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नेहरू की चिट्ठी से केसरी की दुर्गति तक... कांग्रेस को आरक्षण-विरोधी साबित करने में कितना कामयाब हुए मोदी?

पीएम नरेंद्र मोदी का आज राज्यसभा में दिया गया भाषण ऐतिहासिक रहा. मोदी के भाषण का सार तत्व यह रहा कि बीजेपी आरक्षण की सबसे बड़ी समर्थक पार्टी है. बीजेपी बदल नहीं रही है बल्कि यह कह सकते हैं कि बीजेपी अब पूर्णतया बदल चुकी है.

पीएम मोदी ने आज बता दिया बीजेपी आरक्षण की सबसे बड़ी समर्थक है पीएम मोदी ने आज बता दिया बीजेपी आरक्षण की सबसे बड़ी समर्थक है
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 07 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 7:29 PM IST

पीएम मोदी की आज राज्य सभा में दी गई स्पीच एक मायने में ऐतिहासिक रही. जो लोग इस भ्रम में हैं कि बीजेपी आरक्षण विरोधी सवर्णों की पार्टी है वो अपना चश्मे पर जमी धूल साफ कर लें. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह कांग्रेस को आरक्षण विरोधी साबित करते हुए बीजेपी को दलितों -आदिवासियों और पिछड़ों का हितैशी साबित किया वह गेम चेंजर है. बीजेपी को पूरी तरह बदलने का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दिया जाता है. पर आज की स्पीच आरक्षण पर बीजेपी की नीति को क्लीयर करने के लिए भी याद की जाएगी. इसमें कोई दो राय नहीं है कि आंबेडकर नहीं होते तो हमारे देश में दलितों और आदिवासियों को आरक्षण नहीं मिलता. यही नहीं पिछड़ों को भी आरक्षण मिलने में देर कांग्रेस के चलते ही हुआ. प्रधानमंत्री मोदी ने आज अपने भाषण में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की चिट्ठी से सीताराम केसरी की दुर्गति तक कांग्रेस पार्टी का जो दलितों और पिछ़ड़ों के प्रति जो रवैया रहा उसका उल्लेख किया. आइए जानते हैं कि पीएम मोदी आरक्षण को लेकर आज क्यों इतना बोलें? क्या वास्तव में कांग्रेस का नजरिया आरक्षण विरोधी रहा है?

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1- पीएम मोदी की इस आक्रामकता के पीछे का शास्त्र

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज जिस तरह आरक्षण पर बैटिंग की है वह ऐतिहासिक रही. सवाल यह उठता है कि मोदी ने कांग्रेस को आरक्षण विरोधी साबित करने के लिए आज इतने तर्क क्यों दिए. दरअसल जिस तरह राहुल गांधी ने सोमवार को 50 प्रतिशत आरक्षण के कैप को खत्म करने का वादा किया था उसका पीएम ने बिना नाम लिए जवाब दे दिया.वैसे भी राहुल गांधी पिछले चुनाव से ही सामाजिक न्याय का नारा लगाते रहे हैं.  उनकी भारत जोड़ो न्याय यात्रा का मकसद भी यही है कि देश को लोगों को यह बताना कि उनके साथ अन्याय हो रहा है . राहुल अभी हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान भी जातिगत जनगणना कराने और बीजेपी को आरक्षण विरोधी बताने में अपनी ऊर्जा खर्च करते रहे हैं पर जनता ने उनकी एक नहीं सुनी.

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मध्यप्रदेश-राजस्थान-छत्तीसगढ में कांग्रेस को भारी पराजय का सामना करना पड़ा. इस बीच यूजीसी का एक लेटर वायरल हो गया जिसके आधार पर कांग्रेस नेताओं ने बीजेपी पर आरोप लगाया कि केंद्र सरकार आरक्षण खत्म करने की साजिश कर रही है. राहुल की हाल की स्पीच में इधर लगातार आरक्षण की बात बढ़ती जा रही है. जिससे साफ लगने लगा है कि विपक्ष 2024 का लोकसभा चुनाव आरक्षण के नाम पर लड़ने जा रही है. शायद यही कारण था कि प्रधानमंत्री आज राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर जवाब देने के बहाने कांग्रेस को आरक्षण विरोधी साबित करने का मौका जाया नहीं किया.

