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राम मंदिर समारोह के बहिष्कार का INDIA ब्लॉक को फायदा होगा या कीमत चुकानी पड़ेगी?

अयोध्या के राम मंदिर उद्घाटन समारोह के बहिष्कार का असर तो होना ही है. ये फैसला INDIA ब्लॉक की सदस्य पार्टियों को मजबूती तो देगा, लेकिन हिंदुत्व के प्रभाव वाले राजनीतिक माहौल में विपक्षी गठबंधन का ये कदम, अभी तो काफी जोखिमभरा लगता है.

लोक सभा चुनाव में  INDIA ब्लॉक के नेताओं को अयोध्या न जाने की वजह समझानी होगी लोक सभा चुनाव में INDIA ब्लॉक के नेताओं को अयोध्या न जाने की वजह समझानी होगी
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 12 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 12:05 PM IST

22 जनवरी को अयोध्या में होने जा रहे राम मंदिर उद्घाटन समारोह को लेकर जबरदस्त माहौल बना हुआ है. सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक. बल्कि, गली-मोहल्ले और चाय-पान की ज्यादातर दुकानों पर हाल फिलहाल बस इसी बात की चर्चा चल रही है. 

राम मंदिर के मुद्दे पर शुरू से ही राजनीतिक बंटवारा देखने को मिला है. समाजवादी पार्टी और लालू यादव के राष्ट्रीय जनता दल तो मंदिर आंदोलन के सामने दीवार बन कर ही खड़े रहे हैं, लेकिन बीच-बीच में कांग्रेस को बीच का रास्ता अपनाते भी देखा गया है. 

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जैसे जीवन भर मुलायम सिंह यादव अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवाने की घटना की याद दिलाते रहे, लालू यादव बिहार में बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करने का जिक्र करते रहे हैं - कांग्रेस में राजीव गांधी सरकार में राम मंदिर का ताला खुलवाने को लेकर भारी उलझन देखी जा रही थी. 

तभी तो कभी प्रियंका गांधी वाड्रा राम मंदिर के लिए भूमिपूजन से पहले सोशल मीडिया पर अपना पक्ष रखती रहीं, और कभी राहुल गांधी अयोध्या और राम मंदिर के बहाने बीजेपी के हिंदुत्व और हिंदूवादी होने का फर्क बताने की कोशिश करते रहे. निश्चित तौर पर कांग्रेस नेतृत्व के लिए अयोध्या मसले पर कोई निर्णय ले पाना काफी मुश्किल रहा होगा.

राहुल गांधी और सोनिया गांधी को तो ममता बनर्जी का शुक्रगुजार होना चाहिये. जैसे तृणमूल कांग्रेस नेता ने आगे बढ़ कर स्टैंड लिया और राम मंदिर उद्घाटन समारोह में जाने से साफ साफ मना कर दिया, निश्चित तौर पर कांग्रेस नेतृत्व को अपना पक्ष तय करना थोड़ा आसान हुआ होगा. 

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बहरहाल, अब तो INDIA ब्लॉक के तकरीबन सभी सदस्यों ने राम मंदिर पर अपना रुख साफ कर दिया है. कांग्रेस इस कड़ी में आखिरी नहीं है, क्योंकि आम आदमी पार्टी की तरफ से अब भी यही कहा जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल को न्योता नहीं मिला है - और नीतीश कुमार के पक्ष में एक बात जा रही है कि आयोजन समिति के सदस्यों से फेस टू फेस मुलाकात नहीं हो सकी है.

कांग्रेस की तरफ से न्योता के 'ससम्मान अस्वीकार' करने के बाद तो अब जोखिम उठाने की सामूहिक जिम्मेदारी पूरे INDIA ब्लॉक पर आ ही गई है, लेकिन ये भी है कि जोखिमभरे फैसले अक्सर फायदेमंद भी होते हैं. 

आने वाले आम चुनाव के हिसाब से देखें तो ऐसे कई फैक्टर हैं जो INDIA ब्लॉक के नेताओं के लिए नफा-नुकसान का पैमाना बनने जा रहे हैं - आइये एक एक कर समझने की कोशिश करते हैं. 

1. सॉफ्ट हिंदुत्व की जगह धर्मनिरपेक्षता वाली राजनीति

राहुल गांधी के सॉफ्ट हिंदुत्व वाले प्रयोगों की श्रेणी में ही ममता बनर्जी के चंडी पाठ को भी जगह दी जाएगी. हां, अरविंद केजरीवाल का टीवी पर हनुमान चालीसा पढ़ना दो कदम आगे बढ़ा देने जैसा लगता है. नोटों पर लक्ष्मी और गणेश की तस्वीर लगाने की मांग के साथ ही अरविंद केजरीवाल का जय श्रीराम बोलना इस बात का सबसे बड़ा सबूत है. 

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ममता बनर्जी के स्टैंड लेने के बाद, अब कांग्रेस भी लगता है सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति से हमेशा के लिए तौबा करने जा रही है. अयोध्या समारोह से दूरी बनाने का फैसला तो यही इशारा करता है, लेकिन अभी ये बात पूरे INDIA ब्लॉक पर लागू नहीं समझी जानी चाहिये. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ही तरह दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का मन भी अभी डोल रहा लगता है. दोनों नेताओं की चुप्पी तो यही बता रही है.

