
कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी नि:संदेह केंद्र सरकार को घेरने में कामयाब हुए हैं. पर जिस तरह वो आंख मूंदकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी पर हमले करते हैं उससे कई बार कांग्रेस के लीजेंड्री नेताओं के फैसलों और पार्टी के गुडवर्क की भी मिट्टी पलीद कर देते हैं. लेटरल एंट्री को लेकर जिस तरह का विरोध अचानक राहुल गांधी ने शुरू किया वह भी कुछ ऐसा ही है. लेटरल एंट्री की शुरुआत कांग्रेस के समय ही हुई और कांग्रेस ने इसका बहुत बढिया उपयोग भी किया. राहुल गांधी के विरोध को देखते हुए केंद्र सरकार ने मंगलवार को लेटरल एंट्री के विज्ञापन पर रोक लगा दी है. कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह ने यूपीएससी चेयरमैन को पत्र लिखकर विज्ञापन पर रोक लगाने के आदेश दिए. सूचना दी गई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर सीधी भर्ती के विज्ञापन पर रोक लगा दी गई है. कारण बताया गया है कि प्रधानमंत्री का विश्वास है कि लेटरल एंट्री हमारे संविधान में निहित समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के समान होनी चाहिए, विशेष रूप से आरक्षण के प्रावधानों के संबंध में किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए.
1- कांग्रेस के समय लेटरल एंट्री से आए लोग मील का पत्थर साबित हुए
कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार सबसे पहले लेटरल एंट्री कॉन्सेप्ट लेकर आयी थी. साल 2005 में दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन किया गया और वरिष्ठ कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली इस आयोग के अध्यक्ष थे. ‘कार्मिक प्रशासन का नवीनीकरण-नई ऊंचाइयों को छूना’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में आयोग की एक प्रमुख सिफारिश यह थी कि उच्च सरकारी पदों जिसके लिए विशेष ज्ञान और कौशल की आवश्यकता होती है, उन पर लेटरल एंट्री शुरू की जाए. पर अब राहुल गांधी इसके खिलाफ खम ठोंककर खड़े हैं. राहुल को यह पता है कि मनमोहन सिंह जिन्हें इंदिरा राज में 1971 में तत्कालीन विदेश व्यापार मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के रूप में लाया गया वह एक लेटरल एंट्री के जरिए ही संभव हुआ था. बाद में वे वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री भी बने. अन्य प्रमुख लोगों में टेक्नोक्रेट सैम पित्रोदा और वी. कृष्णमूर्ति, अर्थशास्त्री बिमल जालान, कौशिक बसु,, अरविंद विरमानी, रघुराम राजन और अहलूवालिया, आरजी पटेल, आरवी शाही का नाम शामिल है. यहां तक कि इंफोसिस से जुड़े नंदन नीलेकणी को भी आधार से जुड़े UIDAI का चैयरमेन बनाया गया था. और सबसे बड़ी बात यह है इन सभी लोगों ने वो काम किए हैं जिन पर आज भी उंगली उठाना संभव नहीं है. ये सभी लोग किसी आरक्षण या कोटे से नहीं आए थे. संभव है कि आरक्षण या कोटा अनिवार्य कर दिया गया होता तो इन लोगों की एंट्री भी नहीं हो पाती.
2-लेटरल एंट्री से भरी हुई थी सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली नेशनल एडवाइजरी काउंसिल
यूपीए सरकार की भी अपनी उपलब्धिया रहीं हैं. इनसे इनकार नहीं किया जा सकता है. राहुल गांधी अगर यूपीए सरकार को एनडीए सरकार से बेहतर मानते हैं तो उसके पीछे कौन लोग काम कर रहे थे ये भी उन्हें समझना होगा. वरिष्ठ पत्रकार और विचारक दिलीप मंडल लिखते हैं कि यूपीए सरकार की नेशनल एडवाइज़री कौंसिल, ये भारत के इतिहास की सबसे बड़ी लेटरल एंट्री थी, जिसने दस साल तक देश पर सचमुच में राज किया. इसके शिखर पर सोनिया गांधी थीं. सारे फ़ैसले यहीं हुए.