2- पीएम मोदी की दलील, बीजेपी आरक्षण की सबसे बड़ी समर्थक

बीजेपी पर दक्षिणपंथी पार्टी होने का ठप्पा है. पार्टी शुरू से ही परिवार ,संस्कार और पारंपरिक मूल्यों को मानने वाली रही है.राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के बारे में भी यह माना जाता रहा है कि आरक्षण के बजाय यहां प्रतिभा को महत्व देने की बात की होती रही है. कहा जाता है बीजेपी एक चुनाव इस लिए ही हार गई थी क्योंकि ऐन चुनाव के मौके के पहले संघ प्रमुख का एक बयान ऐसा आ गया था जो आरक्षण विरोधी था. हालांकि बाद के दौर में संघ के कई नेताओं ने आरक्षण को जरूरी माना था. हाल ही में संघ के एक बड़े नेता ने माना था कि जब तक हिंदू धर्म में जातियां हैं तब तक आरक्षण जरूरी है. मतलब एक तरीके से आरक्षण को संघ ने भी स्वीकार कर लिया है.

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इसके बावजूद बीजेपी समर्थित तमाम लोगों के सोशल मीडिया पर आरक्षण विरोधी पोस्ट मिल जाएंगी. ये लोग बहुत गर्व से अपने आपको बीजेपी का समर्थक बताते हैं और आरक्षण का विरोध भी करते रहे हैं. पर बुधवार की राज्यसभा में नरेंद्र मोदी की स्पीच हो सकता उनकी आंखें खोल दे.पीएम मोदी ने एक तरह से खुलकर बोल दिया है कि भारतीय जनता पार्टी आरक्षण समर्थक पार्टी है. इतना ही नहीं पीएम मोदी का आज का स्पीच यह भी साबित करता है कि आरक्षण के समर्थन में भारतीय जनता पार्टी देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस से मीलों आगे है. 

3- क्या नेहरू आरक्षण विरोधी थे

'मैं किसी भी आरक्षण को पसंद नहीं करता', पीएम मोदी ने नेहरू की चिट्ठी पढ़कर यह साबित करने की कोशिश की कि कांग्रेस शुरू से ही आरक्षण की विरोधी रही है. अगर बाबा साहब आंबेडकर नहीं होते तो दलितों और आदिवासियों को कभी आरक्षण नहीं मिलता.
पीएम मोदी ने कहा, कांग्रेस इन दिनों जाति की बात कर रही है. क्यों जरूरत पड़ गई इनको, मैं नहीं जानता हूं. पहले उन्हें अपने गिरेबां में झांकने की जरूरत है. दलित, पिछड़े और आदिवासियों की कांग्रेस जन्मजात सबसे बड़ी विरोधी रही है. मैं सोचता हूं कि बाबा साहेब नहीं होते तो एसएसी/एसटी को आरक्षण मिलता या नहीं मिलता. इनकी सोच आज से नहीं, उस समय से ऐसी है, मेरे पास प्रमाण है. मैं आदरपूर्वक नेहरू जी को बहुत याद करता हूं. एक बार नेहरू जी ने मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिखी थी. उन्होंने लिखा कि मैं किसी भी आरक्षण को पसंद नहीं करता और खासकर नौकरी में आरक्षण तो कतई ही नहीं. मैं ऐसे किसी भी कदम के खिलाफ हूं जो अकुशलता को बढ़ावा दें, जो दोयम दर्जे की ओर ले जाए. 

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पीएम मोदी ने नेहरू के बारे में जो बातें कहीं वो ऐसा नहीं है कि पहली बार सामने आईं हैं. इंडियन एक्सप्रेस में छपे एक ऑर्टिकल के अनुसार आंबेडकर ने नेहरू पर मुसलमानों की सुरक्षा के लिए अपना पूरा समय और ध्यान समर्पित करने का आरोप लगाया था. यह कहते हुए कि वह भी मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं, वह अन्य हाशिए पर मौजूद समूहों को ऊपर उठाने में भी विश्वास करते हैं पर क्या उन्होंने इन समुदायों के लिए कभी चिंता दिखाई है? आंबेडकर कहते हैं कि जहां तक मुझे पता है आपने कोई चिंता नहीं दिखाई. आंबेडकर कहते हैं कि ये वे समुदाय हैं जिन्हें मुसलमानों की तुलना में कहीं अधिक देखभाल और ध्यान देने की ज़रूरत है.

4-  कांग्रेस का आरक्षण विरोधी रवैया

नेहरू तो आरक्षण विरोध थे ही ,कांग्रेस भी आरक्षण के खिलाफ रही है . प्रधानमंत्री अपनी स्पीच में इसके तीन उदाहण देते हैं. प्रधानमंत्री कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस ने सात दशकों तक एससी और एसटी को उनके अधिकारों से वंचित रखा. बीजेपी सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त किया, तब जाकर उन्हें  वो अधिकार मिले हैं. जम्मू कश्मीर में उन्हें कई अधिकार नहीं थे. पीएम मोदी ने कहा, एससी समुदाय में सबसे पीड़ित वाल्मीकि समुदाय रहा. उन्हें 7 दशक के बाद भी जम्मू कश्मीर के लोगों की सेवाएं करते रहे, लेकिन स्थानीय मूल निवास का अधिकार तक नहीं दिया गया. मैं आज देश को बताना चाहता हूं कि स्थानीय निकायों में ओबीसी आरक्षण का विधेयक लोकसभा में पारित हो गया है. 