बाकी बातें अपनी जगह हैं, लेकिन एक चीज तो पूरी तरह साफ लगती है - लोक सभा चुनाव में मुकाबला हिंदुत्व बनाम धर्मनिरपेक्षता की राजनीति में होने जा रहा है. 
   
2. विपक्षी एकजुटता के लिहाज से क्या माना जाये

INDIA ब्लॉक में अब भी नीतीश कुमार और अरविंद केजरीवाल ही कमजोर कड़ी नजर आ रहे हैं. बाकी नेताओं का रुख देखें तो बीजेपी के अयोध्या एजेंडे के खिलाफ विपक्षी खेमे के सभी नेता एक राय हैं, ऐसे में उन सभी को एकजुट माना जा सकता है. कम से कम इस मुद्दे पर तो कहा ही जा सकता है.

3. दक्षिण बनाम उत्तर की राजनीतिक बहस

अयोध्या पर INDIA ब्लॉक के नये रुख से दक्षिण बनाम उत्तर भारतीय राजनीति की बहस और गहराएगी, ऐसा लगता है. उत्तर भारत में बीजेपी के प्रभाव को देखते हुए कांग्रेस का दक्षिण की राजनीति पर ज्यादा जोर देखने को मिल सकता है.

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उत्तर भारत में बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुकाबले की मुख्य जिम्मेदारी समाजवादी पार्टी, आरजेडी और जेडीयू जैसी पार्टियों पर आ सकती है. विपक्षी गठबंधन की अगुवा होने के कारण निशाने पर सबसे ज्यादा तो कांग्रेस नेतृत्व ही रहने वाला है. 

4. जातीय राजनीति का कितना असर संभव

देश के पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में तो जातीय जनगणना कराने जैसी मांग का कोई भी असर नहीं हुआ, लेकिन लोक सभा चुनाव में जरूरी नहीं कि बिलकुल वैसा ही रिजल्ट देखने को मिले - क्योंकि दोनों चुनावों में एक बड़ा फर्क देखने को मिल सकता है. 

विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सामने बिखरा विपक्ष लड़ रहा था.  INDIA ब्लॉक में अगर सीटों के समझौते का मामला हल हो गया तो रास्ते की मुश्किलें काफी कम हो सकती हैं. बीजेपी के खिलाफ एकजुट विपक्ष का उम्मीदवार होना जीत की गारंटी तो नहीं है, लेकिन कड़े मुकाबले की बात से तो कोई भी इनकार नहीं कर सकता है. 

5. मुस्लिम वोट बैंक का रुख काफी अहम होगा

मुस्लिम वोटर का एकजुट होना बीजेपी के लिए काफी खतरनाक हो सकता है. 2021 के पश्चिम बंगाल के चुनाव नतीजों में बीजेपी इसका स्वाद चख भी चुकी है, और 2022 के यूपी चुनाव में समाजवादी पार्टी को मिले सबसे ज्यादा मुस्लिम विधायक अपनेआप में सबसे बड़े सबूत हैं. 

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यूपी में ही मुस्लिम वोटों के बंटने का असर आजमगढ़ उपचुनाव में देखा जा चुका है - यूपी बिहार की ही तरह ऐसे हर मुस्लिम आबादी वाले इलाके में विपक्ष बीजेपी को कड़ी टक्कर दे सकता है, और अयोध्या मुद्दे पर  INDIA ब्लॉक के नये स्टैंड के बाद ये बात और भी पक्की हो जाती है. 

6. सनातन के मुद्दे पर लड़ाई कहां तक जाएगी

अयोध्या पर  INDIA ब्लॉक के ताजा रुख पर बीजेपी नेताओं की प्रतिक्रिया से ये तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि विपक्ष को घेरने के लिए सत्ता पक्ष की तरफ से सनातन जैसे हथियार का भरपूर इस्तेमाल किया जाएगा - लेकिन  INDIA ब्लॉक ने ये इशारा तो कर ही दिया है कि इस मुद्दे पर वो कदम पीछे नहीं खींचने जा रहा है.

सनातन धर्म को खत्म करने वाले डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन के बयान पर जिस तरह का रिएक्शन कांग्रेस अध्यक्ष के बेटे प्रियांक खरगे का देखने को मिला, और आरजेडी नेताओं की प्रतिक्रिया सुनने को मिली - मान कर चलना होगा कि आगे भी विपक्ष की राजनीति उसी लाइन पर चलने वाली है. 

7. बीजेपी और मोदी से मुकाबला आसान या मुश्किल

निश्चित तौर पर हिंदुत्व के कवर में लिपटी बीजेपी को मोदी लहर का भी फायदा मिल सकता है, लेकिन कास्ट पॉलिटिक्स और मुस्लिम वोट बैंक को विभाजित करना बीजेपी के लिए मुश्किल हो सकता है, जो विपक्षी गठबंधन के लिए सीधा फायदा है.

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INDIA ब्लॉक के हिसाब से सोचें तो बीजेपी के हिंदुत्व पिच के मुकाबले, विपक्षी गठबंधन अपनी सेक्युलर छवि के साथ लोक सभा चुनाव के मैदान में उतरने जा रहा है. हां, सनातन के मुद्दे पर और बीजेपी के राष्ट्रवाद से कांग्रेस सहित INDIA ब्लॉक के सभी नेताओं को बीजेपी से कदम कदम पर कड़ा मुकाबला करना पड़ेगा. कुछ भी हो, और नतीजा जो भी देखने को मिले, एक बात तो पक्की है कि मुकाबला दिलचस्प होने जा रहा है.

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