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राहुल गांधी का यूपी फोकस, अखिलेश यादव से दलित-मुस्लिम वोटबैंक छीनने की रणनीति | Opinion

राहुल गांधी अचानक उत्तर प्रदेश की राजनीति में बहुत दिलचस्पी लेने लगे हैं. संभल और हाथरस की यात्रा यूं ही नहीं तैयार की गई थी. कांग्रेस इस रणनीति के पीछे उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का मजबूत आधार तय करना है या अखिलेश यादव पर जवाबी हमला है?

Akhilesh Yadav and Rahul Gandhi (Photo/PTI File) Akhilesh Yadav and Rahul Gandhi (Photo/PTI File)
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 13 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 12:29 PM IST

उत्तर प्रदेश में 2027 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं.इन चुनावों को लेकर सबसे ज्यादा उत्साहित कांग्रेस दिख रही है. दिल्ली और बिहार में नए साल की शुरूआत में ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं पर कांग्रेस का फोकस यूपी पर इतना ज्यादा क्यों है यह समझने वाली बात है. जबकि यूपी में कांग्रेस का भविष्य कागज पर तो बिल्कुल भी नहीं है. जबकि दिल्ली में उसका आधार ज्यादा मजबूत है. यही हाल बिहार में भी कहा जा सकता है. यब सब जानते हुए भी यदि कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश को प्रॉयरिटी में रखे हुए हैं तो जाहिर है यूं ही नहीं होगा. इसके पीछे कुछ तो मकसद होगा. अन्यथा दिल्ली की न्याय यात्रा में पहुंचने का टाइम नहीं मिला पर संभल और हाथरस जाने का टाइम क्यों मिल गया. अब सवाल यह उठ रहा है कि उत्तर प्रदेश की इन यात्राओं के पीछे कांग्रेस की मंशा क्या है?

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1-क्या अखिलेश को घेरने की रणनीति है

कांग्रेस इस बात को अच्छी तरह समझती है कि उत्तर प्रदेश में फतह हासिल किए बिना दिल्ली की गद्दी पर काबिज नहीं हुआ जा सकता है. कांग्रेस यह भी जानती है कि अगर उत्तर प्रदेश में विजय हासिल करनी है तो पहले समाजवादी पार्टी को खत्म करना होगा. आखिर समाजवादी पार्टी आज कांग्रेस के कोर वोटर्स के बल पर ही राजनीति कर रही है. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी भी यह समझती है कि कांग्रेस अगर राज्य में जिंदा हो गई तो उसका अस्तित्व खत्म हो जाएगा. यही कारण रहा कि उपचुनावों में समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करने की रणनीति पर काम किया. हालांकि समाजवादी पार्टी को इसका नुकसान हुआ. कांग्रेस के साथ रहने के चलते लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को दलित वोटों का बड़ा सहारा मिल गया था. 

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2-कांग्रेस मुस्लिमों और दलितों का मसीहा बनने की फिराक में

कांग्रेस जिस तरीके से काम कर रही है उससे तो यही लगता है कि मुसलमान भी समाजवादी पार्टी का साथ छोड़कर उसका दामन थाम सकते हैं. रामपुर में पूर्व मंत्री आजमखान ने पत्र लिखकर जिस तरह मुसलमानों की अनदेखी का आरोप अखिलेश यादव पर लगाया है उसे आगे आने वाले दिनों की झलक मान सकते हैं. कोई अनहोनी नहीं होगी कि आजम खान कुछ दिनों बाद कांग्रेस जॉइन कर लें. लोकसभा चुनावों के पहले भी कई कद्दावर मुस्लिम नेता समाजवादी पार्टी से कांग्रेस की ओर मूव कर गए थे. ये क्रम आने वाले दिनों में और बढ़ सकता है. उत्तर प्रदेश में संभल का दौरा करने की पहले कांग्रेस नेता ने कोशिश की पर सफलता नहीं मिली. उसके बाद संभल पीड़ितों से कहीं बाहर राहुल गांधी मुलाकात करते हैं. तुरंत बाद ही राहुल की यात्रा हाथरस में रेप पीड़ित दलित लड़की के परिजनों से मिलने के लिए हुई. आज से 4 साल पहले हाथरस केस में पीड़िता की मौत हो गई थी.उसके परिजनों का आरोप है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने आज तक न नौकरी दिया और न ही घर दिया. राहुल उनसे मिलकर उत्तर प्रदेश सरकार पर हमला बोलते हैं. यह भी बताते हैं कि पीड़िता के भाई ने उन्हें फोनकर के बुलाया था. जाहिर है कि राहुल गांधी का ये संदेश देश के मुसलमानों और दलितों के लिए यही है कि कांग्रेस उनकी सबसे बड़ी हमदर्द है. क्योंकि अखिलेश यादव संभल और हाथरस को लेकर प्रभाव बनाने से चूक गए. इसका प्रभाव केवल उत्तर प्रदेश में नहीं होगा बल्कि पूरे देश पर होगा.

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3-समाजवादी पार्टी भी सब समझ रही है

समाजवादी पार्टी भी कांग्रेस की रणनीति समझ रही है. शायद यही कारण रहा कि अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में विधानसभा उप चुनावों के दौरान ही कांग्रेस को आईना दिखा दिया था. समाजवादी पार्टी ने लोकसभा में संभल मुद्दे पर बहस करने का टाइम न मिलने का बहाना बताते हुए जिस तरह अडानी मुद्दे पर कांग्रेस से दूरी दिखाई वह इसी रणनीति का हिस्सा थी. सपा सांसद डिंपल यादव ने बुधवार को संसद की कार्यवाही को गौतम अडानी और जॉर्ज सोरोस के मुद्दों पर बाधित करने पर असंतोष व्यक्त किया था. उन्होंने कहा था कि सपा न तो अडानी मुद्दे के साथ है और न ही सोरोस मुद्दे के साथ. हम चाहते हैं कि संसद चले. हालांकि सोमवार को, INDIA गठबंधन के नेतृत्व पर पूछे गए सवाल पर सपा के महासचिव और राज्यसभा सांसद राम गोपाल यादव ने कहा कि फिलहाल कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खबर है कि कांग्रेस खराब कानून-व्यवस्था को लेकर 18 दिसंबर को विधानसभा का घेराव करने की योजना बनाई है, वहीं सपा ने अभी तक अपने सत्र के लिए रणनीति की घोषणा नहीं की है. इसके पहले संसद में अवधेश प्रसाद की सीट पीछे करने पर भी अखिलेश यादव ने कांग्रेस नेताओं पर अपनी नाराजगी जाहिर की थी.

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4-क्या उत्तर प्रदेश में संगठन को मजबूत कर रही है कांग्रेस

कांग्रेस राज्य में अपनी पकड़ को मजबूत बनाने के लिए तैयारियों में जुट गई है. इसे इस तरह समझा जा सकता है कि कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में बड़े संगठनात्मक बदलाव की तैयारी करते हुए राज्य और जिला समितियों को भंग कर दिया है.कहा जा रहा है कि यह फैसला 2027 में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूत करना है. क्योंकि इस बार के लोकसभा में चुनाव में कांग्रेस ने छह सीटों पर जीत हासिल की थी.

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