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विपक्ष का 'धर्मसंकट'... राम मंदिर जाने को लेकर फंसा INDIA गुट, 4 विकल्‍प हैं लेकिन सबमें मुश्किल

इंडिया गठबंधन की पार्टियों का राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने या न होने का मुद्दा गरम होता जा रहा है. कांग्रेस समेत कई पार्टियों के लिए मुश्किल हो गई है कि वह क्या करें? वामपंथी पार्टियों ने पहले ही अयोध्‍या न जाने का एलान कर दिया है.

राम मंदिर को लेकर इंडिया गठबंधन पशोपेश में राम मंदिर को लेकर इंडिया गठबंधन पशोपेश में
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 26 दिसंबर 2023,
  • अपडेटेड 5:50 PM IST

राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह पर राजनीति तो होनी ही थी. बीजेपी ने फिलहाल विपक्ष को आमंत्रण देकर गुगली फेंक दिया है. इंडिया गठबंधन के बहुत से साथियों के लिए ऊहापोह की स्थिति पैदा हो गई है. फिलहाल बीजेपी यही चाहती भी थी. इंडिया गठबंधन की 19 दिसंबर वाली बैठक में भी इस मुद्दे पर चर्चा हुई थी कि राम मंदिर का श्रेय लेने से किस तरह बीजेपी को रोका जाए. पर राममंदिर को लेकर बीजेपी की आक्रामक रणनीति में विपक्ष बुरी तरह फंस गया है. कम्युनिस्ट पार्टियों को छोड़कर अन्य दल अभी भी समझ नहीं पा रहे हैं कि उन्हें क्या स्टेप लेना है.

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राम मंदिर मुद्दे से चिंतित वामपंथियों ने अपनी राय स्‍पष्‍ट कर दी

राम मंदिर मुद्दे का भाजपा किस तरह भुनाएगी और लोकसभा चुनाव में वह इसका कैसे फायदा उठाएगी, इस बात की सबसे पहली चिंता सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने की थी. इंडिया गुट की बैठक में उन्‍होंने सभी साझेदार दलों से आग्रह किया था कि वह राम मंदिर मुद्दे पर एक काउंटर स्‍ट्रेटेजी तैयार करे. पूरा विपक्ष इस बारे में कोई साझा रणनीति तय कर पाता, उससे पहले वामदलों की ओर से CPI(M) नेता बृंदा करात ने क्लियर कर दिया है कि हमारी पार्टी अयोध्या में राम मंदिर के 'प्राण प्रतिष्ठा' समारोह में शामिल नहीं होगी. हम धार्मिक मान्यताओं का सम्मान करते हैं लेकिन वे एक धार्मिक कार्यक्रम को राजनीति से जोड़ रहे हैं. यह एक धार्मिक कार्यक्रम का राजनीतिकरण है. यह सही नहीं हैं. आयोध्‍या से आए निमंत्रण पर येचुरी ने कहा कि हमने किसी को कुछ नहीं कहा. वो आए थे निमंत्रण देने. हमने चाय कॉफी पूछी उनको. हमे निमंत्रण मिला. उद्घाटन समारोह में पीएम, योगी और पदाधिकारी रहेंगे. राजनीतिकरण होगा इसका. ये गलत है. राजनीतिकरण के खिलाफ हम हैं. इसलिए हम नहीं जाएंगे वहां. धर्म का मतलब उनको समझना पड़ेगा. बाकि का नहीं पता, लेकिन हम नही जाएंगे.

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अखिलेश यादव और सुप्रिया सुले की हां में भी ना छुपी हुई है

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव और एनसीपी की नेता सुप्रिया सुले ने इस हफ्ते जिस तरह की बातें की हैं उससे तो यही लगता है कि दोनों कन्फ्यूज हैं कि उन्हें क्या करना है? अखिलेश यादव ने इसी हफ्ते यह कहा था कि अगर राम मंदिर तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट उन्हें आमंत्रित करता है तो वो प्राण प्रतिष्ठा समारोह में जरूर शामिल होंगे. पर इसी बीच उनकी पार्टी के दूसरे सांसदों और नेताओं के जो बयान आए हैं उससे तो यही लगाता है अखिलेश राम मंदिर समारोह में जाने के लिए उत्साहित नहीं होंगे.

