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'अग्निवीर' पर क्या देश को गुमराह कर रहे राहुल गांधी और अखिलेश, 5 बातों से समझिए

अग्निपथ स्कीम और अग्निवीरों पर राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने पिछले 2 दिनों से संसद में बवाल काटा हुआ है. वहीं बीजेपी का कहना है कि अग्निपथ स्कीम को लेकर देश की जनता को गुमराह किया जा रहा है. आइये देखते हैं कि सचाई क्या है?

अग्निपथ स्कीम पर कौन देश को गुमराह कर रहा? अग्निपथ स्कीम पर कौन देश को गुमराह कर रहा?
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 02 जुलाई 2024,
  • अपडेटेड 3:36 PM IST

संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बहस चल रही है. विपक्ष का फोकस बीजेपी को घेरने पर है. इसके लिए विपक्ष ने अग्निपथ स्कीम और अग्निवीरों पर चौतरफा हमला बोल दिया है. हालांकि विपक्ष के तरकश में बहुत तीर हैं पर मुख्य रूप से फोकस अग्निपथ पर ही है. सोमवार को विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने अग्निपथ योजना पर सरकार पर हमले किए तो मंगलवार को अखिलेश यादव ने अग्निपथ को देश के लिए हानिकारक बताते हुए एक बार फिर वचन लिया कि सरकार में आते ही इस योजना को खत्म करेंगे. सवाल यह है कि सरकार को घेरने के लिए और भी बहुत से मुद्दे हैं . देश की रक्षा से संबधित इस सेंसिटिव इशू को उठाने की क्या जरूरत है. नीट अपने आप में बहुत बड़ा मुद्दा है जिस पर संसद ठप की जा सकती है. पर विपक्ष जानता है कि अग्निवीरों की बात कर जनता को उद्वेलित किया जा सकता है. पर यह विरोध वैसा ही साबित होने वाला है जैसा कभी पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने जब भारत में कंप्यूटराइजेशन का बीड़ा उठाया था और अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव उसका विरोध कर रहे थे. जब अंग्रेज भारत में रेल का विस्तार कर रहे थे तो महात्मा गांधी ने उसका विरोध किया था. कहने का मतलब इतना है कि अग्निपथ योजना का विरोध जो लोग आज कर रहे हैं वो समय आने पर इसके लिए पश्चाताप भी करेंगे. जैसा कि बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने कभी कम्युनिस्ट पार्टियों के कंप्यूटर के विरोध करने के लिए माफी मांगी थी.

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1-अग्निवीरों को मुआवजे पर कौन गुमराह कर रहा

राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने जिस तरह देश की संसद में सोमवार और मंगलवार को अग्निपथ योजना पर सवाल उठाए हैं उससे यही लगता है कि सस्ती लोकप्रियता के लिए ये दोनों नेता देश के लिए कितना गलत कर रहे हैं. राहुल गांधी ने लोकसभा में कहा कि अग्निपथ योजना के तहत भर्ती हुए सैनिकों के वीरगति प्राप्त करने पर उनके परिवार को कोई मुआवजा नहीं मिलता है.  हालांकि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने तुरंत अपनी सीट से खड़ा होकर राहुल गांधी के इस दावे को पूरी तरह से खारिज किया. राजनाथ सिंह ने बताया कि अगर कोई अग्निवीर वीरगति को प्राप्त होता है तो उसके परिवार को एक करोड़ रुपये की सांत्वना राशि दी जाती है.रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की बातों पर भरोसा नहीं करते हैं तो सेना की वेबसाइट को देखना चाहिए. यहां भी जो नियम कानून दिए गए हैं उसके अनुसार अग्निवीरों के शहीद होने पर उनके परिवार को तमाम तरीके के कंपेन्सेशन मिलता है.
 वेबसाइट के अनुसार ड्यूटी पर शहीद होने पर (श्रेणी 'Y/Z')    यदि अग्निवीर की ड्यूटी के दौरान मृत्यु हो जाती है (श्रेणी 'Y/Z'), तो उन्हें ₹48 लाख का बीमा कवर, ₹44 लाख का अनुग्रह राशि, चार साल तक का पूर्ण वेतन और सेवा निधि, और सेवा निधि कोष में जमा राशि और सरकार का योगदान मिलेगा.अगर अग्निवीर की मौत ड्यूटी पर नहीं हुई तब (श्रेणी X)  उन्हें ₹48 लाख का बीमा कवर और सेवा निधि कोष में जमा राशि और सरकार का योगदान मिलेगा. यदि अग्निवीर ड्यूटी के कारण विकलांग हो जाता है, तो उन्हें विकलांगता के स्तर (100%, 75% या 50%) के आधार पर ₹44 लाख, ₹25 लाख या ₹15 लाख का अनुग्रह राशि, चार साल तक का पूर्ण वेतन और सेवा निधि, और सेवा निधि कोष में जमा राशि और सरकार का योगदान मिलेगा.

