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तेलंगाना में गांधी फैमिली शो... 'सोनिया अम्मा' की अपील पर राहुल-प्रियंका का दांव

तेलंगाना में राहुल गांधी का करीब करीब वैसा ही कैंपेन रहा है, जैसा 2017 में गुजरात में देखा गया था. प्रियंका गांधी के साथ रोड शो में सेल्फी लेते देखे गये राहुल गांधी चुनाव प्रचार के आखिरी दिन सोनिया गांधी को तेलंगाना तो नहीं बुला सके लेकिन 'सोनिया अम्मा' का संदेश जरूर पहुंच गया है.

राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के कैंपेन और सोनिया गांधी के संदेश के भरोसे तेलंगाना में कांग्रेस राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के कैंपेन और सोनिया गांधी के संदेश के भरोसे तेलंगाना में कांग्रेस
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 28 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 8:46 PM IST

विधानसभा चुनाव वाले पांच राज्यों में एक तेलंगाना ही ऐसा रहा जहां राहुल गांधी खुल कर अपने मन की बात कर पाये. और प्रियंका गांधी को भी खुल कर खेलने का भरपूर मौका मिल सका - और ये इसलिए भी संभव हो सका क्योंकि तेलंगाना में रेवंत रेड्डी ने ये सब होने दिया. 

राजस्थान में तो गांधी परिवार की भूमिका रस्मअदायगी भर ही देखने को मिली. वैसे मौका मिलने पर राहुल गांधी ने फायदा भी उठाया. बगैर ये परवाह किये कि उनके बयानों से अशोक गहलोत की मेहनत पर पानी तो नहीं फिर जाएगा, राहुल गांधी ने बीजेपी के खिलाफ भड़ास निकाल कर रख दी. 

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चुनावी रैलियों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 'पनौती' से लेकर 'जेबकतरा' तक कह कर बुलाते रहे. ये समझना भी मुश्किल हो रहा था कि राहुल गांधी ज्यादा खफा बीजेपी और मोदी से हैं, या फिर अपने ही अशोक गहलोत से. अशोक गहलोत ने चुनाव प्रचार के आखिरी दौर तक आने तक बड़ी ही संजीदगी से कैंपेन किया था. मोदी और बीजेपी नेता अमित शाह के आरोपों का भी बड़े आराम से जवाब दिया था, और अच्छी बाड़बंदी भी कर रखी थी. 

छत्तीसगढ़ में भी करीब करीब राजस्थान जैसा ही हाल रहा. भूपेश बघेल के साथ राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के थोड़े बेहतर अनुभव रहे होंगे, बनिस्बत अशोक गहलोत के मुकाबले. मिजोरम तो वैसे भी सबकी पहुंच के बाहर रहा, और मध्य प्रदेश में कमलनाथ ने सारा ही कंट्रोल अपने हाथ में ले रखा था. मध्य प्रदेश में जितने अधिकार दिग्विजय सिंह को हासिल थे, उतने ही गांधी परिवार को भी, फिर मल्लिकार्जुन खड़गे की कौन कहे. कैंपेन के बीच ही महत्वपूर्ण मौके छोड़ कर चुनाव प्रभारी कांग्रेस महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला का दिल्ली लौट आना मिसाल है.  

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मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से फ्री होने के बाद प्रियंका गांधी भी राहुल गांधी के साथ तेलंगाना में कांग्रेस के चुनाव कैंपेन में शिद्दत से जुट गयी थीं - और चुनाव प्रचार के आखिरी दिन सोनिया गांधी के भी तेलंगाना पहुंचने की चर्चा धीरे से छेड़ दी गयी थी. 

