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महाकुंभ पर राहुल गांधी क्या लालू और ममता के बहकावे में आ गए?

क्या राहुल गांधी के महाकुंभ जाने की चर्चा भी बिल्कुल वैसी ही थी, जैसी राम मंदिर उद्घाटन को लेकर थी? राहुल गांधी ने एक बार फिर सॉफ्ट हिंदुत्व का रास्ता अख्तियार करने के बजाय ममता बनर्जी और लालू यादव जैसा स्टैंड लिया है?

क्या राहुल गांधी ने महाकुंभ से भी अयोध्या की ही तरह दूरी बना ली? क्या राहुल गांधी ने महाकुंभ से भी अयोध्या की ही तरह दूरी बना ली?
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 27 फरवरी 2025,
  • अपडेटेड 1:43 PM IST

राहुल गांधी जिस दिन रायबरेली पहुंचे थे, उस दिन उनके महाकुंभ में जाने की बात चल रही थी. ये बात इसलिए भी गंभीर लग रही थी क्योंकि अखिलेश यादव संगम में डुबकी वाली तस्वीर पहले ही सोशल मीडिया पर शेयर कर चुके थे. 

दिल्ली विधानसभा चुनाव में तो राहुल गांधी का अलग ही रूप देखने को मिला था. लोकसभा चुनाव से बिल्कुल अलग. और, हरियाणा-महाराष्ट्र चुनाव से तो बहुत ही अलग - बल्कि, आगे बढ़कर सामने से विपक्षी खेमे के नेताओं को ही चैलेंज कर रहे थे. अखिलेश यादव और राहुल गांधी परस्पर विरोधी छोर पर खड़े थे. 

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अरविंद केजरीवाल तो औपचारिक रूप से कांग्रेस विरोधी छोर पर खड़े थे, लेकिन ममता बनर्जी और अखिलेश यादव भी तो अरविंद केजरीवाल की ही तरफ थे. हां, लालू यादव और तेजस्वी यादव ने झगड़े से दूर रहने का फैसला किया था. लेकिन, राहुल गांधी तो पटना तक जाकर इशारा कर ही आये कि दिल्ली की जंग की झलक बिहार में भी देखने को मिलने वाली है. 

दिल्ली चुनाव में तो राहुल गांधी विपक्षी नेताओं के दबाव से मुक्त दिखे, लेकिन महाकुंभ को लेकर लगता है वैसे ही दबाव में आ गये, जैसे अयोध्या में राम मंदिर उद्घाटन समारोह के दौरान देखने को मिला था. जैसे ही ममता बनर्जी ने राम मंदिर उद्घाटन समारोह के बहिष्कार की घोषणा की, कांग्रेस की तरफ से भी बयान आ गया. पहले तो कहा गया कि कांग्रेस का कोई भी नेता अयोध्या नहीं जाएगा, लेकिन जैसे ही कुछ नेताओं ने अयोध्या चलो जैसा नारा दिया, राहुल गांधी ने फैसला नेताओं और कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर छोड़ दिया. 

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महाकुंभ के मामले में राहुल गांधी की तरफ से पहले जैसा कोई संकेत नहीं मिल रहा था. खासकर, अखिलेश यादव के महांकुभ जाने के बाद. क्योंकि पहले तो वो भी महाकुंभ के न्योते और व्यवस्था पर लगातार सवाल उठा चुके थे. सवाल तो अब भी उठा रहे हैं - अब सवाल ये उठता है कि आखिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि राहुल गांधी के महाकुंभ दौरे की चर्चा ही बंद हो गई?

राहुल गांधी के महाकुंभ जाने की खबर तो पक्की थी

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के पूरे परिवार के साथ महाकुंभ जाने की खबर आ रही थी. और, ये खबर अयोध्या जाने से बिल्कुल अलग थी - और, समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव के संगम में डुबकी लगा लेने के बाद तो ये खबर और भी पक्की भी लगने लगी थी.

खबर आई थी, राहुल गांधी के साथ वायनाड सांसद और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी और उनके बेटे रेहान वाड्रा भी प्रयागराज जाने वाले हैं. जाने का कार्यक्रम करीब करीब फाइनल और तारीख 19-20 फरवरी बताई गई थी, लेकिन अचानक राहुल गांधी अपने चुनाव क्षेत्र रायबरेली पहुंच गये.

रायबरेली में राहुल गांधी ने बीएसपी नेता मायावती की राजनीति पर उंगली उठा दी और बवाल मचा दिया. राहुल गांधी ने पूछ लिया कि आखिर मायावती ठीक से चुनाव लड़ क्यों नहीं रही हैं? और वो विपक्ष के साथ क्यों नहीं हैं? मतलब, वो बीजेपी के साथ खड़ी क्यों नजर आ रही हैं?

