
अक्सर कहा जाता है कि शादी की जोड़ियां स्वर्ग में बनती हैं. या फिर कोयंबटूर में, अगर बीजेपी-एआईएडीएमके का सियासी पुनर्विवाह आखिरकार सफल हो जाता है. तीन मार्च को एआईएडीएमके के कद्दावर नेता एसपी वेलुमणि के बेटे की शादी में एक मेहमान पर सबकी निगाहें थीं. वह तमिलनाडु बीजेपी के अध्यक्ष अन्नामलाई थे. एआईएडीएमके नेताओं ने आईपीएस अधिकारी से राजनेता बने अन्नामलाई का गर्मजोशी से स्वागत किया, लेकिन उनके हाव-भाव से कहीं भी यह नहीं लगा कि 2023 में एआईएडीएमके और बीजेपी का गठबंधन टूटने की वजह वही थे.
अलग चुनाव लड़ने से नुकसान
दिल्ली में 25 मार्च को AIADMK के प्रमुख ई पलानीस्वामी ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की, जिसका मकसद तमिलनाडु में कानून व्यवस्था की स्थिति पर चर्चा करना था. यह एक छिपा हुआ बहाना था, जबकि लगभग सभी जानते थे कि असली एजेंडा तमिलनाडु में 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले दोनों दलों के बीच सुलह की संभावना पर चर्चा करना था. दोनों दलों ने 2021 का विधानसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ा था, लेकिन DMK के नेतृत्व वाले गठबंधन से हार मिली. 2024 के लोकसभा चुनावों में AIADMK ने NDA से अलग होकर चुनाव लड़ा, लेकिन DMK विरोधी वोटों में विभाजन के कारण एमके स्टालिन के नेतृत्व वाले गठबंधन को तमिलनाडु की सभी 39 सीटों पर जीत हासिल हुई.
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सच तो यह है कि अगर 2024 जैसे हालात अगले साल भी दोहराए जाते हैं, तो यह ठीक नहीं है. इसके अलावा, सुपरस्टार विजय की टीवीके युवाओं और महिलाओं के वोटों में सेंध लगा सकती है, जिससे डीएमके विरोधी वोट और बंट सकते हैं. 2021 जैसा लाइनअप कम से कम एनडीए को लड़ने का एक अच्छा मौका देगा. यही कारण है कि अहंकार को निगलते हुए AIADMK अब एनडीए के पाले में लौटने की कगार पर है. AIADMK जानती है कि अब एक और हार पार्टी के लिए जीने-मरने का सवाल होगी. पार्टी को यह भी पता है कि पलानीस्वामी, जयललिता नहीं हैं जो चेन्नई के पोएस गार्डन से शर्तें तय कर सकती हैं.
AIADMK का सिकुड़ता दायरा
साल 2023 में सीएन अन्नादुरई और जयललिता पर अन्नामलाई के बयानों ने पार्टी नेतृत्व को एनडीए को अलविदा कहने के लिए उकसाया था. तो क्या अब सबकुछ भुला दिया गया है? इसका जवाब है हां, क्योंकि आज एआईएडीएमके की स्थिति बहुत खराब है और पलानीस्वामी ने यह साफ कर दिया है कि डीएमके को हराना उनकी प्राथमिकता है. साल 2021 और 2024 के चुनाव इस बात के गवाह हैं कि एआईएडीएमके अब पश्चिमी तमिलनाडु की पार्टी बनकर रह गई है और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण दक्षिणी तमिलनाडु में उसकी मौजूदगी कम हो गई है.
इसका एक कारण यह है कि ओ पन्नीरसेल्वम और टीटीवी दिनाकरन जैसे प्रमुख थेवर समुदाय के नेताओं को पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया. नतीजा यह हुआ कि एआईएडीएमके उन लोकसभा क्षेत्रों में तीसरे स्थान पर रही, जहां से इन नेताओं ने चुनाव लड़ा था. उदाहरण के लिए थेनी में दिनाकरन दूसरे नंबर पर रहे, जिससे एआईएडीएमके उम्मीदवार तीसरे स्थान पर पहुंच गए. इसी तरह रामनाथपुरम में दूसरे स्थान पर रहे ओ पन्नीरसेल्वम एआईएडीएमके उम्मीदवार से 2.43 लाख से ज्यादा वोटों से आगे थे. ईपीएस और ओपीएस-दिनाकरन के बीच रिश्ते नहीं हैं, यह तमिलनाडु में सियासी रहस्य है, लेकिन आज जैसी स्थिति है, एआईएडीएमके को यह एहसास हो गया है कि राज्य के पॉलिटिकल थियेटर में यह डार्विन के 'योग्यतम का अस्तित्व' नहीं है, बल्कि योग्य और लचीले का अस्तित्व वाला सिद्धांत है.
