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दिल्ली की रैली में राहुल गांधी का भाषण कांग्रेस का मैनिफेस्टो नहीं तो क्या है?

कांग्रेस का दिल्ली के खास वोट बैंक पर ज्यादा जोर देखने को मिला है, जिसमें मुस्लिम, ओबीसी और दलित वोटर शामिल हैं - राहुल गांधी की रैली के लिए सीलमपुर का चुनाव, उनके भाषण की बातें भी तो यही सब समझा रही हैं.

राहुल गांधी का चुनाव कैंपेन जीत-हार से ज्यादा अरविंद केजरीवाल के खिलाफ लगता है. राहुल गांधी का चुनाव कैंपेन जीत-हार से ज्यादा अरविंद केजरीवाल के खिलाफ लगता है.
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 14 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 5:37 PM IST

मकर संक्रांति की पूूर्व संध्या पर सीलमपुर में हुई राहुल गांधी की रैली, और उसके बाद खिचड़ी के मौके पर रिठाला में दही-चूड़ा भोज - दिल्ली चुनाव में कांग्रेस की रणनीति समझने के लिए काफी लगती है. 

राहुल गांधी अपने लाव लश्कर के साथ मकर संक्रांति के दिन पूर्वांचल के लोगों से मिलने रिठाला पहुंच गये थे, और वहां के लोगों के साथ दही-चूड़ा खाकर बता दिया कि कांग्रेस दिल्ली विधानसभा का चुनाव किस तरह से लड़ने जा रही है. 

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कांग्रेस की रैली में राहुल गांधी का भाषण अपनेआप में बहुत कुछ कह रहा है - राहुल गांधी की बातें सुनने पर लगता है जैसे कांग्रेस का मैनिफेस्टो का कंटेंट ही समझाने की कोशिश की जा रही हो. 

युवा उड़ान योजना, प्यारी दीदी योजना और जीवन रक्षा योजना तो कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी की रैली और दही-चूड़ा कार्यक्रम से पहले ही घोषित कर दिया गया था - बाकी चीजें राहुल गांधी के भाषण के लिए बता दी गई थीं.

अडानी का मुद्दा तो मान लेते हैं, राहुल गांधी का पसंदीदा शगल है, लेकिन जातीय जनगणना का मामला तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ साथ अरविंद केजरीवाल के लिए ही है. अरविंद केजरीवाल ने जाटों के लिए आरक्षण की मांग की थी, राहुल गांधी तो सत्ता में आने पर रिजर्वेशन का कोटा भी 50 फीसदी से बढ़ाने का वादा करने लगे हैं.

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कांग्रेस की रणनीति को समझने की कोशिश करें तो कांग्रेस दिल्ली विधानसभा चुनाव में कुछ खास वोट बैंक पर फोकस करते हुए आगे बढ़ रही है. कांग्रेस का कैंपेन बेशक दिल्ली की सभी 70 सीटों पर देखने को मिल रहा है, लेकिन कांग्रेस नेताओं का मुस्लिम ओबीसी और दलित वोटों पर खास जोर समझ में आ रहा है. 

दिल्ली के उन विधानसभा क्षेत्रों को भी कांग्रेस तरजीह दे रही है, जहां 2020 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को अच्छा वोट शेयर मिला था. सीलमपुर के अलावा ऐसे इलाके हैं, बादली, गांधी नगर, कस्तूरबा नगर, हरि नगर, जंगपुरा और बवाना.

ओबीसी वोट बैंक की लड़ाई

दिल्ली की रैली में राहुल गांधी का कहना था, ‘जब तक मैं जिंदा हूं, अगर किसी भी हिंदुस्तानी पर हमला होगा, तो वो किसी भी धर्म का हो जाति का हो… मैं उसकी हिफाजत करूंगा.’

कांग्रेस नेता ये बातें सत्ता में आने पर जातिगत जनगणना कराने के वादे के साथ कहते हैं. साफ है, निशाने पर सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही नहीं हैं, आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल भी हैं.  

राहुल गांधी लंबे अर्से से जातिगत जनगणना का मुद्दा उठा रहे हैं. रैली में वो आरक्षण का कोटा बढ़ाने की भी बात करते हैं. और, लगे हाथ ये भी कहते हैं कि केजरीवाल और मोदी इन मुद्दों पर चुप्पी साध लेते हैं. 

