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प्रशांत किशोर से उम्मीदवार चुनने में गलतियां क्यों हो रही हैं? अभी तो ये शुरुआत ही है | Opinion

प्रशांत किशोर कहां चुनावी रणनीति के माहिर माने जाते रहे हैं, और कहां बिहार उपचुनाव में उनकी काबिलयत का मजाक बन गया है. जब 4 सीटों के चुनाव में ये हाल है, तो तब क्या होगा जब 2025 में विधानसभा के चुनाव होंगे?

क्या प्रशांत किशोर को चुनावी रणनीति बनाने और राजनीति करने का फर्क समझ में आने लगा है? क्या प्रशांत किशोर को चुनावी रणनीति बनाने और राजनीति करने का फर्क समझ में आने लगा है?
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 25 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 2:56 PM IST

प्रशांत किशोर से जितनी गलतियां बिहार उपचुनाव की 4 सीटों पर चुनाव लड़ने के दौरान हो रही हैं, उतनी तो दिल्ली की 60 सीटों पर चुनाव लड़ते हुए अरविंद केजरीवाल ने भी नहीं की थी - और प्रशांत किशोर के मुकाबले देखा जाये तो अरविंद केजरीवाल तो नौसीखिये थे. 

आखिर प्रशांत किशोर को हो क्या गया है? क्या जन सुराज यात्रा के दौरान वो पुरानी सारी बातें भूल गये हैं. या, जिन लोगों पर अपना सलाहकार बनाये हुए हैं, वे गलत फीडबैक दे रहे हैं. ये भी सुनने में आया है कि ये उपचुनाव भी वो अपनी पुरानी टीम और कैंपेन एजेंसी IPAC के भरोसे ही लड़ रहे हैं -  लेकिन सवाल ये कि गलतियां किस लेवल पर हो रही हैं?

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बिहार में हो रहे 4 सीटों के उपचुनाव में जिन दो सीटों पर जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार बदले गये हैं, दोनो एक दूसरे से बिलकुल अलग हैं - और दोनो ही अलग अलग तरह की चूक की तरफ इशारे कर रहे हैं. 

बेलागंज का बवाल और बदला उम्मीदवार

बेलागंज से जन सुराज के नये उम्मीदवार का नाम जानने से पहले उन घटनाओं के बारे में जान लेना जरूरी है, जो पहली बार कैंडिडेट की घोषणा के वक्त हुई थीं. हुआ ये कि गया में उम्मीदवारों के चयन के लिए जन सुराज की मीटिंग बुलाई गई थी. 

ये बात तो पहले से ही समझ में आ गई थी कि प्रशांत किशोर बेलागंज से किसी मुस्लिम उम्मीदवार को ही टिकट देने जा रहे हैं. लेकिन, जैसे ही जन सुराज के उम्मीदवार की घोषणा हुई, टिकट के दावेदार नेताओं के समर्थक शोर मचाने लगे - प्रशांत किशोर ने अपनी तरफ से शान्ति बनाये रखने की अपील की थी, लेकिन कोई सुनने को तैयार हो तब तो.

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जब हंगामा नहीं थमा तो प्रशांत किशोर ने थोड़ा सख्त रुख भी अपनाया और बोले, जन सुराज पार्टी किसी के दबाव में काम नहीं करती है. किसी पर कोई असर नहीं हुआ, बल्कि नारेबाजी के बीच कुर्सियां भी चलने लगीं.

बेलागंज विधानसभा सीट के लिए जन सुराज पार्टी 4 नामों पर विचार कर रही थी - मो. अमजद हसन, प्रो. खिलाफत हुसैन, मो. दानिश मुखिया और प्रो. सरफराज खान शामिल थे. अपने हिसाब से प्रशांत किशोर हीरे ही खोज कर लाये थे. 

