
जनसुराज नेता प्रशांत किशोर कंबल विवाद के बावजूद छात्रों के आंदोलन से जुड़े होने की कोशिश कर रहे हैं. छात्रों के आंदोलन को तो तेजस्वी यादव और पप्पू यादव का भी सपोर्ट हासिल है. आंदोलनकारी छात्र बीपीएससी यानी बिहार लोकसेवा आयोग की परीक्षा रद्द करने की मांग कर रहे हैं.
सरकार ने परीक्षा रद्द तो की है, लेकिन सिर्फ एक सेंटर की. और, अपडेट ये है कि वहां 4 जनवरी को दोबारा परीक्षा होने जा रही है.
आंदोलन कर रहे छात्रों पर पानी की बौछार और लाठीचार्ज से पहले मौके से रफू-चक्कर होने जाने और कंबल देने के लिए धौंस जमाने को लेकर निशाने पर आये प्रशांत किशोर जैसे तैसे विवादों से थोड़े उबरे हुए लग रहे हैं - और अब वो छात्रों के साथ धरना पर बैठने वाले हैं, जिसकी घोषणा प्रशांत किशोर ने पहले ही कर रखी है. प्रशांत किशोर ने बिहार सरकार को छात्रों की मांगें पूरी करने के लिए 48 घंटे का अल्टीमेटम दे रखा है.
छात्रों के आंदोलन के बहाने प्रशांत किशोर फिलहाल तो नीतीश कुमार को टार्गेट कर रहे हैं, लेकिन जनसुराज अभियान की शुरुआत से ही वो तेजस्वी यादव को नौवीं फेल बताते हुए निशाना बनाते रहे हैं - ध्यान देने वाली बात ये है कि नीतीश और तेजस्वी को होने वाले नुकसान का सीधा मतलब बीजेपी को फायदा ही होता है.
1. बीजेपी को बिहार विधानसभा चुनाव में फायदा मिलना इस बात पर निर्भर करता है कि प्रशांत किशोर की मुहिम का असर कितना हो पाता है.
प्रशांत किशोर शुरू से ही गांव गांव पहुंचकर बिहार के लोगों को बता रहे हैं कि कैसे लालू यादव और नीतीश कुमार की सरकारों में उनको सिर्फ ठगा गया है.
प्रशांत किशोर लोगों को समझाते आ रहे हैं कि नेताओं ने जो भी किया, सिर्फ अपने फायदे के लिए किया. बिहार के लोगों के बच्चों के लिए कुछ नहीं किया.
कहने को तो प्रशांत किशोर लोगों से यही कहते हैं कि वे जनसुराज की सरकार बनवाएं, तभी बिहार बदलेगा. पहली बार में ही उपचुनावों में जनसुराज के उम्मीदवारों को जितना वोट मिला है, वो कम नहीं है - लेकिन आने वाले चुनाव में जीत की गारंटी भी नहीं है.
प्रशांत किशोर खुद भले ही कंबल का एहसान जताकर अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार लेते हों, लेकिन उनके अभियान का फायदा बीजेपी को तो कुछ न कुछ मिल ही सकता है.
अगर वो कुछ युवाओं को भी नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के खिलाफ भड़का देते हैं, तो विकल्प बन कर खड़ी बीजेपी फायदा तो उठा ही लेगी - लेकिन कितना? अभी सबसे बड़ा सवाल यही है.
2. एक बात तो पक्की है, नीतीश का कमजोर होना बीजेपी के लिए फायदेमंद है - लेकिन, ये बात भी तब ही लागू होती है, जब नीतीश कुमार एनडीए में रहें. वरना, महागठबंधन में चले गये तो उधर की ताकत बढ़ा देंगे, और बीजेपी देखती रह जाएगी.
नीतीश कुमार पर डोरे तो डाले ही जा रहे हैं. तेजस्वी यादव कह रहे हैं कि नीतीश कुमार के लिए दरवाजे बंद हो चुके हैं, लेकिन लालू यादव मैसेज दे रहे हैं कि नीतीश के लिए तो दरवाजे कभी बंद ही नहीं रहे.
2020 के चुनाव में बीजेपी के फायदे के लिए चिराग पासवान ने नीतीश कुमार को कमजोर किया, और फिलहाल करीब करीब वैसा ही काम प्रशांत किशोर कर रहे हैं.
3. तेजस्वी यादव के वोट बैंक में बंटवारे से भी बीजेपी को फायदा होगा. प्रशांत किशोर तो पहले से ही मुस्लिम समुदाय पर डोरे डाल रहे हैं - अगर मुस्लिम वोट बंटा तो आरजेडी को नुकसान होना तय है - और ऐसा हुआ तो सीधा फायदा बीजेपी को भी मिलेगा.
4. बीजेपी की एक ही मुश्किल है कि वो नीतीश कुमार की सत्ता में हिस्सेदार है. लेकिन, रणनीति ये है कि अच्छी चीजों का क्रेडिट बीजेपी खुद ले, और गलतियों की जिम्मेदारी नीतीश कुमार पर थोप दे - प्रशांत किशोर की मुहिम से बदली फिजां में अगर बीजेपी ने नीतीश कुमार से खुद को अलग पेश कर दिया तो फायदे में रहेगी ही.
5. बिहार में बीजेपी का चेहरा कौन है? बीजेपी की तरफ से देखें तो अब भी तस्वीर साफ नहीं है.
2022 में नीतीश कुमार के एनडीए छोड़ कर चले जाने के बाद अमित शाह ने कहा था कि 2025 में बीजेपी का अपना मुख्यमंत्री होगा. और, तब ये भी बताया था कि 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी अपना सीएम कैंडीडेट घोषित कर देगी, लेकिन 2024 में नीतीश कुमार के फिर से लौट आने के कारण सारी चीजें बदल गईं.
हाल ही में अमित शाह ने बिहार में भी महाराष्ट्र फॉर्मूला लागू करने के संकेत दिये थे, लेकिन नीतीश कुमार के दबाव बनाने पर बिहार बीजेपी की तरफ से बोल दिया गया है कि नीतीश ही एनडीए के नेता रहेंगे - फर्क बस ये है कि बीजेपी संसदीय बोर्ड का फैसला आना अभी बाकी है.