
ममता बनर्जी की कोशिश है कि पश्चिम बंगाल में चुनावी जंग सिर्फ तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही हो, लेकिन कांग्रेस ऐसा हरगिज नहीं होने देना चाहती. राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पार्टी नेताओं को पश्चिम बंगाल में जनाधार के साथ साथ संगठन को भी मजबूत करने की सलाह दी है.
राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे की सलाह बता रही है कि पश्चिम बपंगाल में अब कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच गठबंधन की कोई संभावना नहीं बची है - और पश्चिम बंगाल चुनाव भी कांग्रेस उसी तरीके से लड़ने की तैयारी कर रही है जैसे दिल्ली चुनाव लड़ा था. पश्चिम बंगाल में विधानसभा के चुनाव अगले साल यानी 2026 में होने हैं.
ममता बनर्जी तो पहले ही घोषणा कर चुकी हैं कि बंगाल की चुनावी जंग में तृणमूल कांग्रेस अकेले बीजेपी से मुकाबला करेगी, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व अब ममता बनर्जी को पहले की तरह खुला मैदान देने के पक्ष में नहीं है.
और अब तो लगता है कि इंडिया ब्लॉक का भी कोई मतलब नहीं रह गया है. क्योंकि, बंगाल से पहले बिहार में विधानसभा के चुनाव इसी साल के आखिर में होने वाले हैं, और कांग्रेस नेताओं की गतिविधियां बता रही हैं कि आरजेडी के नेतृत्व में महागठबंधन के तहत चुनाव लड़ने का कांग्रेस का कोई इरादा नहीं है.
जो हालात हैं, कांग्रेस का तो कोई नुकसान होने से रहा. साफ है कांग्रेस के ताजा स्टैंड से ममता बनर्जी ही घाटे में रहेंगे, और सीधा फायदा बीजेपी को ही होगा.
राहुल गांधी का मिशन बंगाल कैसे होगा
पश्चिम बंगाल के नेताओं के साथ राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे ने मीटिंग बुलाकर मुलाकात की है. और मीटिंग में कांग्रेस नेताओं को साफ कर दिया गया है कि अब सब कुछ पहले की तरह नहीं चलेगा. और, जो बताया गया है उसमें यही है कि आगे से ममता बनर्जी को भी खुला मैदान नहीं देना है.
मीटिंग के बाद राहुल गांधी ने सोशल साइट एक्स पर लिखा है, पश्चिम बंगाल कांग्रेस नेताओं के साथ दिल्ली के इंदिरा भवन में एक प्रभावशाली चर्चा हुई... हमारा मकसद था पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूत करना... और जनता के अधिकारों के लिए संघर्ष करना... कांग्रेस बंगाल के लोगों की आकांक्षाओं की मजबूत आवाज बनेगी.
मीटिंग में राहुल गांधी और खड़गे के अलावा संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल, कांग्रेस के पश्चिम बंगाल प्रभारी गुलाम अहमद मीर और पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष शुभंकर सरकार भी शामिल थे - लेकिन खास बात लगी अधीर रंजन चौधरी और दीपादास मुंशी की मौजूदगी.
देखा जाये तो अधीर रंजन चौधरी की मौजूदगी ने कांग्रेस की रणनीति कुछ इस तरह साफ की है कि पुरानी धारणा भी बदल गई है. अधीर रंजन चौधरी को पश्चिम बंगाल के अध्यक्ष पद से हटाये जाने के पीछे ममता बनर्जी के प्रति उनके सख्त स्टैंड को असली वजह माना जा रहा था, लेकिन अब ऐसा नहीं लगता.
दिल्ली से बदली कांग्रेस की चुनावी रणनीति
जब ये साफ हो गया कि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ममता बनर्जी के साथ हाथ नहीं मिलाएगी, तो ये भी साफ हो जाता है कि अधीर रंजन चौधरी को सिर्फ ममता बनर्जी से तल्ख रिश्ते के कारण नहीं हटाया गया था. ऐसा भी तो हो सकता है, जैसे बिहार में अखिलेश प्रसाद सिंह को हटाया गया है, अधीर रंजन चौधरी के साथ भी वैसा ही हुआ हो.
अब तो ये भी साफ हो गया है कि राहुल गांधी का जो स्टैंड दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के खिलाफ रहा, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के खिलाफ भी वैसा ही रहने वाला है. और, संभव है कि बिहार में लालू यादव और तेजस्वी यादव के खिलाफ भी राहुल गांधी दिल्ली जैसा रुख ही अख्तियार करें.
राहुल गांधी ने कांग्रेस नेताओं को अपनी तरफ से साफ कर दिया है कि कांग्रेस का मकसद अब सिर्फ बीजेपी को हराना ही नहीं होना चाहिये, बल्कि तृणमूल कांग्रेस को कमजोर कर कांग्रेस की जड़ें मजबूत करने पर जोर होना चाहिये.
पीछे लौटकर देखें तो 2020 के दिल्ली चुनाव और 2021 के पश्चिम बंगाल चुनाव में कांग्रेस सिर्फ बीजेपी को हारते हुए देखना चाहती थी, लेकिन अब उसे अरविंद केजरीवाल की हार खुशी देने लगी है. और, अब ऐसी ही खुशी राहुल गांधी बिहार और पश्चिम बंगाल के चुनाव नतीजों के बाद महसूस करना चाहते हैं.
2020 के दिल्ली चुनाव में राहुल गांधी ने बहुत कम प्रचार किया था, और निशाने पर अरविंद केजरीवाल से ज्यादा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नजर आये. राहुल गांधी की रैली के बाद वोटिंग होने तक केजरीवाल के खिलाफ उनके बयान नहीं, बल्कि मोदी को लेकर बोले गये 'युवा डंडे मारेंगे' ज्यादा गूंजता रहा.
और, ऐसे ही पश्चिम बंगाल चुनाव में भी कैंपेन के लिए राहुल गांधी आखिर में पहुंचे थे. पहले वो तमिलनाडु और केरल चुनाव में व्यस्त देखे गये थे. पश्चिम बंगाल की रैली में भी ममता बनर्जी और नरेंद्र मोदी को एक जैसा बता रहे थे. लेकिन, कोविड का असर बढ़ने के कारण आगे के कार्यक्रम रद्द कर दिये गये थे.
अब तो लगता है, राहुल गांधी भविष्य की बंगाल की रैलियों में हमला सीधे सीधे ममता बनर्जी पर होगा - और बीजेपी के साथ साथ तृणमूल कांग्रेस को भी दिल्ली की तरह हराने पर जोर होगा.