तभी ये भी बताया गया कि अमजद हसन ही सबसे ज्यादा लोगों की पसंद हैं, और बताते हैं कि ये बात प्रशांत किशोर के सर्वे में भी सामने आई थी. मीटिंग चल रही थी, तभी दानिश मुखिया ने अमजद हसन के सपोर्ट में अपना नाम वापस ले लिया. उनके बाद सरफराज खान ने भी अपनी दावेदारी वापस ले ली. बचे अमजद हसन और खिलाफत हुसैन - और मुकाबला दोनो के बीच रह गया. 

समर्थकों के शोर के बीच ही अमजद हसन ने आगे आकर ऐलान किया कि वो जन सुराज पार्टी के प्रति समर्पित हैं, और खिलाफत हुसैन के नाम का प्रस्ताव रखते हैं. हंगामा फिर भी नहीं थमा, और प्रशांत किशोर को बीच में ही, बगैर कोई फैसला लिया वहां से जाना पड़ा - और बाद में प्रोफेसर खिलाफत हुसैन को बेलागंज से जन सुराज पार्टी का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया. 

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लेकिन, एक बार फिर बदलाव हुआ है, और बेलागंज से अमजद हसन को ही आधिकारिक उम्मीदवार घोषित किया गया है. देखा जाये तो इतनी भी देर नहीं हुई है, नामांकन दाखिल किये जाने से पहले ही ये सब हो गया है, लेकिन लोगों में मैसेज क्या जा रहा है. वो मैसेज ही महत्वपूर्ण है. 

सवाल सिर्फ ये है कि जब अमजद हसन लोगों को भी पसंद थे, और सर्वे में भी उनका नाम सबसे ऊपर था, तो प्रशांत किशोर ने प्रोफेसर खिलाफत हुसैन को चुनाव लड़ाने का फैसला क्यों किया? और अगर प्रशांत किशोर ने सोच समझ कर ही फैसला लिया था, तो फिर उसे बदलने की जरूरत क्यों पड़ी?

क्या ये सब आईपैक करा रहा है

कहते हैं, तरारी से लेफ्टिनेंट जनरल श्रीकृष्ण सिंह का नाम प्रशांत किशोर की पुरानी संस्था IPAC ने ही सुझाया था - और न तो प्रशांत किशोर ने पूछा और न ही आईपैक की तरफ से बताया गया कि श्रीकृष्ण सिंह का नाम तो बिहार की वोटर लिस्ट में है ही नहीं. 

और हैरानी की बात तो ये भी है कि खुद श्रीकृष्ण सिंह को भी ये नहीं मालूम था कि विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए उस राज्य की मतदाता सूची में उम्मीदवार का नाम होना जरूरी है. श्रीकृष्ण सिंह की तारीफ में कसीदे पढ़ते वक्त तो प्रशांत किशोर ऐसे बता रहे थे कि श्रीकृष्ण सिंह से काबिल बिहार में कोई नहीं है. 

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प्रशांत किशोर तो विरोधी राजनीतिक दलों को चैलेंज तक कर डाला था कि कोई भी श्रीकृष्ण सिंह से काबिल उम्मीदवार तरारी के मैदान में उतार दे तो वो उसी के लिए कैंपेन भी करने लगेंगे - लेकिन वही प्रशांत किशोर तरारी से अब सामाजित कार्यकर्ता किरण सिंह को आधिकारिक उम्मीदवार घोषित किया है, क्योंकि श्रीकृष्ण सिंह बिहार के वोटर हैं ही नहीं. 

चुनावों के दौरान उम्मीदवार बदलना आम बात है. लोकसभा चुनाव 2024 में तो लगा जैसे समाजवादी पार्टी प्रत्याशी बदलने का रिकॉर्ड ही बना डालेगी. बीएसपी में भी ऐसा होता रहा है, और बाकी राजनीतिक दलों में भी. ऐसे हर मामले में ज्यादातर राजनीतिक दलों की रणनीति होती है - ऐसे भी वाकये याद नहीं आते हैं जब उन राजनीतिक दलों ने भी अपने प्रत्याशी बदले हों, जिनके कैंपेन प्रशांत किशोर संभाल चुके हैं. 

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