीफ करके बहुत से लोगों को चौंका दिया. प्रधानमंत्री के इस कदम से हिंदू कट्टरपंथी ही नहीं मुस्लिम कट्टरपंथी नाराज होंगे.  हालांकि ये कोई पहली बार नहीं था. इसके पहले भी वे सूफी संतों की तारीफ करते रहे हैं. गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर मोदी ने सूफी नेताओं से संपर्क किया था. 2016 के विश्व सूफी फोरम में मोदी ने वैश्विक हिंसा के बीच सूफीज्म की प्रशंसा की थी. 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा ने अकेले उत्तर प्रदेश में 10,000 सूफी दरगाहों के नेताओं से जुड़ने के लिए मुस्लिम बहुल इलाकों में सूफी संवाद शुरू किया था. पर अब पीएम के रूप में उनके हर कदम का कोई न कोई मतलब और संदेश निकाला जाता है. जाहिर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस कदम के भी कई मायने हैं. अगर ध्यान देंगे तो पाएंगे कि पीएम ने यूं ही नहीं उस अमीर खुसरो की तारीफ की, जिन्हें बहुत से हिंदू पसंद नहीं करते हैं.  पीएम मोदी का यह कदम मुख्य रूप से इन 4 मामलों में बहुत महत्वपूर्ण साबित होने वाला है.

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 1-कट्टरवादी मुसलमानों को संदेश 

पीएम मोदी ने अमीर खुसरो की याद में मनाए जा रहे इस आयोजन में सूफीवाद को भारत की बहुलतावादी विरासत बताया. उन्होंने कहा कि सूफी संत कुरान की आयतें पढ़ते थे और वेदों को भी सुनते थे. पीएम मोदी का सूफी सांस्कृतिक कार्यक्रम में दिया गया भाषण सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (BJP) का सूफी परंपरा से जुड़े लोगों तक पहुंचने के लगातार प्रयासों का एक हिस्सा ही माना जाना चाहिए. भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा 2022 से देश भर के सूफी खानकाहों या स्थलों से जुड़े 14 हजार लोगों को साथ लाया है. दूसरी तरफ कट्टर मुसलमान सूफीज्म को पसंद नहीं करता है. यही कारण है कि पाकिस्तान में सूफी संतों के मजारों पर आतंकी हमले होते रहे हैं. सेंटर फॉर इस्लामिक रिसर्च कोलैबोरेशन एंड लर्निंग (CIRCLe) द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, मार्च 2005 से अब तक पाकिस्तान में सूफी संतों को समर्पित मज़ारों को निशाना बनाकर किए गए 29 अलग-अलग आतंकवादी हमलों में 209 लोग मारे गए हैं और 560 घायल हुए हैं. द प्रिंट में छपी एक रिपोर्ट मेंं अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर असमर बेग पीएम मोदी की इस पहल को फूट डालो और राज करो की रणनीति बताते हैं. उनका कहना है कि इस तरह की रणनीति सूफी-गठबंधन वाले बरेलवी और देवबंदियों के बीच तनाव का फायदा उठाती है. 

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उनका कहना है कि भाजपा मुस्लिम एकता को तोड़ने के लिए सरकारी भूमिकाओं में बरेलवी को बढ़ावा देती है. देवबंदियों की तुलना में बरेलवी (जो सूफी परंपराओं पर हावी हैं) को बढ़ावा देकर, पार्टी मुस्लिम राजनीतिक एकता को खंडित करना चाहती है. गौर करने लायक बात यह भी है कि देश में मुसलमानों की कम से कम दो तिहाई जनसंख्या बरेलवी है .