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राहुल गांधी कह रहे हैं, पिछड़ों को उनका हक नहीं मिल रहा है…  संसाधनों का बराबर बंटवारा नहीं हो रहा है… हम समानता चाहते हैं… गरीबों, अल्पसंख्यकों के लिए भागीदारी चाहते हैं… लोगों को केजरीवाल से पूछना चाहिए कि क्या वो पिछड़ों के लिए आरक्षण और जाति जनगणना कराना चाहते हैं?

हाल ही में, अरविंद केजरीवाल ने जाट कम्युनिटी को ओबीसी में शामिल करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है. जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाकर राहुल गांधी, सिर्फ अरविंद केजरीवाल को ही नहीं घेरते अखिलेश यादव को भी कठघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं. मैसेज देने की कोशिश है कि जातिगत जनगणना पर चुप्पी साध लेने वाले को अखिलेश यादव दिल्ली चुनाव में सपोर्ट कर रहे हैं. 

मुस्लिम वोट बैंक पर फोकस

सीलमपुर से राहुूल गांधी की रैली की शुरुआत मुस्लिम वोटों को अरविंद केजरीवाल के खाते में जाने से रोकना है. अगर कांग्रेस उम्मीदवार मुस्लिम वोट हासिल कर लेते हैं तो बल्ले बल्ले, हार गये तो आम आदमी पार्टी कोभी ले डूबेंगे. और झगड़े का फायदा उठा कर बीजेपी जीती तो अरविंद केजरीवाल की सीटें ही कम होंगी - और कांग्रेस दबाव बनाने में कामयाब होगी. दिल्ली का दबाव इंडिया ब्लॉक के लिए भी उतना ही असरदार होगा, कांग्रेस को भला और क्या चाहिये. 

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दिल्ली आबादी का 12.9 फीसदी मुस्लिम हैं, जिनका दिल्ली की 6 सीटों पर सीधा प्रभाव है. जिस सीलमपुर से राहुल गांधी ने रैली की शुरुआत की है, वहां 50 फीसदी से मुस्लिम वोटर हैं. 

48 फीसदी मुस्लिम आबादी वाला मटिया महल, 43 फीसदी वाला ओखला, 36 फीसदी वाला मुस्तफाबाद, 38 फीसदी वाला बल्लीमारान और 35 फीसदी वाला बाबरपुर विधानसभा क्षेत्र फिलहाल आम आदमी पार्टी के पास है, जिसमें कांग्रेस सेंध लगाने की कोशिश कर रही है. 

ऐसी और भी विधानसभा सीटें हैं, जहां 20 से 25 फीसदी मुस्लिम आबादी है, जैसे सीमापुरी, गांधी नगर, चांदनी चौक, सदर बाजार, विकासपुरी और करावल नगर. अरविंद केजरीवाल की मुश्किल सिर्फ कांग्रेस ही नहीं बढ़ा रही है, असदुद्दीन ओवैसी ही की पार्टी AIMIM भी पहले से ही मैदान में कूद पड़ी है - अब अगर कांग्रेस को फायदा न भी मिले तो अरविंद केजरीवाल को घाटा होना तो पक्का है. 

आंबेडकर के बहाने दलित वोट साधने की कोशिश भी है

संसद के शीतकालीन सत्र से शुरू हुए आंबेडकर विवाद को भी राहुल गांधी दिल्ली चुनाव में आगे बढ़ाने की कोशिश है. ये भी ऐसा मुद्दा है जिसमें बीजेपी के साथ साथ अरविंद केजरीवाल भी निशाने पर आ जाते हैं. 

भले ही अरविंद केजरीवाल अपनी कुर्सी के पीछे भगत सिंह के साथ भीमराव आंबेडकर की तस्वीर लगा रखे हों, लेकिन राहुल गांधी को उससे ज्यादा बुरा तब लगा होगा जब अरविंद केजरीवाल ने आंबेडकर के मुद्दे पर एनडीए सरकार को सपोर्ट कर रहे टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू और जेडीयू नेता नीतीश को पत्र लिखा था.

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ये ठीक है कि दलित वोटों के लिए बीएसपी नेता मायावती भी दिल्ली चुनाव के मैदान में कूद पड़ी हैं, लेकिन कांग्रेस फिर से उनसे जुड़ने की कोशिश कर रही है. 

लोकनीति-CSDS की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली में 17 फीसदी दलित वोटर हैं, और विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को अब 60 फीसदी से ज्यादा वोट मिलने लगा है. दिल्ली दर्जन भर ऐसी सीटें हैं जहां दलित वोटों का सीधा प्रभाव है.

राहुल गांधी के मिशन में ये सारी ही चीजें शामिल है, और इसीलिए वो आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक जैसा बता रहे हैं. 

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