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पंजाब में लोकसभा चुनाव प्रचार आखिरी वक्त इन 5 मुद्दों पर आ‍ टिका, वोटिंग पर कितना असर होगा?

पंजाब ही नहीं आज बनारस सहित पूर्वी यूपी और बंगाल आदि में भी चुनाव प्रचार का आखिरी दिन था. पीएम नरेंद्र मोदी लगातार पंजाब में अपनी रैलियां और सभाएं करते रहे. क्या पंजाब में आखिरी वक्त में मुद्दे बदल रहे हैं?

नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल और सुखबीर बादल नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल और सुखबीर बादल
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 30 मई 2024,
  • अपडेटेड 4:35 PM IST

पंजाब में मतादाताओं का मूड बहुत अप्रत्‍याशित रहा है. पंजाबी लोग हमेशा कुछ अलग तरह से वोटिंग करते रहे हैं. देश के मूड के साथ भी उनका मूड हो सकता है और नहीं भी. 2014 में आम आदमी पार्टी को 4 सीटें देने वाले पंजाब ने 2019 में केवल एक सीट ही दी. पर 2022 आते आते आम आदमी पार्टी ने विधानसभा की तीन चौथाई सीटे जीत ली. पर 2022 में सीएम भगवंत मान की छोड़ी हुई संगरूर सीट पर पंजाबियों ने आम आदमी पार्टी को बाहर भी कर दिया. ऑपरेशन ब्लू स्टार और 84 के सिख विरोधी दंगों के बाद किसी को यकीन नहीं था कि यहां कभी कांग्रेस अपनी जड़े जमा सकेगी पर आज प्रदेश की सबसे मजबूत पार्टी के रूप कांग्रेस ही विराजमान है. सवाल उठता है कि किसान आंदोलन के चलते बीजेपी को गांवों में नहीं घुसने देने वाली जनता क्या कभी बीजेपी को ताज पहनाएगी? तो इसका जवाब यही है कि कुछ कहा नहीं जा सकता, कब पंजाब का मन बदल जाए. प्रधानमंत्री अपने अंतिम दौर के प्रचार में पंजाब में ऐसा अलख जगाया है कि कुछ भी संभव हो सकता है. आइये देखते हैं कि इस बार के चुनावों में क्या तस्वीर बन रही है.

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1- पीएम का राम मंदिर के बहाने हिंदू और सिखों के वोट पर नजर

गुरुवार को पंजाब के होशियारपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस चुनाव की अपनी आखिरी रैली की.उन्होंने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि पंजाब हमारे भारत की पहचान है, ये हमारे गुरुओं की पवित्र भूमि है. पीएम मोदी ने इस दौरान कहा कि अयोध्या में राम जन्मस्थान के लिए पहली लड़ाई सिखों ने ही लड़ी. यूं तो पीएम मोदी के भाषणों में आरक्षण, धर्म और कांग्रेस के भ्रष्टाचार, मुस्लिम तुष्टिकरण की बातें प्रमुख से रहती ही हैं. पर पंजाब में उन्होंने राम जन्मभूमि की चर्चा कर हिंदू वोटों पर अपने एकाधिकार का संकेत दे दिया है. दरअसल पंजाब में हिंदुओं का ज्यादातर वोट कांग्रेस को मिलता रहा है. पीएम जानते हैं कि पंजाब में 39 प्रतिशत वोट हिंदू हैं. इसके साथ ही करीब 34 प्रतिशत अनुसूचित जातियों के वोट हैं. उनकी स्पीच में आज हिंदुओं के लिए राममंदिर, अनुसूचित जातियों के कोटे को मुस्लिम आरक्षण से बचाने की बात मुख्य रूप से रही. राम मंदिर का मुद्दा किस तरह जोर पकड़ रहा है यह कुछ दिन पहले पटियाला रैली से दिखनी शुरू हो गई थी. यहां की रैली में एक समर्थक राम मंदिर की प्रतिकृति लिए ही खड़ा था. 

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कांग्रेस और इंडिया ब्‍लॉक को निशाना बनाते हुए पीएम ने कहा कि आरक्षण को लेकर इनका ट्रैक रिकॉर्ड बहुत ख़राब है. सरकारी नौकरी में धर्म के नाम पर आरक्षण हो, यूनिवर्सिटी के दाखिले में धर्म के नाम आरक्षण हो ये बाबा साहब की भावनाओं का अपमान कर रहे हैं. ये धर्म के नाम पर देश को बांटने की बहुत गहरी साजिश है. साल 2024 की चुनाव में मोदी ने उनसे पर्दा उठा दिया, इसलिए मोदी को नई-नई गाली देते रहते हैं. जाहिर है कि पीएम मोदी की इस स्पीच के निशाने पर कौन लोग थे. 