सोनिया गांधी के कार्यक्रम की घोषणा तो नहीं की गयी थी, लेकिन ऐसा माहौल तो बना ही दिया गया था कि लोग उनका इंतजार करने लगें. बहरहाल, सोनिया गांधी तो नहीं पहुंची, लेकिन कांग्रेस की तरफ से सोनिया गांधी की इमोशनल अपील वाला एक वीडियो मैसेज जरूर जारी कर दिया गया - अपने संदेश में सोनिया गांधी ने राहुल गांधी के भाषणों से 'प्रजाला सरकार' और कांग्रेस के सोशल मीडिया कैंपेन से 'बदलाव' का विशेष रूप से जिक्र जरूर किया है. 

'कांग्रेस बदलाव चाहती है'

बदलाव की मंशा तो कांग्रेस को 2024 में दिल्ली में भी है, लेकिन अभी सबसे ज्यादा जोर तेलंगाना पर ही देखने को मिला है. शायद इसलिए भी क्योंकि तेलंगाना में ही राहुल गांधी को बाकी राज्यों के मुकाबले बेहतर कंफर्ट जोन भी मिला था. 

तेलंगाना कांग्रेस अध्यक्ष रेवंत रेड्डी को राहुल गांधी के बेहद करीबी कांग्रेस नेताओं में माना जाता है. जैसे कभी पंजाब वाले नवजोत सिंह सिद्धू भी हुआ करते थे, और महाराष्ट्र में नाना पटोले अब तक बने हुए हैं. नाना पटोले की ही तरह बीजेपी की विचारधारा वाली पृष्ठभूमि से आये रेवंत रेड्डी को स्थानीय नेताओं के कड़े विरोध के बावजूद राहुल गांधी ने कांग्रेस की कमान सौंपी, और उसे अब तक बरकरार भी रखा है. 

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रेवंत रेड्डी को राहुल गांधी तेलंगाना की कामारेड्डी से सीट से चुनाव लड़ा रहे हैं, क्योंकि वहां से मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव भी चुनाव लड़ रहे हैं. केसीआर गजवेल के अलावा दूसरी सीट कामारेड्डी से भी इस बार विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं. कामारेड्डी की लड़ाई ने कैथल की याद दिला दी है. वैसे तो इस लड़ाई की अरविंद केजरीवाल से भी तुलना की जा रही है. एक उपचुनाव में राहुल गांधी ने अपने करीबी नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला को भी हरियाणा की कैथल सीट से उम्मीदवार बना दिया था. और अरविंद केजरीवाल से तुलना इसलिए क्योंकि दिल्ली में तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को शिकस्त देकर ही वो दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे. लगता है, राहुल गांधी अब रेवंत रेड्डी में केजरीवाल का अक्स देख रहे हैं. 

आपको याद होगा, 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का सोशल मीडिया कैंपेन, 'विकास गांडो थायो छे' खूब हिट हुआ था, वैसे ही तेलंगाना में इस बार कांग्रेस के एक कैंपेन 'मारपु कावालि कांग्रेस रवली' (Marpu Kavali Congress Ravali) का वीडियो चर्चा में है. कांग्रेस का ये कैंपेन युवाओं, महिलाओं और किसानों पर केंद्रित है. वीडियो में कांग्रेस ने किसानों की आत्महत्या, कर्जमाफी और तेलंगाना में किसानों की कई समस्याओं पर प्रकाश डालने की कोशिश की है. 

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कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने अपने वीडियो संदेश के आखिर में पार्टी के चुनाव कैंपेन का ही नाम लिया है. 

'सोनिया अम्मा' की इमोशनल अपील

तेलंगाना के बहनों और भाइयों को संबोधित अपने संदेश में सोनिया गांधी ने सबसे पहले 'नमस्कारम्' कहा है. तेलंगाना न पहुंच पाने के लिए अफसोस जताते हुए कहा है, 'मैं आप सबके बीच नहीं आ पाई लेकिन मैं आप सबके दिल के बहुत करीब हूं.' 