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पीएम मोदी ने कहा, बाबा साहब के विचारों को खत्म करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी. इन्हें भारत रत्न देने की भी तैयारी नहीं थी. बीजेपी के समर्थन से और सरकार बनी तब बाबा साहब को भारत रत्न मिला. इतना ही नहीं, अति पिछड़े समुदाय से आने वाले तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी को उठाकर फुटपाथ पर फेंक दिया गया. वो वीडियो भी उपलब्ध है और उसको देश ने देखा है.  

पीएम मोदी ने सैम पित्रोदा पर हमला बोलते हुए कहा, इनके एक मार्गदर्शक अमेरिका में बैठे हैं, जो पिछले चुनाव में हुआ तो हुआ के लिए फेमस हो गए थे. कांग्रेस के इस परिवार के काफी करीबी हैं. उन्होंने अभी अभी बाबा साहब के योगदान को छोटा करने का भरपूर प्रयास किया. देश में पहली बार एनडीए ने एक आदिवासी बेटी को राष्ट्रपति बनाया है. 

5- कांग्रेस ने हर कोशिश की थी कि आंबेडकर संविधान सभा में न पहुंचे

माना जाता है कि कांग्रेस ने आंबेडकर को संविधान सभा में जाने से रोकने की हर मुमकिन कोशिश की थी. दरअसल आंबेडकर की समाज सुधारक वाली छवि कांग्रेस के लिए चिंता का कारण थी. कांग्रेस समर्थक एक बहुत बड़ा तबका ऐसा था जो समाज सुधार के लिए तैयार नहीं थी. यही वजह थी कि पार्टी ने उन्हें संविधान सभा में लाने के लिए तैयार नहीं थी.

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बंगाल के दलित नेता जोगेंद्रनाथ मंडल ने मुस्लिम लीग की मदद से आंबेडकर को संविधान सभा में पहुंचाया. यही मंडल पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री बने हालांकि बाद में 1950 में वो पाकिस्तान छोड़ भारत आ गए थे.जिन ज़िलों से  चुनकर आंबेडकर संविधान सभा में पहुंचे थे वो हिंदू बहुल होने के बावजूद पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा बन गए. भारतीय संविधान सभा से उनका पत्ता कट गया. बाद में आंबेडकर ने धमकी दी कि अगर वो संविधान सभा में नहीं पहुंचे तो वो संविधान को स्वीकार नहीं करेंगे और इसे राजनीतिक मुद्दा बनाएंगे.
कहा जाता है कि राजनीतिक दबाव में कांग्रेस ने एमआर जयकर की खाली जगह आंबेडकर को लाने का फैसला किया.

6- आरक्षण के लिए आंबेडकर का संघर्ष

जहां आंबेडकर ने सामाजिक अन्याय को बहुत करीब से देखा था क्योंकि वो एक दलित के रूप में पैदा ही हुए थे.नेहरू एक ब्राह्मण के घर पैदा हुए, उन्होंने जातिगत भेदभाव का दंश कभी झेला ही नहीं था. शायद यही कारण था कि नेहरू ने जाति की राजनीति के हानिकारक प्रभावों के बारे में लिखा था, लेकिन वे इस व्यवस्था को पूरी तरह से खत्म करने के पक्ष में नहीं थे जबकि अंबेडकर ने जाति व्यवस्था को खत्म करने की वकालत की थी.

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आंबेडकर के अनुसार पिछड़े वर्गों को राहत देने का एक तरीका अलग निर्वाचन क्षेत्र था. उनकी प्रस्तावित प्रणाली के तहत, न केवल दलितों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व में आरक्षित सीटें मिलती बल्कि वे अकेले दलित-आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में दलित उम्मीदवारों को वोट देने में सक्षम होते. हालांकि अंग्रेजों ने चालबाजी करके यह अधिकार मुसलमानों तक बढ़ा देने की सोची. गांधी ने इसका विरोध किया और आमरण अनशन पर बैठ गए.बाद में पूना पैक्ट के जरिए हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए आरक्षित सीटें आवंटित कीं गईं, लेकिन अलग निर्वाचक मंडल के बदले में दो दौर की चुनाव प्रक्रिया को अपनाया गया. 1947 में कांग्रेस ने आरक्षित सीटों को पूरी तरह समाप्त करने का प्रस्ताव रखा.जिसके विरोध में आंबेडकर ने संविधान सभा से बाहर निकलने की धमकी दी थी.

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