2- ऑपरेशन ब्लू स्टार पर अकाली दल की राजनीति से हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण की उम्मीद

1 जून, 2024 को ऑपरेशन ब्लू स्टार के 40 साल होने जा रहे हैं, लेकिन पजांब की चुनावी राजनीति में पहली बार ऑपरेशन ब्लू स्टार को लेकर मुख्य धारा की राजनीति हो रही है. सिखों की सर्वोच्च संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की तरफ से ऐसी कोशिशें हो रही हैं कि लोगों को इसकी याद ताजा हो जाये. शिरोमणि अकाली दल भी चुनावी रैलियों में इसे खूब हवा दे रहा है. जबतक बीजेपी साथ थी अकाली दल ऑपरेशन ब्लू स्टार की सालगिरह से जुड़े कार्यक्रमों से एक निश्चित दूरी बनाने की कोशिश करता रहा, पर अब वह भी स्वतंत्र है. अकाली दल को पता है कि उसे हिंदू वोट अब मिलने नहीं हैं तो कम से कम सिखों के सारे वोट तो मिलें. जाहिर है कि अकाली दल जितना कट्टरपंथी होगा, जितना ऑपरेशन ब्लू स्टार की बात करेगा, उतना ही हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण होगा. जब कैप्टन अमरिंदर कांग्रेस के साथ थे वो हिंदू वोटों को साधने में बाजी मारते रहे. अब कांग्रेस के पास ऐसा नेतृत्व नहीं है और दूसरे बीजेपी के पास अब हिंदू वोटों के लिए खुलकर खेलने का मौका है. जिस तरह अकाली दल सिख वोटों के लिए खुलकर बैटिंग कर रही है ठीक उसी तरह भविष्य में बीजेपी भी कर सकती है. अकाली दल ने ऑपरेशन ब्लू स्टार की याद दिलाने के लिए जगह जगह बैनर और पोस्टर तो लगाये ही गये हैं,  एसजीपीसी की तरफ से प्रवेश द्वार पर क्षतिग्रस्त अकाल तख्त इमारत का एक मॉडल भी लगा दिया गया है.

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3- कांग्रेस और आप का निशाना मुख्य रूप से बीजेपी पर क्यों?

पंजाब में बीजेपी के बजाय कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, शिरोमणि अकाली दल मुख्य दावेदार हैं. बीजेपी का नाम इन तीनों के बाद ही आता है. पर परिस्थितियां ऐसी बनी हैं कि सभी दल मुख्य रूप से बीजेपी को टारगेट कर रहे हैं. अकाली दल नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल अपनी पार्टी का मुख्य मुकाबला कांग्रेस से मानते हैं पर उनके भी टार्गेट पर बीजेपी रहती है. पंजाब में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस एक दूसरे के टोन बहुत हार्ड नहीं रख रहे हैं पर विरोध और आलोचना चलती रहती है.

पंजाब में कांग्रेस नेता भगवंत मान सरकार को अलग-अलग मुद्दे पर टारगेट कर रहे हैं पर आश्चर्यजनक तरीके से कांग्रेस नेता राहुल गांधी अमृतसर में और प्रियंका गांधी पटियाला और फतेहगढ़ साहिब में एक बार भी अरविंद केजरीवाल या भगवंत मान का नाम नहीं लिया. यहां तक कि इन नेताओं ने शिरोमणि अकाली दल को भी निशाने पर नहीं लिया. इन नेताओं के निशाने पर केवल और केवल केंद्र की मोदी सरकार ही रही. दरअसल कांग्रेस को भी चिंता है कि पंजाब में उनका कोर वोटर्स हिंदू और दलित ही है. जिस पर बीजेपी गिद्ध दृष्टि बनाए हुए है. इसी तरह अरविंद केजरीवाल भी पंजाब में मुख्य रूप से केंद्र और मोदी सरकार पर ही हमलावर हैं. चाहे किसी भी बहाने से या मजबूरी में अगर बीजेपी का नाम लिया जा रहा है तो जाहिर है कि कहीं न कहीं लड़ाई में लोग बीजेपी को समझ रहे हैं. 

