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राहुल गांधी का बिहार एक्शन प्लान तो बीजेपी के लिए ही फायदेमंद लगता है

कांग्रेस ने अब दिल्ली मॉडल के साथ ही चुनावी राजनीति में आगे बढ़ने का फैसला कर लिया है. बेशक ये कांग्रेस के लिए अभी काफी नुकसानदेह लगता हो, और बीजेपी को फायदा पहुंचाने वाला - लेकिन दूरगामी परिणाम बहुत अच्छे भी हो सकते हैं.

राहुल गांधी ने कांग्रेस की रणनीति बदल दी है, और अब आने वाले हर चुनाव में दिल्ली की ही छाप देखने को मिल सकती है. राहुल गांधी ने कांग्रेस की रणनीति बदल दी है, और अब आने वाले हर चुनाव में दिल्ली की ही छाप देखने को मिल सकती है.
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 21 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 1:22 PM IST

शुरुआत तो हरियाणा से ही हो गई थी, लेकिन बीच में महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव आ गये, और राहुल गांधी को खुल कर प्रयोग करने का मौका नहीं मिला. लिहाजा दिल्ली चुनाव का इंतजार रहा - और वहां खुल कर प्रयोग किये. जो लोग नंबर में यकीन करते हैं, वे राहुल गांधी को फिर से फेल मान सकते हैं, लेकिन व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखें तो कांग्रेस दिल्ली में फायदे में रही है - और अब ऐसा ही फायदा वो दूसरे राज्यों में भी उठाना चाहती है, भले ही उसके लिए कछ या बहुत कुछ गंवाना क्यों न पड़े.

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बिहार से बंगाल और केरल से पंजाब तक, कांग्रेस नेतृत्व एक ही लाइन पर काम कर रहा है. कांग्रेस की ऐसी बैठकों में राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे भी मौजूद होते हैं, और संबंधित सूबे के कांग्रेस नेता भी बुलाये जाते हैं - जहां उनको बहुत सारी बातें ब्रीफ की जाती हैं, और कई चीजें विस्तार से समझाई जाती हैं. 

स्टेट यूनिट को कांग्रेस नेतृत्व का साफ साफ संदेश होता है कि कांग्रेस अब अपने चुनावी हितों से किसी तरह का समझौता नहीं करने वाली है. ऐसी ही एक मीटिंग से खबर है कि आलाकमान ने बंगाल कांग्रेस के नेताओं को ममता बनर्जी सरकार की नीतियों और खामियों के खिलाफ निडर और मुखर होकर आलोचना करने की हरी झंडी दे दी है - और ये सभी राज्यों के नेताओं के लिए है.  

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कुल मिलाकर कांग्रेस के इस युद्धाभ्यास का लब्बोलुआब यही है कि लड़ाई अब सिर्फ बीजेपी के खिलाफ नहीं है, बल्कि हर उस क्षेत्रीय दल के खिलाफ है जो चुनावों में कांग्रेस की राह का रोड़ा बन रहा है, और कांग्रेस के पुराने वोट बैंक जिनके पास छिटककर चले गये हैं. 

बिहार के मामले में भी बिल्कुल ऐसा ही हो रहा है. बिहार कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरु तो चार्ज लेने के साथ ही एक्टिव हो गये थे. उनके साथ कन्हैया कुमार और पप्पू यादव भी फील्ड में उतर गये थे - और अब नये प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश कुमार को भी मोर्चे पर तैनात कर दिया गया है.

कृष्णा अल्लावरु तो बिहार कांग्रेस के नेताओं को पहले से ही समझा रहे थे कि आने वाले विधानसभा चुनाव में क्या और कैसे करना है - और बता रहे हैं कि आरजेडी के खिलाफ भी वैसी ही रणनीति पर आगे बढ़ना है, जिस तरह दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी के लिए कांग्रेस ने मुश्किलें खड़ी कर दी थी - और, दिलचस्प बात ये है कि समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव बिहार में भी दिल्ली की तरह कांग्रेस के खिलाफ खड़े होने का ऐलान कर चुके हैं.

कांग्रेस का बिहार एक्शन प्लान

बिहार में भी दिल्ली की तरह कांग्रेस की कई कमजोर कड़ियां हैं, लेकिन कुछ पहलू ऐसे भी हैं जो कांग्रेस को काफी मजबूत बनाते हैं. 