अन्नामलाई से कैसे होगी सुलह
AIADMK नेतृत्व अभी भी यह सुनिश्चित करने की कोशिश करेगा कि तमिलनाडु में एनडीए अन्नामलाई के नेतृत्व वाली राजनीतिक ताकत के रूप में सामने न आए. पिछले कुछ महीने में तमिलनाडु में बीजेपी अपने ताकत से ज़्यादा प्रदर्शन कर रही है और धारणा यह है कि वही वास्तविक विपक्ष है, कम से कम सोशल मीडिया पर तो यही है. चुनावी साल में ईपीएस इस तरह की धारणा को ज़मीन पर हावी होने नहीं दे सकते. यह अहम है कि अमित शाह के साथ अन्नामलाई चर्चा का हिस्सा नहीं थे और ईपीएस-शाह की मीटिंग के बाद ही वे अपने पार्टी नेतृत्व से मिलेंगे. यह मुमकिन है कि अन्नामलाई की ताकत को बेअसर करने के लिए चुनावों से पहले एक कॉर्डिनेशन कमेटी का गठन किया जा सकता है. AIADMK आदर्श रूप से आंध्र प्रदेश जैसी स्थिति चाहेगी जहां टीडीपी राज्य में गठबंधन की साफ तौर पर अगुवाई कर रही थी.
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लेकिन अगर आज तमिलनाडु में बीजेपी को एक राजनीतिक ताकत के रूप में देखा जाता है, तो इसका एक बड़ा श्रेय अन्नामलाई को जाता है. उनके समर्थक और विरोधी दोनों हैं और उन्हें पूरी तरह से दरकिनार करना बीजेपी के हितों के खिलाफ होगा. हालांकि, एनडीए इस बात से चिंतित होगा कि बीजेपी और एआईएडीएमके दोनों का नेतृत्व गौंडर समुदाय के दो नेता अन्नामलाई और ईपीएस के हाथों में होने से जनता कैसी प्रतिक्रिया देगी.
इन मुद्दों पर क्या होगा स्टैंड
क्या मल्टीस्टारर एनडीए जिसमें पीएमके और टीएमसी (तमिल मनीला कांग्रेस) भी शामिल होंगे, कमाल दिखा पाएगा? कागज पर तो ऐसा ही है. लेकिन असली चुनौती मतदाताओं को यह समझाना होगा कि मुस्कुराहटें सिर्फ़ कैमरों के लिए नहीं हैं. इससे भी बड़ी चुनौती जयललिता के राजनीतिक शिष्यों को सियासी कामकाज के लिए साथ लाने की होगी. 2021 की दौड़ में बीजेपी चाहती थी कि ईपीएस पार्टी में ओपीएस को शामिल करें, लेकिन अपील ठुकरा दी गई. क्या ईपीएस अब भी इस पर अड़े रहेंगे, यह बड़ा सवाल है.
आखिर में, एनडीए अब डीएमके शासन के तहत कानून और व्यवस्था की स्थिति पर ध्यान केंद्रित करना चाहेगा, स्टालिन ने भाषा विवाद और परिसीमन को चतुराई से सामने रखा है और ये मुद्दे भावनाओं को भड़काने के लिए काफी हैं. अगर एआईएडीएमके ऐसी पार्टी के रूप में सामने आती है जो इन विवादास्पद मुद्दों पर बीजेपी के फरमान को स्वीकार करती है, तो यह उसके खिलाफ काम करेगा. गठबंधन बनाने का मतलब होगा कि ईपीएस को रस्सी पर चलने के लिए तैयार रहना होगा.