
अडानी-हिंडनबर्ग केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद बहुत कुछ साफ हो गया है. एक बात तो अब पक्की है, 2024 में ये चुनावी मुद्दा तो बनने से रहा. जो हाल राफेल मुद्दे का 2019 के चुनाव नतीजों के बाद दिखा, अडानी मुद्दे की हवा तो अभी ही निकल चुकी है.
2014 में कांग्रेस को मिली हार का एक बड़ा कारण तब की यूपीए सरकार का भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरना रहा, 2019 में राहुल गांधी ने भी मोदी सरकार को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर ही घेरने की कोशिश की थी.
राफेल की ही तरह राहुल गांधी अडानी मुद्दे को भी भ्रष्टाचार की लाइन पर आगे बढ़ा रहे थे. हो सकता है, अंदर ही अंदर 'चौकीदार चोर है' की तर्ज पर कोई और स्लोगन गढ़ लिया गया हो, या गढ़े जाने के प्रयास चल रहे हों, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद तो लगता है सब धरा का धरा रह जाएगा.
क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने अडानी-हिंडनबर्ग केस की जांच CBI से कराने या SIT को ट्रांसफर करने से भी इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि SEBI ही इस मामले की जांच करेगी, लेकिन उसके अधिकार क्षेत्र में दखल देने से इनकार कर दिया है.
हिंडनबर्ग रिपोर्ट के आने के बाद से ही राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार पर लगातार हमलावर रहे हैं, और ये मुद्दा उठाने के लिए कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं देते. अगर किसी विदेशी अखबार में अडानी से जुड़ी रिपोर्ट प्रकाशित हो जाये, तो राहुल गांधी फटाफट प्रेस कांफ्रेंस बुला लेते हैं.
अडानी मुद्दे का भी राफेल जैसा हश्र!
अडानी-हिंडनबर्ग केस में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि अदालत सेबी की जांच रिपोर्ट में दखल नहीं देने जा रही है. सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने सेबी की जांच को सही माना और कहा कि इस मामले की जांच के लिए सेबी सक्षम एजेंसी है.
CJI जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि कोर्ट को सेबी के अधिकार क्षेत्र में दखल देने के सीमित अधिकार हैं. फैसला सुनाते वक्त सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर बता दिया कि जांच न तो एसआईटी को ट्रांसफर की जाएगी, न ही सीबीआई से मामले की जांच कराने की कोई जरूरत है.
रिपोर्ट के मुताबिक, सेबी ने अडानी हिंडनबर्ग केस से जुड़े 24 में से 22 मामलों की जांच पूरी कर ली है, और सिर्फ दो मामलों की जांच बाकी है. बाकी बचे दोनों मामलों की जांच पूरी करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सेबी को तीन महीने की मोहलत दी है.
सुप्रीम कोर्ट ने जॉर्ज सोरोस से जुड़ी संस्था ओसीसीआरपी और हिंडनबर्ग की रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर भी संदेह जताया, और कहा कि स्वतंत्र रूप से ऐसे आरोपों की पुष्टि नहीं हो सकती, और इन्हें सही जानकारी नहीं माना जाना चाहिये. बता दें कि ओसीसीआरपी और हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में अडानी ग्रुप पर शेयरों की कीमत के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया गया था.
अब अगर केस की पॉलिटिकल मेरिट को समझने की कोशिश करें तो ये मामला चुनावी माहौल तैयार होने से पहले ही लुढ़क गया लगता है. जिस मुद्दे को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी 2024 में मोदी सरकार को घेरने की तैयारी में लग रहे थे, चुनावों से पहले ही उसका हाल राफेल जैसा हो गया लगता है.
हिंडनबर्ग रिपोर्ट के सामने आने के बाद राहुल गांधी ने संसद में काफी जोरदार भाषण दिया था. जिसके बाद काफी दिनों तक पूरे विपक्ष पर कांग्रेस का प्रभाव भी देखने को मिला था. कांग्रेस की अगुवाई में विपक्षी दल संसद में सरकार को घेरने लगे थे - और मल्लिकार्जुन खरगे की पहल पर कांग्रेस से दूरी बनाने वाले विपक्षी दल भी बैठकों में आने लगे थे.
अडानी के कारोबार की जांच की मांग को लेकर विपक्षी दलों में सहमति भी बनने लगी थी. तभी कांग्रेस ने अडानी के कारोबार की जेपीसी से जांच कराने की मांग रख दी. तृणमूल कांग्रेस जैसी पार्टियों को सुप्रीम कोर्ट की कमेटी से जांच कराने की मांग तो मंजूर थी, लेकिन जेपीसी जांच के लिए सहमति नहीं बन पाई.