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मसलन, मुस्लिम वोट बैंक. मुस्लिम वोट पर दावा तो आरजेडी का ही है, लेकिन कांग्रेस की पैठ भी ठीक-ठाक ही मानी जा सकती है. कोसी सीमांचल में कांग्रेस मजबूत स्थिति में है. देश की सबसे पुरानी पार्टी होने के साथ ही कांग्रेस पर आरजेडी या बाकी क्षेत्रीय दलों की तरह किसी जाति विशेष की पार्टी होने का भी ठप्पा नहीं लगा है. 

ये ठीक है कि अभी तक कांग्रेस लालू परिवार के साये में भी गुजारा कर रही थी, और संगठन भी बिखरा पड़ा था - लेकिन देर से कोई दुरुस्त आये तो उम्मीद करने का हक तो है ही

दिल्ली चुनाव के बीच ही राहुल गांधी ने ताबड़तोड़ बिहार दौरा शुरू कर दिया था, और बिहार में हुई जातिगत गणना को फर्जी बताकर लालू यादव और तेजस्वी यादव के सामने कांग्रेस का इरादा जाहिर कर दिया था.

लोकसभा चुनाव में तो पप्पू यादव के मामले में लालू और तेजस्वी यादव की सक्रियता को देखते हुए राहुल गांधी ने सब नजरअंदाज कर दिया था, लेकिन अब कांग्रेस की बिहार टीम के साथ कन्हैया कुमार और पप्पू यादव को तैनात कर साफ कर दिया है कि क्षेत्रीय दलों के बारे में जो उनका नजरिया है, वो उसी पर कायम रहेंगे. 

कांग्रेस के राजस्थान चिंतन शिविर और भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी कह चुके हैं कि क्षेत्रीय दलों के पास कांग्रेस की तरह कोई विचारधारा नहीं है, इसलिए उनको कांग्रेस के साथ ही चलना होगा. और पीछे पीछे चलना होगा, नहीं तो कांग्रेस अकेले ही अपना रास्ता तय करेगी. 

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बिहार में भी दिखेगा दिल्ली चुनाव का नजारा

अभी तक औपचारिक तौर पर कांग्रेस की तरफ से बिहार महागठबंधन अलग होने को लेकर कुछ नहीं कहा गया है. और, इस तरह बिहार महागठबंधन में फिलहाल आरजेडी, कांग्रेस, सीपीआई-एमएल, सीपीआई, सीपीएम के साथ मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी भी शामिल है. पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस भी 14 अप्रैल को अपना रुख साफ करने वाले हैं, जिसे लेकर माना जा रहा है कि वो भी लालू यादव के साथ ही खड़े होने की घोषणा कर सकते हैं. 

राहुल गांधी और उनकी टीम के तेवर देखते हुए माना जाने लगा है कि चुनाव में कांग्रेस बिहार महागठबंधन का हिस्सा नहीं रहने वाली है, और यही वजह है कि अभी से यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी दिल्ली की तरह बिहार में भी कांग्रेस के खिलाफ खड़े होने जा रहे हैं. फिर तो ये भी मान लेना चाहिये कि ममता बनर्जी भी दिल्ली वाला रुख ही अपनाएंगी. 

अखिलेश यादव का कहना रहा है कि जो राजनीतिक दल बीजेपी को हराएगा, समाजवादी पार्टी उसका साथ देगी. दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के साथ देने के पीछे भी यही तर्क था. 

दिल्ली में अखिलेश यादव के कांग्रेस विरोध के बावजूद यूपी के मिल्कीपुर उपचुनाव में कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी को एकतरफा समर्थन दिया था, लेकिन पहले दिल्ली के चुनाव में अरविंद केजरीवाल का साथ देना और अब आरजेडी के समर्थन की बात करके अखिलेश यादव भी कांग्रेस पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे लगते हैं - अखिलेश यादव अपनी तरफ से ये जताने की भी कोशिश कर रहे हैं कि कांग्रेस के बगैर भी समाजवादी पार्टी विपक्षी खेमे में मजबूती से अपना रोल निभा सकती है. कांग्रेस के खिलाफ ममता बनर्जी का सपोर्ट कर लालू यादव ने भी ऐसा ही किया है. 

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दिल्ली और बंगाल की तरह कांग्रेस का मकसद अब बिहार में भी सिर्फ बीजेपी को हराना नहीं है, बल्कि अपना जनाधार मजबूत करना है. अपने पुराने वोटर से रीकनेक्ट होना है. कांग्रेस कार्यकर्ताओं का जोश हाई रखना है. भले ही विधानसभाओं में जीरो बैलेंस की नौबत क्यों न आ जाये. भविष्य की बात और है, लेकिन अभी तो कांग्रेस की इस रणनीति का फायदा बीजेपी को ही मिलने वाला है. दिल्ली चुनाव मिसाल है. और, बिहार की बारी है.  

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