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4- आप और कांग्रेस की दोस्ताना लड़ाई का किसको फायदा

आम आदमी पार्टी और कांग्रेस दिल्ली में मिलकर चुनाव लड़े हैं और पंजाब में एक दूसरे के खिलाफ प्रत्याशी खड़े किए हैं. चुनाव प्रचार के दौरान स्थानीय नेता तो एक दूसरी पार्टियों पर कीचड़ उछाल रहे हैं पर आमतौर पर बड़े लीडर एक दूसरे का नाम भी लेने से बच रहे हैं. इस तरह यह कहा जा सकता है कि दोनों एक दूसरे को फ्रेंडली अपोज कर रहे हैं. यह भी कहा जा रहा है कि प्रत्याशियों का चयन भी इस तरह किया गया है कि दोनों ही पार्टियों को नुकसान न हो. जहां से कांग्रेस के मजबूत कैंडिडेट हैं वहां से आम आदमी पार्टी ने कमजोर कैंडिडेट दिए हैं. ठीक उसी तरह जहां से आम आदमी पार्टी के मजबूत कैंडिडेट हैं वहां से कांग्रेस ने कमजोर कैंडिडेट दिए हैं. पर इस तरह ही अगर लड़ाई लड़नी थी तो उससे बेहतर यही होता कि दोनों पार्टियों सीट शेयरिंग कर ली होती.

शिरोमणि अकाली दल तो खुलकर कह रही है कि दोनों पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ रही हैं और दोनों राज्य को गर्त में ले जाने की जिम्मेदार हैं.जाहिर है कि इस तरह बहुकोणीय मुकाबले में वोट बंटने तय हैं. और इस तरह अगर कोई भी दल 35 प्रतिशत भी वोट पाने में सफल होता है तो हो सकता है कि बाजी उसके हाथ आ जाए. इस तरह बीजेपी जैसी चौथे नंबर की पार्टी को लाभ मिलने की उम्मीद बढ़ रही है.

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5- किसानों की नाराजगी को भुना रहे हैं कांग्रेस-आप और अकाली दल, बीजेपी इन्फ्रास्ट्रक्चर के काम गिना रही

आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और अकाली दल तीनों में ही किसानों के हितैषी बनने की होड़ लगी हुई है. राजनीतिक विश्वेषक सौरभ दुबे कहते हैं कि बीजेपी को तो किसान गांवों में ही नहीं घुसने दे रहे पर आम आदमी पार्टी किसानों से संबंधित अपने कई वादे न पूरा करने के चलते एक्सपोज हो चुकी है.राज्य में मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के स्थानीय नेता पंजाब सरकार को उनके वादों को लेकर ही घेर रहे हैं . आम आदमी पार्टी ने 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का वादा किया था.दूसरी ओर कांग्रेस के घोषणापत्र में किसानों का कर्ज माफ करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के लिए कानूनी गारंटी सुनिश्चित करने का वादा किया है.

दूसरी ओर बीजेपी उन कामों को गिना रही है जो पिछले 10 सालों में केंद्र सरकार की बदौलत राज्य को मिला है. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ का कहना है कि मोदी सरकार द्वारा अपनी प्रमुख और अन्य योजनाओं के तहत वितरित किए गए बड़े पैमाने पर धन का लाभ अंतिम छोर तक पहुंचा है. चाहे वह सामाजिक सुरक्षा हो, कृषि हो, स्वास्थ्य हो, बुनियादी ढांचा हो, कल्याण हो, रेलवे हो, आवास हो, बिजली हो, पोषण हो, सड़क नेटवर्क हो या रोजगार हो, पंजाब को पिछले एक दशक में भारी केंद्रीय सहायता मिली है, जिसने पंजाब को सामाजिक-आर्थिक रूप से ऊपर उठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.यही नहीं केंद्र की किसान क्रेडिट कार्ड  योजना के तहत पिछले 10 वर्षों में पंजाब के लगभग 22.5 लाख किसानों को 56,754 करोड़ रुपये मिले हैं.किसान सम्मान निधि योजना के तहत केंद्र ने किसानों को 4,758 करोड़ रुपये दिए हैं. मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के तहत पंजाब में किसानों के लिए 24.50 कार्ड बनाए गए हैं.

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