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इस्लाम के घोर विरोधी इस नेता को मिले जनसमर्थन के मायने समझिए, यूरोप में बहुत कुछ बदलने वाला है

गीर्ट विल्डर्स (Geert Wilders) की जीत कई मायनों में अहम है. यह तय है कि जल्द ही यूरोप की राजनीति में अभी और बदलाव देखने को मिलेंगे. जिस तरह यूरोप में इस्लामोफोबिया बढ़ रहा है उसके नतीजे अतंरराष्ट्रीय संबंधों पर भी पड़ेंगे.

नीदरलैंड के भावी पीएम विल्डर्स गीर्ट और बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा नीदरलैंड के भावी पीएम विल्डर्स गीर्ट और बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 23 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 7:32 PM IST

एक टीवी शो के दौरान पैगंबर मोहम्मद पर अपनी टिप्पणी के लिए आलोचना झेलने वाली भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा का सपोर्ट कर भारत में चर्चा में आए गीर्ट विल्डर्स (Geert Wilders) नीदरलैंड के अगले प्रधानमंत्री हो सकते हैं. एग्जिट पोल्स के मुताबिक, डच संसदीय चुनावों में उनकी पार्टी फॉर फ्रीडम (पीवीवी) पार्टी को सबसे अधिक सीटें मिलने का दावा किया गया है.इन नतीजों का प्रभाव पूरे यूरोप पर पड़ने की संभावना है.गीर्ट को मिल रहा जनसमर्थन यह बताता है कि यूरोप में इस्लामोफोबिया बहुत तेजी से बढ़ रहा है. 
 
विल्डर्स पैगंबर मोहम्मद के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी करने के अलावा इस्लाम को पिछड़ा धर्म बता चुके हैं. विल्डर्स कई बार कह चुके हैं कि वे नीदरलैंड्स में मस्जिदों और कुरान पर प्रतिबंध लगाना चाहते हैं. विल्डर्स ने नूपुर शर्मा प्रकरण के समय अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लिखा, “अल-कायदा जैसे इस्लामी आतंकवादियों के आगे कभी न झुकें, वे बर्बरता का प्रतिनिधित्व करते हैं. पूरे भारतीय राष्ट्र को अब नूपुर शर्मा के पक्ष में एकजुट होना चाहिए और उनका समर्थन करना चाहिए. अल कायदा और तालिबान ने वर्षों पहले मुझे अपनी हिटलिस्ट में डाल दिया था. एक सबक, आतंकवादियों के सामने कभी न झुकें. कभी नहीं."

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विल्डर्स की जीत कई मायनों में अहम है. यह तय है कि जल्द ही यूरोप की राजनीति में अभी और बदलाव देखने को मिलेंगे. जिस तरह यूरोप में इस्लामोफोबिया बढ़ रहा है उसके नतीजे अतंरराष्ट्रीय संबंधों पर भी पड़ेंगे.वील्डर्स अपने अप्रवासन विरोधी विचारों के लिए कुख्यात हैं, विशेष रूप से मुस्लिम देशों के आप्रवासियों को निशाना बनाते रहे हैं. उन्होंने कुरान की तुलना हिटलर के माइन कैम्फ से की है और इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है. 

यूरोप की राजनीति पर पड़ेगा गहरा असर

यह परिणाम उन चुनावों की शृंखला में नवीनतम है जो यूरोपीय राजनीतिक परिदृश्य को बदल रहे हैं. स्लोवाकिया से लेकर स्पेन और जर्मनी से पोलैंड तक, लोकलुभावन और कट्टर-दक्षिणपंथी पार्टियों ने चुनावों में कुछ हद तक जीत हासिल की है.नीदरलैंड को ऐतिहासिक रूप से यूरोप के लिए एक अग्रदूत के रूप में देखा जाता है, और पूरे महाद्वीप में धुर दक्षिणपंथी हस्तियां वील्डर्स की जीत का जश्न मना रही हैं. उन्हें सबसे पहले बधाई देने वालों में हंगरी के सुदूर दक्षिणपंथी प्रधान मंत्री विक्टर ओर्बन थे, जिन्होंने घोषणा की कि "परिवर्तन की हवाएं यहां भी हैं". फ्रांस के धुर दक्षिणपंथी नेता मरीन ले पेन ने भी वील्डर्स के चुनाव प्रदर्शन से पता चलता है कि "यूरोपीय संघ के केंद्र में अधिक से अधिक देश इस तरह की समस्याओं से मुकाबला कर रहे हैं. पोललिटिको की रिपोर्ट के अनुसार, इस्लाम विरोधी ग्रीट की जीत नीदरलैंड की राजनीति ही नहीं बल्कि यूरोपीय राजनीति को भी हिलाकर रख देगी. 

