Advertisement

राहुल गांधी नये साल में वही फसलें काटेंगे जो कांग्रेस ने 2024 में बोई हैं | Opinion

राहुल गांधी को, दस साल बाद, 2024 में थोड़ा खुश होने का बहाना मिला, क्योंकि 2014 से तो वो धक्के ही खाते आ रहे थे. नये साल में भी संभलने का पूरा मौका है, बशर्ते बीते साल में मिले सबक को वो भुला न दें.

राहुल गांधी के लिए नये साल में अपार संभावनाएं हैं, लेकिन शर्तें भी लागू हैं. राहुल गांधी के लिए नये साल में अपार संभावनाएं हैं, लेकिन शर्तें भी लागू हैं.
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 01 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 4:28 PM IST

राहुल गांधी को किसी तरह की भी जिम्मेदारी लेने में पूरे पांच साल लग गये. 2019 में राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ दिया था, और 2024 के आम चुनाव के राहत भरे नतीजे आने के बाद ही उन्होंने लोकसभा में विपक्ष के नेता बनने का फैसला किया - वैसे भी, ये मौका तो कांग्रेस नेता को दस साल बाद ही मिल पाया है. 2014 में कांग्रेस के केंद्र की सत्ता से बेदखल होने के बाद से तो राहुल गांधी लगातार संघर्ष ही करते आ रहे थे. 

Advertisement

2014 के मुकाबले राहुल गांधी को 2024 में काफी सबक मिले हैं. 2019 से पहले भी राहुल गांधी के पास मौके थे, लेकिन 2017 में तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बन जाने के बाद के अति-आत्मविश्वास ने सब ले डूबा.

2024 ने राहुल गांधी को संभलने का मौका दिया, नये साल में राहुल गांधी के पास मजबूती से खड़े होने का मौका है, और कांग्रेस को खोई हुई ताकत और प्रभाव वापस दिलाने का - बशर्ते, बीते साल में मिले सबक को वो खुद न भुला दें. 

1. लोकसभा चुनाव के नतीजे राहुल गांधी और कांग्रेस के लिए बहुत सारी नई उम्मीदें जगाते हैं. आम चुनाव में मिली 99 सीटों ने राहुल गांधी को आगे बढ़कर जिम्मेदारी लेने के लिए मोटिवेट किया, और वो लोकसभा में विपक्ष के नेता बन गये. 

Advertisement

जिस तरह से राहुल गांधी ने स्पीकर चुनाव के लिए इंडिया ब्लॉक का उम्मीदवार घोषित किये जाने से नाराज ममता बनर्जी को मना लिया था, वो उनकी राजनीतिक परिपक्वता और नेतृत्व क्षमता के लिए कॉम्प्लीमेंट था, लेकिन जैसे ही वो अपने पसंदीदा शगल, अडानी के मुद्दे पर लौटे सारे किये धरे पर पानी फिरने लगा. 

2. राहुल गांधी को अब जिद छोड़ देनी चाहिये, और अडानी जैसे मुद्दों से जल्द से जल्द तौबा कर लेना चाहिये. क्योंकि, उनके मनाने पर मान गईं ममता बनर्जी ने ही अडानी के मुद्दे पर सबसे पहले तेवर दिखाना शुरू किया है. 

ममता का इशारा पाते ही तृणमूल कांग्रेस नेताओं ने मल्लिकार्जुन खड़गे की तरफ से बुलाई जाने वाली इंडिया ब्लॉक की बैठकों में जाना बंद कर दिया, और विपक्षी गठबंधन में नेतृत्व परिवर्तन की मांग शुरू हो गई. 

देखते ही देखते लालू यादव, शरद पवार और अखिलेश यादव सब के सब राहुल गांधी को पीछे छोड़ ममता बनर्जी के साथ खड़े होने लगे - वो शुक्रगुजार होना चाहिये बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर का कि राहुल गांधी को विपक्ष का फिर से सपोर्ट मिल गया. अब तो राहुल गांधी को मन से मान लेना चाहिये कि बार बार ऐसे मौके नहीं मिलते - फिर से ऐसी गलती हुई तो लेने के देने पड़ सकते हैं. 

Advertisement

3. राहुल गांधी के हाथ जातीय जनगणना जैसा बढ़िया मुद्दा हाथ लगा है. जातीय जनगणना के नाम पर ही राहुल गांधी को लालू यादव से लेकर अखिलेश यादव तक का साथ मिला है. 

राहुल गांधी ने आंबेडकर के मुद्दे की गंभीरता वैसे ही समझ लिया, जैसे 2018 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने पर एससी-एसटी का मुद्दा लपक लिया था. 

बेहतर होगा, राहुल गांदी जातीय जनगणना और आंबेडकर जैसे और मुद्दे खोज लें, और उन पर फोकस होकर काम करें - क्योंकि विपक्ष का साथ भी तभी मिल पाएगा. 

4. राहुल गांधी को विचारधारा के नाम पर क्षेत्रीय दलों को नीचा दिखाना बंद करना होगा. विपक्षी नेताओं को हर कदम पर तवज्जो देनी होगी, तभी बात बनेगी.
राहुल गांधी को ये तो नहीं ही भूलना चाहिये कि कांग्रेस को यूपी में जो भी कामयाबी मिली है, वो तो अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के सहयोग से ही मिली है. और बिहार, झारखंड या तमिलनाडु जैसे राज्यों में कांग्रेस क्षेत्रीय दलों की बदौलत ही प्रासंगिक बनी हुई है. 

और हां, भारत जोड़ो यात्रा और न्याय यात्रा जैसे कार्यक्रम भी चलाते रहना चाहिये, और कुछ न सही मीडिया की सुर्खियों में बने रहने का मौका भी तो मिलता है. 

5. जैसे नेता प्रतिपक्ष बने हैं, वैसे ही राहुल गांधी को नये साल में आगे बढ़कर और भी जिम्मेदारियां संभालनी होगी, और उसके लिए जरूरी चीजें सीखनी होगी. 

Advertisement

जैसे स्पीकर चुनाव में रुठी हुई ममता बनर्जी को मना लिया था, अखिलेश यादव की नाराजगी रोकने के लिए भी वैसे ही प्रयास करने होंगे - और अन्य क्षेत्रीय नेताओं के साथ भी वैसा ही सम्मानजनक व्यवहार करना होगा. 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement