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प्रियंका गांधी को लोकसभा चुनाव लड़ाने का सही समय आ गया है, लेकिन कहां से?

राहुल गांधी कौन सी सीट छोड़ेंगे और कौन सी पास रखेंगे, फैसला उनको करना है. ये भी उन पर ही निर्भर करता है कि फैसला वो अपने हिसाब से लेते हैं या अपनी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा के हिसाब से - लेकिन ये तो कहा जा सकता है कि प्रियंका गांधी के लोकसभा चुनाव लड़ने का मौका आ चुका है.

राहुल गांधी को रायबरेली और अमेठी में से एक सीट छोड़नी ही है - लेकिन देखना ये है कि वो फैसला अपने हिसाब से लेते हैं या प्रियंका गांधी के? राहुल गांधी को रायबरेली और अमेठी में से एक सीट छोड़नी ही है - लेकिन देखना ये है कि वो फैसला अपने हिसाब से लेते हैं या प्रियंका गांधी के?
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 05 जून 2024,
  • अपडेटेड 2:54 PM IST

पांच साल ज्यादा नहीं होते, और कम भी नहीं होते. जाने कितनों की तो पूरी जिंदगी बीत जाती है, कामयाबी की स्वाद चखने के इंतजार में - प्रियंका गांधी वाड्रा को पहली कामयाबी का स्वाद चखने में पूरे पांच साल लगे हैं.

2019 के आम चुनाव में प्रियंका गांधी को कांग्रेस महासचिव बनाकर पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन 'प्रथम ग्रासे...' वाला हाल हो गया - राहुल गांधी अमेठी से चुनाव हार गये. 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी प्रियंका गांधी को हार का मुंह देखना पड़ा - और उसके बाद तो ऐसा लगने लगा जैसे वो यूपी की राजनीति को अलविदा ही कह देंगी. 

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लेकिन वायनाड में वोटिंग खत्म होने के बाद जब अमेठी और रायबरेली के लिए कांग्रेस उम्मीदवारों की घोषणा हुई तो साफ हो गया कि प्रियंका गांधी लौटने वाली हैं. और लौटीं भी, राहुल गांधी और केएल शर्मा का चुनाव कैंपेन संभालने के लिए. 

कांग्रेस की अमेठी में वापसी और रायबरेली को बरकार रखने के बाद प्रियंका गांधी सही मायने में स्टार कैंपेनर बन कर उभरी हैं - और उनके लोकसभा चुनाव लड़ने का समय भी आ चुका है. 

जयराम रमेश बता ही चुके हैं कि संसद तो प्रियंका गांधी उपचुनाव लड़ कर कभी भी संसद पहुंच सकती हैं, और ये इशारा तो कांग्रेस महसचिव पहले ही दे चुके हैं. अब तो ये राहुल गांधी के फैसले पर निर्भर करता है कि वो कौन सीट अपने पास रखते हैं. जो सीट राहुल गांधी छोड़ेंगे प्रियंका गांधी चाहें तो खुद भी मैदान में उतर सकती हैं.

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प्रियंका गांधी की तुलना पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से होती रही है, और उनको कांग्रेस का ट्रंप कार्ड माना जाता है - क्या कांग्रेस के मन में अब भी कोई सवाल चल रहा है. 

ट्रंप कार्ड चलने का सही वक्त कैसा होता है?

यूपी चुनाव के दौरान प्रियंका गांधी ने नारा दिया था, लड़की हूं... लड़ सकती हूं. प्रियंका गांधी लड़ीं भी, लेकिन लड़ाई हार गईं. 

प्रियंका गांधी को लेकर तो नहीं, लेकिन राहुल गांधी के लिए तब बीजेपी नेता स्मृति ईरानी ने कहा था, लड़का है, पर लड़ नहीं सकता. 

प्रियंका गांधी ने दोनों सवालों का जवाब अपने कैंपेन से दे दिया है. स्मृति ईरानी अब चाहे अमेठी के लोगों को कोसें, या अपनी किस्मत को. या फिर यूपी बीजेपी में जिसे वो जिम्मेदार मानती हों. 'खेला' हो चुका है. अभी तो खत्म भी हो चुका है.

प्रियंका गांधी ने चुनाव कैंपेन भी जबरदस्त तरीके से किया. रायबरेली में ही नेहरू को भी याद किया, और इंदिरा गांधी की हार का जिक्र भी. वो रायबरेली के लोगों को मैसेज देना चाहती थीं, जैसे इंदिरा गांधी को आपने तब सबक सिखाया था, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी सिखाइये. लोगों ने उनकी बात मान भी ली. प्रियंका गांधी का भाषण अमेठी तक पहुंच रहा था, और असर भी कर रहा था. 