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यूरेबिया के खिलाफ यूरोप का आम जनमानस संगठित हो रहा है

 कुछ दिनों पहले फिलिस्तीन के एक मौलाना का वीडियो वायरल हुआ जिसमें वो दिख रहा है कि फ्रांस एक दिन मुस्लिम देश बन जाएगा. इस तरह पूरे यूरोप के इस्लामीकरण के अभियान को यूरेबिया नाम दे दिया गया. विडियो में मौलाना यह कहता हुआ दिखता है कि फ्रांस को मुस्लिम देश बनाने के लिए सिर्फ संख्या से काम नहीं चलेगा. यह वीडियो कई साल पुराना है किन्तु फ्रांस दंगों की आग के चलते इसने यूरोप और इस्लाम की खाई को और चौड़ा करने का काम किया. अमेरिकी रिसर्च सेंटर 'प्यू रिसर्च' के अनुसार वर्ष 2050 तक यूरोप के कुछ देशों में मुस्लिम आबादी 25 प्रतिशत से अधिक होगी जिससे संघर्ष और बढ़ेगा. यूरोप में पुनर्जागरण के पश्चात समाज के केंद्र से धर्म बाहर हो गया और धर्मनिरपेक्षता हावी हो गई जबकि मध्य एशिया में शिया-सुन्नी के संघर्ष ने इस्लामिक कट्टरपंथ को बढ़ा दिया. यही कट्टरता अब धर्मनिरपेक्ष यूरोप पर भारी पड़ती नजर आ रही है.इस तरह यूरोप में आम लोगों में इस्लामोफोबिया बढ़ रहा है. अगले कुछ सालों में पूरे यूरोप में गीर्ट जैसे तमाम नेताओं को जबरदस्त समर्थन मिलने वाला है. 

गीर्ट की सफलता का नीदरलैंड और पूरे यूरोप के लिए क्या मतलब है?

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60 वर्षीय वील्डर्स 1998 से डच संसद में हैं. उन्होंने पीपुल्स पार्टी फॉर फ्रीडम एंड डेमोक्रेसी के साथ शुरुआत की, जो वर्तमान में नीदरलैंड में सत्ता में है. लेकिन तुर्की के यूरोपीय संघ में शामिल होने पर असहमत होने के चलते 2004 में पार्टी छोड़ दी. उन्होंने 2006 में पीवीवी की स्थापना की, और तब से वह इसके नेता हैं. सरकार और विपक्षी गठबंधन दोनों में बैठे हैं.

नीदरलैंड में चुनाव तब कराए गए हैं जब शरणार्थियों के प्रवेश को प्रतिबंधित करने के तरीके पर असहमति के कारण 13 साल से सत्तासीन मार्क रुटे की सरकार जुलाई में गिर गई. परिणामस्वरूप, वील्डर्स सहित अधिकांश नेताओं ने अपना अभियान इसी मुद्दे के इर्द-गिर्द केंद्रित कर दिया.वील्डर्स ने देश में शरणार्थियों पर रोक लगाने का आह्वान किया है, और सीमा पर प्रवासियों को पीछे धकेलने की वकालत की है. चुनाव के नतीजे स्पष्ट होने के बाद, वील्डर्स ने फिर कहा है कि वह शरणार्थियों की सुनामी को समाप्त करने के मिशन पर जल्द ही लगेंगे. वील्डर्स यूरोपीय संघ के विशेष रूप से आलोचक रहे हैं, और उन्होंने संघ में बने रहने का निर्णय लेने के लिए नीदरलैंड में ब्रेक्सिट जैसे जनमत संग्रह का आह्वान किया है.

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