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मायावती की तरफ से राहुल गांधी के बयान पर पहले की ही तरह बेहद सख्त प्रतिक्रिया आई, और बीएसपी नेता ने कहा कि वो किसी तरह के दबाव में नहीं हैं. और, केंद्र में सत्ताधारी किसी पार्टी की कृपा से नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट अपने खिलाफ मामले जीते हैं. 

राहुल गांधी का महाकुंभ से अचानक दूरी बना लेना क्या कहलाता है?

1. हाल ही में सवाल जवाब के दौरान बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव ने महाकुंभ को ‘फालतू’ बताया था. और, उसके बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो महाकुंभ को ‘मृत्युकंभ’ ही बता डाला - लगता है, राहुल गांधी फिर से सॉफ्ट-हिंदुत्व की तरफ बढ़ने की हिम्मत नहीं जुटा सके, और महाकुंभ से दूर रहने का फैसला किया. 

2. लोकसभा चुनाव से पहले, राम मंदिर उद्घाटन समारोह को लेकर कांग्रेस नेतृत्व में काफी उलझन महसूस की जा रही थी. कांग्रेस नेताओं की तरफ से कभी मल्लिकार्जुन खड़गे तो कभी गांधी परिवार के अयोध्या जाने के संकेत दिये जा रहे थे - लेकिन तभी एक दिन ममता बनर्जी ने अचानक ही अयोध्या समारोह के बहिष्कार का ऐलान कर दिया. और राहुल गांधी भारत जोड़ो न्याय यात्रा पर निकल गये. मणिपुर से मुंबई तक.

3. लेकिन, ममता बनर्जी ने राहुल गांधी को तब भी नहीं छोड़ा, न्याय यात्रा के साथ पश्चिम बंगाल में राहुल गांधी की एंट्री से ठीक पहले ममता बनर्जी ने बंगाल में अकेले चुनाव लड़ने यानी कांग्रेस के साथ गठबंधन न करने का ऐलान कर दिया. राहुव गांधी और कांग्रेस नेता ममता बनर्जी के खिलाफ नरम रुख अपनाये रहे, लेकिन ममता बनर्जी झुकने तो तैयार ही नहीं हुई. लोकसभा चुनाव बाद जब स्पीकर चुनाव के लिए कांग्रेस ने उम्मीदवार उतार दिया तब भी ममता बनर्जी गुस्सा हो गईं, लेकिन राहुल गांधी के फोन करने पर मान भी गई थीं. उसके अलावा वैसा कोई मौका बाद में देखने को मिला हो, फिलहाल तो याद नहीं आ रहा है.

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4. अभी तो हालत ये है कि ममता बनर्जी इंडिया ब्लॉक का नेतृत्व भी करना चाहती हैं. लालू यादव ने भी कहा है कि ममता बनर्जी को इंडिया ब्लॉक का नेता बना देना चाहिये. मतलब, राहुल गांधी से अनौपचारिक नेतृत्व भी छीन लिया जाना चाहिये. राहुल गांधी भी जानते हैं कि ये सब बड़ी मुसीबतें हैं, लेकिन ये भी मालूम है कि कांग्रेस को दरकिनार करना आसान भी नहीं है. ममता बनर्जी खुद ऐसी कोशिश करके देख चुकी हैं, और असफलता ही हाथ लगी है. 

5. भीमराव आंबेडकर के मुद्दे पर जरूर राहुल गांधी को विपक्ष का साथ मिला था, जब केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने संसद में बयान दिया था. लेकिन, दिल्ली चुनाव में तो वो सब भी खत्म हो गया - जब ममता बनर्जी और अखिलेश यादव ने अरविंद केजरीवाल का सपोर्ट कर दिया था. ममता बनर्जी और अखिलेश यादव के सपोर्ट के बावजूद अरविंद केजरीवाल चुनाव हार गये, जीत तो कांग्रेस भी नहीं हासिल कर पाई, लेकिन राहुल गांधी को तो सिर्फ अरविंद केजरीवाल को हराने से ही मतलब था. वही नजारा आने वाले बिहार चुनाव में भी देखने को मिल सकता है. 

बिहार के करीब छह महीने बाद पश्चिम बंगाल में भी विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. बिहार में इसी साल के आखिर में और पश्चिम बंगाल में अगले साल यानी अप्रैल-मई, 2025 में - राहुल गांधी अब आगे की चुनावी तैयारियों में लग गये हैं.

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