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2- चार साल की सेवा, 21 की उम्र में डिग्री के साथ मोटी रकम और परमानेंट सैनिक बनने का मौका

दरअसल को अग्निपथ योजना को सेवा का नाम ही नहीं देना चाहिए था. क्योंकि ये एक किस्म का पेड ट्रेनिंग है. जिसमें ट्रेनिंग करने के लिए मोटी रकम भी मिल रही है. क्योंकि इस दौरान पहले वर्ष के पूरा होने पर अग्निवीर को सर्टिफिकेट दिया जा रहा है. दूसरे वर्ष के पूरा होने पर उन्हें डिप्लोमा दिया जाएगा और तीसरे वर्ष के पूरा होने पर छात्रों को बीए या बीकॉम की पूरी डिग्री प्रदान की जाएगी. योजना के तहत युवाओं को अग्निवीर के रूप में 4 साल के लिए सेना में भर्ती किया जाता है. 4 साल की सेवा पूरी करने के बाद 25% अग्निवीरों को रेगुलर कैडर में शामिल किया जाता है. नौकरी में नहीं जाने वालों को 75% को सेवा निधि पैकेज दिया जाता है.  17 साल 6 महीने का युवा जब 21 साल का होता है तो उसके पास करीब एक करोड़ रुपये होते हैं. इसके साथ ही उसके पास सेना में परमानेंट सैनिक बनने का मौका होता है. अगर वह सेना में जाने का मौका मिस कर जाता है तो उसके पास देश की अन्य सशस्त्र बलों में जाने का मौका होता है.करीब सभी सशस्त्र बलों में जाने के लिए अग्निवीरों को आरक्षण की व्यवस्था की गई है. इसके साथ ही कॉर्पोरेट जगत या और पढ़ाई करने का मौका भी होता है. 

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अगर हम एक समान्य सैनिक जीवन भर नौकरी करके भी एक करोड़ की रकम रिटायरमेंट पर नहीं पाता है. इसके साथ ही रिटायरमेंट के बाद उसके बाद प्राइवेट सिक्युरिटी कंपनी में गार्ड की नौकरी का ही विकल्प होता है. एक अग्नीवीर के पास दुनिया की हर हसरत पूरी करने के लिए खुला आसमां होता है.

3-क्यों सुधार की आवश्यकता है

समय के साथ दुनिया भर में बहुत चीजें बदली हैं.दुनिया का सबसे ताकतवर देश रूस में तो प्राइवेट ऑर्मी भी देश के लिए लड़ती है.इसके साथ ही दुनिया भर के देशों में सैनिकों की संख्या में कटौती हुई है जबकि उसकी तुलना में सैनिक साजो सामान पर खर्च कई गुना बढ़ा है. चीन ने भी अपनी सैनिकों की संख्या में कटौती की है.  इसके साथ ही  अग्निपथ पर कोई भी चर्चा इस स्वीकारोक्ति के साथ शुरू होनी चाहिए कि पिछले कुछ दशकों में भारत में रक्षा व्यय की गुणवत्ता खराब हुई है. वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) योजना ने भविष्य के सैनिकों की कीमत पर मौजूदा लाभार्थियों के पक्ष में पैमाना बढ़ा दिया. 2020 में रक्षा पेंशन व्यय रक्षा उपकरणों की खरीद के लिए बजट से अधिक हो गया. इस बीच,तकनीकी रूप से बेहतर शक्तिशाली देशों के साथ बिगड़ते संबंधों ने भारत को यह एहसास कराया कि सैनिक संख्या पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय सैन्य साजो सामान पर अधिक खर्च किया जाए. सशस्त्र बलों को अधिक "मानवशक्ति" से अधिक "फायरपावर" की ओर निर्णायक बदलाव करने की आवश्यकता है. 