2-बीजेपी में उभरती कट्टरवादी ताकतों को संदेश 

भारतीय जनता पार्टी में एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जो कि हिंदू राष्ट्र की बात तो करता ही है, किसी भी मामले में मुसलमानों के साथ सहभागिता भी नहीं चाहता है. आज की खबर है कि मध्यप्रदेश में कुछ हि्दू संगठनों ने होली की शॉपिंग मुस्लिम दुकानदारों से नहीं करने की अपील की है. इन्हीं लोगों को शांत करने के उद्दैश्य से संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कई बार कहा है कि हर मस्जिद के अंदर मंदिर ढूंढने पर अब रोक लगनी चाहिए. भारतीय जनता पार्टी लगातार समावेशी विकास पर जोर दे रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी क्रम में क्रिसमस पर एक चर्च की भी यात्रा की थी. उत्तर प्रदेश में संभल मस्जिद विवाद को लेकर एक बार फिर हिंदू मुसलमान की राजनीति ने जोर पकड़ी हुई है. दूसरे प्रदेशों जैसे राजस्थान आदि से भी इस तरह की खबरें रुकने का नाम नहीं ले रही हैं. जाहिर है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अजमेर शरीफ को चादर भेजकर और अमीर खुसरो से संबंधित समारोह में शिरकत करके अपनी पार्टी के कट्टरपंथी तत्वों को संदेश देने की कोशिश की है.  

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3-मुसलमानों को जोड़ने से ज्यादा सर्व धर्म समभाव वाली छवि जरूरी 

देश में करीब 15 प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या है. इसके साथ ही दुनिया के नक्शे पर तमाम ऐसे मुस्लिम देश हैं जो भारत के अच्छे मित्र हैं. जाहिर है कि दुनिया के सामने पीएम मोदी की छवि ऐसी होनी चाहिए जो सर्व धर्म समभाव जैसा संदेश देती हो. देश के अंदर भी सेना से लेकर तमाम महत्वपूर्ण मंत्रालयों आदि में मुस्लिम जनसंख्या सेवा में लगी हुई है.देश के हर मुसलमान को यह लगना चाहिए कि उनकी सरकार हिंदू मुसलमान में भेद नहीं करती है. शायद पीएम मोदी की सूफी संतों की तारीफ इस दिशा में असरदार साबित हो.

पर इसका राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल शायद ही संभव हो. क्योंकि बीजेपी में लोग यही समझते हैं कि पीएम मोदी लाख सूफी संतों के कार्यक्रमों में जाएं , अमीर खुसरो की तारीफ करें, अजमेर शरीफ के लिए चादर भिजवाएं बीजेपी को मुसलमानों का वोट नहीं मिलने वाला है. वास्तव में बीजेपी को न मुसलमानों का वोट चाहिए और न ही वो इसके लिए प्रयासरत है. इसका सबसे ताजा उदाहरण यह है कि किसी भी राज्य में मुसलिम वोट पाने के इरादे से भी किसी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट देना मंजूर नहीं है पार्टी को. मतलब साफ है कि दिखावे के दांत और खाने के दांतों के अंतर को समझना होगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी यह पता है कि अगर बहुत ज्यादा मुस्लिम वोटों की चिंता किए तो हिंदू वोट भी बिदक सकते हैं. बीजेपी में ही लाल कृष्ण आडवाणी ने अपने अंतिम दौर में अपनी छवि चमकाने में ही जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष बताने की गलती की थी.

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4-बिहार और बंगाल विधानसभा चुनाव की मजबूरी

बिहार में करीब 18 प्रतिशत और बंगाल में करीब 28  प्र्तिशत के रेशियों मुस्लिम आबादी है. सबसे बड़ी बात यह है कि इन दोनों राज्यों में मुसलमान राजनीतिक तौर पर बहुत जागरूक हैं. जाहिर है कि इनके समर्थन के बिना इन राज्यों में सरकार बनाना मुश्किल है. हालांकि सूफीज्म  के बारे में कुछ मीठे शब्द बोलकर मुसलमानों का समर्थन बीजेपी हासिल नहीं कर सकती है. पर विरोध की आंच जरूर कम कर सकती है. 

बिहार में, जहां सहयोगी नीतीश कुमार की धर्मनिरपेक्ष छवि मुस्लिम मतदाताओं को आकर्षित करती है वहां इस तरह का पहल जरूर काम करेगा. बिहार में राज्य सरकार ऐतिहासिक दरगाहों के सूफी सर्किट को पहले ही बढ़ावा दे रही है. भाजपा को उम्मीद है कि सूफी संबंध ममता बनर्जी के प्रभुत्व को जरूर कुछ कम कर सकते हैं. 
 

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