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राजस्थान में चुनाव नतीजे आने के बाद सीएम पद को लेकर लगातार संस्पेंस बढ़ता जा रहा है. आज वसुंधरा राजे के घर पर करीब 20 से ज्यादा BJP के विधायक पहुंच चुके हैं. ऐसे में चर्चा गरम है कि क्या वसुंधरा को हाईकमान से ग्रीन सिग्नल मिल गया है सीएम पद की ताजपोशी का या राजस्थान की इस पूर्व सीएम ने आग से खेलने की तैयारी कर ली है? क्योंकि बीजेपी में किसी भी नेता की इतनी हिम्मत नहीं है कि केंद्रीय नेतृत्व के बिना ग्रीन सिग्नल के अपने घर पर विधायकों को परेड कराने लगे. दूसरी ओर सीएम पद के एक और दावेदार माने जा रहे बालकनाथ दिल्ली पहुंच गए हैं. इस बीच सवाल यह उठ रहे हैं कि क्या वसुंधरा बीजेपी में सचिन पायलट की राह पर हैं? सचिन पायलट को लगता था कि उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया है और कांग्रेस की जीत के कारण वो ही हैं. हालांकि कभी भी उनको 20 से अधिक विधायकों का समर्थन खुलकर नहीं मिला. यही कारण रहा है कि कांग्रेस में सचिन पायलट असंतुष्ट बनकर 5 साल का करियर किस तरह काटें हैं ये वो ही जानते हैं.
क्यों इसे माना जा रहा वसुंधरा का शक्ति प्रदर्शन
जिस तरह वसुंधरा के घर विधायक पहुंच रहे हैं और प्रेस के सामने आकर वसुंधरा को सीएम बनाने की बात कर रहे हैं उसे देखकर कोई भी कह सकता है कि वसुंधरा राजे ने प्रेशर पॉलिटिक्स शुरू कर दी है. BJP के नवनिर्वाचित जहाजपुर से आने वाले विधायक गोपीचंद मीणा ने वसुंधरा राजे से मुलाकात की और कहा कि लोग वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं. ब्यावर से आने वाले विधायक सुरेश रावत भी वसुंधरा राजे से मिलने पहुंचे. उन्होंने कहा कि वसुंधरा ने पहले बहुत अच्छा काम किया है, लेकिन सीएम आलाकमान जिसे बनाए हम पार्टी के साथ हैं.इसके पहले बीजेपी विधायक बहादुर सिंह कोली जयपुर में वसुंधरा राजे के आवास में एंट्री करते हुए बोले थे कि वसुंधरा राजे को ही सीएम बनना चाहिए.हालांकि उन्होंने भी कहा कि वह पार्टी के फैसले के साथ हैं. हालांकि पार्टी के फैसले के समर्थन की बात तभी तक की जाती है जब तक उम्मीद रहती है कि आलाकमान हमारी बातें सुन रहा है.
वसुंधरा के पास क्या हैं ऑप्शन
अगर वसुंधरा पार्टी पर प्रेशर बनाने के लेवल तक खुद को ले जाती हैं तो इसका अंजाम उनके पक्ष में जाएगा इसकी उम्मीद न के बराबर है. वर्तमान में राजस्थान की राजनीति में कांग्रेस भी इतनी ताकतवर नहीं है कि उसका सपोर्ट उन्हें मिल सके. अभी उनके घर पर कहा जा रहा है कि करीब 20 विधायक पहुंचे हुए हैं. यह सही है कि जिन विधायकों ने उनके घर पहुंचने की हिम्मत दिखाई है वास्तव में वसुंधरा के कट्टर समर्थक होंगे. हो सकता है कि एक दो विधायक और उनके पास हों. पर कांग्रेस के 69 एमएलए मिलकर भी उनका भला नहीं कर सकते. भारतीय जनता पार्टी की जो कार्यशैली है उससे तो यही लगता है कि कांग्रेस पार्टी के उन 69 विधायकों का भी भरोसा नहीं है कि वो कब तक अपनी पार्टी का दामन थामे रहेंगे.वसुंधरा के समर्थन की बात तो दूर की हो जाएगी.सचिन पायलट की तरह वो 20-22 विधायकों का साथ लेकर कभी भी क्रांति नहीं कर सकेंगी. बस पायलट की तरह असंतुष्ट बनकर राजनीति करनी होगी.
2024 के लोकसभा चुनाव वसुंधरा के पास एक मात्र उम्मीद
इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि वसुंधरा के पास राजस्थान में आज भी जबरदस्त जनसमर्थन है. उनकी रैलियों में जनता की भीड़ यह बताती थी कि राजस्थान के लोकल नेताओं में सबसे अधिक वो लोकप्रिय हैं. राजपूत की बेटी, जाटों की बहू और गुर्जरों की समधन की छवि के चलते उनकी पैठ हर वर्ग में रही है. यही कारण रहा कि बीजेपी आलाकमान ने उनको कमान तो नहीं दी पर उन्हें अलग-थलग भी नहीं होने दिया. हालांकि वसुंधरा इस बार के चुनावों में अपने होम डिस्ट्रिक्ट में ही कुछ नहीं कर पाईं. धौलपुर जिले की चारों सीटों में से एक भी बीजेपी नहीं जीत सकी है. इसी तरह वसुंधरा के कई खास लोग अभी अपना चुनाव नहीं जीत सके हैं. फिर भी अगर वसुंधरा प्रेशर बनाती हैं तो हो सकता है कि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों तक पार्टी उन्हें राजस्थान की कमान सौंप दे. क्योंकि भारतीय जनता पार्टी का फोकस अभी पूरी तरह 2024 के लोकसभा चुनाव हैं. पार्टी नहीं चाहेगी कि जिस तरह अशोक गहलोत और सचिन पायलट की लड़ाई में राजस्थान में कांग्रेस का बंटाधार हो गया उसी तरह वसुंधरा राजे के चलते बीजेपी भी कमजोर हो.