उनकी पार्टी के सांसद शफीकुर्रहान बर्क ने कहा है कि राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के दिन वो बाबरी मस्जिद जो हमसे छीनी गई उसके लिए दुआ करेंगे.इसी बीच सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने हिंदू धर्म के खिलाफ फिर जहर उगला है. ऐसी दशा में यही लगता है कि अखिलेश बुलावा नहीं आने का बहाना बनाकर राममंदिर समारोह से दूरी बनाना चाहते हैं. पर दूसरी तरफ विहिप के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने मीडिया से बातचीत में कहा है कि सपा मुखिया अखिलेश यादव व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत सभी प्रमुख दलों के प्रमुखों को आदरपूर्वक आमंत्रित किया जाएगा.

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उन्होंने यहां तक कहा है कि अगर आमंत्रण पत्र लेने के लिए विहिप व राम मंदिर तीर्थ क्षेत्र के पदाधिकारियों को मिलने का वक्त अखिलेश नहीं देंगे तो उन्हें डाक के माध्यम से आमंत्रण पत्र भेजा जाएगा. सुप्रिया सुले ने भी राम मंदिर जाने के बारे में यही कहा है कि, राम मंदिर का न्योता आने के बाद देखते हैं कि क्या करना है.

कांग्रेस नेता नहीं खोल रहे अपने पत्ते 

अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भाग लेने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और पार्टी की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी को निमंत्रण भेजा गया है. श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की तरफ से ये न्योता भेजा गया है. इससे पहले, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी निमंत्रण भेजा गया है. लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी को भी प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान का आमंत्रण पत्र सौंपा गया है.हालांकि कांग्रेस की तरफ से अभी तक इस तरह का कोई बयान नहीं आया है कि वो प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भाग लेंगे या नहीं.इससे यही लगता है कि कांग्रेस भी पशोपेश में है कि समारोह में शामिल हुआ जाए या नहीं . तेलंगाना में जिस तरह मुस्लिम समुदाय ने बीआरएस को छोड़कर कांग्रेस के लिए वोट किया है उससे ये संदेश गया है कि देश में मुस्लिम वोटर्स का भरोसा कांग्रेस जीत रही है. ऐसी स्थिति में कांग्रेस इस समारोह से अपने को दूर रखने की ही कोशिश करेगी.

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क्यों कहा जा रहा है कि समारोह में जाएं तो मुश्किल और न जाएं तो और भी मुश्किल

दरअसल इंडिया गठबंधन में शामिल अधिकतर पार्टियां मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए खुद को राम मंदिर आंदोलन से दूर रखती आईं हैं. आरजेडी और समाजवादी पार्टी की सरकारों ने राम मंदिर आंदोलन के खिलाफ अपने कठोर एक्शन के चलते इतिहास में अपना नाम दर्ज करा चुकी हैं. 1990 में लाल कृष्ण आडवाणी की रथयात्रा को बिहार में घुसते ही केवल रोका ही नहीं गया बल्कि आडवाणी की गिरफ्तारी भी हुई. बिहार के तत्कालीन मुख्य मंत्री लालू प्रसाद यादव मुस्लिम वोटर्स के बीच ऐसा हीरो बने कि आज भी अल्पसंख्यकों का वोट आरजेडी को ही जाता है. यूपी में 1990 में ही अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवाकर आंदोलन को जबरन दबाने का श्रेय यूपी के तत्कालीन सीएम मुलायम सिंह यादव ले चुके हैं.