यह सलाहकार परिषद सुपर कैबिनेट की तरह काम करती थी. इसमें मिहिर शाह, नरेंद्र जाधव, आशीष मंडल, प्रमोद टंडन, दीप जोशी, फराह नकवी, प्रोफेसर एमएस स्वामीनाथन, ज्या द्रेज, हर्ष मंदर, माधव गाडगिल, अरुणा रॉय जैसे लोग शामिल थे. इस तथाकथित सुपर कैबिनेट की आलोचना भी होती थी.मनमोहन सरकार के अधिकतर फैसले यहीं से होते थे. जैसे मनरेगा, खाद्य सुरक्षा बिल, शिक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार जैसे कानून लाने का सुझाव यहीं से आए थे. लेकिन ये सभी फैसले यूपीए सरकार के लिए मील का पत्थर साबित हुए .जिन पर कांग्रेस आज भी गर्व कर सकती है. इस सलाहकार परिषद में कोई भी नियुक्ति आरक्षण के आधार पर नहीं हुई. अब राहुल गांधी कहते हैं लेटरल एंट्री में भी आरक्षण होना चाहिए. तो क्या वो सीधे अपनी मां के फैसले को नकार रहे हैं?
बीजेपी सासंद सुधांशु त्रिवेदी कहते हैं कि राहुल गांधी और उनके खानदान की आरक्षण और SC-ST, OBC को लेकर जो विरासत है वो किसी से छिपी हुई नहीं है और उनकी अज्ञानता भी किसी से छिपी नहीं है. 'मैं राहुल गांधी से पूछना चाहता हूं कि हमारे कैबिनेट के जो सचिव बने हैं वो किस बैच के हैं? उन्हें न पता हो तो हम बताते हैं कि वे 1987 बैच के हैं. जब उनकी पार्टी और उनके पिता जी की सरकार थी. उन्होंने क्यों OBC को आरक्षण नहीं दिया था?'
3-सरकार के यू टर्न के बाद राहुल क्या कह रहे हैं
सरकार के लेटरल एंट्र के फैसले पर यू-टर्न के बाद कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की प्रतिक्रिया सामने आई है. राहुल गांधी ने कहा, 'संविधान और आरक्षण व्यवस्था की हम हर कीमत पर रक्षा करेंगे. भाजपा की ‘लेटरल एंट्री’ जैसी साजिशों को हम हर हाल में नाकाम कर के दिखाएंगे. मैं एक बार फिर कह रहा हूं - 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा को तोड़ कर हम जातिगत गिनती के आधार पर सामाजिक न्याय सुनिश्चित करेंगे. जय हिन्द.'
दरअसल राहुल गाधी पिछड़ों के आरक्षण और जाति जनगणना जैसी बातों पर जितना बीजेपी को घेरेंगे उतना ही कांग्रेस के समय की खामियां उजागर होंगी. ये बात अभी पिछड़ी जाति के बहुत से लोगों को पता नहीं होगी कि मंडल कमीशन की रिपोर्ट इंदिरा गांधी के समय आ गई थी पर उन्होंने लागू नहीं की. राजीव गांधी भी प्रधानमंत्री बनने के बाद इस रिपोर्ट को दबाए रखे . 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की जब सरकार बनी तो मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू हो सकी. उसके बाद यूपीए की सरकार 10 साल तक रही पर जाति जनगणना की रिपोर्ट जारी नहीं हो सकी. आज भी कर्नाटक में जाति जनगणना की रिपोर्ट धूल खा रही है. राजस्थान-मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार रही पर जाति जनगणना नहीं हो सकी. छत्तीसगढ़ में इंटरनल जाति जनगणना हुई पर उसे भी कांग्रेस सरकार ने जारी नहीं किया.राहुल से ये जरूर पूछा जाएगा कि NEET ऑल इंडिया सीट में ओबीसी कोटा यूपीए सरकार ने क्यों लागू किया. जाहिर है जब जब राहुल जाति जनगणना और पिछड़ों के आरक्षण की बात करेंगे तब तब ये बातें उनसे पूछी जाएंगी.