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CPI-BJP से चुनौती के बावजूद राहुल गांधी क्या सिर्फ वायनाड से ही लड़ेंगे?

राहुल गांधी को वायनाड पर अमेठी से ज्यादा भरोसा होने लगा है. 2019 में चुनावों से पहले ही अमेठी से भरोसा उठ गया था, तभी तो वायनाड का भी रुख किया था - लेकिन पहले की तरह खुला मैदान नहीं है - मैदान में तो बीजेपी भी उतर आई है, लेकिन बड़ी चुनौती सीपीआई से मिल रही रही है.

नामांकन से पहले वायनाड में प्रियंका गांधी के साथ राहुल गांधी रोड शो में नामांकन से पहले वायनाड में प्रियंका गांधी के साथ राहुल गांधी रोड शो में
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 03 अप्रैल 2024,
  • अपडेटेड 5:14 PM IST

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने वायनाड से नामांकन पत्र दाखिल कर दिया है. केरल की वायनाड सीट से ही फिलहाल वो सांसद हैं. मानहानि के एक केस में दो साल की सजा होने पर कुछ दिनों के लिए उनकी सदस्यता खत्म हो गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की मदद से केस चलने तक सजा पर रोक लगा दी गई, और राहुल गांधी की सदस्यता बहाल हो गई. 

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राहुल गांधी सिर्फ वायनाड से ही चुनाव लड़ेंगे या किसी और सीट की भी तैयारी है, अभी तक पता नहीं चल सका है. सबसे ज्यादा सस्पेंस अमेठी और रायबरेली को लेकर बना हुआ है, क्योंकि अभी तक वहां से कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है. 

वायनाड को लेकर तो राहुल गांधी का आत्मविश्वास अमेठी के मुकाबले काफी ज्यादा महसूस हो रहा है. 2019 में अमेठी पर भरोसा नहीं हुआ, इसलिए वायनाड पहुंच गये. लेकिन पांच साल बाद वायनाड पर इतना भरोसा हो चुका है कि अमेठी लौटने की कौन कहे, अब तक किसी और सीट से चुनाव लड़ने की कोई चर्चा भी नहीं है - तब भी, जबकि 2019 की तरह इस बार वायनाड में खेलने के लिए खुला मैदान भी नहीं मिल रहा है. 

राहुल गांधी के लिए सबसे बड़ा चैलेंज तो सीपीआई उम्मीदवार एनी राजा हैं. दूसरी चुनौती केरल बीजेपी के अध्यक्ष के. सुरेंद्रन भी मैदान में उतर आये हैं - मतलब, राहुल गांधी के लिए ये चुनाव 2019 के मुकाबले काफी मुश्किल हो सकता है. 

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सीपीआई की तरफ से राहुल गांधी की उम्मीदवारी का पहले से ही विरोध शुरू हो गया था. केरल के लेफ्ट नेताओं की दलील रही है कि राहुल गांधी को बीजेपी के खिलाफ लड़ना चाहिये, उत्तर भारत की किसी लोकसभा सीट से. हो सकता है, उनका इशारा अमेठी और रायबरेली की तरफ ही हो. लेफ्ट की ये भी सलाह रही कि अगर उत्तर भारत से नहीं चुनाव लड़ना तो दक्षिण भारत में भी वायनाड के अलावा कहीं और से लड़ लेते - लेकिन कांग्रेस ने ये कहते हुए ऐसी मांगे खारिज कर दी कि राहुल गांधी मौजूदा सांसद हैं और वायनाड से चुनाव लड़ते रहेंगे. 

वायनाड से नामांकन दाखिल करते वक्त इस बार भी राहुल गांधी के साथ उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा भी मौजूद थीं. नामांकन से पहले राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा ने रोड शो किया, जिसमें काफी तादाद में कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता मौजूद थे. 

अमेठी से ज्यादा अपनापन वायनाड में मिलने का दावा

पांच साल पहले चुनाव जीतने के बाद राहुल गांधी जब वायनाड पहुंचे, तो जो कुछ कहा उसका लब्बोलुआब यही था कि उनको सब कुछ ऐसा लग रहा है जैसे बचपन से ही वहीं के हों. 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करते वक्त भी राहुल गांधी ने वैसी ही बातें दोहराने की कोशिश की. 

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राहुल गांधी बोले, 'पांच साल पहले मैं वायनाड आया... जब आपने मुझे संसद सदस्य के रूप में चुना था... आपने फौरन ही मुझे अपने परिवार का हिस्सा बना लिया... वायनाड के हर व्यक्ति ने मुझे स्नेह, प्यार और सम्मान दिया है और मुझे अपने जैसा माना है.'

राहुल गांधी ने बताया कि वायनाड के भाइयों और बहनों से उन्होंने बहुत कुछ सीखा है. बोले, मैं आपको भी बिलकुल वैसा ही समझता हूं, जैसी भावना मेरी छोटी बहन प्रियंका वाड्रा के लिए है.  

दो साल बाद जब 2021 में केरल विधानसभा चुनाव हो रहे थे, तो राहुल गांधी ने खुद को वायनाड के लोगों जैसा होने की कोशिश में यहां तक कह डाला कि दक्षिण भारत के लोगों की राजनीतिक समझ उत्तर भारत के लोगों के मुकाबले कहीं बेहतर है - शायद ये अमेठी के लोगों के प्रति राहुल गांधी के गुस्से का पहला इजहार था. 