लेकिन कांग्रेस अब अपने परंपरागत वोटर्स रहे मुसलमानों को फिऱ से अपने कैंप में लाने की कोशिश कर रही है. इस बीच पिछले 10 सालों में देश की राजनीति में इतना बदलाव आया है कि हर पार्टी यह दिखाने की कोशिश करने लगी है कि वो हिंदुओं की दुश्मन नहीं है. यही कारण है कि इन पार्टियों के संगठन में या विधायकों -सांसदों के टिकट वितरण में मुस्लिमों की संख्या कम होती जा रही है.कोई भी पार्टी यह नहीं दिखाना चाहती है कि वो मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए हिंदू हितों की अवहेलना कर रही है.मध्यप्रदेश-राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने सॉफ्ट हिंदुत्व की छवि बनाने के लिए तमाम ऐसे नियम कानून बनाए और बनाने का वादा किया जो सीधे हिंदुओं को फायदा पहुंचाने वाले थे.

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मुश्किल ये है कि सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे अगर नहीं जाते हैं तो बीजेपी को कांग्रेस नेताओं को एंटी हिंदू साबित करने का मौका मिल जाएगा. और अगर ये जाते हैं तो और अखिलेश यादव और मायावती नहीं जाते हैं मुसलमानों के वोट समाजवादी पार्टी और बीएसपी की तरफ शिफ्ट होने का खतरा हो जाएगा. बिल्कुल यही बात अखिलेश यादव और मायावती के साथ है. अगर ये लोग नहीं जाते हैं और कांग्रेस नेता समारोह में शामिल होते हैं तो इन्हें भी मुस्लिम वोट के कांग्रेस की ओर शिफ्ट होने का खतरा सताएगा. यही हाल नीतीश कुमार और तेजस्वी के लिए भी है. नीतीश कुमार एक तरफ हिंदुओं को खुश करने के लिए बिहार सरकार के खर्च पर सीता माता का मंदिर बनवा रहे हैं, किस मुंह से राम मंदिर समारोह में आने से इनकार कर सकेंगे.

इंडिया गठबंधन के सामने 4 ऑप्शन हैं

वृंदा करात के अलावा सीपीएम के जनरल सेकेट्री सीताराम येचुरी ने भी कह दिया है कि हमारी पार्टी का अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होने का कोई इरादा नहीं है. येचुरी ने कहा कि हमने किसी को कुछ नहीं कहा .वो आए थे निमंत्रण देने . हमने चाय कॉफी पूछी उनको . हमे निमंत्रण  मिला .उद्घाटन समारोह में पीएम और योगी -संत और मंदिर समिति के पदाधिकारी रहेंगे . समारोह का राजनीतिकरण होगा.  ये गलत है. हम समारोह के राजनीतिकरण के खिलाफ हैं . हम नहीं जाएंगे वहां इसलिए .धर्म का मतलब उनको समझना पड़ेगा . बाकी का नहीं पता, लेकिन हम नही जाएंगे . इस तरह देखा जाए तो इंडिया गठबंधन में शामिल कम्युनिस्ट पार्टियों ने तो अपना स्टैंड ले लिया है कि वे लोग राम लला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने नहीं जा रहे हैं. पर अन्य लोगों ने जाने या न जाने के संबंध में अब तक इस तरह का स्पष्ट फैसला नहीं किया है. मतलब साफ है अधिकतर दल अभी कन्फ्यूज हैं.

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इंडिया गठबंधन के सामने अब 4 ऑप्शन बचे हैं:

1- समारोह में शामिल होने सभी दल एक साथ जाएं.

2- समारोह में कोई भी शामिल न होने जाए.

3-स्वतंत्र छोड़ दिया जाए, मतलब जो जाना चाहे जाए और जो नहीं जाना चाहे वो नहीं जाए. अगर सभी पार्टियां 2 नंबर ऑप्शन चूज करती हैं और कम्युनिस्ट पार्टियों की तरह इस समारोह का बहिष्कार करती हैं तो क्या हो सकता है?

4. और आखिर में यह विकल्‍प है कि इस मुद्दे को विपक्षी गुट छुए ही नहीं, ताकि भाजपा को कोई पलटवार का मौका मिले.

देखा जाए तो रामंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बहिष्कार से भी विपक्ष को कोई नुकसान नहीं होने वाला है. पिछले दिनों आए विधानसभा चुनावों के रिजल्ट को देखें तो मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का खेला गया हिंदू कार्ड बुरी तरह असफल साबित हुआ है.

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