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4-विदेशों में भी क्या है इसे भी जान लीजिए

सबसे पहले चीन की बात करते हैं.चीन में हर साल करीब साढ़े चार लाख सैनिकों की भर्ती होती है.इनमें से अधिकतर को दो साल सेवा का मौका दिया जाता है.जिसमें से 40 दिन की ट्रेनिंग होती है. बहुत से लोगों को परमानेंट सेना में जाने का मौका मिलता है. 2 साल सेवा देने वाले सैनिकों को छूट पर लोन दिया जाता है तक् वो कोई बिजनेस वगैरह कर सकें. इसके अलावा टैक्स बेनिफिट आदि का लाभ भी दिया जाता है.

अमेरिका में करीब 14 लाख सैनिक हैं. यहां भी भर्तियां 4 साल के लिए होती हैं.अगर जरूरत होती है तो उन्हें 4 साल का एक्सटेंशन दिया जाता है.सेना के लोग लाइफ टाइम सर्विस के लिए भी अप्लाई कर सकते हैं.अगर 20 साल सर्विस कर लिए तो पेंशन आदि के लाभ के लिए वो योग्य हो जाते हैं. 

रूस में भर्ती का हाइब्रिड मॉडल है.यहां भी कांट्रेक्ट सेवा प्रचलन में है. इसके तहत एक साल की ट्रेनिंग के बाद एक साल का मौका मिलता है.इन्हीं लोगों में से परमानेंट सैनिकों की भर्ती की जाती है.जो परमानेंट सैनिक नहीं बन पाते उन्हें विश्विविद्यालयों में ऐडमिशन में छूट दी जाती है.

5-रिफॉर्म शुरूआत में हमेशा गलत लगते हैं

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कर्नाटक में एक कार्यक्रम के दौरान एक बार प्रधानमंत्री मोदी ने अग्निपथ योजना के बारे में कहा था कि कोई भी सुधार शुरुआत में गलत लगते हैं, भविष्य में उनका उतना ही लाभ होता है. दरअसल जब जब हम इतिहास का अवलोकन करेंगे तो पाएंगे कि जब भी पुरानी व्यवस्था को बदल कर नई व्यवस्था को लागू करने की कोशिश हुई है तो उसका हमेशा ही विरोध हुआ है. चाहे अमेरिका में पहली बार आर्थिक सुधार की बात हो या भारत में पहली रेल चलने की बात जमकर विरोध हुआ.भारत में जब पहली बार कंप्यूटर आया कितना विरोध हुआ था.

इसी तरह 19वीं शताब्दी की शुरुआत में जब औद्योगिक क्रांति के तहत पश्चिमी यूरोप के देशों में बड़े-बड़े उद्योग स्थापित हो रहे थे और इन उद्योगों में मशीनों का इस्तेमाल हो रहा था तो मशीनों को इंसानों के दुश्मन के तौर पर देखा गया. उस समय ये कहा गया कि मशीनें इंसानों से उनका काम छीन लेंगी और इंसान बेरोजगार हो जाएंगे. महात्मा गांधी ने अपनी पुस्तक हिन्द स्वराज में रेलवे के विस्तार का भी विरोध किया था.हालांकि कुछ वर्षों के बाद ही उन्हें समझ आ गया था कि रेल भारत के लिए कितनी जरूरी है.

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