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राहुल गांधी और कांग्रेस ने भारत जोड़ो न्याय यात्रा में क्या खोया और क्या पाया?

लोकसभा चुनाव की घोषणा होते होते राहुल गांधी ने अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा का समापन कर दिया. यात्रा के दौरान राहुल गांधी कांग्रेस के मैनिफेस्टो का ट्रेलर दिखाकर लोगों का ध्यान भी खींचा है. लेकिन लड़ाई किसके खिलाफ लड़ रहे हैं, ये समझ में नहीं आ रहा है - आखिर इतना कनफ्यूजन क्यों है?

मुंबई में राहुल गांधी का विपक्ष के साथ 'शक्ति' प्रदर्शन रास्ते से भटक क्यों गया? मुंबई में राहुल गांधी का विपक्ष के साथ 'शक्ति' प्रदर्शन रास्ते से भटक क्यों गया?
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 18 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 7:56 PM IST

मणिपुर से निकली राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा मुंबई पहुंच कर खत्म हो गई है. न्याय यात्रा भारत जोड़ो यात्रा से थोड़ी अलग रही, जिसमें राहुल गांधी को कई राज्यों में धक्के खाने पड़े. न्याय यात्रा के दौरान ही ममता बनर्जी ने कांग्रेस को छोड़ कर अकेले चुनाव लड़ने के फैसले की घोषणा की - और नीतीश कुमार को भी साथ छोड़ने का बहाना मिल गया. 

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भारत जोड़ो यात्रा यानी राहुल गांधी की पहली और दूसरी यानी भारत जोड़ो न्याय यात्रा में काफी फर्क भी देखने को मिला है. राहुल गांधी की पहली यात्रा से दूरी बनाने वाले समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव का साथ भी न्याय यात्रा के दौरान ही मिला है - और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ कांग्रेस का दिल्ली में चुनावी गठबंधन भी हो चुका है, जिसे पिछली यात्रा के समापन समारोह का न्योता तक नहीं भेजा गया था. हालांकि, अरविंद केजरीवाल की जिद के चलते पंजाब में कांग्रेस को आम आदमी पार्टी के साथ फ्रेंडली मैच भी खेलना पड़ रहा है.

भारत जोड़ो न्याय यात्रा का समापन भी विवादों भरा हुआ है. राहुल गांधी के भाषण पर नया बवाल शुरू हो गया है. राहुल गांधी के भाषण से एक कीवर्ड 'शक्ति' को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरे विपक्ष पर टूट पड़े हैं. 'परिवार' वाले विवाद के बाद ये दूसरा बड़ा मौका है जब प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्षी खेमे की बातों से बाजी पलटने की कोशिश की है. 

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राहुल गांधी किसके खिलाफ लड़ रहे हैं?

भारत जोड़ो न्याय यात्रा शुरू होने से पहले ही राहुल गांधी ने साफ कर दिया था कि वो लोगों के लिए इंसाफ की लड़ने के लिए सड़क पर उतर रहे हैं. पांच न्याय के नाम तो राहुल गांधी ने पहले ही बता दिये थे - युवा न्याय, नारी न्याय, किसान न्याय, श्रमिक न्याय और हिस्सेदारी न्याय.

कांग्रेस की तरफ से कैंपेन चल रहा है - अन्याय के खिलाफ लड़ाई जारी है... न्याय का हक, मिलने तक! 
कांग्रेस की तरफ से X पर बार बार लिखा जा रहा है, हमने देश को बता दिया है कि हम किसान, महिला, युवा, श्रमिक और हिस्सेदारी के लिए क्या करेंगे.

लेकिन जिन लोगों को साथ लेकर ये लड़ाई लड़नी है, और जिसके खिलाफ ये लड़ाई लड़ी जा रही है - राहुल गांधी अपनी ही बातों में उलझ कर रह जाते हैं. किसी भी नेता की सार्वजनिक मंचों से कही गई बातें, राजनीतिक बयान होती हैं - और ऐसे बयान हमेशा ही राजनीतिक रूप से दुरूस्त होने चाहिये. इतना दुरूस्त कि राजनीतिक विरोधियों को उसे काउंटर करने में लोहे के चने चबाने पड़ें. 