अब अगर राहुल गांधी सिर्फ वायनाड से ही चुनाव लड़ते हैं तो मान कर चलना होगा कि वो वायनाड को लेकर अपनी दोनों ही बातों पर अब भी कायम हैं - और हो सकता है उसी वजह से वो अमेठी से दूरी बनाये रखने की कोशिश कर रहे हों. 

लेकिन अमेठी और रायबरेली से दूरी बनाना राहुल गांधी की राजनीतिक सेहत के लिए ठीक बात नहीं है. ये ठीक है कि अगर राहुल गांधी अमेठी का रुख करते हैं, तो फिर से स्मृति ईरानी से भिड़ना पड़ेगा - और यूपी में राम मंदिर की लहर में ये लड़ाई काफी खतरनाक भी हो सकती है, लेकिन अमेठी के मुकाबले रायबरेली कम खतरनाक है.

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सोनिया गांधी के राज्यसभा चले जाने के बाद रायबरेली सीट भी खाली हो गई है - और माना जा रहा है कि रायबरेली से प्रियंका गांधी चुनावी राजनीति की शुरुआत कर सकती हैं. 

इंडिया ब्लॉक की तरफ से दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई विपक्षी दलों की रैली में प्रियंका गांधी की मौजूदगी ने हर किसी का ध्यान खींचा. अगर वो रैली सिर्फ कांग्रेस की होती तो बात और होती. रामलीला मैदान सहित पहले हुई कांग्रेस की रैलियों में प्रियंका गांधी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती रही हैं, लेकिन विपक्ष की रैली में उनका शामिल होना कोई न कोई खास संकेत तो है ही. 

विपक्ष की रैली के लिए राहुल गांधी, सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे की मौजूदगी पर्याप्त थी, और ऐसे में प्रियंका गांधी की मौजूदगी एक्स्ट्रा अटेंशन लेने वाली लगी. मतलब, प्रियंका गांधी को भी कांग्रेस से बाहर की राजनीति में अहमियत दी जाने लगी है. वैसे तो वो अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव के साथ चुनावी गठबंधन की सीटों पर मोलभाव करती रही हैं, लेकिन विपक्षी समागम में उनका हिस्सा लेना कुछ न कुछ कहता तो है ही. 

प्रियंका गांधी के चुनावी राजनीति में कूदने को लेकर कांग्रेस नेताओं की राय बंटी हुई है. कुछ नेता ये जरूर मानते हैं कि प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने की संभावना बनी हुई है - और राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के बीच उत्तर भारत और दक्षिण भारत में राजनीतिक बंटवारा होने जा रहा है? 

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वायनाड की डगर पहले से मुश्किल

वायनाड सीट पर 2019 में राहुल गांधी की जीत का मार्जिन ठीक ठाक था - करीब साढे़ चार लाख. 

लेकिन ये भी नहीं भूलना चाहिये कि तब सीपीआई उम्मीदवार को भी करीब पौने तीन लाख वोट मिले थे - और तब मैदान में एनी राजा जैसी बड़ी नेता की तरफ से चैलेंज नहीं मिला था. सीपीआई महासचिव डी. राजा की पत्नी एनी राजा सीपीआई की राष्ट्रीय महिला फेडरेशन की जनरल सेक्रेट्री भी हैं, और सीपीआई की नेशनल एग्जीक्युटिव की सदस्य भी.

करीब चार दशक के अपने राजनीतिक कॅरियर में एनी राजा सीपीआई में बहुत तरह की जिम्मेदारियां निभा चुकी है, लेकिन लोक सभा का चुनाव पहली बार लड़ रही हैं. 

एक तरफ एनी राजा की चुनौती है, और दूसरी तरफ राहुल गांधी के खिलाफ बीजेपी ने अपने प्रदेश अध्यक्ष के. सुरेंद्रन को वायनाड के मैदान में उतार दिया है. के. सुरेंद्रन केरल में बीजेपी का जाना माना चेहरा हैं, और उनके खिलाफ कुल 242 केस दर्ज हैं. 2018 में हुए सबरीमाला विरोध प्रदर्शन के दौरान वो काफी सक्रिय रहे, और उसी दौरान उनके खिलाफ 237 केस दर्ज किये गये थे. 

जहां तक वायनाड सीट पर चुनावी चैलेंज का सवाल है, उसे के. सुरेंद्रन के 2019 के प्रदर्शन से भी समझा जा सकता है. 2019 में वो केरल की पथानामथिट्टा लोकसभा सीट से बीजेपी के उम्मीदवार थे, लेकिन तीसरा स्थान पर रहे. 

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वायनाड में भी के. सुरेंद्र राहुल गांधी को बिलकुल वैसै ही घेर रहे हैं, जैसे अमेठी में स्मृति ईरानी. असल में प्रतिबंधित पीएफआई के राजनीतिक विंग एसडीपीआई के नेताओं की तरफ से कहा गया है कि केरल में वो कांग्रेस की अगुवाई वाले यूडीएफ के सपोर्ट का फैसला किया है - और बीजेपी इसी बात को लेकर हमलावर हो गई है. 

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के. सुरेंद्रन कह रहे हैं, 'कांग्रेस धर्मनिरपेक्ष दल होने का दावा करती है, लेकिन राजनीतिक फायदे के लिए वो कट्टरपंथियों की मदद लेती है... वायनाड में भी एसडीपीआई ने राहुल को समर्थन देने का वादा किया है... राहुल को इस गठजोड़ के बारे में बताना चाहिये.'

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