सोनिया गांधी कहती हैं, 'तेलंगाना मां के शहीद बेटों का सपना पूरा होते देखना चाहती हूं... मैं दिल से चाहती हूं कि दोराला तेलंगाना को हम सब प्रजाला तेलंगाना में बदल दें... आपके सपनों को साकार करें और आपको एक सच्ची और ईमानदार सरकार दें.'

तेलंगाना के लोगों के प्रति आभार प्रकट करते हुए कांग्रेस नेता ने कहा है, 'आपने मुझे सोनिया अम्मा कहकर अपार श्रद्धा और सम्मान दिया है... मुझे मां समान माना, इस प्रेम और आदर के लिए मैं आपकी सदा आभारी रहूंगी और आपके प्रति हमेशा के लिए समर्पित रहूंगी... तेलंगाना की अपनी बहनों, माताओं, बेटों-बेटियों और भाइयों से मेरी गुजारिश है कि इस बार अपनी पूरी शक्ति बदलाव लाने के लिए इस्तेमाल करें.'

जिस 'दोराला' शब्द का जिक्र सोनिया गांधी ने किया है, राहुल गांधी भी अपने भाषण में करते रहे हैं, 'तेलंगाना में दोराला सरकार और प्रजाला सरकार के बीच लड़ाई है.' दोराला यानी सामंती सरकार यानी केसीआर जो सरकार चलाते हैं, और प्रजाला यानी जनता की सरकार यानी वो सरकार जो कांग्रेस के चुनाव जीतने पर बन सकती है.

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कांग्रेस के लिए वोट करने की गुजारिश के साथ सोनिया गांधी ने अंग्रेजी में चुनावी कैंपेन की लाइन भी दोहरायी है, 'कांग्रेस बदलाव चाहती है.'

राहुल गांधी अपनी चुनावी रैलियों में तेलंगाना बनाने का श्रेय सोनिया गांधी को देते रहे हैं. प्रियंका गांधी के भाषणों में भी इंदिरा अम्मा का खास तौर पर जिक्र होता रहा है. अब सोनिया गांधी के संदेश में 'सोनिया अम्मा' सुनने को मिला है - और ऐसी बातें सुनते ही केसीआर और उनका परिवार आपे से बाहर हो जाता है. 

केसीआर अपनी चुनावी रैलियों में कहते रहे हैं, 'कांग्रेस के लोग कह रहे हैं कि अगर वे जीते तो इंदिराम्मा राज्यम लाएंगे... इंदिराम्मा राज्यम कौन चाहता है? इंदिराम्मा राज्यम में क्या हुआ था? अगर वो इतना अच्छा होता, तो एनटीआर को पार्टी क्यों बनानी पड़ती? और दो रुपये किलो चावल की पेशकश क्यों करनी पड़ती? इंदिराम्मा राज्यम आपातकाल, मुठभेड़ों, गोलीबारी और हत्याओं से भरा था.'

राहुल गांधी ने भी केसीआर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाली स्टाइल में भी टारगेट किया है, और मोदी की ही तरह प्रियंका गांधी ने भी केसीआर को 'फार्महाउस मुख्यमंत्री' कह कर संबोधित किया है. यही वजह है कि केसीआर भी उसी अंदाज में पलटवार करते रहे हैं, 'जहां तक प्रति व्यक्ति आय का सवाल है, आज तेलंगाना देश में शीर्ष स्थान पर है... यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गृह राज्य गुजरात से भी आगे है.'

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राहुल गांधी जिस तरीके से सोनिया गांधी को तेलंगाना को राज्य बनाने का क्रेडिट दे रहे थे, और सोनिया गांधी ने भी अपने संदेश में श्रेय लेने की कोशिश की. ऐसा लगता है, राहुल गांधी कर्नाटक के बाद तेलंगाना की जीत सोनिया गांधी को तोहफे में देना चाहते हैं - क्या सोनिया गांधी का संदेश तेलंगाना में प्रजाला सरकार बनवा पाएगा?

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