हो सकता है, अपनी तरफ से राहुल गांधी एजेंडा सेट करने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन बीजेपी महफिल लूट ले जाती है. राहुल गांधी को ये नहीं भूलना चाहिये कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब लालू यादव जैसे घुटे हुए नेता की बातों पर बाजी पलटने जैसी रणनीति अपना सकते हैं, तो उनका क्या हो सकता है. ये तो राहुल गांधी खुद भी मानते हैं कि मोदी उनसे अच्छा भाषण देते हैं. 

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भारत जोड़ो न्याय यात्रा के समापन के मौके पर राहुल गांधी ने जिसके खिलाफ लड़ाई की बात बतानी चाही, वहां थोड़ा सा चूक गये. राहुल गांधी ने एक शक्ति का जिक्र किया, जिसके खिलाफ वो लड़ रहे हैं. राहुल गांधी ने ये भी बताया था कि वो राजा के खिलाफ लड़ रहे हैं. राजा की शक्ति के खिलाफ, लेकिन तभी शक्ति को हिंदू धर्म से जोड़ दिया. अगर हिंदुत्व से जोड़े बिना भी राहुल गांधी आगे बढ़ गये तो भी कोई दिक्कत नहीं होती. अगर शक्ति की जगह राजा की ताकत बोल दिये होते तो भी चल जाता, लेकिन हिंदू धर्म का नाम लेकर फंस गये. बिलकुल वैसे ही जैसे राहुल गांधी के हिंदू, हिंदुत्व और हिंदूवादियों में फर्क समझाने की कोशिशें नाकाम होती रही हैं - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शक्ति के बहाने हमले की धार सिर्फ कमजोर करने की कोशिश की है, बल्कि निशाना ही पलट दिया है.  

अब अगर ऐसी ही चीजों में राहुल गांधी की राजनीति उलझी रही तो न्याय दिलाने के दावे का क्या होगा? पांच न्याय दिलाने का वादा अंजाम तक कैसे पहुंच सकेगा?

क्या राहुल गांधी को अब तक ये नहीं समझ में आया कि वो मौजूदा दौर की सबसे बड़ी राजनीतिक शक्ति से लड़ाई लड़ रहे हैं, और ऐसी लड़ाई में छोटी से छोटी चूक भी लड़ाई का रुख मोड़ देती है - और हथियार बैकफायर करने लगते हैं. 

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न्याय यात्रा और भारत जोड़ो यात्रा में फर्क?

विवाद तो बहुत सारे कन्याकुमारी से कश्मीर तक वाली राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में भी हुए थे, लेकिन राहुल गांधी अपनी एक छवि बदल डाली थी. पहले राहुल गांधी की इमेज बन गई थी कि वो किसी भी काम के अंजाम तक पहु्ंचने की परवाह ही नहीं करते, बीच में ही छुट्टी लेकर विदेश दौरे पर चले जाते हैं. राहुल गांधी ने पूरे रास्ते पदयात्रा की. कई जगह तो साथी नेताओं के लिए साथ चलना भी मुश्किल हो रहा था, क्योंकि वो काफी तेज चलते या जॉगिंग वाले जोश से भर जाते. 

भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान तो राहुल गांधी ने छोटा सा विदेश दौरा भी किया, लेकिन मणिपुर से मुंबई तक का सफर पूरा किया. भारत जोड़ो न्याय यात्रा वैसे भी छोटी थी, और पैदल के साथ साथ वाहनो से भी चलने का प्रावधान पहले से ही रख लिया गया था. 

भारत जोड़ो न्याय यात्रा 106 जिलों से गुजरी है, जबकि भारत जोड़ो यात्रा में 76 जिलों को ही कवर किया गया था. न्याय यात्रा 62 दिनों में ही खत्म हो गई, जबकि भारत जोड़ो यात्रा 140 दिन तक चली थी. 