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प्रधानमंत्री मोदी के मंगलसूत्र वाले बयान का भी प्रियंका गांधी ने अपने तरीके से जवाब दिया था. पूछा कि 55 साल में कांग्रेस ने किसी का सोनना या मंगलसूत्र छीना क्या? 

और ऐन उसी वक्त याद भी दिलाया, 'मेरी मां का मंगलसूत्र इस देश के लिए कुर्बान हुआ.'

सवाल भी उठाया, 'जब मेरी बहनों को नोटबंदी के चलते अपने मंगलसूत्र गिरवी रखने पड़े, तब प्रधानमंत्री जी कहां थे... प्रधानमंत्री जी तब कहां हैं जब कर्ज तले दबे किसान की पत्नी को अपना मंगलसूत्र बेचना पड़ता है... प्रधानमंत्री जी ने मणिपुर की उस महिला के बारे में क्यों कुछ नहीं बोला जिसे निर्वस्त्र करके घुमाया गया... महंगाई ने आज कितनों के मंगलसूत्र गिरवी रखवा दिए हैं.' 

रायबरेली में चुनाव भले ही राहुल गांधी जीते हों, लेकिन बहुत हद तक क्रेडिट तो प्रियंका गांधी के सफल कैंपेन को भी जाता है. और अमेठी में भी बदला तो प्रियंका गांधी ने ही लिया है.

जीत का श्रेय तो संयुक्त रूप से भाई-बहन की जोड़ी को जाता है - और कुछ कुछ इस बार यूपी के लड़कों को भी.

आखिर ट्रंप कार्ड चलने का इससे सही वक्त क्या हो सकता है?

लेकिन रायबरेली से या वायनाड से?

चुनावों में जीत के बाद प्रियंका गांधी ने सोशल X पर भाई को टैग करते हुए लिखा है, 'राहुल गांधी मुझे आपकी बहन होने पर गर्व है.

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प्रियंका गांधी ने अपना सारा काम कर दिया है. अब राहुल गांधी की बारी है. 

1. प्रियंका गांधी कहां से चुनाव लड़ेंगी, इस सवाल का जवाब तो तभी मिलेगा जब राहुल गांधी ये फैसला ले लेंगे कि कौन सी सीट छोड़नी है? सोनिया गांधी ने 1999 में पहली बार अमेठी के साथ साथध दक्षिण भारत की बेल्लारी सीट भी जीत ली थी, लेकिन बाद में अमेठी को पास रखा था - क्या राहुल गांधी भी ऐसा ही करेंगे?

2. कांग्रेस के अमेठी और रायबरेली दोनों जीत लेने के बाद ये फैसला काफी आसान हो गया लगता है. अगर कांग्रेस अमेठी हार गई होती, तो जीतने के बाद भी राहुल गांधी के लिए रायबरेली छोड़ना मुश्किल होता. अब नहीं है. अब तो वो कोई भी सीट छोड़ सकते हैं. असर बराबर ही होगा.

3. रायबरेली और वायनाड दोनों का अपना अपना राजनीतिक महत्व है. पहले की बात और थी, अब तो रायबरेली के बहाने राहुल गांधी सरेआम बोल चुके हैं कि उत्तर भारत के लोग भी समझदार हैं - अमेठी की हार के बाद राहुल गांधी को इस पर शक होने लगा था. मालूम नहीं, उत्तर भारत के लोग मानेंगे कि नहीं, सुबह का भूला शाम को घर लौट आये तो भूला नहीं कहते. 

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4. रायबरेली और वायनाड दोनों ही सीटों पर राहुल गांधी की जीत का फासला करीब करीब बराबर ही है. रायबरेली से बने रहने के अपने फायदे हैं, और वायनाड सीट पास रखने के अपने फायदे हैं - मर्जी उनकी है.

5. अगर राहुल गांधी वायनाड अपने पास रखते हैं, तो उनके राजनीतिक विरोधियों के वे सारे ही आरोप खारिज हो जाएंगे जो वहां के लोगों के साथ धोखा देने का इल्जाम लगा रहे थे. बेशक रायबरेली छोड़ने पर वहां के लोगों को अच्छा नहीं लगेगा, लेकिन उपचुनाव में अगर प्रियंका गांधी उतरती हैं तो ज्यादा बुरा भी नहीं लगेगा. 

और फिर, अगले चुनाव में राहुल गांधी चाहें तो फिर अमेठी लौट भी सकते हैं. अगर फिर भी लौटने का मन न हो और प्रियंका गांधी रायबरेली से संसद पहुंच चुकी होंगी, तो रॉबर्ट वॉड्रा के अब तक अधूरे रहे ख्वाब भी पूरे होने का मौका है, वो तो उसी दिन के इंतजार में न जाने कब से बैठे हैं. 

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