तृणमूल कांग्रेस सहित पूरे विपक्ष का आरोप है कि उद्योगपति गौतम अडानी से जुड़ा सवाल पूछने के कारण ही महुआ मोइत्रा के खिलाफ एक्शन हुआ है. कहने को तो राहुल गांधी भी कह चुके हैं कि अडानी के कारोबार पर सवाल पूछने के कारण उनकी संसद सदस्यता खत्म कर दी गई थी. राहुल गांधी की सदस्यता 'मोदी' सरनेम पर उनकी टिप्पणी को लेकर मानहानि मामले में दो साल की सजा के चलते खत्म हो गई थी, जो सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद फिलहाल बहाल कर दी गयी है.
अब राहुल गांधी 14 जनवरी से 20 मार्च तक मणिपुर से न्याय यात्रा पर निकल रहे हैं. भारत जोड़ो यात्रा से उत्साहित और हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना में कांग्रेस की सरकार बन जाने के बाद, राहुल गांधी को लगता है ऐसी यात्राओं में मजा आने लगा है. कहां भारत जोड़ो यात्रा के शुरू में पूरे सफर में उनके बने रहने पर सवाल उठ रहे थे, और कहां अब वो वैसी ही यात्रा पर फिर से निकल रहे हैं - लेकिन सवाल ये है कि क्या न्याय यात्रा मणिपुर को चुनावी मुद्दे के तौर पर स्थापित कर पाएगी?
राहुल गांधी अब कौन सा मुद्दा लेकर आम चुनाव में उतरेंगे?
अडानी केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐसे वक्त आया है, जब अयोध्या में राम लला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की तैयारी चल रही है. 22 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है. खास बात है कि देश भर की तमाम बड़ी हस्तियों को आयोजन समिति ने न्योता भेज कर बुलाया है, जिसमें कांग्रेस की तरफ से सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे और अधीर रंजन चौधरी भी शामिल हैं.
कांग्रेस की तरफ से अभी तक सिर्फ यही बताया गया है कि 22 जनवरी को मालूम हो जाएगा कि सोनिया गांधी और साथी नेताओं का क्या रुख होता है. ऐसे में जबकि साफ हो चुका है कि बीजेपी आने वाले चुनावों में मंदिर निर्माण का जोर शोर से क्रेडिट लेने की तैयारी कर चुकी है, हफ्ते भर पहले ही राहुल गांधी 14 जनवरी को मणिपुर से न्याय यात्रा पर निकल रहे हैं.
ऐसा समझा जाता है कि मणिपुर में हिंसा के शिकार हुए लोगों को इंसाफ दिलाने के मकसद से ही राहुल गांधी न्याय यात्रा पर निकल रहे हैं. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भी मणिपुर के बहाने प्रधानमंत्री मोदी पर हमला बोला है.
प्रियंका गांधी पूछ रही हैं, 'मणिपुर में चार लोगों की मौत हो गई, कई लोग घायल हो गये, कई जिलों में कर्फ्यू है... आठ महीने से मणिपुर के लोग हत्या, हिंसा और विनाश का सामना कर रहे हैं... ये सिलसिला कब रुकेगा?'
भारत जोड़ो यात्रा और राहुल गांधी की प्रस्तावित न्याय यात्रा के बीच कांग्रेस तीन राज्यों में सरकार बना चुकी है, और हाल ही में राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्ता गंवा चुकी है. अगर कांग्रेस नेतृत्व को लगता है कि विधानसभा चुनाव नतीजों पर यात्राओं का असर हो रहा है, तो बहुत गलत भी नहीं समझा जाएगा, लेकिन अगर उसे लगता है कि लोक सभा चुनाव में भी नतीजे दोहराएंगे तो सही भी नहीं समझा जा सकता. जरूरी नहीं कि जिन राज्यों में कांग्रेस सरकार बनाने में सफल रही है, वहां लोक सभा की सीटें भी जीत ले, और जहां विधानसभा चुनाव हार गई है, संसदीय सीटें जीत ले. हां, अगर दक्षिण और उत्तर की राजनीति को और हवा देनी है तो बात अलग है. वैसे न्याय यात्रा उत्तर भारत के भी कई राज्यों से गुजरने वाली है.
तो क्या मणिपुर हिंसा को भी चुनावी मुद्दा बनाने की तैयारी है, लेकिन उत्तर भारत में उसका कहां तक प्रभाव पड़ेगा? और भी कोई चुनावी मुद्दा तैयार किया जा रहा है क्या?
2014 के मुकाबले 2019 में कांग्रेस ने अपने स्कोर में सुधार किया था. 2019 में कांग्रेस लोक सभा की 52 सीटें जीतने में सफल रही थी. खास बात ये रही कि आधे से ज्यादा सीटें कांग्रेस को सिर्फ तीन राज्यों में मिली थीं. सबसे ज्यादा 15 सीटें केरल में मिलीं, जिसमें वायनाड की एक सीट से तो राहुल गांधी ही सांसद हैं. आठ-आठ सीटें कांग्रेस को पंजाब और तमिलनाडु से मिली थीं - और ध्यान देने वाली बात ये है कि हाल ही के एक सर्वे में राहुल गांधी इन्हीं तीन राज्यों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं. सबसे ज्यादा मतलब मोदी से भी ज्यादा लोकप्रिय हैं.