चुनावी सफलता के पैमाने पर तौलें तो पहली यात्रा के दौरान कांग्रेस की हिमाचल प्रदेश में सरकार बनी थी, जो राज्यसभा चुनावों के दौरान बाल बाल बची है. उसके बाद कर्नाटक में भी सरकार बनी, जिसका कुछ क्रेडिट तो कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को भी मिलना चाहिये. फिर पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में दो राज्यों में सरकार गंवा कर भी अगर कांग्रेस ने तेलंगाना में सरकार बना ली, तो मौजूदा हालात में कोई मामूली बात नहीं है - लेकिन कांग्रेस को मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में हार की फिक्र जरूर होनी चाहिये, क्योंकि वहां की लड़ाई लोकसभा चुनाव 2024 के की तरह थी जिसमें कांग्रेस को बीजेपी से अपनी खोई हुई ताकत छीन लेनी थी. कांग्रेस चूक गई. अब गलती कमलनाथ की हो या दिग्विजय सिंह की, दर्ज तो राहुल गांधी के खाते में ही होगी. 

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भारत जोड़ो न्याय यात्रा में राहुल गांधी ने क्या खोया, क्या पाया?

अव्वल तो न्याय यात्रा को राहुल गांधी की पिछली यात्रा से ज्यादा प्रभावी होना चाहिये था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. हो सकता है, ये यात्रा INDIA ब्लॉक के बैनर तले निकली होती तो ज्यादा असरदार होती. 

1. भारत जोड़ो यात्रा से परहेज करने वाले अखिलेश यादव का राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में शामिल होना एक उल्लेखनीय उदाहरण है, लेकिन ममता बनर्जी कुछ कुछ और नीतीश कुमार का पूरी तरह साथ छोड़ कर चले जाना लालू यादव के मुकाबले कांग्रेस के लिए बड़ा झटका समझा जाएगा. 

2. शिवाजी स्टेडियम में राहुल गांधी ने विपक्षी खेमे के नेताओं के साथ 'शक्ति' प्रदर्शन की यथासंभव कोशिश जरूर की, लेकिन नतीजा कुछ खास निकल कर आया हो, ऐसा तो नहीं लगता - तेजस्वी यादव और एमके स्टालिन जरूर मौजूद रहे, लेकिन अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव की कमी काफी खल रही थी. लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी को अखिलेश यादव और अरविंद केजरीवाल का तो मिला है, लेकिन दिल्ली की ही तरह पंजाब में भी आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन हो गया होता तो और बात होती. 

विपक्ष के और भी बहुत सारे नेता भारत जोड़ो न्याय यात्रा के समापन समारोह में शामिल हुए. डी. राजा, उद्धव ठाकरे, शरद पवार और फारूक अब्दुल्ला जैसे नेताओं का मंच पर खड़ा होना विपक्ष के एकजुट होने का संदेश तो देता है, लेकिन वो बहुत प्रभावी नहीं होता. 

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3. पांच न्याय के बहाने राहुल गांधी ने घूम घूम कर चुनाव की घोषणा से पहले ही कांग्रेस मैनिफेस्टो तो बता ही दिया था. युवाओं के लिए ग्रेजुएट होते ही अप्रेंटिसशिप, महिलाओं के लिए केंद्र सरकार की नौकरियों में 50 फीसदी आरक्षण और परिवार की एक महिला को साल में एक लाख रुपये देने का ऐलान लोगों का ध्यान तो खींचता ही है.

लेकिन 'शक्ति' पर शुरू हुई राजनीतिक बहस ध्यान भटका भी देती है. अब भले ही कोई उसे आसुरी शक्ति के रूप में समझाता फिरे, तीन कमान से छूट जाने के बाद शक्ति के इलाज के लिए तो संजीवनी बूटी की ही जरूरत पड़ती है. 

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